Wednesday, 28 November 2018

एक थी केरी ( पार्ट 2 ) ..... शेष भाग

एक थी केरी के पिछले भाग 1 में आपने पढ़ा कि हिमाचल प्रदेश के सुदूर पर्वतों और जंगलों के बीच स्थित राजबन सीमेंट फेक्ट्री में अपनी पोस्टिंग के दौरान किस प्रकार से एक छोटे से खिलोनेनुमा केरी नाम के पिल्ले ने मेरे एकाकी जीवन में बहार और रोचकता ला दी थी | बाद में मजूबरीवश मेरे नोएडा में बसे परिवार ने चम्पू नामके छोटे से कुत्ते को भी मेरे पासही हिमाचल प्रदेश ही भेज दिया जहां पर मैं, केरी और चम्पू तीनों की ही जिन्दगी की गुजर-बसर आपस में मिल-जुल कर आराम से हो रही थी | अचानक एक दिन दिल्ली मुख्यालय के लिए मेरे ट्रांसफर आर्डर आ गया | मेरे दिमाग में पहला ख्याल आया अब दिल्ली जैसे शहर जाने से पहले केरी और चम्पू का क्या इंतजाम करूँ | इसी सवाल के जवाब खोजने की उधेड़बुन में मेरा दिमाग मानों एक शून्य में खोता जा रहा था | 
बाद में क्या हुआ केरी और चम्पू का ....... पढ़िए अब आगे .... 

केरी
दिल्ली / नोएडा जैसी जगह में आदमी खुद और बाल-बच्चों का ही पालन पोषण कर ले यही बड़ी बात है, कुत्ते-बिल्ली पालना तो दूर की सोच है जी हर किसी के बस में नहीं | और यहाँ तो एक नहीं, दो-दो आफत के प्यारे से पुलिंदे थे जो मेरे गले में घंटी की तरह से बंधे थे | पूरी रात करवट बदलते, परेशानी और दुविधा में ही कटी | मेरा हाल उस बच्चे की तरह से था जो अपनी जान से प्यारे खिलोने अपने साथ लेकर जा नहीं सकता और पीछे छोड़ भी नहीं सकता | बस कुछ ऐसा भी समझ सकते हैं मानो गले में फँसी हड्डी जो न उगलते बन पा रहा था न निगलते | 

बहुत सोच-विचार और घर-परिवार से सलाह- मशवरे के बाद यह तय किया गया कि हिमाचल की केरी यहीं रहेगी गेस्ट हाउस अटेंडेंट रणदीप भाई के पास और दिल्ली का चम्पू मेरे साथ ही वापिस जाएगा | रणदीप भाई केरी से पहले ही बहुत अच्छी तरह से वाकिफ़ थे और बहुत ही खुशी से उसे अपने पास रखने को तैयार थे | उनका गाँव का घर भी कॉलोनी के पास ही था | अपनी तरफ से जो मैं बेहतरीन इंतजाम कर सकता था मैंने किया पर फिर भी दिल के किसी कोने में कुछ-कुछ खालीपन, अपराध बोध और आत्म ग्लानि का एहसास दिल को कचोट रहा था| फिर वह उदास शाम भी आखिर आ ही गई जब एक बेग में केरी का सामान जैसे बाल काढ़ने का ब्रश, खिलोने, वक्त जरूरत की दवाइयां, नहलाने का ख़ास शेम्पू, खाने के बिस्किट और बिछोना आदि भर कर बुझे मन से केरी को कार में बैठा कर पास के रणदीप के गाँव की ओर चल दिया | रणदीप भाई के उस गाँव के घर तक पहुंचते हुए अन्धेरा हो चुका था और वहां केरी को उतारते हुए अपनी पलकें कुछ भीगी से और आँखें धुंधली महसूस हो रहीं थी | दिल पर तो लग रहा था जैसे किसी ने चट्टान का वजन रख दिया हो | गाड़ी को वापिस मोड़कर अपने घर की ओर आगे बढाते समय उस नीम अँधेरे में भी मुझे रियर व्यू मिरर में गाडी एक परछाई सी भागती नज़र आई | वह केरी ही थी जो कुछ दूर तक भागने के बाद थकी – हारी बेबस होकर सड़क पर ही बैठ गयी और धीरे-धीरे अँधेरे में ओझल हो गई  | 
अगले कुछ दिन सब कुछ ठीक ठाक ही रहा | घर पर सिर्फ मैं और चम्पू जी, पर सच बात तो यही थी कि अन्दर से हम दोनों को ही केरी की कमीं खल रही थी | पर इधर राजबन छोड़ने के दिन भी धीरे-धीरे नजदीक आ रहे थे | एक दिन दफ्तर से जब लंच टाइम में घर आया तो देखा बाहर ही बागीचे में चम्पू और केरी उधम मचा रहे थे | मैं अब चक्कर में कि इसे इतनी दूर मैं छोड़ कर आया पर यह वापिस कैसे फिर आ गई | पता चला कि उस दिन रणदीप भाई का जबरदस्ती चुपचाप पीछा करते-करते गाँव से कॉलोनी तक का रास्ता देख लिया और इस तरह पहुँच गई अपने पुराने ठिकाने पर | खैर उसी शाम से फिर रोज ही वह अनारकली पट्टे –जंजीर में कैद हो कर रोज रात को गाँव के घर भेज दी जाती पर हर सुबह बिला नागा वह फिर अपने आप ही हाज़िर हो जाती | यह चोर-सिपाही का खेल मेरे राजबन के बचे-खुचे दिनों में चलता रहा | 

आखिरकार वह दिन भी आ गया जब मेरे जाने का दिन आ पहुंचा | घर में सामान की पेकिंग चल रही थी | सभी कमरों में मजदूर काम पर लगे थे | अब यह सब देख कर केरी परेशान | कहते हैं जानवरों की संवेदनशीलता हम इंसानों से भी अधिक होती है | आपको बस वह आँखें और दिमाग चाहिए जो उनके उस प्यार और भावना को देख और समझ सके | केरी बार-बार एक कमरे से दूसरे तक जाती, उन बंधे हुए सामानों के ढेर को देखती और फिर वापिस मेरे कमरे में आ कर प्रश्न वाचक उदास नज़रों से मुझे देख कर मानों मुझ से कुछ पूछना चाहती कि ” आखिर क्यों कर रहे हो मेरे साथ ऐसा | मुझे छोड़ कर कहाँ जा रहे हो, क्यों जा रहे हो |” उस बेचारी को मैं अपनी मजबूरी भला क्या बताता, बस अपनी आँखे चुराता हुआ खामोशी से कमरे के बाहर निकल गया | मेरे लिए आज भी उस मंजर को याद करना किसी घोर मानसिक यंत्रणा से कम नहीं है | आप जब इन शब्दों को पढ़ रहे होंगें, पता नहीं अंदाजा कर पाएंगे या नहीं, इस को लिखने के समय याद आए उस दृश्य की महज याद मात्र मेरी आँखें गीला करने के लिए पर्याप्त हैं | 

ट्रक में सामान लदना शुरु हो गया था | कुछ देर तक यह सब देखती हुई केरी ने खाली कमरों का एक-एक करके चक्कर लगाया और उसके बाद मुझे मानों शिकायती नज़रों से देखती हुई वहां से गायब हो गई | ट्रक भी सामन लेकर रवाना हो गया | मुझे भी रात को ही नोएडा के लिए निकल पड़ना था | जाने से पहले मेरे पुराने साथी प्रमोद सतीजा ने रात के डिनर पर बुलाया | रात को खाना खाते-खाते यही कोई नौ बज चुके थे| खाना खा कर बाहर निकला तो सड़क पर ही कॉलोनी के ही पंद्रह –बीस साथियों का समूह इंतज़ार कर रहा था मुझे विदाई देने के लिए | दिल में बिछड़ने का दर्द लिए एक –एक करके सभी साथियों से हाथ मिला रहा था,गले मिल रहा था | सड़क पर खड़े-खड़े ही एक नज़र दूर अँधेरे में घिरे उस घर की ओर डाली जिससे मेरी पता नहीं अतीत की कितनी यादें जुड़ी हुई थी | कार में अब मैं दरवाज़ा खोल कर बैठने ही वाला था कि अचानक क्या देखता हूँ पता नहीं कहाँ से केरी दूर से दौड़ती हुई आ रही है | इससे पहले कि मैं संभल पता या समझ पाता, वह एक छोटे से बच्चे की तरह से आकर मेरे पैरों से ऐसे चिपट गई कि आज भी उसे याद करके मेरे आंसू झिलमिला उठते हैं | वही नन्ही से केरी जिसने कभी एक ऐसी ही सर्दी की अंधेरी रात में मुझ से आसरा मांगा था, वही छोटी से केरी जिसे मैं अपने हाथों से नहलाता था, खाना खिलाता था, खेलता था, चोट लगाने पर दवाई लगाता, आज शायद समझ चुकी थी कि अब शायद वह मुझे नहीं देख पाएगी | उसने जमीन पर बैठे-बैठे ही मेरे पांवों को इस प्रकार से कस कर जकड़ा हुआ था जैसा इससे पहले कभी नहीं किया था | शायद वह अपनी तरफ से मुझे रोकने की अंतिम चेष्टा कर रही थी | प्यार से उसके सर को सहलाते हुए , धीरे से मैंने अपने पैरों को छुडाया और भरे मन से गाडी में बैठ कर हाथ हिलाते हुए नोएडा के लिए रवाना हो गया | लगा जैसे मेरे बुदबुदाते होठों से एक मंद अस्पष्ट आवाज निकली “अलविदा प्यारी केरी| अपना ध्यान रखना | फिर मिलेंगे अगर भगवान ने चाहा |” 

नोएडा अपने घर आकर राजबन और केरी की यादें व्यस्त जीवन के कोहरे की चादर में मानो धीरे-धीरे धुंधली पड़ने लगीं | हाँ इतना जरूर था कि बीच-बीच में राजबन फोन करके केरी का हाल पूछना नहीं भूलता था | पता चला कि मेरे जाने के बाद भी वह उस घर के सामने ही बैठी रहती थी | उस कोठी में नए अफसर आ गए थे पर केरी ने फिर भी उस घर से अपना हक़ नहीं छोड़ा | जब केरी ने बच्चे दिए तो वह भी उसी कोठी के कम्पाउंड में बने गेराज में | 
कितनी मुद्दत बाद मिले हो 
दिल्ली आने के एक साल बाद मैं वर्ष 2016 में रिटायर भी हो गया | जून 2017 की बात है जब घूमते फिरते राजबन जाने का प्रोग्राम बना | पुराने साथियों से मिलने की इच्छा तो थी ही | वहां गेस्ट हाउस में ही रुकने का इंतजाम था | गेस्ट हाउस में टहलते हुए सुन्दर से बगीचे की हवा खा रहा था कि वहीं पर मुझे कुछ ऐसा लगा कि सामने से केरी जा रही है | मैंने उसे नाम लेकर पुकारा तो जाते-जाते वह ठिठक कर वहीं रुक गई | एक बार उसने वहीं दूर से मुझे मानों घूर कर देखा, लगा जैसे उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ तो फिर से मुझे पहचानने की कोशिश की और जैसे ही उसके मन का भ्रम दूर हुआ वह सीधे चीते की तरह से पूरी रफ़्तार से दौड़ते हुए मुझ पर लगभग झपट ही पडी | कूँ –कूँ की आवाज करते हुए इतनी बुरी तरह से मुझ से लिपट गई कि मानों बरसों की कमीं को आज ही पूरा कर लेगी | मैं वहाँ दो दिन ठहरा और उस पूरे समय वह गेस्ट हाउस के सामने ही बैठी इंतज़ार करती रहती | कॉलोनी में जिस किसी के यहाँ भी मिलाने जाता वह भी पूँछ की तरह से पीछे लग जाती और उस मेजबान के घर के सामने बैठी रहती | 

अभी कुछ दिन पहले ही अक्टूबर में राजबन में दुर्गा पूजा और रामलीला देखने की इच्छा थी | साथ ही सोचा माता ला देवी के मंदिर में भंडारा खाने का भी सौभाग्य मिल जाएगा | यह राजबन जाने का दूसरा मौक़ा था | पहले की तरह इस बार भी गेस्ट हाउस में ही ठहरा था | वहां पुराने सभी साथी आकर मिल रहे थे | पर मेरी आँखे थी मानो किसी और को ही ढूँढ़ रहीं थी | उसी केरी को जिससे पिछली बार चलते वक्त मुलाक़ात नहीं हो पायी थी | सोचा शायद रणदीप भाई के गाँव के घर में ही होगी | रणदीप सामने नज़र आने पर सीधे ही अनुरोध कर दिया कि केरी को अपने गाँव से यहीं एक बार ले आओ,मैं देखना चाहता हूँ |
जूनियर केरी 
रणदीप ने दूर एक खेलते हुए छोटे से पिल्ले की ओर इशारा करके बताया कि वह केरी की ही बच्ची है | मैंने फिर से जोर देकर पूछा पर केरी कहाँ है | धीमी सी आवाज में उसने बताया कि केरी अब नहीं रही | घर के सामने से गुजरती हुई स्कूल बस के नीचे आ कर अभी एक माह पहले उसकी दर्दनाक मौत हो गई | सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो | पास की बेंच पर धम से बैठ गया , लगा इतनी दूर जिससे मिलने की आस लगा कर आया तो उसके लिए क्या यही सुनना था | जीते जी जिस की छोटी सी बीमारी से भी मैं इतना व्यथित हो जाता था आज उसी केरी के अंतिम क्षणों की पीड़ा के बारे में सोच कर भी काँप जाता हूँ | मेरा उस बेजुबान, निरीह प्यारी सी केरी से जो आत्मिक लगाव रहा क्या केरी ने भी अपनी आखिरी हिचकी लेते हुए उस मर्मान्तक पीड़ा के अंतिम एक क्षण में मुझे याद किया होगा? 


अलविदा प्यारी दोस्त केरी 

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भूला -भटका राही

मोहित तिवारी अपने आप में एक जीते जागते दिलचस्प व्यक्तित्व हैं । देश के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं । उनके शौक हैं – ...