Tuesday, 14 January 2020

अंतिम नसीहत : भोली की


मैं हूँ भोलू बचपन में 


कार वाले अंकल ने मुझे चोट लगाई 



मैं ठीक भी हो गया 
इस बार मुझे पत्थर से मारा - अंतिम बार 
अपने पिछले लेख भोली की भोली सीख में एक प्यारी सी भोली के ज़िंदगी की दुख:भरी दास्तान की हल्की सी झलकी दिखाई थी । संक्षेप में बस यह समझ लीजिए कि उस प्यारी सी डॉगी को तीस दिसंबर को किसी ने इतनी बुरी तरह से पाँव को चोटिल कर दिया उसका चलना फिरना मुश्किल हो गया और उसके पेट में पल रहे बच्चे भी मर गए । उसके जल्दी ठीक होने की आप सबने भी अपनी तरफ से दुआ की । इस दौरान जब भी उसके इलाज़ के लिए एंबुलेंस गाड़ी में डाक्टर आता , भोली अगर कहीं बाहर सड़क पर भी होती तो अपने -आप मेरे घर में आकर अपनी पट्टियाँ बँधवा लेती , इंजेक्शन भी बिना किसी शोर-शराबे के, आराम से लगवा लेती । उसके इस व्यवहार से सीख मिली थी : भले-बुरे के बीच फर्क करना सीखो । जो आपका शुभचिंतक है हमेशा उसके साथ खड़े रहो – बेशक दुनिया उसके खिलाफ़ हो ।

आज 14 जनवरी 2020 को तमाम कोशिशों के बावजूद भोली के प्राण बचाए नहीं जा सके । आज उस एंबुलेंस वाले डाक्टर भैया के पहुँचने से पहले ही भोली दुनिया छोड़ चुकी थी । 

बीमारी के दिनों में भोली के लिए घर के बरामदे में ही एक सुरक्षित स्थान पर बिस्तर लगवा दिया था जहां वह आराम करती थी । सुबह से ही भोली काफी कष्ट में थी । कुछ भी खा-पी भी नहीं रही थी । दोपहर तक अपने नियत स्थान पर बिस्तर पर ही थी । मैं डाक्टर के आने की प्रतीक्षा कर रहा था । बाहर निकल कर देखा तो भोली अपने बिस्तर पर नहीं थी । गेट के बाहर एक और टाट बिस्तर भी रखवाया हुआ था । इस पर रात के समय इस कड़क सर्दी के मौसम में दूसरे कुत्ते अपना आसरा कर लेते हैं । देख कर मैं हक्का-बक्का रह गया – उसी बाहर के बिस्तर पर भोली सो रही थी – हमेशा की गहरी नींद में । उसकी अधखुली आँखें इस बार फिर मुझे कह रहीं थी – देखा दोस्त – चलते -चलते भी मैंने तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दी । मैंने तुम्हारे घर में अपने प्राण नहीं त्यागे । अपने अंतिम समय में, उखड़ती हुई साँसों के बावजूद खुद अपने पाँवों से चलकर घर से बाहर आई थी । अब आगे का सफर तो मुझे खुद ही तय करना है । 

यह वही भोली थी जिसके पाँव को बचपन में भी कोई कार वाला बुरी तरह से कुचल कर चला गया था । तब भी अपने इन्ही हाथो से प्लास्टर चढ़वा कर लाया था । जब वह ठीक हो गई तो उसे उछलते -कूदते देखकर खुशी से मैं फूला नहीं समाता था । पर लगता है तकलीफ़ों और भोली का चोली-दामन का साथ रहा । खैर अब भोली इन सब से मुक्त हो चुकी है । बहुत दूर चली गई है ...... शायद नए जन्म में किसी और रूप में उसे खुशहाल ज़िंदगी मिले – यही मेरी प्रार्थना है । 

रही बात भोली की अंतिम नसीहत की जो भोली जाते -जाते भी दे गई : अपने शुभचिंतकों को कभी तकलीफ मत दो – अंतिम समय में भी नहीं ।

3 comments:

  1. कहानी का शीर्षक पढ़ते ही झटका लगा और बहुत देर तक तो आगे पढ़ने की हिम्मत ही नहीं हुई ।किशोरी के बाद इतनी जल्दी दूसरी त्रासदी होना बहुत दुखद है ।दोनों इस संसार से तो मुक्ति पा गईँ पर जिन कारणों से गईं, वो बहुत दुखदायी है ।ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ।मनुष्य ने अपनी दरिंदगी का प्रमाण दिया तो मूक प्राणी की अंतिम नसीहत ने दिल को छू लिया ।

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  2. There is a blend of Mercy and Love......really very touchy...your words made me capable to view live image of the story.....you r a true writer.

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