सुश्री शशि प्रभा
पिछले दिनों फेसबुक पर एक बड़ी प्यारी सी कविता पढ़ने को मिली जिसे सुश्री शशि प्रभा ने लिखा था | बहुत ही सीधे-सच्चे, सरल शब्दों में लिखी इस कविता में कोई शब्दों का मायाजाल नहीं था, आडम्बर नहीं था, सर के ऊपर से सीधे निकल जाने वाला कोई तथाकथित दार्शनिक अंदाज नहीं था | इसमें समायी थी एक अनगढ़, भोलेपन की भावनाओं को व्यक्त करती, दिल में कहीं बहुत भीतर से उठने वाली टीस | इस कविता को पढ़ने के बाद यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि यह सिर्फ चंद पंक्तियाँ नहीं है, यह कहीं न कहीं लिखने वाले की आपबीती है | इन्हें पढ़ने के बाद आप भी शायद मेरी बातों से सहमत हो जायेंगे इस लिए अधिक परिचय की आवश्यकता भी नहीं | इन्हें आप किसी प्रबुद्ध आलोचक की पैनी दृष्टि से नहीं वरन एक आम पाठक की नज़र से पढेंगे तो अधिक आनंद आयेगा |
दिल को छू लेने वाली सुश्री शशि प्रभा की यह दो कवितायेँ किसी की याद में समर्पित हैं | इन्हें आप तक पहुंचाने का लोभ मैं संवरण नहीं कर सका |
कलियों वाली फ्राक पहन कर,
सपनों में वो आती है’
छूने को बढ़ती हूँ आगे
दूर कहीं खो जाती है |
मैं रोती-रीती सी पगली,
वो तो बड़ी सयानी थी ,
करती थी वो प्यार सभी से ,
अपने दिल की रानी थी|
लगती थी जब भूख भी उसको ,
तभी मैं रोटी खाती थी ,
कहते थे सब बड़ी निराली,
दो बहनों की जोड़ी थी |
चली गयी वह एक दिन छलिनी,
प्यारी सी अलबेली सी,
छोड़ गयी मुझको रीता सा,
वो ही तो सखी-सहेली थी |
आसमान की परियां कुछ-कुछ ,
ऐसी ही होती होंगी,
तारों के झुरमुट से मिलकर,
तारा बन बैठी होगी |
2. एक याद : गोरैया
कहाँ गयी वो गौरैया ,
कहाँ डाला नया बसेरा है ,
कौन गाँव किस देश में बहना,
जा कर डाला डेरा है |
डाल-डाल पर बैठी रहती ,
चहकाती बतियाती थी ,
न जाने क्या प्लान बना कर ,
एक साथ उड़ जाती थी |
छोटे-छोटे पग पग भरती ,
गर्दन मटका इतराती थी
घर आँगन मुंडेर पर बैठी ,
फुदक-फुदक मन भाती थी |
बीते दिन और साल महीने,
नज़र कहीं न आती हो ,
बाट जोहते वृक्ष बिचारे,
क्यों लौट न वापिस आती हो |
इंतज़ार में मौन खडा वो ,
वृक्ष कभी न थकता है ,
चिडियों के संग इन पेड़ों का ,
कितना प्यारा रिश्ता है |
कौन दिशा से ये गोरैया ,
कभी तो वापिस आयेगी ,
मूक खड़े इन वृक्षों की ,
फिर से शान बढायेगी |
दिल की संवेदनाओं को अंदर तक झकझोर देने वाली बहुत ही सुंदर कविताएं । शशि प्रभा जी को बहुत बहुत साधुवाद। ऐसी कविताएं कोई संवेदनशील व्यक्ति ही लिख सकता है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर। इससे जयज्या मुझे लिखना नहीं आता।
ReplyDeleteसचमुच इन कविताओं में पिरोई संवेदनाएँ परी और गौरया जैसी ही कोमल हैं जो दिल को हौले से छू जाती हैं ।बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteशशि प्रभा के मन की सुंदरता, हृदय की गहराईयों, और संवेदनाओं को मन में उतारती कविताएं. सृजन की अद्भुत कला!
ReplyDelete