Thursday 27 February 2020

नया सवेरा : मंजु पालीवाल



“आप क्या लेना पसंद करेंगी ?” – मीठी आवाज में ये शब्द सुनते ही मैं अचानक जैसे अचकचा कर मानों नींद से ही जाग गई । सामने स्मार्ट एयर होस्टेस केटरिंग ट्राली के साथ बहुत ही विनम्र भाव से खड़ी थी । मुस्कराते हुए गर्दन हिलाकर मैंने अनिच्छा ज़ाहिर की और गर्दन दूसरी ओर घुमाकर विमान की खिड़की के पार देखने लगी । अपने बेटे – सुमित से मिलने की लालसा ने भूख-प्यास सब उड़ा दी थी । सीट के सामने लगे मानीटर स्क्रीन के अनुसार विमान इस समय आकाश में पैंतीस हज़ार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था । नीचे सफ़ेद बादलों की चादर समुद्र की तरह फैली नज़र आ रही थी । यह सब देख कर दुनिया के दस्तूर पर हंसी भी आ रही थी – जब इंसान ऊंचाइयों पर उड़ रहा होता है – जब वह समर्थ होता है – जब उसे किसी चीज़ की कमी नही होती - -- तब सारी दुनिया ही खैरियत पूछने में लग जाती है । जब पैर हकीकत की कठोर ज़मीन पर संघर्ष कर रहे होते हैं तब दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता – सिवाय एक-दो को छोड़ कर । हाँ – गर्दिश के दिनों में जो साथ दे वही तो सच्चे इंसान और उसकी इंसानियत की परख है । 
यादों का सफर 
अमेरिका जा रहे इस विमान में मेरा वक्त काटे नहीं कट रहा था ।अभी भी बारह घंटे की यात्रा इसी उड़न-चिड़िया के भीतर ही बितानी थी । जब वर्तमान में आपके पास समय की बहुतायत होती है तो दिमाग आपको भूतकाल की यादों में पहुंचा देता है । मैं भी अपने विगत समय की यादों में धीरे-धीरे उलझती चली जा रही थी । ज़िंदगी का सबसे बड़ा झटका - जिसने मुझे जीते जी मार डाला – मुझे कहीं का नहीं छोड़ा । आसमान पर उन्मुक्त उड़ान भरते पंछी को सीधे धरती पर ला पटका । उस चोट का घाव भर तो गया है पर निशान अब भी बाकी है । 20 जून 1989 के उस मनहूस दिन की याद मुझे आज भी किसी बुरे सपने की तरह गहरी नींद में भी जगा देती है । हाँ वही दिन जिसने मुझसे मेरे पति – देवेन्द्र पालीवाल को अकलतारा सीमेंट फैक्टरी में हुई दुर्घटना में छीन लिया था । बचपन से लेकर अपने पति तक के राज में मेरा जीवन बहुत ही शान -शौकत से रहा । बचपन में राजकुमारी और विवाह के बाद रानी से किसी भी तरह से कम नहीं था मेरा रहन -सहन । ईश्वर की कृपा में कुछ कमी नहीं थी पर अचानक जाने किसकी ऐसी बुरी नज़र लगी कि सब कुछ एक पल में ही तहस-नहस हो गया । 

विमान के केबिन स्पीकर में अचानक केप्टन की आवाज़ गूंजने लगी : “मौसम खराब होने के कारण कुछ समय तक आपको विमान में झटके महसूस हो सकते हैं।अपना धैर्य बनाए रखें और सीट बेल्ट बांध कर रखें”। उस हिलते हुए विमान के मामूली से झटके, ज़िंदगी के उन झटकों से तो बहुत कम थे जिन्होने मुझे देवेन्द्र की अचानक हादसे में हुई मौत के बाद वास्तविकता की ज़मीन पर ला-पटका था । वह विशाल बरगद जिसके नीचे मैं खुद को सुरक्षित समझ रही थी, ऐसी ही किसी आसमानी बिजली - जो इस समय विमान के बाहर कड़क रही थी की चपेट में आकर मिट्टी में मिल चुका था । घर के आर्थिक हालात भी बहुत बुरे हो चले थे । पति की जान की कीमत महज़ बीस हज़ार रुपये मेरे हाथ में थमा दिए गए वह भी काफी जद्दो -जहद के बाद । नाते –रिश्तेदार भी अपनी तरफ से भरसक मदद कर रहे थे पर उनकी भी अपनी मजबूरियाँ और सीमा थी । इस डगमगा रहे विमान की तरह मुझे भी अपने जीवन की नाव खुद ही उस झंझावात से बाहर निकालनी थी ।बड़ा बेटा अमित 13 वर्ष और छोटा सुमित उस वक्त 12 वर्ष का ही तो था । देवेन्द्र के समय मुझे कभी घर से बाहर कदम रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी पर वक्त की मार ने दिन में ही तारे दिखा दिए । ऐसे ही तारे जो इस समय मुझे विमान की खिड़की से बाहर अंधेरे आकाश में टिमटिमाते नज़र आरहे थे । मदद मांगते हुए चप्पलें घिस गई कंपनी के हेडआफिस के चक्कर लगाते-लगाते । भगवान ने भले लोग दुनिया में सब जगह भेजे हैं – कंपनी में भी मौजूद थे ऐसे ही कुछ फरिश्ते । अब तक शायद भगवान को भी मेरे ऊपर दया आने लगी थी । सबके प्रयत्न और ईश्वर की कृपा से मुझे कंपनी ने एक छोटी -मोटी नौकरी दे ही दी । जिस कंपनी के सत्ता के गलियारे में मेरे पति देवेन्द्र की किसी जमाने में धाक जमी हुई थी – वहीं मेरी मजबूरी ही तो थी जिसने उस नौकरी को स्वीकार किया । उस नौकरी ने मेरी आर्थिक हालात के बुझते दिए में तेल डाल कर नया जीवन-प्रकाश दिया । हरिद्वार, इलाहबाद और दिल्ली कार्यालय में काम किया । नौकरी ने अभाव पूरी तरह तो नहीं भरे पर घाव पर हल्के से मरहम का काम जरूर किया । 

विमान अब शायद किसी शहर के ऊपर से जा रहा था । उड़ते हुए विमान की खिड़की से अब मुझे नीचे किसी शहर की झिलमिलाती रोशनी दिवाली का सा दृश्य दिखा रही थी । न चाहते हुए भी मुझे वह दिवाली याद आ गई जब उस त्योहार के दिन भी घर में एक फूटी कौड़ी नहीं थी । कंपनी में पूरे ग्यारह महीने तक वेतन नहीं मिल पाया था । बच्चों के घर आने वाले दोस्तों को खिलाने के लिए मिठाई मँगवाने तक का प्रबंध नहीं था सो खीर बना कर काम चलाया था । पर कुछ भी कहिए – यह तो सच है कि आग से निकल कर ही सोना कुन्दन बनता है।  उस अभावों से भरी ज़िंदगी ने दोनों बच्चों – अमित और सुमित को वक्त से पहले ही ज़रूरत से ज़्यादा समझदार बना दिया ।पुरानी घिसी हुई उनकी बनियान में छेद हो जाते थे पर कोई परवाह नहीं । लगे रहते थे दोनों अपने दिमाग को घिस-घिस कर बुद्धि तेज करने में । दोनों ने  पढ़ाई-लिखाई मेहनत से की – अव्वल रहे और आखिरकार मेहनत रंग लाई । दोनों ही बेटे अच्छी नौकरी और ऊंचे पद पर बैठे हैं । बड़ा बेटा अमित मुंबई में और छोटा अमेरिका में अपने-अपने छोटे से परिवार के साथ खुश हैं । 


छोटी सी दुनिया : मेरे साथ अमित-सुमित परिवार 
मैं खुद उस चिड़िया की तरह से हूँ जिसने अपने पूरी तरह से बिखरे हुए घोंसले को फिर से अपनी ही हिम्मत से तिनका -तिनका कर फिर से बनाया । जब तक शरीर में ताकत और दिल में हिम्मत है किसी पर भी आश्रित न रहूँ यही मेरी सोच है। बच्चों की ज़िद के बावजूद, इसीलिए फिलहाल नौकरी से रिटायरमेंट के बाद अपने पुश्तैनी शहर मुरादाबाद में रह रही हूँ । बाहर रह कर भी बच्चे पूरा ध्यान रखते हैं – और मैं भी उनके मोह से जुड़ी मुरादाबाद, मुंबई और अमेरिका की परिक्रमा करती रहती हूँ । हाँ – एक जगह और जिसका मोह सबसे ऊपर है – बाँके कृष्ण मुरारी की मथुरा वृन्दावन नगरी । भक्ति ही तो आज मेरी शक्ति का स्त्रोत हैं। 

मेरे तो गिरधर गोपाल 
विमान की खिड़की से आती तेज़ धूप की कौंध ने मुझे गहरी नींद से जगा दिया था । पूरी रात मैं अपनी बीती ज़िंदगी के सपने में ही खोयी रही थी । विमान ने भी नार्थ केरोलिना के उस हवाई अड्डे पर उतरने की तैयारी शुरू करदी थी जहाँ मेरा बेटा सुमित इंतज़ार कर रहा है । इंतज़ार अपनी माँ का – इंतज़ार माँ को अपनी बड़ी सी गाड़ी में बैठा कर बड़े से घर में ले जाने का । सोच कर ही मेरे चेहरे पर बरबस मुस्कान आ गई – काली रात के बाद सुबह की खिलती धूप उस भगवान का ही तो दूसरा रूप होती है ।




( प्रस्तुतकर्ता : मुकेश कौशिक )

6 comments:

  1. Superb sir.... जितना tapta है सोना usme उतना निखार आता है....

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  2. पुरुषोत्तम कुमार27 February 2020 at 18:10

    अन्त भला सो हो भला।

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  3. Excellent !!
    Already knew this character

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  4. श्रीमती पालीवाल आप पहले राजकुमारी और रानी थीं । अपने और बच्चों के परिश्रम से अब राजमाता हैं । प्रेरणादायक चरित्र से परिचित कराने के लिए धन्यवाद ।

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  5. Admire and appreciate Mrs Paliwal's grit and determination! Was closely associated with this soft spoken and simple lady in the corporate office. Learnt of all her difficult times from her and success of her lovely conscientious sons and daughters in law. God bless her and her family with all the happiness and success in the world!

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  6. Admire and appreciate Mrs Paliwal's grit and determination! Was closely associated with this soft spoken and simple lady in the corporate office. Learnt of all her difficult times from her and success of her lovely conscientious sons and daughters in law. God bless her and her family with all the happiness and success in the world!


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