Saturday, 15 October 2022

लकीरों का जाल और विधी का विधान

श्री ब्रज महाना सीमेंट प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ हैं। उन्हें सीमेंट उद्योग में व्यापक अनुभव है। वर्तमान में वह सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (भारत सरकार का उद्यम) में महाप्रबंधक (संचालन) है। विज्ञान को आत्मज्ञान से जोड़ता उनका रोमांचक अनुभव, उन्हीं के शब्दों में ।

लकीरों का जाल और विधी का विधान 
                                    -ब्रज महाना



कई बार मैं सोचता हूँ कि हाथों में जो लकीरों का जाल है उसका हमारे जीवन पर कुछ असर है क्या ? हाथ की रेखा से क्या भविष्य पढ़ा जा सकता है ? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो शायद आपके दिमाग में भी मंडराते होंगें । मेरा मानना है कि यह सब आस्था का सवाल है – ना मानो तो पत्थर , मानो तो भगवान । दरअसल आस्था भी समय के अनुसार बदलती रहती है । कितना भी घोर नास्तिक इंसान हो, उसे भी संकट काल में भगवान की याद आ जाती है। जहाँ तक मेरा प्रश्न है – मैं तो ईश्वर में शुरू से ही आस्था रखता रहा हूँ पर कभी परेशानी के समय उस परम सत्ता पर और अधिक विश्वास करता हूँ । कुछ ऐसा ही विपरीत समय आया था वर्ष 2003 में जिसका जिक्र मैं आपसे करने जा रहा हूँ ।

वर्ष 2003 वह वक्त था जब जिस कंपनी में मैं काम करता था, उसकी हालत बहुत खराब थी । अब एक तरह से देखा जाए तो कंपनी की हालत से ज्यादा उसमें से काम करने वाले बंदों की हालत पतली थी । हालात कुछ इस कदर तक खराब हो चले थे कि पता नहीं कब कंपनी के कारखाने पर ताला लग जाए या बिक जाए । उन दिनों वेतन भुगतान तक के लाले पड़ गए थे । उन्हीं दिनों कंपनी में कर्मचारियों की छटनी के उद्देश्य से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना ( वी. आर. एस) आ गई । फैक्टरी के अफसरों से लेकर मजदूरों तक सभी में खलबली मची हुई थी । मैं भी बहुत परेशान चल रहा था । क्या करूँ – क्या ना करूँ , कुछ समझ ही नहीं पा रहा था । भविष्य के प्रति चिंतित होना स्वाभाविक था । ऐसे समय में किसी ने सलाह दी कि पास के ही कस्बे – विकासनगर के प्रसिद्ध ज्योतिषी- बडोनी जी से मिलो। परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी थीं कि बात जँच गई और मैं अपनी पत्नी – नीता के साथ पहुँच गया पंडित जी के पास । पंडित जी ने मेरी समस्या को ध्यान से सुना, हाथ की रेखाओं का गहन विश्लेषण किया, कुछ देर ध्यान मग्न होने के बाद दो बातें कहीं । पहली – कंपनी बंद होने की चिंता मत करो। तुम्हारी नौकरी यहीं बनी रहेगी । दूसरी बात – गाड़ी ज़रा ध्यान से चलाना । कहीं ऐसा ना हो उसे फुटपाथ पर चढ़ा दो ।

पहली बात सुनकर मैं जितना प्रसन्न और आश्वस्त हुआ, दूसरी से उतना ही डर गया । पंडित जी से सुरक्षा – उपाय सुझाने की याचना की । पंडित जी ने अंगूठी में एक विशेष रत्न- धारण करने की सलाह दी । वह रत्न जिसकी कीमत 1200 या 1500 रुपये थी, पंडित जी के पास उपलब्ध था । उन दिनों के हिसाब से मुझ जैसे नौकरी-पेशा व्यक्ति के लिए वह कीमत अच्छी – खासी थी। साथ बैठी नीता ने सलाह दी कि कुछ दिनों बाद हम दिल्ली तो जा ही रहे हैं वहीं से खरीद लेंगे। वहाँ यह कम कीमत पर मिल जाएगा । पत्नी, जिसे घर भी चलाना होता है, की यह सलाह एक तरह से वाजिब थी पर मुझे उस वक्त चुभ गई । बाहर आकर नीता को मैंने इतना जरूर कहा ” ऐसे मामलों में छोटी-मोटी बचत बेमायने है । जब प्रश्न आस्था का हो तो या तो विश्वास मत करो, अगर करो तो पूरा विश्वास करो।“ नीता को बात समझ आई और जब वह पंडित जी के पास से ही रत्न खरीदने को तैयार हुई तो उसके लाख अनुरोध के बावजूद अब मैंने अड़ियल रुख अपना लिया कि अब तो दिल्ली से ही खरीदेंगें । शायद ईश्वर की यही इच्छा थी।

मुझे भली- भांति याद है, वह दिन था 23 मार्च 2003 का । राजबन ( हिमाचल प्रदेश ) से दिल्ली के लिए अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कुछ दिन बाद ही अपनी पत्नी नीता और आठ वर्षीया बिटिया श्रेया के साथ अपनी गाड़ी मारुती 800 से निकल लिया । सुहाने मौसम का आनंद लेते हुए 70-80 की सामान्य गति पर गाड़ी जी.टी रोड पर दौड़ रही थी । अभी मैं जैसे ही मुरथल (सोनीपत) के पास से गुजर रहा था , सामने से गलत दिशा में सड़क पर अचानक दूसरी गाड़ी दौड़ती हुई गई। टक्कर को बचाने के लिए मैंने झटके से अपनी गाड़ी का स्टीयरिंग दाहिनी ओर काट दिया । तेज रफ्तार में गाड़ी सड़क के डिवाइडर से टकराई और पूरी तरह से अपना संतुलन खोकर तीन-चार बार पलटी। मेरा सिर कार की छत से टकरा कर बुरी तरह से चोटिल हो गया । मैं बेहोश हो चुका था । नीता का पाँव घायल था । टक्कर की वजह से गाड़ी की खिड़की का शीशा टूट गया और मेरी बिटिया छिटक कर बाहर सड़क पर जा गिरी । उसके जांघ की हड्डी बुरी तरह से टूटने की वजह से वह दर्द से बिलबिला रही थी । अब आप सोच सकते हैं कि कितना भयानक दृश्य रहा होगा जब उस तूफ़ानी रफ्तार से दौड़ने वाली गाड़ियों के महाव्यस्त ट्रेफिक वाले दिल्ली – चंडीगढ़ जी टी रोड पर बीचो-बीच पड़ी वह नन्ही सी जान खतरे में थी । संयोग की बात थी उस दिन भारत और आस्ट्रेलिया का विश्व कप फाइनल क्रिकेट मेच होने के कारण सड़कों पर भी यातायात कम था । सड़क किनारे कुछ भले लोगों ने सहायता जुटाई। गाड़ी के दरवाजे जाम हो चुके थे, जैसे – तैसे मुझे बेहोशी की हालत में ही खींच कर बाहर निकाला । तब तक पुलिस की पी सी आर वेन भी आ चुकी थी । हम सबको मुरथल के सिविल अस्पताल में प्राथमिक उपचार दिया गया । दिल्ली अपने घर पर फोन टेलीफोन से इस दुर्घटना के बारे में सूचित कर दिया । बदहवासी की हालत में घरवाले गाड़ी से भागते -दौड़ते मुरथल अस्पताल पहुंचे और अपने साथ दिल्ली ले आए । यहाँ रात को सीधे चांदी राम अस्पताल में भर्ती करा दिया । मुझे उस समय तो तुरंत छुट्टी मिल गई लेकिन बाद में कुछ गंभीर समस्याओं के कारण गंगा राम अस्पताल में मस्तिष्क की जटिल सर्जरी भी करवानी पड़ी । नीता और श्रेया को गहरी चोटों के कारण लंबे समय तक कष्ट से गुजरना पड़ा ।
आज ईश्वर की कृपा से हम सभी स्वस्थ हैं, प्रसन्न हैं । जान बच गई यह कोई कम बात नहीं । आज सब घटना एक बूरे सपने की तरह यादों में रह गई है । रही बात पंडित जी की पहली भविष्यवाणी की, तो भाई लोगों मैं आज लगभग बीस वर्षों अंतराल के बाद भी उसी कंपनी में कार्यरत हूँ यद्यपि मेरे अधिकांश सहयोगी तत्कालीन वी आर एस छटनी की बाढ़ में बह गए ।
अपने आज के जीवन को मैं ईश्वर की देन मानता हूँ जिसने उस दुर्घटना में मेरी और परिवार की रक्षा की । यही तो मेरी आस्था है ।
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( प्रस्तुतकर्ता : मुकेश कौशिक )

17 comments:

  1. , Respected Mukesh Kaushik sir आपने आदरणीय महाना जी के बारे मै‌ लिखा‌ है‌ बहुत बड़ी या है‌ वह‌ एक महान इंसान ‌है।‌‌ सीमेंट industry‌ के ‌expert है।we wish him for his happy n healthy ‌ life.
    Thank you very much to you for written Lovely and truth about Respected Mahana ji

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  2. .....thank God

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  3. Terrible experience and the way you narrate the things is live today! Great gesture on your part to acknowledge something and express your gratitude in public!

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  4. I think, met Mahana ji at Tandur during Audit. Very nice helpful and cooperative officer. God bless him his family. Bharat Trivedi.

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  5. Mukeshji, you have re-lived the tragic incident. Thank God Mahana ji and family are with us. My take is whenever there is a question of astha either go for it fully or don't go for it.

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  6. Mukesh ji, kudos to you. You are a great storyteller. You have narrated the actual incident in the form of a story in such a beautiful way that one is compelled to read the story till the end.
    I believe that everything is predestined and the astrologer had predicted it well.

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  7. यह तो सच में एक चमत्कार ही हुआ और आपने इतने सुन्दर ढंग से शब्दो में बंधा हैं बहुत ही सराहनीय है।

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. धर्म हो या ज्योतिष यह सब आस्था का विषय हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। यह बात1997 की है । उन दिनो वेतन भी समय पर नहीं मिल रहा था। राजबन से दिल्ली ट्रांसफर हुआ था। दिल्ली में खर्च दुगने हो गए थे। बच्चों की फीस जो 395 रुपए थी 6000 हो गई। बहुत चिंता रहती थी कि खर्च कैसे चले । एक दिन जब मैं बाजार गई तो एक दुकान में पंडित जी मिल गए । मैने उनसे पूछा कुछ बता दीजिए पतिदेव के बारे में कि नौकरी कब तक रहेगी क्यूंकि cci बंद होने के कगार पर थी।पंडित जी ने कहा कल कुछ चावल लेकर आना उन्होंने चावल से कुछ प्रक्रिया करने के बाद कहा कि नौकरी को कुछ नहीं होगा और रिटायर भी यहीं से होंगे। जब मैंने पतिदेव को बताया बहुत नाराज हुए कि क्यों फालतू बातों में विश्वास करती हो। पर पंडित जी की बात सत्य हो गई। कुछ सालों बाद पंडित जी फिर मिले उन्होंने कहा आपके पतिदेव को पेट में परेशानी हैं ऑपरेशन की नौबत आ सकती है मैने सच नहीं समझा हष्ट पुष्ट आदमी को कोई समस्या कैसे हो सकती है। लेकिन मैं गलत साबित हुई क्योंकि कुछ समय बाद पति को गालब्लेडर का आपरेशन करवाना पड़ गया।

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  10. Ajay K Sabharwal17 October 2022 at 23:26

    Very well written and described Kaushik ji

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