किसी ने शायद ठीक ही कहा है कि यह जो ज़िंदगी है बड़ी ज़ालिम चीज़ है | कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है | पर भाई मेरे उन हालात को क्या कहें जो आपकी एक आँख को रोने को और दूसरी को हँसने को मजबूर कर दे | है ना अजीब बात , पर सच में कभी -कभी होता है ऐसा भी | याद करिए हो सकता है शायद आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ हो | चलिए अब आप की बात आप के साथ, मैं आदत से मजबूर कुछ अपनी आप बीती सुनाता हूँ |
तो यह बात है आज से तकरीबन 25 साल पुरानी , यानी साल रहा होगा 1996 का और मैं सी सी आई के पश्चिमी बंगाल के मधुकुंडा प्लांट से नया नया ट्रांसफर होकर हिमाचल प्रदेश के राजबन प्लांट में आया था | कहने को ही मैं राजबन के लिए नया था क्योंकि दरअसल राजबन में मेरी यह दूसरी पोस्टिंग थी और इससे पहले मैं 1978 से 1982 के दौरान वहां के कार्मिक व् प्रशासन विभाग में कार्यरत था | बस यह समझ लीजिए कि पुरानी जगह , पुराने लोग , कुल मिलकर समय मस्ती में कट रहा था बस फर्क था तो इतना सा कि इस बार में मार्केटिंग विभाग में आ चुका था | हिमाचल प्रदेश के घने जंगलों और पहाड़ पर बनी इस फेक्ट्री में लगभग 600 लोग काम करते थे | इस फेक्ट्री से लगभग 15 किलोमीटर दूर माइंस थी | वहां माइंस में भी वहां के कर्मचारियों के लिए राजबन की तरह से ही पूरा दफ्तर , टाउनशिप , हेल्थ सेंटर आदि हैं | डाक्टरों की कमीं होने के कारण राजबन में नियुक्त डाक्टर ही माइंस में भी जा कर मरीजों को देख कर वापिस आते थे |
वह दिन भी और दिनों की तरह से ही था | दोपहर को लंच के लिए ठीक 12 बजे फेक्ट्री का सायरन बजा और ड्यूटी के सभी कर्मचारी फेक्ट्री की बगल में ही स्थित टाउनशिप में बने अपने अपने क्वाटरों को चल दिए । मैं भी तब तक अपने घर पहुँच चुका था और खाने की मेज पर बैठा ही था कि अचानक टेलीफोन की घंटी बजी | अब वो मोबाइल फोन का ज़माना तो था नहीं , घर पर दो तरह के सरकारी टेलीफोन हुआ करते थे एक फेक्ट्री के अन्दर की आपस की बातों के लिए इंटरकाम और दूसरा उस जंगल से बाहर की दुनिया को जोड़ने वाला बी एस एन एल फोन | आने वाला फोन इंटर काम पर था और लाइन पर दूसरी तरफ जनरल मैनेजेर श्री आर. विश्वनाथन थे | आवाज़ उनकी कुछ घबराई हुई थी, बोले “कौशिक माइंस से लेडी डाक्टर को लेकर वापिस लौट रही जीप पहाड़ से नीचे खाई में लुढ़क कर दुर्घटनाग्रस्त हो गई है | सुना है ड्राईवर की तो शायद मौके पर ही मौत हो गयी है | तुरंत जाकर पता करो और मुझे बताओ क्योंकि मामला बड़ा तनावपूर्ण लग रहा है और फेक्ट्री में भी हंगामा हो सकता है | फेक्ट्री के कुछ वर्कर्स गुस्से में दुर्घटनास्थल की ओर निकल लिए हैं | तुम पुराने आदमी हो उन्हें भी समझाओ और शांत करो |” एक बारगी तो सारी बात सुनकर मेरी भी हवाईयां उड़ गईं | सोचा - हे भगवान् ! यूँ तो मै जात-पात से कोसों दूर हूँ पर यह बता कि जब तूने मुझे पैदा किया ब्राह्मण कुल में , उसके बाद जब बनिया बना कर सीमेंट बिकवाया मैं खामोश रहा पर अब क्षत्रिय बना कर क्यों मुझे रणभूमि में भेजकर पिटवाने पर तुले हो , किस जनम का बैर निकाल रहे हो| भगवान् जहां मैं काम करता हूँ वो सी सी आई है , भारतीय सेना नहीं जहां वीरता दिखाने पर शौर्य चक्र और परमवीर चक्र मिल जाते हैं | यहाँ तो पिटाई होगी भरपूर और ऊपर से वीर चक्र की बात तो भूल ही जाओ , ऊपर वालों से सुनने को मिलेगा कि तुमने हालात को ढ़ंग से हेंडल नहीं किया | वही बात कि मुर्गे की जान गई और खाने वाले को मज़ा नहीं आया |” पर अब क्या बताऊँ , उस पत्थरदिल भगवान् ने ना तो आज तक किसी की फ़रियाद सुनी है और न ही उस दिन सुनी | मरता क्या न करता कान दबाकर चुपचाप बाहर जीप में जाकर बैठ गया जो मुझे मैदानेजंग में लेजाने के लिए जनरल ( मैनेजेर नहीं ) साहब ने भिजवा दी थी |
जीप चली तो दिमाग में तरह तरह के ख्याल आने शुरू हो गए | अरे रणभूमि को चलते वक्त अपनी रानी पद्मावती से तिलक करवाना तो भूल ही गया | कुछ उल्टा-पुल्टा हो भी गया तो जोहर करने की नौबत आयेगी या नहीं | अगर खुदा न खास्ता ऐसा कुछ हुआ तो हमारी श्रीमती तो उनमें से हैं जो जरा सा गरम तवे पर गलती से भी हाथ पड़ जाए तो जो चीख निकलती है उसके आगे फेक्ट्री का सायरन भी शरमा जाए | कभी सोच आ रही थी कि आखिर हम मार्केटिंग के लोगों ने पिछले जनम में ऐसा क्या पाप कर दिया कि हर सब्जी में जैसे आलू को चेप दिया जाता है , वैसे ही हर पंगे में हमें बंदर बनाकर पेल दिया जाता है | अब तक मेरी इन बातों को सुनकर आप अच्छी तरह से समझ ही चुके होंगे कि भारतीय सेना में जब सबकी रेजीमेंट है - गोरखा, सिख, जाट, बिहार, मद्रास , तो मुझ जैसे पंडतों को क्यों बक्श दिया गया |
जैसे तेसे राम नाम का जाप करते करते उस मनहूस जगह तक पहुंचा | तब तक ऊपर पहाडी सड़क के मोड़ पर काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी जो नीचे करीब 200 मीटर गहरी खाई की तरफ ताक रहे थे | ऐसे समय पर यह स्वाभाविक भी था | हमारा देश है ही ऐसा जहां हर चीज़ की कमीं है , नहीं है तो सिर्फ एक चीज़ की - तमाशबीनों की | सड़क पर आप बन्दर नचाना शुरू कर दीजिए और देख लीजिए इतनी भीड़ आपके इर्द गिर्द जमा हो जायेगी कि लोग समझेंगे कि शायद केटरीना कैफ - सलमान की किसी फिल्म की शूटिंग हो रही है |
खैर …. सड़क से ही नीचे खाई में जैसे ही मैंने झाँका मेरे होश उड़ गए | गहरे खड्ड में जीप टूटी फूटी हालत में अपनी दास्ताँ खुद कह रही थी | ड्राइवर जिसका नाम करम चंद था , की हालत देखने के लिए कांपते पैरों से मैंने नीचे खाई में धीरे-धीरे उतरना शुरू कर दिया | नीचे जाने के दौरान जगह-जगह जीप के टूटे फूटे पुर्जे , पहिए, सीट , बैटरी बिखरी पडी थी जो दिल की दहशत को और बढ़ाती जा रही थी | आखिरकार लडखडाते हुए जीप तक पहुँच ही गया | वो दर्दनाक मंजर आज तक मेरे दृष्टिपटल पर अंकित है | जीप नाम की ही जीप रह गई थी, बचा था तो सिर्फ एक नाम का अस्थिपंजर | जीप के साथ ही एक कोने में पड़ा था वो शख्स जो कुछ समय पहले तक एक जीता जागता इंसान था | वो इंसान जिसे महज कुछ घंटे पहले ही मैंने अपने डिपार्टमेंट में किसी क्लर्क से बतियाते हुए सुना था कि अभी तो डाक्टर साहिबा को लेकर ऊपर माइंस जा रहा हूँ , लंच वापिस आकर आज राजबन में ही करूँगा | मेरा दिमाग सुन्न पड़ चुका था , खामोशी से देखे जा रहा था इस विचार के साथ कि क्या आज इसको ऊपर जाने से पहले खाना भी नसीब में नहीं था |
दिवंगत कर्म चंद , ड्राइवर |
सही मायनों में अब देखने के लिए कुछ बाकी भी नहीं था तो शरीर की बची कुची शक्ति बटोर कर मैंने वापिस लौटने के लिए ऊपर की चढ़ाई शरू कर दी | लगा आसपास के सारे पहाड़ घूम रहे हैं और नीचे की धरती डोल रही है | एक तो दिमाग में वो खौफ़नाक मंजर दूसरे सुबह से खाली पेट , अचानक आँखों के आगे लगा अँधेरा छा गया और मैं लडखडाते कदमों से चक्कर खाकर पास की एक झाड़ी में जा गिरा | अब हालात ये कि उस नीम बेहोशी की हालत में मेरी आँखे कमजोरी के मारे बंद थी पर कानों में इर्द गिर्द की आवाज़े लगातार जारी थी | जिन तमाशबीनों की फ़ौज को मैं ऊपर सड़क पर छोड़ कर आया था वे सब झुण्ड में नीचे आते जा रहे थे | उनका शोरगुल भी उनके द्वारा की जा रही ख़ोज की मुनियादी करता जा रहा था मसलन : “अरे वो देख जीप का दरवाजा , अरे गाडी की बैटरी, कांच के टुकड़े , जीप के तो परखचे उड़ गए रे | ओ भाई जी देख रहा है ड्राइवर की वहां बाडी पडी है |” अब यहाँ तक तो सब ठीक ही था पर अचानक मेरे कान के पास किसी ने जोरदार चीख मारी : “भाई जी , भाई जी एक लाश यहाँ भी पड़ी है |” इतना सुनते ही मुझे तो जैसे पूरे 440 वोल्ट का करंट लग गया हो | नीमबेहोशी की हालत में ख्याल आया कि अगर गलती से भी यमराज कही आसपास से भी गुज़र रहे होंगें तो तो मुझे शर्तिया अपने भैंसे पर पिलन राइडर बना कर जरुर ले जाएंगे | इतना ख्याल आते ही भीषण गगनभेदी गर्जना के साथ मैं उछल कर खड़ा हो गया और बोला :” अरे आँख के अन्धो, मरा नहीं , मैं ज़िंदा हूँ अभी |” एक जबरदस्त झटका लगा तमाशबीनों को जैसे साक्षात मुर्दे को ज़िंदा होते देख लिया हो | कुछ घबराए, कुछ डरे तो कुछ उस ग़मगीन माहोल में हँस भी पड़े | तभी तो मैंने शुरू में ही कहा था ये ज़िन्दगी हँसाना और रुलाना एक साथ ही करती है | जब तक मैं ऊपर सड़क पर जीप तक पहुंचा, मेरे से पहले मेरे हालात और हालत का किस्सा वर्कर्स भी जान चुके थे | अब उन लोगों को कैसे सम्हाला, ये किस्सा कभी बाद के लिए, फिलहाल के लिए इतना ही |
Bahut hi Sundar varnan Kiya hai. Shabdo ko bahut hi rochak tarah se baandha hai. Proud of you Papa. Great going. Love you :)
ReplyDeleteLove it mama. It is written in a very interesting way. We will look forward to reading more blogs written by you.
ReplyDeletePurani yaadein taza kar di Kaushik ji. I myself was present there on that unfateful day. You have made real time narration.
ReplyDeleteबहुत रोचक और रोमांचक
ReplyDeleteaapki hr ghtna ki prustuti itni achhi hoti he ki yhi janne ki utsukta rhti he aage kya hua hoga
ReplyDeleteजी हां, यह किस्सा आपनें तकरीबन दो साल पहले लिखा था। बहुत रोचक किस्सा है। उस समय तो पता नहीं चला, चलो अब ही आपकी आपबीती पर दुःख प्रकट कर देते हैं।
ReplyDeleteड्राइवर की मौत के लिए खेद प्रकट करता हूं।
अति मार्मिक वर्णन ।
ReplyDeleteएक बात पूछूँ ....
डॉक्टरनी साहिबा कहानी के पटल से अचानक गायब कैसे हो गयीं ? समझ नहीं आया ।
अन्यथा ना लें । एक जिज्ञासा जो स्वाभविक थी एक डॉक्टर के नाते , cci के कर्मचारी के नाते जगी तो पूछ लिया ।
अति मार्मिक वर्णन ।
ReplyDeleteएक बात पूछूँ ....
डॉक्टरनी साहिबा कहानी के पटल से अचानक गायब कैसे हो गयीं ? समझ नहीं आया ।
अन्यथा ना लें । एक जिज्ञासा जो स्वाभविक थी एक डॉक्टर के नाते , cci के कर्मचारी के नाते जगी तो पूछ लिया ।
आदरणीय कौशिक भी साहब इस सच्ची दुर्धटना का जिस सजीव ढंग से आपने वर्णन किया है लगता है हम पढ़ नही रहे देख रहे है आपकी लेखनी को प्रणाम है माँ सरस्वती की कृपा एवम श्रद्ध्येयः बाबूजी का अनुपम आशीर्वाद है में भी राजबन रहा भाभीजी से मिला हु इतनी डरपोक नही है उनमें बहुत साहस है धन्यवाद जय सियाराम
ReplyDeleteMr karam Chand was about to retire. We also heared that he shouted at Lady Doctor to jump out of jeep and thus saved her. But unluckily unable to open his own door and crumbled down to foothill within the jeep.
ReplyDeleteThe rear view mirror is full of all such stories, which your narrations brings on the windscreen.
बहुत ही मार्मिक घटना है पढते समय ऐसा लग रहा था जैसे प्रत्यक्ष रूप में दिख रहा है मगर डाक्टर के बारे में नहीं बताया ईसकी जिग्यासा है
ReplyDeleteThat lady doctor survived that accident and is still serving.
DeleteDr.Shally Shegal..my good friend is a very brave lady.
Oh..that incident,we all still get goosebumps to think of that.
ReplyDeleteआप के पास रोमांचक किस्सों का खजाना है। निपटारे में से एक के बाद एक निकलते ही जाते है । रोचक प्रस्तुति इन किस्सों की जान है ।
ReplyDeleteस्वर्गीय ड्राइवर कर्मचन्द जी धन्य है जो जाते-जाते भी उन डाॅ साहिबा की जान बचा गए ,जिन्हें अभी बहुतों की जान बचानी है ।
*पिटारे
ReplyDeleteBahut Romanchak kahani hai. We will wait for second part of this story.
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