Monday, 13 July 2020

मासूम पुकार

आज की आपको जो किस्सा सुनाने जा रहा हूँ वह उसी कहानी का एक तरह से हिस्सा है जो आज से तकरीबन दो साल पहले सुनाई थी ; मैं जिंदा हूँ । इसमें एक जीप दुर्घटना का वर्णन था । अगर आपकी याद के पिटारे से वह कहानी गायब हो चुकी है तो फिर से याद ताज़ा कर सकते हैं दिए गए कहानी के लिंक पर क्लिक करके :  मैं जिंदा हूँ अभी । 

19 अगस्त - वर्ष 1996 – दिन सोमवार – समय लगभग सुबह सवा नौ बजे का – स्थान हिमाचल प्रदेश में सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की राजबन फैक्ट्री । ड्राइवर कर्म चंद मेरे आफिस में बैठ कर विभाग के कर्मचारियों के साथ बतिया रहा था । कुछ ही देर बाद उसे अपनी जीप में लेडी डॉक्टर – शैल सहगल को 15 किलोमीटर दूर बसे खदान के इलाके में ले जाना था । वहाँ पर भी भरी -पूरी कॉलोनी है जिसमें रहने वाले कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों को डिस्पेंसरी में इलाज की सुविधा दी जाती है । कर्म चंद की खिलखिलाती आवाज मेरे कमरे तक आ रही थी । वह अपने कुछ ही महीने बाद होने वाले अपने रिटायरमेंट की योजना बना रहा था । बता रहा था कि इस खटारा जीप को भी कंपनी से खरीद कर अपने साथ ही ले जाएगा । मैं उसकी इन भोली बातों को सुन कर मंद – मंद मुस्करा रहा था । चलते -चलते बोला अभी तो जा रहा हूँ – वापिस लौट कर दोपहर को घर पर लंच में बैंगन की सब्जी बनाई हुई है वही खाऊँगा । अपने आफिस की खिड़की से मैं उसकी बूढ़ी- जर्जर जीप को शोर-मचाते - धुआँ उड़ाते आँखों से ओझल होते देखा । 
अब आगे की आपबीती डॉक्टर शैल सहगल के मुंह से : 
 लाड़ली वसुधा और  माँ  डॉ ० शैल (9  जनवरी 1997)

"मैं कॉलोनी के अपने क्वाटर में बैठी इंतजार कर रहीं थी जीप का जिसे आज की ड्यूटी के लिए माइंस कॉलोनी लेकर जाना था । जीप का हॉर्न सुन कर घर से बाहर निकलने लगीं । जाने से पहले एक बारगी अपनी छ: माह की छोटी से बच्ची -वसुधा को प्यार से पुचकारा और जीप की ओर तेजी से कदम बढ़ा दिए । मेरे पति - डाक्टर संजीव सहगल भी राजबन में ही कार्यरत थे । हम लोगों का मिलनसार व्यवहार की वजह से सभी स्नेह और सम्मान करते थे । ऊबड़ -खाबड़ धूल भरे पहाड़ी रास्तों पर हिचकोले खाती जीप मानल खदान की डिस्पेंसरी की ओर ले चली । वहाँ पहुँच कर लगभग एक घंटे तक मरीजों को देखने का काम चला । काम निपटा कर वापिस राजबन की ओर चल पड़े । 

सरकारी जीप अपनी मंद गति से चली जा रही थी । टूटी-फूटी सड़क के गड्ढे उस जीप को बुरी तरह से झकझोर रहे थे । खड़खड़ाहट की आवाज इतनी तेज हो रही थी कि उसके आगे हॉर्न की आवाज भी बेमानी लग रही थी । ड्राइवर कर्म चंद इस सबका अभ्यस्त था । उस खटारा गाड़ी में रोज-रोज आने वाली दिक्कतों और खराबियों की आला अफसरों से शिकायत करने के अलावा वह कर भी क्या सकता था । वो शिकायतें जो हमेशा अनसुनी रह जातीं । मन मसोस कर वह खुद को दिलासा देता – एनी हाऊ . . . . काम चलाओ । लेकिन आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था । गाड़ी की चाल कुछ ज्यादा ही अजीब तरीके से हो रही थी । ड्राइवर की ओर देखा – वह अपने आप में ही मगन , दीनो-दुनिया से बेखबर । उसकी तरफ का दरवाजा लॉक खराब होने के कारण बार -बार खुल जाया करता था इसलिए तार से ही बांध कर जुगाड़ बना हुआ था । उस खतरनाक जुगाड़ को देख कर मेरे मन में आश्चर्य , खीझ और अनजाने डर की मिश्रित भावनाएं उठ रहीं थी । कई बार हालात इस तरह के बन जाते हैं कि मजबूरी में इंसान को अन्याय भी सहना पड़ जाता है । नौकरी और जिम्मेदारी से बड़ी लाचारी और मजबूरी शायद दूसरी कोई नहीं । जीप जिस रास्ते पर वापिस राजबन की ओर जा रही थी उस मोड़दार सड़क के एक तरफ़ पहाड़ थे और दूसरी ओर गहरी खाई , घाटी और बहती हुई गिरी नाम की नदी । अचानक पता नहीं क्या हुआ मैंने नोट किया– जीप अनियंत्रित होकर सड़क से उतर कर खाई की ओर के कच्चे कटाव पर दौड़ रही हैं । तुरंत ड्राइवर को सचेत भी किया पर कर्म चंद खामोश रहा । शायद वह उस खतरनाक हालात पर काबू करने में व्यस्त था । होनी को कुछ और ही मंजूर था - भरसक कोशिशों के बावजूद जीप पागल हाथी बन चुकी थी जिस पर महावत का कोई भी जोर नहीं चल पा रहा था । उन खतरनाक लम्हों में भी मेरे दिमाग में तब भी अडिग विश्वास था कि कुछ भी अनहोनी नहीं होगी – जो भी होगा सब ठीक ही होगा । इसके बाद कुछ और सोचने का मौका ही नहीं मिला – जीप पूरी तरह से बेकाबू होकर सड़क किनारे की कच्ची मिट्टी को काटते हुए गहरी खाई की ओर बढ़ चली थी । जीप अपना संतुलन खो चुकी थी और लगातार पलटियाँ खाते हुए गहरी खाई में नीचे – और नीचे लुढ़कती जा रही थी । हर पलटी के साथ मैं और ड्राइवर भी अंदर ही चक्कर खा रहे थे । गिरती हुई जीप की छत से सिर टकराया और मैं बेहोश । उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं । मौके पर मौजूद चश्मदीदों के अनुसार खाई में गिरने तक जीप ने चार पलटियाँ मारी ।इस दौरान नीचे गिरते हुए जगह -जगह पेड़ों से भी टकराती रही और हर टक्कर पर जीप के परखचे हवा में उड़ते रहे । ऐसी ही किसी पेड़ की टक्कर के जबरदस्त धक्के ने मुझे बेहोशी की हालत में ही जीप के पिछले टूटे दरवाजे के रास्ते हवा में उड़ाते हुए पास की जमीन पर ला पटका । कितनी देर तक उस हालत में रही आज भी पता नहीं । भाग्य साथ दे रहा था – जहाँ मैं खून से लथपथ बेहोश पड़ी थी वहाँ पर पास में ही पहाड़ी झरना बह रहा था । उससे छिटक कर आती पानी की बौछार ने मानों अमृत का काम किया । कुछ ही देर बाद मुझे होश या चुका था । शरीर असहनीय पीड़ा से छटपटा रहा था । शरीर कीचड़ और खून से लथपथ था । कर्म चंद को आवाज दी – पर जीप और उसका कुछ पता नहीं था । शायद वह नीचे खंदक की और गहराइयों में समा चुकी थी । सिर में लगी गहरी चोट की वजह से सोचने – समझने की शक्ति एक तरह से गायब हो चुकी थी । मेरे सिर में गहरे घाव की वजह से लगातार खून रिस-रिस कर चेहरे पर आ रहा था । पाँच जगह से हड्डियाँ टूट चुकी थी ।लेकिन मेरा अवचेतन मन ( subconscious mind) पूरी शक्ति से काम कर रहा था । वह अवचेतन मन जो बार बार मेरे कान में कह रहा था कि तुम्हें अभी और जीना है – तुम्हें किसी भी कीमत पर अपनी जान बचानी है । तुम्हारी मौत किसी भी हालत में इस जगह और इस वक्त नहीं लिखी है । गहरी खाई से ही ऊपर की ओर नजर दौड़ाई - देखा जहाँ से होकर सड़क गुजर रही थी । पता नहीं किस अदृश्य शक्ति ने शरीर में इतनी ताकत भर दी मैंने धीरे -धीरे डगमगाते कदमों से आगे ऊपर चढ़ना शुरू किया । सहारे के लिए पहाड़ पर उगी लंबी घास और पेड़-पौधों की टहनियों पर अपने घायल हाथों की पकड़ बनाते हुए ऊपर चढ़ती जा रही थी । जीवन की उत्कंठा ने शरीर के असहनीय दर्द को मानों गायब ही कर दिया था । जैसे -तैसे करके सड़क तक पहुंची । आती -जाती गाड़ियों को हाथ देकर रोकना चाहा पर मेरे खून और कीचड़ से सने घायल शरीर को देखकर कोई भी गाड़ी रुकने को तैयार नहीं थी । इसी बीच में वहाँ से गुजरते हुए एक ट्रक – ड्राइवर ने मुझे पहचान लिया । वह राजबन के पास के ही किसी इलाके का रहने वाला था । उसने तुरंत ट्रक रोका - उसी ट्रक से मैं राजबन के लिए चल पड़ी । ड्राइवर से पानी मांगा – अपने चेहरे को धोया जो शायद मुझे होश में रखने के लिए जरूरी भी था । राजबन की सीमा पर पहुंचते ही सबसे पहले ड्राइवर को फेक्टरी के मेन गेट पर ट्रक रोकने को कहा । वहीं पर सिक्योरिटी स्टाफ को मैंने उस दुर्घटना के बारे में सूचित किया और बताया कि कर्म चंद के बारे में तुरत पता किया जाए । ट्रक मुझे आगे कॉलोनी में घर पर छोड़ने ले चला । मुझे सहारा देकर नीचे उतार गया और घर पहुंची । वहाँ पहुंचते ही इस हादसे की खबर आग की तरह से फैल गई । दुर्घटना -स्थल पर आपातकालीन सहायता टीम दौड़ाई गई । पता चला कर्म चंद मेरे जितना भाग्यशाली नहीं रहा – उस दुर्घटना में उसके प्राण नहीं बच सके । ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे । 

 मेरा लंबा इलाज चला । मन की शक्ति ने तन की शक्ति वापिस लाने में पूरा साथ दिया । आज मैं उस ईश्वर पर पूरी आस्था रखते हुए उस हादसे की डरावनी यादों से पूरी तरह से मुक्त हूँ । डॉक्टर के रूप में जो भी सेवा इस समाज की कर सकती हूँ वह आज भी कर रही हूँ ।" 
आज : सुखी  सहगल परिवार 
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डॉक्टर शैल ने तो अपनी कहानी कह दी पर चलते -चलते उनकी इस आपबीती पर मैं अपना नज़रिया जरूर रखना चाहूँगा । जहाँ तक दिवंगत कर्म चंद ड्राइवर का प्रश्न है – वह भी बहुत ही भला और प्यारा इंसान था पर जीवन और मृत्यु उस विधाता के द्वारा ही निश्चित है । फिर भी आपके शुभ कर्म और लोगों से मिली शुभकामनाएं भी रक्षा कवच बन कर विपत्ति में साथ निभाती हैं । डॉक्टर शैल के साथ उनके मरीजों की दुआएं तो थी हीं , उसके अलावा उस 6 माह की छोटी बिटिया – वसुधा की मासूम पुकार भी थी जो उस संकट की घड़ी में सुरक्षा प्रदान कर रही थी । अब आप मानो या ना मानो – मैंने अपनी बात कह दी क्योंकि नजरिया अपना -अपना होता है । हैं ना ?
                                        🌺श्रद्धांजली 🌺


दिवंगत कर्म चंद 

6 comments:

  1. पुरुषोत्तम कुमार14 July 2020 at 00:00

    आपने वादा निभाया और अपनी साख सुनिश्चित कर ली।
    कर्मो का खेल है सारा और प्रारब्ध भी कर्मो से ही बनते हैं, जिसमें दुआऔं की शक्ति को भी नकारा नहीं जा सकता।

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  2. मैं 2003 से लेकर 2017 का राज बन में कार्यरत था इसलिए मैं इस घटना से थोड़ा बहुत परिचित था परंतु आपने इतने सुंदर ढंग से इस घटना के बारे में बताया है की छोटी-छोटी की भी पता चल गई है इसी तरह की एकघटना राज बन में लाइमस्टोन की ट्रॉली में भी शायद हुई थी

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  3. शैल आप सचमुच भाग्यशाली और बहादुर महिला हैं।कहनी पढ़ कर वह कठिन समय याद आ गया। ईश्वर आप को दीर्घायु करे।

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  4. niswarth seva kbhi vyarth nhi jati dua or prarthna me bhot asr hota he long live mam salute to u

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  5. कहानी का अंत सुखद है ,यह मालूम होते हुए भी पूरी कहानी को एक साँस में पढ़ गई क्योंकि आदि से अंत तक यही उत्सुकता बनी रही कि अब क्या होगा । यह आपकी लेखनी का कमाल है जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ।सचमुच उस मासूम की
    पुकार सुनकर ही ईश्वर ने डाॅ साहिबा को उन संकट
    की घड़ियों में मॄत्यु से जूझने की शक्ति दी होगी ।इस के लिए ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ ।

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  6. Great. God has saved. God is every where. Thanks to Kaushik ji for well presentation.
    J.P.Yadav

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