Thursday, 24 September 2020

भक्ति की राह - नहीं आसान : चरन जी


भजन की राह पर चरन  जी 

इंसान चाहता कुछ है लेकिन तकदीर किसी ऐसे रास्ते पर धकेल देती है जिसे उसने खुद चुना है । अपना ही उदाहरण देता हूँ – मेरा बचपन से ही रेडियो एनाउंसर बनने का सपना था । पिताश्री स्वयं साहित्यकार होने के कारण कलाकारों की कमजोर आर्थिक मजबूरियों से भली-भांति परिचित थे । उन्होंने मुझे डाक्टर बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी पर जब किस्मत में सीमेंट बेचना लिखा था तो रेडियो जॉकी और डाक्टरी के पटाखे हो गए फुस्स । हम में से बहुत कम ऐसे खुशनसीब होते हैं जिन्हें नौकरी , काम-धंधा , व्यवसाय भी अपनी पसंद और रुचि के अनुसार मिलता है । पिछले दिनों मुझे एक ऐसे ही अत्यंत दिलचस्प व्यक्तित्व से संपर्क हुआ । आमने – सामने मुलाकात तो नहीं हुई पर फोन पर ही लंबी बातचीत हुई । इस शख्स की ज़िंदगी बहुत ही उतार – चढ़ाव वाली रही पर मजे की बात यही कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी । इन सबके बावजूद उसे आखिर में हासिल क्या हुआ – वह भी बताऊँगा । 

चलिए बात बचपन से ही शुरू करते हैं – उस बच्चे का नाम था गुरप्रीत सिंह । इस नाम का अर्थ है गुरु से प्रेम करने वाला । पता नहीं इस नाम में ही ऐसा क्या जादू डाला उस बच्चे पर कि कम उम्र से ही आध्यात्म और भक्ति की ओर झुकाव शुरू हो गया । जिस उम्र में बच्चे कंचे खेलते, पतंग उड़ाते, वह किसी और ही दुनिया में लीन रहता । गुरु नानक जी महाराज की जीवनी कई बार पढ़ी । माँ को बड़ी शांति मिलती । गुरुद्वारे की संगत में शबद – कीर्तन सुनने में उसे अद्भुत आनंद मिलता । अगर यह कहें कि पढ़ाई से ज्यादा उसे आनंद भक्ति की दुनिया में मिलता तो कुछ गलत नहीं । गुरुद्वारे में जाकर खुद भी शबद गाने लगा । उसके पिता एक ठेठ व्यवसायी थे । हर पिता की तरह उनकी भी चाहत थी कि अपने दूसरे भाई की तरह गुरप्रीत भी फेक्टरी के काम में हाथ बटाए । यहीं से शुरू होता है दोनों के बीच विचारधारा का टकराव । पिता को हमेशा यही लगता कि ईश्वर भक्ति के द्वारा रोज़ी -रोटी का इंतजाम करना कठिन ही नहीं – नामुमकिन है । दूसरे शब्दों में कहें तो – काम-धंधा अपनी जगह और भक्ति – भावना अपनी जगह । 

पिता-पुत्र की इस विचारधारा में टकराव ही कई बार घर में कटुता का वातावरण ला देता । पिता भी अपनी जगह ठीक थे – इस दुनिया में माँ – बाप से बढ़कर अपनी औलाद का भला सोचने वाला और कौन हो सकता है । समझदारी गुरप्रीत में भी कुछ कम नहीं थी - 16 - 17 वर्ष की आयु में भी अपने हमउम्र साथियों से ज्यादा परिपक्वता थी । उसकी सोच थी कि जिंदा रहने के लिए जितनी जरूरी रोज़ी -रोटी है उससे भी कहीं ज्यादा आवश्यक है कि पैसा कमाने का तरीका भी सात्विक होना चाहे । अब आप खुद ही सोचिए – कितना कठिन रास्ता चुना गुरप्रीत ने । घर के अच्छे -खासे पारिवारिक फेक्टरी -व्यवसाय को छोड़ कर निकल पड़े मन की शांति की खोज में गौतम बुद्ध की तरह । गुरुद्वारे में भक्ति की – वहाँ भी चैन नहीं मिला । एक तरह से कहा जाए तो जगह – जगह धक्के खाए । एक से एक बुरे दिन भी देखने पड़े । उधर पिता नाराज और इधर रोटियों के भी लाले पड़ रहे थे । कभी – कभी मन में निराशा का भाव भी आता – कहीं ऐसा ना हो कि ना खुदा ही मिला , ना विसाले सनम , ना इधर के रहे ना उधर के रहे । पर दिल के किसी कोने में विश्वास भी था – ऊपर वाला सब भला ही करेगा । हुआ भी कुछ ऐसा ही । खुद उनके ही शब्दों में “ सारा जीवन शांति की तलाश में अलग-अलग रास्ते खोजता रहा । रास्ता सादगी और सहज ध्यान में था जिस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया ।“ खोजते -खोजते आध्यात्मिक पंथ सहज मार्ग के संपर्क में आए । पुराना सब कुछ भुला – नाम ही नया अपना लिया – “चरन जी” । तब से संगीत और भजन – यही दुनिया है चरण जी की । अब उन्हें अपना संगीत का शौक, ईश्वर के प्रति भक्ति और आजीविका सब एक ही माध्यम से अपनाने का भगवान ने सुनहरा मौका दिया । अपनी मेहनत ,लगन , सुरीली आवाज और ईश्वर के आशीर्वाद की बदौलत आज चरन जी भजन गायकी के क्षेत्र में चमकता हुआ सितारा हैं ।

बाएं  से अभिनेता  विवेक वासवानी, संगीतज्ञ  विश्व मोहन भट्ट,  चरन जी 
देश विदेशों में ढेरों कार्यक्रम कर चुके हैं । आज भगवान का दिया सब कुछ वह पा चुके हैं । अपनी सोच को वह हकीकत में बदल चुके हैं – आप समाज सेवा करिए पर उसमें दिया जाने वाला धन भी वही हो जो सात्विक तरीके से कमाया गया हो । यह असल ज़िंदगी का जीता -जागता किस्सा हमें यही बताता है कि अगर भावनाएं पवित्र हैं तो भगवान स्वयं हमें मंजिल तक पहुंचाता है ।


आपका क्या ख्याल है ?

5 comments:

  1. Wow! Another episode of an inspiring story! Thanks, dear Mukesh. You are picking up gems out of the ocean of humanity. Congrats.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Dr Vir Singh 🙏🙏🙂

      Delete
    2. अच्छी प्रेरणादायक प्रस्तुति इंसान यदि ठान ले तो मंज़िल को निश्चित ही हासिल कर सकता है।

      Delete
  2. बहुत कठिन है डगर पनघट की। पहाड़ी नदी की तरह पत्थरों से टकराते हुए अपनी राह पर आगे बढ़ने वाले चरन जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद। जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ। समुद्र के किनारे तो खोखली सीप ही मिलेगी ।मोती पाने के लिए तो गहरे समंदर में उतरना पड़ता है।चरन जी का जीवन इस बात का उदाहरण है।

    ReplyDelete
  3. Jahan chah wahan raha. If you are pure in your pursuit God also help in achieving your goal in life.

    ReplyDelete

भूला -भटका राही

मोहित तिवारी अपने आप में एक जीते जागते दिलचस्प व्यक्तित्व हैं । देश के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं । उनके शौक हैं – ...