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सादगी की प्रतिमूर्ति : हलधर नाग |
हलधर नाग - अगर मैं गलत नहीं हूँ तो शायद आप सभी के लिए यह नाम कतई अनजाना लग रहा होगा | इसमें आपका भी कोई दोष नहीं - ऐसा ही होता है जब कोई व्यक्ति टी.वी., अखबारों और सोशल मीडिया के शोर शराबे से दूर , अपनी ही एक अलग सीधी-सादी सी ज़िंदगी में चुपचाप एक उद्देश्य को लेकर कार्यरत है तो भला आप उसे कैसे जान पायेंगे | वह क्रिकेट जगत के विराट कोहली या सिनेमा के रुपहले परदे के शाहरुख़ खां तो हैं नहीं जो एक स्कूली छात्र भी उन पर दीवाना हो | लेकिन वह इन दोनों से इस बात में कम भी नहीं कि उन्हें भी भारत सरकार से प्रतिष्ठित पदमश्री पुरस्कार मिल चुका है |
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राष्ट्रपति से प्राप्त करते हुए : हलधर नाग |
हलधर नाग ओड़ीसा के कोसली भाषा के कवि एवम लेखक हैं। वे 'लोककवि रत्न' के नाम से प्रसिद्ध हैं। हमेशा एक सफेद धोती और नंगे पैर चलने वाले नाग को, उड़िया साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है| नाग का जन्म 1950 में संभलपुर से लगभग 76 किलोमीटर दूर, बरगढ़ जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वह 10 साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई, और वह तीसरी कक्षा के बाद पढ़ नहीं सके। इसके बाद वे एक मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम करने लग गए। दो साल बाद, उन्हें एक स्कूल में खाना बनाने का काम मिल गया, जहाँ उन्होंने 16 साल तक नौकरी की। स्कूल में काम करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि उनके गाँव में बहुत सारे स्कूल खुल रहे हैं। उन्होंने एक बैंक से संपर्क किया और स्कूली छात्रों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया।
अब तक कोसली में लोक कथाएँ लिखने वाले नाग ने 1990 में अपनी पहली कविता लिखी। जब उनकी कविता ‘ढोडो बरगाछ’ (पुराना बरगद का पेड़) एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई, तो उन्होंने चार और कवितायेँ भेज दी और वो सभी प्रकाशित हो गए। इसके बाद उन्होंने दुबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी कविता को आलोचकों और प्रशंसकों से सराहना मिलने लगी | उन्हें सम्मानित किया गया जिससे उन्हें लिखने के लिए और प्रोत्साहन मिला | उन्होंने अपनी कविताओं को सुनाने के लिए आस-पास के गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया जिसकी सभी लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। यहीं से उन्हें ‘लोक कवि रत्न’ नाम से जाना जाने लगा।
आपको जानकार आश्चर्य होगा की स्वयं तीसरी कक्षा तक पढ़े 69 वर्षीय हलधर नाग की कोसली भाषा की कविता पाँच विद्वानों के पीएचडी अनुसंधान का विषय भी है। इसके अलावा, संभलपुर विश्वविद्यालय इनके सभी लेखन कार्य को हलधर ग्रंथाबली -2 नामक एक पुस्तक के रूप में अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर चुकी है। संभलपुर विश्वविद्यालय में अब उनके लेखन के कलेक्शन 'हलधर ग्रंथावली-2' को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।
उन्हें अपनी सारी कविताएं और अबतक लिखे गए 20 महाकाव्य कंठस्थ हैं। उन्हें वह सबकुछ याद रहता है, जो लिखते हैं। आप केवल नाम या विषय का उल्लेख भर कर दीजिए और वह बिना कुछ भूले सब कविताएं सुना देंगे। वह रोजाना कम से कम तीन से चार कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जहां वह कविता पाठ करते हैं। उनकी कवितायें सामाजिक मुद्दों के बारे में बात करती है, उत्पीड़न, प्रकृति, धर्म, पौराणिक कथाओं से लड़ती है, जो उनके आस-पास के रोजमर्रा के जीवन से ली गई हैं। उनके विचार में, कविताओं में वास्तविक जीवन से मेल और लोगों के लिए एक संदेश होना चाहिए| वे कहते हैं “कोसली में कविताओं में युवाओं की भारी दिलचस्पी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। वैसे तो हर कोई एक कवि है, पर कुछ ही लोगों के पास उन्हें आकार देने की कला होती है।“
हलधर नाग पैरों में कभी कुछ नहीं पहनते। सादगी पसंद इस कवि का ड्रेस कोड धोती और बनियान है। जब वह पद्मश्री का सम्मान राष्ट्रपति के हाथों प्राप्त कर रहे थे तब भी वह नंगे पाँव और धोती बनियान में ही थे | इसी को तो कहते हैं सादगी और ज्ञान का अद्भुत संगम जो विगत काल में महाकवि निराला की जीवन शैली में देखने में नज़र आता था | हलधर नाग की कहानी व्यक्त करती है उस घोर गरीबी में घिरे संघर्ष को जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी | यह सीधा सादा इंसान अपने ज्ञान की ज्योति की मशाल से समाज को प्रकाशित करता, एक सन्देश देता हुआ चलता रहा अकेला और आज भी चला जा रहा है ........ नंगे पाँव, धोती बनियान में |