दावत की तैयारी |
हमारा सांता क्लाज - श्रीपत |
नकली सांता क्लाज तो उपहार देने के लिए क्रिसमस के मौके पर ही में एक ही बार आता है पर यह इंसानी फ़रिश्ता तो रोज़ ही हाज़िर हो जाता है एक ऐसा उपहार देने के लिए जो अनमोल है | भूख से बढ़ कर कोई कष्ट नहीं, जो उस कष्ट को हरे उससे बढकर कोई इंसान नहीं | जो भी यह कष्ट मिटाता है भूखे-प्यासे, दुनिया के ठुकराए मूक-निरीह जीव जंतुओं का, मेरे मानना है कि वह इंसान से भी ऊपर देवताओं की श्रेणी में आता है | हममें से शायद ही कुछ लोग होंगें जो खुद के बचे-कुचे खाने को भूखे-प्यासे जानवरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हों | यह इंसान तो हालाँकि अपनी सहूलियत के अनुसार उस खाने को सीधे बड़े कचरे घर में भी डाल सकता है पर गरीब अशिक्षित सांता क्लाज की सोच परोपकार से भरी हुई है | आज के जमाने में जब लोग पशु कल्याण के नाम पर अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं, अखबारों में फोटो छपवाने के लिए राजनीति कर रहे हैं, पशुओं का चारा तक हजम कर रहें हैं, बड़े-बड़े एन.जी. ओ. चला रहे हैं और मिलने वाली सहायता राशि डकार रहे हैं , हमारा सांता क्लाज खामोशी से अपनी नेकी की राह पर अकेला चला जा रहा है | उसे कोई आस नहीं किसी प्रचार की, किसी पुरस्कार की | उसका जीवन संघर्ष केन्द्रित है अपना खुद का पेट भरने में और सड़क पर आवारा घूमते-फिरते इन भूखे-प्यासे कुत्तों को खाना खिलाने में |आज उस प्यारे इंसान से बात करने पर पता चला कि उसका नाम श्रीपत है जो रोजी-रोटी की तलाश में सुदूर गोरखपुर से नोएडा आया है | हम सब को बहुत कुछ अभी भी सीखना बाकी है इस सांता क्लाज से – अपने श्रीपत से | हम सब को प्रार्थना करनी चाहिए ईश्वर से कि श्रीपत और उसके जैसी पशु-पक्षियों के लिए भली सोच रखने वाले हर इंसान का भला हो |
अन्न दाता सुखी भव: |
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