Friday 16 September 2022

ईश्वर का ध्यान, मिला जीवन दान - (राजकुमार अरोड़ा )

आज की आपबीती  कहानी की संकल्पना है श्री राज कुमार अरोड़ा की जो सीमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पदाधिकारी रह चुके हैं । पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर साथ ही साथ योग और ध्यान में गहरी रुचि । वर्तमान में देवभूमि हिमाचल प्रदेश के पाँवटा साहब में निवास। 

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मैं - राजकुमार अरोड़ा 

जीवन की अंधी भागदौड़ में सभी व्यस्त हैं । जिसे देखो कोल्हू के बैल  की तरह चकरघन्नी बना हुआ है । सुबह से कब शाम हुई – रात हुई और फिर से सवेरा , पता ही नहीं चलता । थके हुए शरीर के साथ-साथ परेशान मन को भी आराम चाहिए  । यह तो सभी जानते हैं कि  मानसिक शांति के लिए सहारा होता है आध्यात्म और योग का, पर आज जो मेरी साँसें चल रही हैं  वे भी उसीकी बदौलत हैं । कहने को मेरी  बात आपको सीधी-सादी  लग रही होगी पर इस कहानी में ट्विस्ट है और वह भी बड़ा जबरदस्त । आज भी उस घटना की याद मेरे पूरे शरीर में सिहरन की लहर दौड़ा देती है ।

उन दिनों मेरी  पोस्टिंग सीमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के आसाम राज्य में स्थित बोकाजान प्लांट में थी । मेरा कार्यस्थल  उस सीमेंट प्लांट की चूना पत्थर खदान था जो फेक्टरी से लगभग 17 किलोमीटर दूर पहाड़ी  घने जंगलों में था । वहाँ काम करने वाले सभी कर्मचारियों और अधिकारियों के रहने के लिए उस निर्जन वन में भी एक छोटी सी टाउनशिप बनी हुई थी । उस सुनसान और बियाबान जगह का वातावरण लगभग ऐसा ही था जैसा किसी जमाने में काला पानी का हुआ करता था जिसे आज अंडमान के नाम से जाना जाता है । इतने पर ही बात समाप्त हो जाए तो भी गनीमत है, वहाँ उन दिनों पूरी तरह से आतंक का राज्य था । पूरे आसाम राज्य में ही आतंकवादियों की अलगाववादी गतिविधियां चरम सीमा पर थीं  । चरमपंथी संगठन बहुत ही मज़बूत स्थिति में थे । उनकी अपनी समानांतर सरकार थी ।  भारत सरकार के संस्थानों और उनमें कार्यरत अधिकारियों  पर हमले होना सामान्य बात थी । अब मेरी हालत का आप बखूबी अंदाजा लगा सकते हैं । देश के एक छोर पर बसने वाले पंजाबी पुत्तर को उठा कर फैंक दिया गया था देश के दूसरे कोने पर जो किसी शेर के पिंजड़े से कम नहीं था । ऐसी परिस्थितियों के कारण मैं वहाँ अकेला ही रहता था और अपने परिवार को भी  साथ नहीं रखा था ।

आज भी याद है, वह दिन था 15 जुलाई 2007, शाम का वक्त था । कैलाश नाथ झा जो उस खदान के इंचार्ज थे के साथ बैठ कर मैं गपशप कर रहा था । झा साहब की उम्र भी रही होगी यही कोई 58 वर्ष के आसपास, शरीर अच्छा- खासा स्थूलकाय, बहुत ही जिंदादिल और खुशमिजाज स्वभाव वाले, पान  । उनके पास किस्से-कहानियों की कोई कमी नहीं थी । नतीजा – उनके पास बैठ कर समय का पता ही नहीं चलता था। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ पर तभी अचानक ध्यान आया कि मेरा नित्य संध्या- अर्चना का समय हो चला है। झा साहब से विदा लेकर अपने क्वाटर पर चला आया और योग-ध्यान में मगन हो गया जो कि  मेरी दिनचर्या का अंग  बन चुकी थी । जिन विषम परिस्थितियों में उन दिनों मुझको जीवन काटना पड़  रहा था उनमें ईश्वर के प्रति आस्था , ध्यान, भक्ति और योग ही मेरी जीवन शक्ति थी । ईश्वरीय ध्यान के क्षणों में, अपने मानसिक अवसादों से मुक्ति पाकर गहन शांति का अनुभव करता था ।  

टाउनशिप के मकान 

जंगल में फेक्टरी की खदान 

अब होनी का कर्म देखिए, इधर मैं ध्यान-मग्न  बैठा था, और उधर झा साहब के पास वहाँ हाथों में मशीनगन लिए सात-आठ आतंकवादी पहुँच गए और उनका अपहरण कर लिया ।  वहाँ और कोई जो भी मजदूर नजर आया उन सबको भी पास में खड़े ट्रक में बिठा कर आगे जंगल की ओर चल दिए । रास्ते में ट्रक कीचड़ में फंस गया तो सबको पैदल चलाना शुरू कर दिया ।

इस बीच जब इस सारे कांड की जब उच्च अधिकारियों को खबर लगी तो सारी  सरकारी मशीनरी, पुलिस, सेना हरकत में आई । दबाव पड़ता देख,   बंधक बनाए गए सभी व्यक्तियों को अपहरणकर्ताओं ने  छोड़ दिया। सभी   वापिस लौट आए  थे लेकिन झा साहब का कुछ अतापता नहीं था । बाद में घने जंगलों में उनका मृत शरीर पाया गया । मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि जिस इंसान से मैं विदा लेकर आया था वह स्वयं इस दुनिया से इतनी दुखद परिस्थितियों में विदा हो कर चला गया ।

इसमे कोई संदेह नहीं कि आध्यात्म , योग और ध्यान वह सीढ़ियाँ हैं जिन पर चढ़कर ईश्वर से नजदीकी और बढ़ जाती है । हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में आने वाली समस्याओं को बहादुरी और परिपक्वव ढंग से सामना करने की शक्ति मिलती है । कहने को तो सब कहते हैं कि होनी को कोई नहीं टाल सकता पर क्या मेरे लिए योग और ध्यान से उत्पन्न परम शक्ति का संदेश नहीं था जो मुझे  उस खतरे वाले स्थान से हटने संकेत दे रहा था । यदि ऐसा नहीं होता तो शायद आज मैं आपको यह आपबीती सुनाने को मौजूद नहीं होता ।

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(प्रस्तुतकर्ता - मुकेश कौशिक ) 

11 comments:

  1. जा को राखे साइयां
    मार सके ना कोय।
    अत्यंत मार्मिक संस्मरण।

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  2. जा को राखे साइयां, मार सके ना कोय। अत्यंत मार्मिक संस्मरण। ईश्वर की महिमा अपरंपार।

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  3. हां एक समय ऐसा ही था हम भी ऐसे हालातो से गुजर चुके है। बहुत भयावह था। आपकी इस प्रस्तुति ने याद दिला दी ।आपके हर एक शब्द जीवंत है धन्यवाद भैया।

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  4. संस्मरण अत्यंत हृदयस्पर्शी है ।जीवन में इस प्रकार की घटनाएं ईश्वर के प्रति आस्था को और अधिक बढ़ा देती हैं ।ऐसी कहानियों की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।

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  5. जी कौशिक जी, वह घटना याद है।
    आपने अपनी कलम से उसे जीवंत कर दिया।

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  6. It was a well known incident in CCI. Your writing has refreshed the memories of this tragic incident.

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  7. अवश्य राजकुमार जी के ऊपर भगवान की कृपा रही होगी जो इतनी बड़ी विपत्ति से रक्षा हो गई। काश झा जी पर आया संकट भी टल जाता।

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  8. अरोड़ा जी बहुत अच्छे इंसान हैं हमेशा सबकी मदद करते हैं

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  9. Very well written and described the instances, kehte hain jakho sahian mar sake na koi

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  10. मेरे विचार में काल (समय) हर क्षण हमारी बुद्धि को आने वाली परिस्थिति के अनुसार प्रेरित करता है। मुझे याद है, मैं एक बार एक डिपार्टमेंट इंटरव्यू फेस कर रहा था।
    मैं HR mein काम करता था। चेयरमैन ने पूछा कि आपके deptt की लैटेस्ट न्यूज क्या है। मैंने उत्तर दिया की आज Ministry se company employees ka pay पैकेज approve hokar ek घंटे पहले aa gaya है और अब उसको implement karna HR ki badi जिम्मेदारी है। हेड ने GM (HR) se जोकि इंटरव्यू बोर्ड में था , उससे confirm Kiya । उसने हां कहा। चेयरमैन ने कहा कि मैं tow bahut upto date information rakhta huin aur meri selection ho gayi।

    कहने का तात्पर्य है आने वाली परिस्थिति के अनुसार ही आपके विचार आते हैं चाहे सम या विषम परिस्थिति हो।

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