इस पोस्ट को पढ़ कर मेरे कुछ दोस्त मुझ पर दक़ियानूसी और अंधविश्वासी का ठप्पा लगा सकते हैं | मेरी आज की बातें ही कुछ ऐसी हैं | अपने बचाव में इतना ही कहूँगा कि धर्म, भक्ति और ईश्वर एक आस्था का विषय है | इसमें क्यों, कैसे, तर्क और वाद-विवाद के लिए कोई जगह नहीं है | इन्हें वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी पर परखना अपेक्षित नहीं होता | आज भी ऐसे अनगिनत अनसुलझे रहस्य हैं जिनका इतनी उन्नति के बावजूद विज्ञान के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं है |ब्रह्मांड और जीवन का रहस्य भी कुछ ऐसा ही है – इंसान कहाँ से आता है, कहाँ जाता है -आज भी विज्ञान इस पर केवल माथा-पच्ची ही कर रहा है | इंसान की फितरत में है – चाहे खुशी में याद आए या न आए, पर जब संकट में गाड़ी रेत में फँस जाती है तब ईश्वर, अल्लाह और जीसस सब एक साथ याद आ जाते हैं | इसी लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघर उसी आदि-शक्ति तक पहुँचने की कोशिश के रास्ते इंसान ने खोज रखे हैं | आज आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाता हूँ जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा | पर जिन लोगों को इसके बारे में पता है उन सबका इस पर अटूट आस्था, विश्वास और मान्यता है | मैंने इस मंदिर में एक से ऊंचे एक अनेक दिग्गज हस्तियों को श्रद्धा से माथा टेकते और मनौती माँगते देखा है | यह छोटा सा लेकिन सादगी से परिपूर्ण मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की तहसील पाँवटा साहिब के निकट राजबन के एक सुनसान पहाड़ी जंगल में स्थित है | यह माता ला- देवी का मंदिर है | यह लेख मेरे स्वयं के राजबन निवास के लंबे अनुभव और वहाँ के निकटवर्ती गांवों में बसे मेरे अनेक दोस्तों और स्थानीय निवासियों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है |
इस मंदिर के इतिहास की जड़ें प्राचीन सिरमौर राज्य के राजा तक पहुँचती हैं | ज्यादा जानकारी मेरे ब्लाग की राजबन और सिरमौर पर लिखी पोस्ट (राजबन : राजा का बन और उजाड़ नगरी) में मिल जाएगा जिसका लिंक साथ ही दिया गया है | समय निकाल कर वह भी पढ़ लेंगे तो इस लेख का भी और अधिक आनंद उठा पाएंगे | संक्षेप में कहें तो किसी समय प्राचीन सिरमौर राज्य की राजधानी रहे इस राजबन क्षेत्र में भारी तबाही हुई थी | सब कुछ नष्ट हो गया था – राजा का महल भी | समय बीतता गया .... बरसों बाद उधर के घने जंगल में जिन्हें राजबन के नाम से जाना जाता था, एक सुनसान पहाड़ी पर तेंदु के पेड़ (जिसके चौड़े पत्तों से पत्तल और बीड़ियाँ भी बनती हैं ) के नीचे कुछ प्राचीन पत्थरों की प्रतिमाएँ पायी गईं | ये पत्थर पर खुदी मूर्तियाँ थीं जिन पर किसी अज्ञात प्राचीन लिपि में कुछ लिखा भी हुआ था | आज की बुजुर्ग हो चली पीढ़ी भी अपनी यादों को ताज़ा करते हुए कहती है कि अब से साठ वर्ष पहले राजबन के जंगलों में वे भेड़ चराया करते थे तब भी उस पहाड़ी पर तेंदु के पेड़ के नीचे रखी उन मूर्तियों को देखा करते थे |
( ऊपर के सभी चित्र - सौजन्य : श्री अनिल शर्मा - राजबन )
इन मूर्तियों के बारे में उनके गाँव के बड़े-बूढ़े भी बताया करते थे कि ये भी राजा के समय के प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं | गाँव के लोगों के जब मवेशी गुम हो जाते थे तब वे यहाँ आकर मनौती मांगते थे जो पूरी भी हो जाती थी | इस मंदिर के इतिहास से आस्था और विश्वास की यहीं से शुरुआत हुई जो समय के साथ -साथ बढ़ती गई| बहुत ही कम लोगों को यह ज्ञात है कि असली प्राचीन ला देवी का मंदिर वास्तव में आज भी वही छोटा मंदिर है जो तेंदु के पेड़ के नीचे बना हुआ है | वहाँ तक जाने के लिए तब कच्ची पहाड़ी पगडंडी होती थी | इसके ठीक सामने कुछ ऊंचाई पर बना बड़ा मंदिर बाद की सरंचना है | पुराने समय में यहाँ आस-पास जंगली जानवर भी घूमते-फिरते आ जाते थे | रात को कई बार शेर भी देखा गया | शायद यही कारण है आज भी शेर की प्रतिमा मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार पर विद्यमान है |
( नीचे के सभी चित्र श्री श्याम सुंदर माहेश्वरी के सौजन्य से )
प्राचीन मंदिर |
प्रस्तर प्रतिमाएँ -प्राचीन मंदिर |
प्राचीन मंदिर - पुरातन अवशेष |
इन मूर्तियों के बारे में उनके गाँव के बड़े-बूढ़े भी बताया करते थे कि ये भी राजा के समय के प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं | गाँव के लोगों के जब मवेशी गुम हो जाते थे तब वे यहाँ आकर मनौती मांगते थे जो पूरी भी हो जाती थी | इस मंदिर के इतिहास से आस्था और विश्वास की यहीं से शुरुआत हुई जो समय के साथ -साथ बढ़ती गई| बहुत ही कम लोगों को यह ज्ञात है कि असली प्राचीन ला देवी का मंदिर वास्तव में आज भी वही छोटा मंदिर है जो तेंदु के पेड़ के नीचे बना हुआ है | वहाँ तक जाने के लिए तब कच्ची पहाड़ी पगडंडी होती थी | इसके ठीक सामने कुछ ऊंचाई पर बना बड़ा मंदिर बाद की सरंचना है | पुराने समय में यहाँ आस-पास जंगली जानवर भी घूमते-फिरते आ जाते थे | रात को कई बार शेर भी देखा गया | शायद यही कारण है आज भी शेर की प्रतिमा मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार पर विद्यमान है |
( नीचे के सभी चित्र श्री श्याम सुंदर माहेश्वरी के सौजन्य से )
मंदिर की 108 सीढ़ियाँ |
अब देखिए चमत्कार - यह पूरा क्षेत्र बहुत ही पिछड़ा हुआ और गरीबी की मार झेल रहा था | उस पहाड़ी गाँव में सिवाय छोटी-मोटी खेती-बाड़ी और मवेशी पालने के और कोई जीवन बसर करने के अलावा कोई अन्य साधन नहीं था | भारत सरकार द्वारा 1970 के आरंभिक दशक में एक निर्णय लिया गया- देहारादून जो कि उस समय उत्तर प्रदेश में आता था , के निकट एक सीमेंट फेक्टरी लगाने का | तब हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री यशवंत सिंह परमार ने अपने प्रभाव से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वह सीमेंट कारख़ाना देहरादून के बजाय हिमाचल प्रदेश में लगाया जाए | परमार साहब क्योकि खुद सिरमौर जिले से थे अत: उन्होने जोड़-तोड़ करके राजबन में फ़ैक्टरी लगवाने का जुगाड़ पक्का कर दिया | अब यह चमत्कार नहीं तो क्या था – जहां पर रेल लिंक आज तक नहीं पहुँच पाया है – उस जगह पर हिमाचल प्रदेश में सीमेंट उद्योग की पहली फ़ैक्टरी ने अपने पैर जमाये | अब सीमेंट फ़ैक्टरी बननी शुरू हुई , स्थानीय लोगों को रोजगार मिला | गाँवों में खुशहाली आनी शुरू हुई |
फ़ैक्टरी बनने के दौरान एक दिलचस्प वाकया हुआ | फ़ैक्टरी से लेकर चूना पत्थर की खानों तक लगभग तेरह किलोमीटर का रोप-वे बनाने का ठेका कलकत्ता की जेसप एंड कंपनी को दिया गया था | दुर्गम पहाड़ी रास्तों और नदी के ऊपर से जाता रोप-वे के निर्माण में बहुत दिक्कते आ रहीं थीं | रोप-वे का रस्सा बार-बार टूट जाता था | हार कर उस कंपनी के अधिकारियों ने उसी माता ला देवी के मंदिर में सफलता के लिए मन्नत माँगी | मुराद पूरी हुई – रोपे- वे बना भी , कामयाब भी हुआ और उसी जेसप एंड कंपनी ने माता ला देवी की श्रद्धा में पक्के मंदिर का निर्माण करवाया | उन दिनों मेरे पोस्टिंग राजबन में ही थी इसलिए घटनाएँ कानों- सुनी नहीं वरन आँखों- देखी हैं |
देवी प्रतिमा (नवीन ) |
लोगों का मानना है की इस मंदिर ने इस पिछड़े इलाके को गरीबी से उबारा, संपन्नता दी, हजारों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिया | बात केवल यहीं तक नहीं रुकी – राजबन के निकट ही पांवटा साहिब में सिक्खों का पवित्र गुरुद्वारा है | आज उस स्थान ने भी भरपूर प्रगति की है | पास में ही तारुवाला जो कभी ग्रामीण इलाका होता था आज औद्योगिक क्षेत्र में बदल चुका है | अब इधर यह सब विकास हो रहा था – उधर ला- देवी के भक्तों और श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी | सीमेंट फ़ैक्टरी के कर्मठ कर्मचारियों और प्रबंधन ने एक तरह से देखा जाए तो इस मंदिर को अपने सरंक्षण में ले लिया | समय-समय पर भक्तों के सहयोग से इस मंदिर का जीर्णोद्धार और काया-कल्प भी होता जा रहा है । यहाँ समय-समय पर भंडारे होते हैं जिन में हजारों की संख्या में आस-पास के गांवों के निवासी आते हैं | फ़ैक्टरी की सुख-शांति और सफलता के लिए हवन-पूजा भी होती रहती है | एक समय ऐसा भी आया कुछ लोगों की सलाह पर ला-देवी मंदिर के स्थान पर फ़ैक्टरी के टाउनशिप में बने मंदिर में ही भंडारे किए जाने लगे | अब इसे संयोग कहिए या कुछ और – इसके नतीजे बड़े घातक और दुर्भाग्यशाली रहे | अंत में उसी पुरानी परंपरा पर लौटने में ही सबने भलाई समझी |
अभी कुछ वर्षों पहले ला देवी मंदिर के परिसर में ही भगवान शिव के मंदिर की भी स्थापना हुई है |
वक्त के साथ सीमेंट फ़ैक्टरी भी उम्र दराज़ हो चली है | अन्य सरकारी उपक्रमों की तरह इसे भी अनेक बीमारियों ने जकड़ लिया है | यह धीरे-धीरे काल के गर्त में समाती जा रही है | सुनने में यह बुरा जरूर लगता है पर वास्तविकता से मुँह भी तो नहीं मोड़ा जा सकता | अब हुआ दूसरा चमत्कार – ठीक सीमेंट फ़ैक्टरी के सामने ही भारत सरकार ने इसी इलाके में रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत बहुत विशाल संस्थान की स्थापना कर दी है | डी०आर०डी०ओ के अधीन उस संस्थान का महत्व केवल इसी बात से समझा जा सकता है कि यहाँ से गुज़रने वाली पतली सी टूटी-फूटी सड़क भी अब फर्राटेदार चोड़े राष्ट्रीय राजमार्ग में बदल चुकी है | कुल मिला कर बदलती परिस्थितियों में भी दैवीय शक्तियों ने इस स्थान पर अपना आशीर्वाद बनाए रखा है | मेरा मानना यह भी है कि देवी की कृपा केवल उन मेहनतकश कर्मयोगी इन्सानों तक ही सीमित रही है | जहाँ मेहनत का स्थान आलस, बेईमानी और भ्रष्टाचार ले लेता है, देवी का आशीर्वाद भी रूठ कर चला जाता है |
इस लेख के माध्यम से मैं उन सब श्रद्धालुओं की प्रशंसा और आभार प्रकट करना चाहूँगा जो निस्वार्थ भाव से इस मंदिर की देखरेख में अपना हर प्रकार से योगदान कर रहे हैं |
अब आप मुझे अंध-विश्वासी कहें या मोटी बुद्धि वाला बेवकूफ, मेरा मानना है कि इस मंदिर में कुछ तो विशेष जरूर है जिसने इस पिछड़े गाँव और इसके आस-पास के क्षेत्रों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल कर खुशहाली के दिन दिखाये | यह तो मैं पहले ही कह चुका हूँ कि आस्था के पीछे वैज्ञानिक तर्क नहीं होते |
(आभार : सर्व श्री श्याम सुंदर माहेश्वरी, जिगरी राम चौधरी, खेम राज शर्मा , अनिल शर्मा, नारायण सिंह पौखरियाल जी का जिनके अमूल्य योगदान के कारण यह लेख आप तक पहुँच पाया है )
(आभार : सर्व श्री श्याम सुंदर माहेश्वरी, जिगरी राम चौधरी, खेम राज शर्मा , अनिल शर्मा, नारायण सिंह पौखरियाल जी का जिनके अमूल्य योगदान के कारण यह लेख आप तक पहुँच पाया है )
Jai Maa Laa Devi Mata Ji Ki. Aap ji ke charan kamlo mein mera koti koti shradha Suman.
ReplyDeleteThere is no end to God's blessings.
ReplyDeleteI have realised the power of Maa Laa Devi,during my posting at Rajban Cement Factory.
ReplyDeleteJAI MAA LAA DEVI.
Today, what we are just because of her ( Maa Las Devi) blessings,and her blessings will be continue for ever
ReplyDeleteJai maa laa Devi 🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteMata Rani apki kripa hamesha bani rahani chahie 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
I hv been there
ReplyDeleteJai mata