Saturday 9 March 2019

लैला, मजनूं और कर्नल


लैला, मजनूं और कर्नल - लगता है ना बड़ा ही अजीबो-गरीब जोड़-तोड़ | आप भी सोच रहे होंगें इन तीनो का क्या मेल | यह तो बिलकुल ऐसा ही लगता है जैसे तोता-मैना और बंदूक का आपस में हिसाब-किताब हो | आपका सोचना भी अपनी जगह ठीक हो सकता है पर कभी-कभी असल ज़िंदगी में जब ये आपस में टकरा जाते हैं तो वाकई में ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है कि न उगलते बनता है और न निगलते | चलिए अब बात को और न उलझाते हुए सीधे किस्से  पर आते हैं| 

तो हुआ कुछ यूँ कि एक दिन बैठे-बिठाए अपने एक मित्र से मिलने का मन कर आया जो कि एक नामी –गिरामी अस्पताल में अच्छे-खासे ऊँचे ओहदे पर काम करते हैं | पहुँच गए उनसे मिलने | बहुत ही व्यस्त रहते हैं – सो इससे पहले कि उनके आफिस तक पहुंचता, वे अस्पताल की लॉबी  में ही चहल-कदमी करते नज़र आ गए | आदत के अनुरूप, तपाक से बड़ी गर्मजोशी से मिले और अपने आफिस की और ले चले | लाबी से दफ्तर तक के रास्ते में अनगिनत नमस्ते और सलामों की बारिशों का अपनी मुस्कान से उत्तर देते हुए अपने कमरे तक पहुंचे | सीट पर बैठते ही चपरासी ने चाय पेश कर दी | चाय की चुस्कियां लेते हुए इधर-उधर के हाल-चाल पूछते हुए अचानक उनसे सवाल कर बैठा – “गुरु , यह बताओ आखिर आप इस अस्पताल में करते क्या हो ? मैं आज तक तुम्हारे काम-काज के बारे में आज तक नहीं जान पाया हूँ |” चाय की चुस्की लेते हुए उन्होंने जवाब दिया - बस यह समझ लो कि हर किसी के पंगे का निपटारा करने की मुसीबत मेरे ही सर पर है | मैंने कहा समझा नहीं तो बोले आप चाय पीजिए , जल्द ही समझ भी जायेंगे और खुद देख भी लेंगें | 

अभी चाय ख़त्म भी नहीं हुई थी कि अचानक उनके फोन की घंटी बजी | फोन सुनकर कहा- अभी आता हूँ| मेरी तरफ देखते हुए बोले - चलिए कौशिक जी , मोर्चे पर | अपने दफ्तर से निकल कर जैसे ही वार्ड की तरफ चले, रास्ते में ही मित्र को नमस्कार करते हुए एक सज्जन मिले और बोले मैंने ही आपको फोन किया था | मेरा नाम कर्नल गुप्ता है, फिलहाल बड़ी परेशानी में हूँ, मदद कीजिए | पहली नज़र से देखने से ही कर्नल साहब के पसीने छूटते साफ़ महसूस किये जा सकते थे | वे बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे, मेरा मोबाइल वापिस करवा दीजिए | पूरी बात सुनने पर एक अजीब ही कहानी सामने आयी | दरअसल कर्नल साहब, जिनकी उम्र होगी यही कोई सत्तर साल के आस-पास , अपनी कार में कहीं जा रहे थे | कार उनका ड्राइवर चला रहा था | अचानक एक तेज़ गति से आ रही मोटर-साइकिल ने धड़ाम से कार की पिछाड़ी में इतनी जोरदार टक्कर मारी कि पूरी कार इस बुरी तरह से धमाके से हिल उठी जैसे सर्जिकल स्ट्राइक की बमबारी हो गयी हो | कार के अन्दर बैठे कर्नल साहब भी एक क्षण को भौंचक रह गए कि हुआ तो हुआ क्या | बाहर निकल कर देखा तो पाया उनकी कार की पिछाड़ी का रखवाला बम्पर, मोह-माया से मुक्त योगी की भांति, कार से अपने सभी सम्बन्ध तोड़ कर, सड़क पर दंडवत मुद्रा में पड़ा था | उस बम्पर की बगल में ही वह कबाड़ पड़ा था जिसे कुछ समय पहले तक मोटर साइकिल के नाम से जाना जाता था पर जो सड़क पर हवाई करतब दिखा रही थी | और उन सबसे कुछ दूर सड़क पर ही टूटी-फूटी हालत में पड़ा था डेढ़ पसली का जां-बाज हीरो जो सड़क को अपनी खानदानी मिल्कियत की हवाई पट्टी और अपनी मोटर साइकिल को फाइटर प्लेन समझ कर सड़क पर ही उड़ा रहा था| अब कर्नल साहब ने अपनी फ़ौजी परम्परा और मानवता का परिचय देते हुए उस घायल युवक की सहायता को तुरंत पहुंचे | अपना फोन दिया कि अपने घर वालों को सूचित कर दो | अपनी कार में लेकर अस्पताल तक लाये , भर्ती करवाया | कुछ ही देर में उस घायल युवक के कुछ दोस्त और पिता भी अस्पताल पहुँच गए | कर्नल साहब ने यहाँ भी मानवता का परिचय देते हुए कहा कि हालांकि उनकी कोई गलती नहीं है फिर भी वह इलाज़ में भी रुपये-पैसे से मदद करने को तैयार हैं | इस अफरा-तफरी में अब कर्नल साहब को अपने मोबाइल का ध्यान आया जो कुछ समय पहले उन्होंने उस घायल युवक को सड़क पर आपातकालीन अवस्था में पकड़ाया था | जब उन्होंने उस युवक से अपने फोन को वापिस मांगा तो बन्दे ने यह कह कर साफ़ मना कर दिया कि मुझे आपने कोई फोन कभी दिया ही नहीं था | अब कर्नल साहब की सिट्टी-पिट्टी गुम | कहते हैं आदमी बदमाशी की जंग तो बहुत आसानी से जीत लेता है पर इन्सानियत की लड़ाई में अकसर हार जाता है | यहाँ भी मामला काफी कुछ ऐसा ही लगा रहा था और इस परेशानी में कर्नल साहब को मेरा अस्पताली  मित्र याद आया | मित्र ने सबसे पहले यह बात साफ़ करी कि अस्पताल का इस मामले में कुछ लेना-देना नहीं है , यह आप दोनों के बीच का मसला है फिर भी देखता हूँ कि क्या कर सकता हूँ | उस युवक के पिता जी हक्के -बक्के खड़े थे, मानो उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा हो | इस बीच मेरे मित्र ने जोर से सबको सुनाते हुए कर्नल साहब को सुझाव दिया कि आप मोबाइल के बारे में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए | पुलिस यहीं अस्पताल में मौजूद है, सारी तहकीकात हो जायेगी और सच भी सामने आ जाएगा | इतना सुनते ही उस घायल सड़क छाप हवाई पायलट के चेहरे पर मानों आफत के तीतर-बटेर एक साथ उड़ने लगे | कभी वह अपने दोस्तों की मंडली को देखता तो कभी अपने अब्बा को | इतने में उसके एक दोस्त ने मेरे अस्पताली मित्र का हाथ पकड़ कर एक कोने में ले गया और धीमे स्वर में लगभग फुसफुसाती आवाज में कहा – “ सर , हाथ जोड़ता हूँ , यह पुलिस का झमेला मत करिए | मोबाइल आप को वापिस मिल जाएगा| बस आप बात समझिए |” अब गुर्राने की बारी कर्नल की थी, लगभग धमकी के अंदाज़ में बोले “ साफ़-साफ़ बात बोलो,इससे से पहले कि कुछ और गलत हो जाए |” युवक के दोस्त ने अब जो बताया उसने पूरी कहानी को एक नया ही मोड़ दे दिया | दरअसल अब इस किस्से में एक लैला की भी एंट्री हो चुकी थी | उस दिन मौसम बहुत ही सुहावना था और वह युवक जिसे हम अब मजनूं  भी पुकार सकते हैं, अपनी फटफटी पर लैला को लेकर निकल पड़े थे  सड़क पर तूफानी रफ़्तार से | उस ट्रेफिक से भरपूर सड़क पर लैला-मजनूं  का दुपहिया जहाज़ मानों उड़ा ही चला जा रहा था | उस रफ़्तार को देख कर एक बारगी तो भारतीय वायुसेना को भी लग रहा था कि उन्होंने राफेल हवाए जहाज़ के आर्डर देकर शायद गलती कर दी | जब उस मजनूं  की मोटर साइकिल अनियंत्रित होकर कर्नल की कार की पिछाडी से जा कर भिड़ी तब कर्नल से मिले मोबाइल को उसने अपनी लैला को सौप दिया क्योंकि वह खुद फोन करने की हालत में नहीं था | अब लैला ठहरी नए ज़माने की | पुराने ज़माने की होती तो मजनूं  का सर सड़क पर ही अपनी गोद में रख कर दुपट्टे से हवा कर रही होती | यहाँ तो उसने जैसे ही भीड़ जुटती देखी, मोहतरमा हो गयीं तुरंत ही नौ-दो- ग्यारह | अब लैला फुर्र और लैला के साथ कर्नल का मोबाइल भी फुर्र | अब इधर अस्पताल में भर्ती मजनूं  की हालत अपने बाप के जूते के डर से और भी पतली | अपने बाप से कहे भी तो कहे क्या – यही कि बापू, कर्नल का मोबाइल आपकी होने वाली बहू के पास है जिसे साथ बिठा कर मैं सड़क पर हवाई जहाज़ उड़ा रहा था| अब अगर लैला नए ज़माने की थी तो यह मजनूं  भी शर्तिया उसी की टक्कर का था | पुराना मजनू नहीं डरा था पत्थरों के वार से , पर इस मजनूं की तो बत्ती बंद हो गयी थी बापू की मार से | यही सोचकर उस मजनूं की डर के मारे सच बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी | कुल मिला कर इस दास्ताने लैला-मजनूं का हर किरदार परेशान : 

मजनूं परेशान कहीं बापू को पता न चल जाए,
लैला परेशान कहीं इस सारे लफ़ड़े में बदनामी न हो जाए ,
कर्नल परेशान हाय कहाँ गया मेरा मोबाइल,
और सबसे ज्यादा परेशान मेरा अस्पताल वाला मित्र यह सोच कर कि ये सारे बेमतलब के पंगे सुलटाने के लिए मेरे ही हिस्से में क्यों आते हैं |

खैर सारी कहानी का अंत इस आश्वासन के साथ हुआ कि कर्नल को उसका मोबाइल गुपचुप तरीके से वापिस करवा दिया जाएगा | अब यह सचमुच हो पाया या नहीं यह मैं आप सबकी कल्पना पर छोड़ता हूँ क्योंकि उस दिन के बाद मैनें भी अपने अस्पताली मित्र की कोई खोज-खबर नहीं ली है |

6 comments:

  1. आज के जमाने की यही हकिकत है ।कर्नल भी गचचा खा गए ध्यान लैला पर देना था मजनू के चकर में आ गए ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. पूरे किस्से का जबरदस्त विश्लेषण। मज़ा आ गया 😂😂😂

      Delete
  2. Interesting story beautifully dezcrdesc

    ReplyDelete
  3. Hilarious story 😂. Had a great time reading .

    ReplyDelete
  4. मेरे खयाल से मोबाइल तो मिलने से रहा.

    ReplyDelete

भूला -भटका राही

मोहित तिवारी अपने आप में एक जीते जागते दिलचस्प व्यक्तित्व हैं । देश के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं । उनके शौक हैं – ...