शायद आपको याद हो कुछ माह पहले उड़ान श्रंखला (भाग तीन) के अंतर्गत संगीत के एक दीवाने की कहानी लिखी थी – सौरव मिश्रा : संघर्ष का सुरीला सफ़र | सौरव मिश्रा की बेहतरीन गायकी और उस मुकाम तक पहुँचने में संघर्ष से भरे रास्ते से आपको परिचित करवाया था | अगर आप भूल चुके हैं तो इस लिंक पर क्लिक करके अपनी याद ताज़ा कर लीजिए| दरअसल सौरव अकेले तो काम करते नहीं हैं, उनके जोड़ीदार हैं चाहत कक्कड़, तो मेरा पहले लिखा ब्लॉग तब तक अधूरा है जब तक उसमें चाहत की कहानी भी नहीं जुड़ जाती है | इसके अलावा भी सौरव मिश्रा की कहानी पढ़ कर बहुत सारे पाठकों ने मुझ से गब्बर सिंह के अंदाज में पूछा भी था – कहाँ हे रे फ़ौजी नंबर दो ? तो चलिए आज इसी फौजी नंबर दो यानी चाहत कक्कड़ से आपकी मुलाक़ात करवाता हूँ | वैसे आपको यह भी बता दूँ कि इस फ़ौजी नंबर दो में कहीं से भी पहलवान के लक्षण नहीं हैं | पहली नज़र में ही हर तरह से कलाकार नज़र आता है, गोरा चिट्टा रंग, दर्मियाना कद , चेहरा निहायत ही मासूम पर उस मासूमियत को नज़रंदाज़ करती शरारती आंखें | चेहरे पर एक ऐसी नटखट और निर्मल मुस्कान जिसे देखकर नई पीढी को शाहिद कपूर और मुझ जैसे को अमोल पालेकर याद आ जाए |
कहते हैं कि जो नज़र आता है वह दरअसल होता नहीं है और जो असल वास्तविकता होती है वह नज़रों से कोसों दूर होती है| कुछ ऐसी ही कहानी है चाहत की | जब मैं इनके जोड़ीदार सौरव मिश्रा यानी फ़ौजी नंबर एक की कहानी पर काम कर रहा था तब अपनी सीमित जानकारी की वजह से दिमाग में चाहत के बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां पाल बैठा था | दोष मेरा भी नहीं था | सौरव की संघर्ष-गाथा पर ही पूरी तरह से केन्द्रित रहा | मुझे प्रारंभ से ही कुछ ऐसा लगा कि चाहत उन गिने-चुने खुशनसीबों में से है जिन्हें पारिवारिक रसूख की वजह से जिन्दगी में सब कुछ चांदी की थाली में परोसा हुआ हर सुख, वैभव और उपलब्धि सरलता से प्राप्त हो जाती है | बाद में मुझे पता चला कि मैं थोड़ा-बहुत नहीं, इस मामले में पूरी तरह से गलत था | अगर सच कहूँ तो जिन्दगी की हर परेशानियों की सौगात उन्हें कुछ ज्यादा ही मिली जिसने उन्हें इतने पापड़ बेलने को मजबूर किया कि अगर आज संगीत की दुनिया से नहीं जुड़े होते तो कसम से लिज्ज़त पापड से ज्यादा “कक्कड़ पापड” की दूकान चल रही होती | पर चाहत की किस्मत और शौक ने-तो कोई और ही मंजिल चुन कर रख ली थी – संगीत की मंजिल | आज के दिन चाहत एक उभरते हुए संगीतकार,स्टेज शो के जबरदस्त अदाकार होने के साथ-साथ ही साउंड रिकार्डिंग इंजीनियर भी हैं | संगीत के कई वाद्य यंत्र जैसे गिटार, पिआनो, ड्रम, तबला , कांगो, माउथ-आर्गन, की-बोर्ड बजाने में उनका कोई सानी नहीं है | अपने संगीत कार्यक्रमों में एक साथ कई वाद्य यंत्र बजा कर श्रोताओं को चकित और मंत्रमुग्ध कर देते हैं |
चलिए आज की राम कहानी चाहत कक्कड़ के नाम, सुनते हैं क्या कहते हैं अपने बारे में वो :
चलिए आज की राम कहानी चाहत कक्कड़ के नाम, सुनते हैं क्या कहते हैं अपने बारे में वो :
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समझ में नहीं आ रहा कहाँ से शुरू करूँ अपनी कहानी | आज के बारे में बताऊँ जब संगीत के सागर में बहुत ही ठाठ से तैर रहा हूँ या उस बीते समय की जब बचपन के ऊबड़-खाबड़ घोर परेशानियों से भरे दिनों की जिन्हें याद करके आज भी मैं भय से सहम जाता हूँ | मेरा बचपन पूरी तरह से दिल्ली में ही बीता, पढ़ाई-लिखाई भी ज़ाहिर सी बात है यहीं हुई | मेरे माता – पिता दोनों ही संगीत के इवेंट मेनेजमेंट के क्षेत्र से जुड़े थे | जगह-जगह संगीत कार्यक्रमों के स्टेज-शो में भाग लेते |घर पर भी गाने-बजाने का वातावरण रहता, जिसे सुन-सुन कर मेरी भी रूचि संगीत की और मुड़ती गयी | शुरुआती दौर में सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था | मुझे दिल्ली में जनकपुरी के एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया | उन दिनों ही अचानक घर की वित्तीय स्थिति में जैसे भूचाल सा आ गया | पिता जी ने जो अपने गाढ़े खून-पसीने की बचत पूंजी छोटे मोटे व्यवसाय में लगा रखी थी वह साझीदारों की बेईमानी की वजह से ड़ूब गयी | घर खर्चों में कटोती साफ़ नज़र आने लगी | पर हालात थे कि बद से बदतर होते जा रहे थे | समय पर स्कूल फीस नहीं दे पाने के कारण मेरे पिता जी को भी स्कूल बुलवा लिया जाता | जो चीजें आप फिल्मों में देखते हैं, वे सब मेरे साथ सचमुच हुई हैं जैसे फीस के कारण ही मुझे सब बच्चों के सामने अपमानित करके, क्लास से बाहर कर दिया जाता | आप समझ सकते हैं इन सब कड़वी यादों का मेरे बाल-मन पर कितना गहरा आघात पहुंचता होगा | क़र्ज़ का दीमक घर में घुस चुका था और धीरे-धीरे नींव खोखली करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था | मेरे बड़े भाई गौरव को इस दौरान अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर नौकरी करनी पड़ी | मैं हिम्मत और धैर्य की सराहना करता हूँ अपने माता-पिता और बड़े भाई का जिन्होंने इन विकट परिस्थितियों से जूझते हुए भी मेरी शिक्षा पर कोई आंच नहीं आने दी |
बारहवी क्लास की बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद यही सोच थी कि अब आगे क्या | घर के संगीतमय वातावरण के कारण मेरा झुकाव आवाज़ की दुनिया के आस-पास ही मंडरा रहा था सो एशियन एकेडेमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविजन, नोएडा से साउंड रिकॉर्डिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया| मेरे पास सीनियर सेकेंडरी में विज्ञान विषय नहीं थे जबकि साउंड इंजीनियरिंग के लिए फिजिक्स की अच्छी जानकारी होनी चाहिए | इस विषय को मैंने अलग से काफी मेहनत से पढ़ा और उस बेच में मैं सबसे ज्यादा नंबर लेकर पहला स्थान प्राप्त किया | इसके बाद पत्रकारिता और मॉस कम्युनिकेशन में स्नातक कोर्स भी कर लिया | प्रयाग संगीत समिति. इलाहाबाद से शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा भी प्राप्त की |
अब नौकरी के लिए भी जोर-शोर से हाथ पैर मारने शुरू कर दिए थे | एक जगह नौकरी शुरू भी कर दी पर यह जो ऊपर वाला है, वह भी कुछ कम नहीं है | हमारी हिम्मत और सब्र के इम्तिहान में उसे शायद अब भी कुछ कमी नज़र आ रही थी सो हमारे सर पर एक बम और फूटा – माँ को केंसर हो गया | घर की पहले से ही जर्जर नैया जो अब तक मझदार में गोते लगा रही थी, इस केंसर के तूफ़ान से मानों पूरी तरह से बीच समुद्र में पलट चुकी थी | हालात इतने बुरे हो चुके थे कि एक तरह से दो वक्त खाने के भी लाले पड़ने लगे | अब दुनिया की सारी परेशानियां एक तरफ और माँ की जानलेवा बीमारी दूसरी तरफ| सर पर पहले से ही भारी क़र्ज़ का बोझ, ऊपर से बीमारी के इलाज़ के महंगे और कमरतोड़ खर्चे | पिछली बार जब घर पर आर्थिक संकट आया था तब बड़े भाई गौरव को अपनी पढाई छोड़ कर नौकरी पर लगना पड़ा , पर इस बार माँ की बीमारी के कारण उनकी देखभाल के लिए मुझे अपनी नौकरी ही छोड़नी पड़ी | पूरे परिवार की ज़िंदगी का एक ही मकसद रह गया था – किसी भी कीमत पर माँ की जान बचाना | पर सवाल था कीमत का, उस कीमत के लिए पैसे कहाँ से लायें | ले-देकर आसरे के नाम पर एक छोटा सा मकान था, मजबूरी में वह २५ लाख का मकान आधी कीमत में ही मन मार कर बेचना पड़ा | इस तरह ,सर पर जो छत थी, हमारा आसरा था वह भी छिन गया | किराए के छोटे से मकान में जाना पड़ा | माँ का इलाज लगातार चला | अगर मैं गलत नहीं हूँ तो लगभग 96 बार कीमियोथेरापी हुई | इस सबके बाद हमारे लिए खुशी की बात यह कि सभी शुभचिंतकों की दुआ और ईश्वर के आशीष से माँ स्वस्थ हो गयी | शायद अब तक भगवान को भी हम पर तरस आ गया था |
संगीत का शौक मुझे बचपन से ही रहा | अपने स्कूल में कांगों बजाना अपने-आप ही सीखा | शायद नवीं क्लास में पढ़ता था तब स्कूल के ही कुछ और बच्चों के साथ मिलकर एक म्यूजिक-बैंड बनाकर पहला गाना बाकायदा रिकार्ड करवाया | स्कूल के संगीत के कार्यक्रमों में ड्रम भी बजाया करता | बाद में गिटार सीखने के लिए श्री ललित हिमांग जी की शरण में गया | गिटार जल्दी- से- जल्दी सीखने की इतनी ललक रही कि रोज आठ से दस घंटे अभ्यास करता | उँगलियों के पोर बुरी तरह से छिल जाते पर गुरु के आशीर्वाद से मैं दो माह में ही काफी हद तक गिटार पर अच्छी पकड़ बना चुका था | गिटार ने मुझे सुर-ताल का अच्छा ज्ञान दिया | रही सही कसर एशियन एकेडेमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविजन में साउंड रिकार्डिंग की तकनीकी शिक्षा ने पूरी कर दी | इस पढ़ाई के दौरान मैं वहां के प्रोफेसर श्री राजेन्द्र गांधी जी से बहुत प्रभावित रहा |
अब मेरी नौकरी की शुरूआत हो चुकी थी | जगह –जगह हाथ पैर मारे, नामी –गिरामी रिकार्डिंग स्टूडियो में संगीतकार और साउंड इंजीनियर के रूप में काम किया, खूब अनुभव बटोरा और ख़ासा पैसा भी | पर इस बीच जैसा मैंने पहले भी आपको बताया, माँ की बीमारी की वजह से अच्छी-भली नौकरी छोड़ी क्योंकि माँ है तो सब कुछ है वरना कुछ नहीं | कुछ समय बाद दोबारा से नई शुरुआत करी लेकिन इस बार मेरे साथ एक ऐसा दोस्त मेरे साथ जुड़ गया था जो भाई से भी बढ़ कर था | जी हाँ – ये थे सौरव मिश्रा जो आज तक मेरे जोड़ीदार हैं | सुरीली आवाज के बेताज बादशाह, इनके गले में मानों साक्षात सरस्वती का वास तो था ही, साथ ही साथ गीत लिखने और धुन बनाने में भी अच्छी पकड़ | बस अब क्या था, हम दोनों की आवाज और साज़ ही बहुत थे दुनिया में धूम मचाने के लिए | अब हम ऐसी अटूट जोड़ी बन चुके थे जिसकी सोच एक थी, राह एक थी और मंजिल एक थी | हमनें नौकरी के बंधन से दूर स्वतन्त्र रूप से काम करने की ठान ली | अब जो भी करते मिल कर करते – स्टेज शो किये, म्यूजिक वीडिओ बनाए, गानों की धुनें बनाईं, नारायण और तीन ताल जैसी फिल्मों के लिए पार्श्व संगीत दिया, मोबाइल फोन के लिए रिंग टोन्स बनाई, वीडियो गेम्स के लिए भी संगीत बनाया, रेडियो और टी.वी के लिए जिंगल्स तैयार किए | एक तरह से देखा जाए तो यह जोड़ी ऐसे हरफनमौला दो कलाकारों की है जिसमने दोनों ही गायन, वादन और संगीत रचना और स्टेज-शो के सही मायने में खिलाड़ी हैं |
मेरा बहुत ही विनम्र भाव से यह सोचना है कि अब जो भी हम काम कर रहें है, उसके बारे में अब हम नहीं बोलेंगें वरन काम बोलेगा | हमारे बनाए गाने संगीत-प्रेमियों को पसंद आ रहे हैं यही हमारे लिए संतोष की बात है | मेरे लिए सबसे बड़े आत्म-संतोष की बात यह है कि मेरे संगीत के शौक ने आज मुझे उस मुकाम पर खड़ा कर दिया है जहां मैं आज की तारीख में परिवार के सर पर सवार भारी-भरकम कर्जे के अधिकाँश भाग से मुक्ति पा-चुका हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप सब के आशीर्वाद और शुभकामनाओं से इस सबसे अगले एक वर्ष में पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा |अपने परिवार के सर पर किराये की छत नहीं, बल्कि अपनी छत दे पाऊं यही मेरी सबसे बड़ी अभिलाषा है|
इस आप-बीती कहानी में अगर अपने जीवन साथी पूजा का जिक्र न करूँ तो सब कुछ अधूरा है | मेरे सबसे मुश्किल दिनों में पूजा ने सहारा दिया - न केवल मुझे वरन मेरी बीमार माँ को, मेरे पूरे परिवार को | अगर उसने इतनी जिम्मेदारी से यह घर नहीं सम्भाला होता तो शायद मैं अपने काम पर इतना ध्यान नहीं दे-पाता और इस मुकाम पर नहीं पहुँच पाता जहां आज मैं हूँ | समझ नहीं आता इस सबके लिए उसे क्या कहूँ – धन्यवाद, आभार, शाबाश या और कोई शब्द जिसका निर्णय मैं आप पर ही छोड़ता हूँ |
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तो दोस्तों , कैसी लगी चाहत की कहानी जो ऊबड़ -खाबड़ रास्तों से गुजरती हुई अब कामयाबी के हाई-वे पर दौड़ रही है | मेरी शुभकामनाएँ - ईश्वर चाहत की हर चाहत पूरी करे |
बस इक 'पूजा' और न कोई दूजा |
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तो दोस्तों , कैसी लगी चाहत की कहानी जो ऊबड़ -खाबड़ रास्तों से गुजरती हुई अब कामयाबी के हाई-वे पर दौड़ रही है | मेरी शुभकामनाएँ - ईश्वर चाहत की हर चाहत पूरी करे |
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