पंजाबी में एक कहावत है – मर जावां गुड़ खा के । सही मायने में इसका अर्थ आज तक नहीं समझ पाया । भला गुड़ खा कर कोई शख्स कैसे मर सकता है । गुड़ तो बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ के लिए लाभकारी पदार्थ है । मैं तो जब भी गुड़ खा कर मरने वाली बात सुनता हूँ तो एक मजेदार किस्सा याद या जाता है जब इस गुड़ ने सही मायने में जान आफत में डाल दी थी । तो चलिए शुरू करता हूँ इस गुड़ की गाथा को ।
इस कहानी की भी शरुआत होती है हिमाचल प्रदेश में स्थित राजबन सीमेंट फेक्टरी में जहाँ मैं उन दिनों काम कर रहा था । जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया गुड़ खाने के बहुत ही फायदे होते हैं । जो मजदूर सीमेंट उद्योग, स्टोन क्रशिंग आदि धूल भरे वातावरण में कार्य करते हैं, उनके गले, फेफड़े व सांस के सारे रोगों से गुड़ बचाव करता है। सीमेंट फेक्टरी के कुछ हिस्सों में सीमेंट का धूल भरा वातावरण कुछ ज्यादा ही होता है इसलिए वहाँ काम करने वाले मजदूरों को गुड़ नियमित रूप से बांटा जाता है । गुड़ खरीदने की प्रक्रिया में सही मायने में मेरा खुद का तेल निकल जाता था । गुड़ का कोई कंपनी - ब्रांड तो होता नहीं जो आर्डर दिया और मँगवा लिया । ऊपर से तुर्रा यह कि हमारी कंपनी भी सरकारी थी जहाँ गर्मियों के लिए घड़े और मटके की खरीद - फरोक्त ठीक उन्हीं सरकारी नियमों के तहत होती थी जिन के अंतर्गत भारत सरकार अरबों रुपयों की राफेल विमानों को खरीदती है । सो जनाब इस गुड़- खरीद के काम के लिए भी बाकायदा कमेटी बनती , उस कमेटी को सरकारी वाहन उपलबद्ध कराया जाता । कमेटी के माननीय सदस्य आस-पास के गावों में जाकर कोल्हू – कोल्हू भटकते , निरीक्षण करते , बनने वाले गुड़ का परीक्षण करते और खरीद के लिए कोटेशन लेते । उसके बाद इधर कमेटी की मीटिंग पर मीटिंग , मीटिंग पर मीटिंग और गुड़ वितरण में हुई देरी की वजह से उधर यूनियन और मजदूरों का हल्लागुल्ला । जैसे तैसे करके जब गुड़ ट्रेक्टरों में भर कर फेक्टरी में आता तो ऐसा लगता जैसे मंगल यान अपना मिशन सफलता पूर्वक पूरा कर मंगल ग्रह पर उतर लिया ।
उस बार भी सब कुछ उसी प्रकार से हुआ । ट्रेक्टर भर गुड़ की रसद आई – मजदूरों में बटवाने के लिए उसे टाइम ऑफिस के एक खाली कमरे में भरवा दिया । नोटिस निकलवा दिया गया कि गुड़ का स्टॉक आ चुका है , सभी मजदूर अपने – अपने हिस्से का गुड़ ले जाएँ । असली खेल अब शुरू हुआ । कुछ मजदूर नेता पहले से ही गुड़ की एवज़ में पैसे लेने की समय - समय पर मांग उठाते रहते थे । उधर कंपनी का कहना था कि जरूरी नहीं कि पैसे लेकर अगर मजदूर ने गुड़ खरीद कर नहीं खाया तो सेहत के लिए गंभीर खतरा हो सकता है । इसलिए यह मांग नामंजूर कर दी जाती थी । इस बार उन्ही नेताओं की शह पर मजदूरों ने गुड़ की क्वालिटी पर सवाल उठाते हुए लेने से मना कर दिया । नेताओं को लाख समझाया , उन्हें समझाने के चक्कर में पता नहीं किलो के हिसाब से कितना गुड़ खुद खा कर दिखाया । वह तो भला हो भगवान ने पहले ही मुझे मीठे का शौकीन पंडत बनाया था सो खाया -पिया सब हजम कर गया वरना आज की बिरादरी का छुई मुई होता तो डायबिटीज का मरीज पक्का बन चुका होता । नेता, महबूबा और घोड़ा इनकी यही खासियत है – अगर अड़ गए तो बस अड़ गए , इन्हे समझाना और ऊंट को हेलीकॉप्टर में चढ़ाना एक बराबर मुश्किल । नेताओं ने नहीं मानना था तो नहीं माने और इस चक्कर में गुड़ भी नहीं बाँटा जा सका । ऑफिस के कमरे में पड़ी उस गुड़ की हालत उस घर जमाई से भी बदतर हो चली थी जिससे पिंड छुड़ाने के सभी तरीके फेल हो चुके हों ।
उस बार भी सब कुछ उसी प्रकार से हुआ । ट्रेक्टर भर गुड़ की रसद आई – मजदूरों में बटवाने के लिए उसे टाइम ऑफिस के एक खाली कमरे में भरवा दिया । नोटिस निकलवा दिया गया कि गुड़ का स्टॉक आ चुका है , सभी मजदूर अपने – अपने हिस्से का गुड़ ले जाएँ । असली खेल अब शुरू हुआ । कुछ मजदूर नेता पहले से ही गुड़ की एवज़ में पैसे लेने की समय - समय पर मांग उठाते रहते थे । उधर कंपनी का कहना था कि जरूरी नहीं कि पैसे लेकर अगर मजदूर ने गुड़ खरीद कर नहीं खाया तो सेहत के लिए गंभीर खतरा हो सकता है । इसलिए यह मांग नामंजूर कर दी जाती थी । इस बार उन्ही नेताओं की शह पर मजदूरों ने गुड़ की क्वालिटी पर सवाल उठाते हुए लेने से मना कर दिया । नेताओं को लाख समझाया , उन्हें समझाने के चक्कर में पता नहीं किलो के हिसाब से कितना गुड़ खुद खा कर दिखाया । वह तो भला हो भगवान ने पहले ही मुझे मीठे का शौकीन पंडत बनाया था सो खाया -पिया सब हजम कर गया वरना आज की बिरादरी का छुई मुई होता तो डायबिटीज का मरीज पक्का बन चुका होता । नेता, महबूबा और घोड़ा इनकी यही खासियत है – अगर अड़ गए तो बस अड़ गए , इन्हे समझाना और ऊंट को हेलीकॉप्टर में चढ़ाना एक बराबर मुश्किल । नेताओं ने नहीं मानना था तो नहीं माने और इस चक्कर में गुड़ भी नहीं बाँटा जा सका । ऑफिस के कमरे में पड़ी उस गुड़ की हालत उस घर जमाई से भी बदतर हो चली थी जिससे पिंड छुड़ाने के सभी तरीके फेल हो चुके हों ।
गुड़ की खासियत ही कुछ ऐसी होती है कि उसे लंबे समय तक भंडार करके नहीं रखा जा सकता । मेरे उस बदनसीब गुड़ की दुर्दशा भी घर जमाई की तरह शुरू हो चुकी थी । गरमी का मौसम आया तो उस गुड़ के पहाड़ के ग्लेशियर ने पिघलना शुरू कर दिया । उस कमरे के सीमेंट के फर्श पर सुनहरी गुड़ की महकती परत एक अद्भुत नज़ारा प्रस्तुत कर रही थी । कमरे के रोशनदान से ततैये और मधुमक्खियों ने अपनी खुराक का नया खजाना ढूंढ लिया था । यहाँ तक भी गनीमत थी पर वो कमबख्त आते -जाते टाइम ऑफिस के कर्मचारियों के हाथ -गाल पर डंक मारकर अपनी हाजरी भी दर्ज कराने लगे । हर दूसरे दिन मेरे पास रोते-पीटते कर्मचारियों की शिकायतें आतीं और मैं परेशान । सरकारी महकमों में यही खासियत होती है – यहाँ घुसना जितना कठिन होता है और यहाँ से छुटकारा पाना उससे भी मुश्किल । गुड़ का हाल भी कुछ – कुछ ऐसा ही था ।
बदलते मौसम की तरह गुड़ भी अपनी रंगत बदल रहा था । मौसम करवट ले चुका था और बरसात भी आ गई । मौसम की सीलन ने उस गुड़ के ग्लेशियर को कुछ ज्यादा ही पिलपिला बना डाला । किसी जमाने में अच्छे – खासे रहे उस गुड़ में सड़ने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई । रही सही कसर बरसात से टपकती उस छत ने पूरी कर दी जो गुड़ के कैलाश पर्वत पर शिवलिंग पर टपकते पानी की धारा का रूप ले चुकी थी । नतीजा वही हुआ जो सपने में भी नहीं सोचा था । लगा जैसे कैलाश – मानसरोवर झील में अचानक बाढ़ या गई और उस गुड़ रस की लहरें उस कमरे की सीमा तोड़ कर बाहर टाइम ऑफिस के कॉरीडोर तक दर्शन दे रही थीं । हालत यह कि मैं देखूँ जिस ओर सखी री – सामने मेरे साँवरिया ( गुड़ की चाशनी )। टाइम ऑफिस तक पहुँचने के लिए उस चाशनी के समंदर को पार कर के जाना पड़ता । शायद अपनी ज़िंदगी में इतना मिठास भरा वातावरण मैंने कभी नहीं देखा । कुछ ही दिनों में उस चिपकती चाशनी से सराबोर कमरे और कॉरीडोर से बदबू के झोंके इस कदर उठने लगे कि ऑपरेशन टेबिल पर लेटा बेहोश मरीज भी घबरा कर होश में आ जाए । मैं रात दिन ऊपर वाले से यही दुआ करता कि या तो इस मुसीबत से मुझे छुटकारा दिलवा वरना मैं मर जाऊँ इसी गुड़ को खाकर ।
सब तरफ से हिम्मत हार कर आखिर एक दिन फेक्टरी के महाप्रबंधक के आगे यह सारा दुखड़ा सुनाया । काबिल थे , समझदार थे – उन्होंने समस्या का हल भी सुझा दिया । उस गुड़ के कैलाश पर्वत के निपटारे के लिए फिर से एक कमेटी का गठन हुआ । कमेटी ने पूरे गुड़-कांड का गहराई से विश्लेषण करते हुए सर्वसम्मति से उस दुर्गंध युक्त पदार्थ के – जिसे किसी जमाने में गुड़ के नाम से जाना जाता था – सफ़ाई का सुझाव दिया जिसे महाप्रबंधक ने तुरंत स्वीकार भी कर लिया । पास के ही गाँव से कोई किसान अपना ट्रेक्टर लेकर आया – उस कीचड़ बन चुके गुड़ को भर कर ले गया – अपने खेत में खाद बना कर डालने के लिए या मवेशियों को खिलाने के लिए । ट्रेक्टर जैसे ही फेक्टरी गेट से बाहर निकला मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था । लग रहा था आज तो पप्पू सच में पास हो गया ।
साधारण से गुङ की कहानी को आपने असाधारण बना दिया । बहुत आनंद आया
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ReplyDeleteकहानी बेहद रोचक और मीठी है सरकारी काम ऐसे ही होते हैं और कुछ दिनों में सिरका बन जाता।
ReplyDeleteवाह कौशिक साहब जी वाकई छोटी सी घटना का सुन्दर प्रस्तुतीकरण पर मै सोच रहा था यदि वो किसान पास के गाँव का था तो मजदूरों ने उसी गुड की बनी शराब का भी आनंद लिया होंगा।
ReplyDeleteअच्छे लेखक की यही खासियत होती है कि नए नए मुहावरे पढ़ने को मिलते हैं जो कहानी को और रोचक बना देते हैं।
Deleteअच्छा हुआ जो आपको पंजाबी मुहावरे का मतलब समझ में आ गया।
हमेशा की तरह अच्छी कहानी है।
अच्छे लेखक की यही खासियत होती है कि नए नए मुहावरे पढ़ने को मिलते हैं जो कहानी को और रोचक बना देते हैं।
ReplyDeleteअच्छा हुआ जो आपको पंजाबी मुहावरे का मतलब समझ में आ गया।
हमेशा की तरह अच्छी कहानी है।
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Really very interesting story. But the way you have written it makes it more attractive n intresting to read. Great effort by you.
ReplyDeleteकौशिक जी आनन्द आ गया पढ़कर। आपके शब्दों का चयन कथा को बहुत रुचिकर बना देता है। वर्णन इतना सजीव जैसे हम स्वयं अनुभव कर रहे हों। उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई। अगली कथा का उत्सुकता से इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteWow! Gur jaisi meethi kahani!
ReplyDeleteघटना का बड़ा ही मजेदार चित्रण किया है भाईजी।
ReplyDeleteघटना का बड़ा ही मजेदार चित्रण किया है भाईजी।
ReplyDeleteघटना छोटी हो या बड़ी, उसे लच्छेदार भाषा में बेहद रोचक बना देना आपकी विशेषता है। इस विशेषता के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं।
ReplyDeleteघटना छोटी हो या बड़ी, उसे लच्छेदार भाषा में बेहद रोचक बना देना आपकी विशेषता है। इस विशेषता के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं।
ReplyDeleteWorking condition of public enterprises very well described where a si gle union leader can derail the well managed enterprise.
ReplyDeleteभाई साहब सरकारी काम ऐसे ही होते हैं ।हमेशा की तरह बहुत अच्छी कहानी है। प्रस्तुतीकरण बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteभाई साहब सरकारी काम ऐसे ही होते हैं ।हमेशा की तरह बहुत अच्छी कहानी है। प्रस्तुतीकरण बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteNice story, read my story https://vattvriksh.blogspot.com/2020/09/blog-post.html
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