बात ज्यादा दिन पुरानी नहीं है जब आपको एक किस्सा सुनाया था अपने एक मित्र – जगजीवन प्रसाद यादव उर्फ जे पी की गाँव से जुड़ी यादों का ।पुरानी यादें मीठी होती हैं , बचपन से जुड़ी हुई हों तब तो कहना ही क्या । बचपन, गाँव और गाँव की भैंसों से जुड़ा यह किस्सा भी बड़ा मजेदार है जिसे आज भी अपने जेपी जनाब बड़े चटखारे ले कर सुनाया करते हैं । गाँव की मिट्टी की सौंधी -सौंधी गंध से सराबोर उन यादों की खुशबू का आनंद शायद आज की नई पिज्जा – बर्गर की पीढ़ी के नसीब में नहीं । इसमें उनका भी दोष नहीं – बदलते वक्त के साथ इंसान तो क्या पूरी दुनिया ही बदलती चली जाती है । हाँ – तो मैं बात कर रहा था भैंस की ।अपने जेपी उर्फ बबुआ किसान परिवार से थे , बचपन पूरी तरह से गाँव में ही गुजरा जो कि उत्तर प्रदेश में फैजाबाद के निकट ही था । खेत, खलिहान और मवेशियों के बीच ही पले- बढ़े । बड़ा अचंभा होता है आज भी यह सोच कर कि एक नामी गिरामी पब्लिक सेक्टर की कॉर्पोरेट दुनिया का दिग्गज रह चुका यह शख्स गाँव की मिट्टी में पूरी तरह धूनी भी रमा चुका है ।
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बचपन का रूप |
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जे पी यादव ( साहबों की दुनिया में ) |
मवेशियों को चरा कर लाने की भी इस छोटे से बबुआ की जिम्मेदारी होती थी जिसे यह बखूबी निभाते भी थे । उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ जब अपनी मवेशियों का रेवड़ लेकर अपने किशन -कन्हैया चल पड़े जंगल की ओर । गाँव की सरहद को छूती हुई सरयू नदी बहती थी । नदी के विशाल तटबंध के आसपास ही सब मवेशी चरते रहे थे । नदी में अक्सर पानी का बहाव और जल-स्तर कम ही रहता था तो उनकी टीम भी नदी के बीच में स्थित उथले टापुओं तक भी पहुँच जाया करती । बबुआ और उनकी मंडली पूरे टापू पर खूब धमा-चौकड़ी मचा रही थी और उधर मवेशी अपनी भोजन व्यवस्था और स्नान -ध्यान में व्यस्त थे ।
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कुछ ऐसा ही नज़ारा होता था |
अचानक बबुआ का ध्यान नदी की ओर गया तो देख कर होश उड़ गए । नदी में पानी का बहाव तेजी पकड़ रहा था । उस वक्त तक तैरना आता नहीं था और छोटे से बच्चे के लिए उस गहरे पानी को पार करना एक जबरदस्त जानलेवा चुनौती बन चुकी थी । करें तो करें क्या यही चिंता आफत बन कर दिमाग को खाए जा रही थी । मरता क्या ना करता – आखिर बबुआ के शैतानी दिमाग की बत्ती जल उठी । बड़े बूढ़ों से सुना करते थे कि मृत्यु के बाद इंसान को स्वर्ग जाने के लिए गाय की पूंछ पकड़ कर वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है। अब सामने गाय तो थी नहीं तो सोचा जब सवाल जीने -मरने का हो चुका है तो भैंस पर ही भरोसा किया जाए । फटाफट आव देखा ना ताव , सामने नदी पार कर रही भैंस की पूंछ ही पकड़ ली ओर चल निकले आगे । अब हाल यह कि आगे -आगे भैंस और पीछे -पीछे भैया । कुछ देर और दूर तक तो सब ठीक-ठाक रहा पर जब पानी की गहराई बढ़ चली तो भैंस रानी के नखरे भी बढ़ गए । शायद इंसानों की सोहबत में रहते हुए उसमे भी वक्त पर धोखा देने की कला कुछ हद तक आ गई थी । अब तक गुलबदन श्यामा सुंदरी पानी में जहाज़ की तरह तैरते हुए नदी पार कर रही थी और साथ ही उसकी पूंछ के सहारे लटके हुए छोटा भीम । उस भैंस ने बीच गहरी नदी में पानी के अंदर डुबकी लगा दी । अब वह जहाज़ रूपी भैंस पूरी तरह से पनडुब्बी बन चुकी थी और पूंछ- पकड़ छोटा भीम बन गया मुसीबत का मारा गोताखोर । अचानक आयी इस मुसीबत के लिए जेपी बबुआ कतई तैयार नहीं थे । गहरे पानी के अंदर सांस फूल रहा था, शरीर छटपटा रहा था लग रहा था शायद राम जी की तरह इसी सरयू में जल समाधि हो जाएगी । लग रहा था कि आज तो सही सलामत अपने घर पहुँचना भी नसीब में नहीं । ज़िंदगी और मौत के बीच सिर्फ भैंस , भैंस की पूंछ और भगवान का आसरा था । जब जान पर बन आती है तो इंसान ऐसे -ऐसे हैरतअंगेज़ कारनामे कर जाता है जिन्हें बाद में सोच कर उसे खुद अपने पर भी यकीन नहीं होता । यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ – बबुआ ने पानी के अंदर ही भैंस की पूँछ पर अपनी जोरदार पकड़ कायम रखते हुए मरोड़ना शुरू कर दिया। पनडुब्बी भैंस इस अचानक तारपीडो हमले के लिए तैयार नहीं थी । वह एक झटके के साथ पानी के ऊपर आ गई और उसके साथ ही अपना बबुआ । लेकिन इस बार यह बालक ज़रा ज्यादा ही फुर्तीला और चतुर निकला । अब वह दोबारा और जोखिम नहीं उठाना चाहता था । अपनी पूरी ताकत और ऐड़ी चोटी का जोर लगा कर वह भैंस के सींग पकड़ कर पीठ पर मजबूती से सवार हो चुका था । जैसे -तैसे करके भैंस और उसका बहादुर सवार नदी पार कर किनारे आ लगे । उसके बाद दोनों ही खुश – बबुआ की जान बची और गुलबदन, श्यामा सुंदरी भैंस का पिंड छूटा पूँछ मरोड़ बबुआ से । अब आप ही बताइए - क्या इस खालिस देसी किस्से का इससे अधिक सुखदायक अंत और भी हो सकता है ?
गई भैंस पानी में। अंत भला सो हो भला। लौट के बबुआ घर को आए।
ReplyDeleteBahut khub sir too brave.....
ReplyDeleteVery brave and interesting story
ReplyDeleteबेहद रोमांचक किस्सा ।आँखे पढ़ रही थीं और दिमाग में पूरी फिल्म चल रही थी ।
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