मेरे दिवंगत पूज्य पिता श्री रमेश कौशिक बहुत ही विद्वान और प्रख्यात कवि थे । उनसे अक्सर बड़े ज्ञान की नसीहतें सुनने को मिला करती थीं । मैं भी उन्हें गांठ बांध लेता । आज भी उन्हें याद करता हूँ तो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर सहारा मिल जाता है । वह कहा करते थे अगर तनाव मुक्त जिंदगी गुजारनी है तो इंसान कम से कम ऐसा एक अच्छा शौक जरूर पाले जिसका उसके काम-धंधे से दूर-दूर तक कोई संबंध ना हो । बागवानी, खेलकूद , सैर सपाटा , फोटोग्राफी , पढ़ना -लिखना , खाना पकाना , समाज सेवा जैसे अनगिनत शौक हैं जिनमें मैंने अपने बहुत से दोस्तों को व्यस्त और मस्त देखा है । जिनका कोई शौक नहीं है उसका नौकरी का समय तो जैसे-तैसे रो-धो कर कट जाता है पर रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे में उनकी हालत भूतपूर्व मंत्री जैसी हो जाती है जिसकी ना तो मूंछ बाकी है और ना ही पूंछ ।
दिलीप कुमार राव : किसी हीरो से कम नहीं |
मेरे एक करीबी दोस्त हैं – दिलीप कुमार राव । फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार की तरह वह भी मुंबई में ही रहते हैं । बड़ा शानदार और प्रभावशाली व्यक्तित्व है उनका । हो सकता है उनके नामकरण के पीछे भी फिल्मी दिलीप साहब का ही प्रभाव रहा हो । उनके प्रशंसकों और दोस्तों की बहुत लंबी लिस्ट है जिनमें मैं भी शामिल हूँ । किसी जमाने में उसी कंपनी – सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया – में काम करते थे जिसमें मैं भी लंबे अरसे तक रहा । बहुत ही मिलनसार हैं – जिसे हम चलती भाषा में कहते हैं – यारों के यार । उन्हें कभी फोन कीजिए तो वर्ष 1956 के मशहूर फिल्मी गाने की मस्त कॉलर ट्यून सुनाई पड़ेगी – ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ , ज़रा हटके -ज़रा बचके – ये है बॉम्बे मेरे जाँ । सुनकर हंसी भी आती है और आश्चर्य भी होता है कि आज से 64 साल पहले भी बॉम्बे के ये हालात थे और आज के दिन भी कोरोना के मारे मुंबई का वही रोना है । हाँ तो मैं बात कर रहा था अपने मित्र दिलीप की । वैसे वह बंदा है गुणा -भाग वाला यानी फाइनेंस डिपार्टमेंट में काम करने वाला । इस लाइन में काम करने वालों को दुनिया अक्सर एक अलग ही नजर से देखती है – बहुत ही रूखे -सूखे , तेज-तर्रार जिन्हे हर छोटी बड़ी चीज़ को नफ़े – नुकसान की तराजू में तोलने की आदत होती है । लेकिन यह दुनिया तो उस भगवान की बनायी हुई है जिसने पाँचों उंगलियों को भी एक समान नहीं बनाया । सबसे हट कर अनोखे लोग हर जगह होते हैं और दिलीप भी उन्हीं में से एक हैं । संगीत का शौक उन्हें जुनून की हद तक है । बहुत तरह के साज़ बड़ी ही निपुणता से बजा लेते हैं जैसे – ढोलक, कीबोर्ड, हारमोनियम , माउथ ऑर्गन । जितनी गंभीरता से नौकरी कर रहे हैं उतनी ही जिम्मेदारी से समय निकाल लेते हैं जगह -जगह होने वाले संगीत कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए।
संगीत -साथियों की टोली |
हुनर तब और रंग लाता है अगर उसे दुनियादारी से दूर रखा जाए । असली कलाकार एक अलग ही दुनिया के वासी होते हैं और दिलीप भी उसी श्रेणी में हैं । फिल्मी दुनिया के बहुत से प्रसिद्ध कलाकारों में उठना -बैठना है पर खुद किसी भी तरह के दिखावे से बहुत दूर ।
परिचय की जरूरत नहीं : फ़ोटो खुद बोलता है |
दिलीप की मुझे जो सबसे अच्छी बात लगी – जिसने यह छोटी सी कहानी लिखने को मजबूर किया – वह है उनका संगीत के प्रति निस्वार्थ प्रेम । इतनी काबलियत होते हुए भी दिलीप ने संगीत को कमाई का जरिया नहीं बनाया । जगह -जगह जा कर अपने इस हुनर और शौक का इस्तेमाल करता है लोगों का मनोरंजन करने में । केवल जन-साधारण ही नहीं वह अस्पतालों में तकलीफें झेल रहे मरीजों का मन बहलाते हैं , उनके चेहरे पर मुस्कराहट लाते हैं । आप एक बारगी नीचे दी गई तीन मिनिट की वीडिओ क्लिप पूरी देख जाइए । मेरी तरह आपके चेहरे पर होगा एक सुकून, होंठों पर मुस्कराहट और दिल में एक प्यारे से गीत की याद :
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार , किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार , जीना इसी का नाम है ।
इस दुनिया को तुम से बहुत कुछ सीखना बाकी है दिलीप ।
Loved it..... Stay blessed sir
ReplyDeleteWow.... Proud to be your daughter papa.... There's no one like him. He's the best 😍
ReplyDeleteWoo,very good Dilip. Proud to be your sister. Thanks Mukesh,you wrote about Dilip.
DeleteSuch nice & engaging article 👌 u have perfectly described D.K.Rao uncle. Blessed to have known such selfless & talented person❤ Lots of love , Karishma
ReplyDeleteSuperb.Dilp Kumar Rao means our Jijaji is a real gem..we wont find a person like him anywhere.. he is unique..so helpful n always full of energy and inspiring..He loves everyone n very selfless.We r blessed to have him in our family.proud of you Jijaji.Always pray for your long life and
ReplyDeleteHappiness.loads of love.
asi shkshiyat bhot km hi dekhne ko milti he aapko naman he
ReplyDeleteMy real dost, thanks mukesh kaushik ji
ReplyDeleteExcellent piano song sung by D K Rao. It remember the old days of Nayagaon.
DeleteReally great contribution for the society at large through Music
ReplyDeleteसमारोहों में संगीत सुनाने वालों से तो बहुत बार मिले थे, पहली बार अस्पताल में संगीत सुनाने वाले कलाकार के विषय में जाना । परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । इतना मधुर संगीत अगर अस्पताल में सुनने को मिल जाए तो मैं वहाँ भी जाने को तैयार हूँ । माँ शारदा का आशीर्वाद सब को नहीं मिलता । जिन्हें यह आशीर्वाद मिला है, उन्हें दिलीप जी से निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा लेनी चाहिए ।
ReplyDeleteसन् 1985 से हम भी प्रत्यक्षदर्शी हैं आदरणीय दिलीप जी की जीवन जीनेकी कला के । हमारे मित्रगण में डीके के नाम से हम पुकारते हैं । सच में ही अति विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी हैं डीके !! चेहरे पर मुस्कान के साथ उनके आतिथ्य भाव के हम सभी कायल हैं । पलकें बिछाकर स्वागत करते हैं वे अपनी जीवन संगिनी शोभना के साथ...ऐसा अनुभव हम सबने किया है जब भी उनके यहाँ मुम्बई जाना हुआ है । ईश्वर से प्रार्थना करते हैं वे सपरिवार स्वस्थ रहें मस्त रहें और समाज में अपनी जिन्दादिली हमेशा बनाये रखें । आदरणीय मुकेश कौशिक जी धन्यवाद व साधुवाद के पात्र हैं डीके की शख्शियत को हम सब के सामने प्रस्तुत करने के लिये । ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ....रविशंकर वर्मा , सुरत, गुजरात
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा वर्मा जी आपने डीके राव जी के बारे में
Deleteबिल्कुल सही कहा वर्मा जी आपने डीके राव जी के बारे में
DeleteVery nice music therapy 👍👌
ReplyDeleteR.C.Vinod
आ.कौशिक सा.सादर प्रणाम, मेरे ख्याल से आपने छोटे से लेख में सम्पूर्णता के साथ दिलीप भाई के जीवन चरित्र और घटनाओं का उल्लेख कर दिया कहने का मतलब कि एक एक मोती को पिरोते हुवे पूरी माला का स्वरूप प्रदान कर दिया अब आगे की दास्तां भी मुझ से सुन लिजिये, नयागांव मे दिलीप राव और मैने लगभग एक साथ ही सीसीआई मे नौकरी की शुरुआत की थी मैं 21.02.1980 को नियुक्त हुआ था ओर दिलीप ने मुझसे एक सप्ताह पहले ही ज्वाइन किया था मगर हमारे विचार ओर शौक मिलते जुलते ही थे तो जोड़ी खुब जमी और फिर ये सज्जन 1987 के आसपास मुम्बई स्थानांतरित हो गए मगर सिलसिला बादस्तूर चलता रहा जो आज भी कायम है, हां 2005 मे, मेरी भी पोस्टिंग पूणे मार्केटिंग फायनेंस मे हो गई ओर फिर वापस नजदीकियां हो गई फिर तो दिलीप और मैं ऐसे एकमेव हुवे कि जैसे खो खो का खेल हमारे बीच प्रबंधवर्ग ने शुरू करवा दिया दिलीप का मुम्बई से हैदराबाद स्थानांतरण हुआ तो मुझे ही मुम्बई का कार्यभार मिला फिर दिलीप भाई गुलबर्गा से सेवा निवृत्त हुवे तो मुझे ही वहां जाना पड़ा आज मैं भी निवृत्त हो चुका हूं मगर दोस्ती और वार्ताओं मे और भी प्रगाढ़ता बढ़ गई है कि वो गीत याद आता है कि "लागी छूटे ना.....। दिलीप के बारे मे लिखने को इतना है कि कोरे पन्ने भरते जायेंगे ओर कागज कम पड़ जायेंगे मगर दास्तान खत्म नहीं होगीं, अपनी बात पूरी करते हुवे यही कहूंगा कि ये उस मासूम बच्चे की तरह है जिसके दिल में कभी भी किसी के लिए बैरभाव नहीं रहता चाहे सामने वाले का व्यवहार कैसा भी हो ये उसके लिए भी निष्कपट रहता है जिसने इसको कष्ट भी दिया है शायद ऊपरवाले ने भी अब उस डाई को तोड दिया है जिस डाई से दिलीप राव का निर्माण हुआ था आपने बिल्कुल सही लिखा कि यारों का यार है उसमें कुछ जोड़ रहा हूं (माफी चाहता हूं) ये तो इसके दुश्मनों का भी यार है उनका भी कभी बुरा करना तो दूर,बुरा सोचता भी नहीं है.कौशिक सा.आपको बहुत बहुत बधाइयां कि आपने आज इतना अच्छा प्रसंग लिखा.धन्यवाद।
ReplyDeleteसुनील शर्मा, नीमच
सुनील जी आप इतना अच्छा लिखते हो तो इतना अच्छा स्टेज पर बोलते हो कि सुनके पढ़ कर मजा आ जाता है आप भी अपना ब्लॉगिंग साइट खोल सकते हो
Deleteकौसिकजी पहले तो आपको बधाई क्योंकि आपने DK के बारे मे इतना कुछ बताया वाकई ये बहुत ही शानदार व्यक्तितव के धनी हैं और यारों के यार है इनमें मित्रों के लिए असीम प्यार है ईश्वर इन्हे स्वस्थ रखे दीर्घायु हो ऐसी प्रार्थना करते हुए शुभकामना देता हूं
ReplyDeleteबचपन के मित्र का कोटि कोटि नमन। Deep
Dear dilip Rao,urf my dev Anand,I am proud to be your friend,I'm my life i have not seen friend like you,you are helping the person you know,without seeing rich or poor,what ever you can do you do more then that,I wish every person should have one friend like you, I am very lucky, I have you, prey to god, bless you and your family.
ReplyDeleteWe all are lucky to have him as our friend
ReplyDeleteहम बचपन से साथ पढ़े हुए हैं उस समय का व्यक्तित्व भी इसी तरह का सादा और सभी चिजो में पार्टिसिपेट करना। ऐसा ही नेचर पिता और माताजी का भी था। सादा जीवन और उच्च विचारों के धनी थे। आगे बढ़कर दोस्ती करना स्वभाव में था जो दिलिप ने भी पाया । मगर एक बात है कि मुम्बई जैसी महानगरी में जाकर समय निकाल कर लोगों के जिवन मे खुशियां एवं उत्साह भरने की काबिलियत के कारण मुम्बई जैसी नगरी में सब को मोटीवेट कर गुरुप बना लेना वो पुरुष ही नहीं महिलाओं को भी शामिल कर लाइव प्रदर्शन करना महानता ही कहलायेगी ।हम नागदा के सभी छात्रो को खुशी है हमारे दिलिप भाई इतने प्रचलित कलाकार के रुप में अपना स्थान बना चुके हैं। हमारी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं
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