Friday, 1 November 2019

एक पहेली - अनसुलझी



इस बार की कहानी के ज़्यादातर मुख्य पात्र उस दुनिया के हैं जो इंसानी दुनिया से संबंध नहीं रखते | रिश्तों के उलझे ताने-बाने, मानवीय संवेदना और सबसे ऊपर घूमते कुटिल भाग्य -चक्र के इर्द-गिर्द यह कहानी घूमती है जो अभी कुछ दिन पहले ही घटी| उस घटना ने मुझे अंदर तक कुछ इस कदर झकझोरा कि अभी तक उसके सदमें से उबर नहीं पाया हूँ |
मेरी कॉलोनी के आवारा कुत्तों को मेरे घर के मेन गेट के सामने अड्डा बना कर बैठने में बहुत मज़ा आता है | वे सब वहाँ बैठ कर उतना ही सुरक्षित महसूस करते हैं जितना दाऊद कराची में और जनरल मुशर्रफ दुबई में | उनके झुंड का अपना ही एक अलग किस्म का साम्राज्य है | घर को इतना ज़बरदस्त सुरक्षा कवच प्रदान कराते हैं कि देश के प्रधानमंत्री की ज़ेड प्लस सिक्योरिटी भी उसके सामने पानी भरती प्रतीत होती है | मेरा पालतू कुत्ता चंपू उन सब आतंकवादियों का उसी किस्म का स्व-घोषित लीडर है जैसे अल-बगदादी या बिन लादेन | क्या मजाल है कोई भी ऐरा-गैरा घर की कॉल -बेल भी बजा दे | उन सबका इतने लंबे समय से साथ बना हुआ है कि मैं भी किसी गाँव के बुजुर्ग की तरह उनकी कई पीढ़ियों का गवाह हूँ | कौन कुत्ता किसका नाना है , किसका पोता है , धेवता है- सबका बहीखाता हरिद्वार के किसी पंडे की तरह से मैं बना सकता हूँ | सहूलियत के लिए उस मित्र-मंडली के हर सदस्य का मैंने नाम रख छोड़ा है  | उसी टीम की एक नई मेम्बर थी किशोरी जिसकी उम्र भी रही होगी यही कोई डेढ़ साल के आस-पास | काले-सफ़ेद रंग की , छोटे से कद-काठी की और स्वभाव से बहुत ही चंचल डॉगी | वह उन गिने- चुने वरीयता प्राप्त रेंप बिरादरी की सदस्यों में से एक थी जिन्हें गेट से अंदर आने का भी अधिकार प्राप्त था | जब से यह बात पता चली कि किशोरी गर्भावस्था में है , तब तो उसकी खातिर तवज्जो में और भी इजाफ़ा हो गया | उसके भोजन-पानी का भी ख़ास ही ध्यान रखा जाने लगा | रेंप बिरादरी के दूसरे सदस्यों को बहुत ही ईर्षा होती जब किशोरी कटोरा भर दूध चट कर जाती और बाहर गेट के पार बाकी सब ललचाई नज़रों से जीभ लपलपाते रह जाते | 
मेरे मकान के बगल में ही एक खाली प्लाट है, उसी में किशोरी ने अपना बसेरा कर लिया था | आखिर वह दिन भी आया जब किशोरी ने इकलोते नवजात पिल्ले को जन्म दिया | उस पिल्ले की शरीर पर तेंदुए जैसी चितकबरी पट्टियाँ थीं इसलिए उसका नामकरण भी उसी अनुसार कर दिया - तेंदुल | अब ज़्यादातर समय किशोरी अपने उस नन्हें तेंदुल की देख-रेख में ही व्यस्त रहती| अपने बच्चे की सुरक्षा के प्रति अत्यंत सचेत रहती | पहले की शांत स्वभाव किशोरी, अब आक्रामक हो चली थी | जरा सा भी संदेह होने पर वह रास्ता चलते लोगों को काट खाती | इसी वज़ह से कुछ लोगों के मन में किशोरी के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा भरा पड़ा था | हमारे प्रति उसका स्वभाव अभी भी वही प्रेम भरा था, हम उसके बच्चे को बिना किसी डर के प्यार से सहला भी देते थे और वह बहुत ही भरोसे की नज़रों से हमें टकटकी लगाए निहारती रहती | 
इन्हीं दिनों दिवाली का त्योहार भी आ गया| दिवाली की रात, पटाखों और आतिशबाज़ी के शोर से मेरे इस विशेष रेंप निवासी मित्र मंडली के सदस्यों के साथ, किशोरी भी बहुत परेशान थी | कई बार भाग-भाग कर घर के अंदर सीढ़ियों पर छुपने का प्रयत्न करते | यह सब देख कर बहुत दया भी आती पर मैं भी क्या कर सकता था | दिवाली से अगला दिन था गौवर्धन पूजा का | रोज़ की तरह किशोरी सुबह -सुबह आठ बजे मिलने आ गई | बदकिस्मती से उस समय घर पर दूध नहीं था सो उसके नाश्ते-पानी का प्रबंध नहीं हो सका | बेचारी मन-मार कर वापिस अपने तेंदुल के पास चली गई | अभी एक घंटा ही बीता होगा कि पड़ोस का एक बच्चा भागता हुआ आया और बोला “अंकल मेरे साथ आइये” | वह मुझे घर के बगल के उसी खाली प्लाट में ले गया| वहाँ पर लेटी हुई किशोरी की ओर इशारा करते हुए वह बोला “यह हिल-डुल नहीं रही हैं” | पहली नज़र में देखने में मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा| किशोरी का प्यारा सा पिल्ला तेंदुल बड़ी व्याकुलता से अपनी माँ का दूध पीने का जतन कर रहा था | पास जा कर ध्यान से देखा तो महसूस हुआ किशोरी के शरीर से प्राण पखेरू उड़ चुके थे | उसकी खुली निस्तेज आँखें मानों मुझ से कह रहीं थी – “मेरे दोस्त तुम क्या समझते हो सुबह मैं दूध पीने आई थी | मैं तो लंबे सफर पर जाने से पहले तुम सबसे हमेशा के लिए विदा लेने आई थी |” तेंदुल तब भी अपनी माँ के पेट से चिपटा दूध पीने के प्रयास में व्यस्त था | मैं इससे अधिक झटका झेलने की हालत में नहीं था सो तुरंत लौट कर घर आ गया | 

 घर आकर मन और व्याकुल हो रहा था | दिल में उठ रही उथल-पुथल ने मुझे चैन से नहीं बैठने दिया और कुछ ही देर बाद मैं वापिस फिर उसी जगह पहुँच गया| अब का दृश्य और भी अधिक मार्मिक हो गया था | नन्हें तेंदुल- जिसकी अभी तक आंखे भी नहीं खुल पायी थीं, केवल स्पर्श के सहारे ही अपनी माँ को पहचान पाता था | वह निश्चेष्ट पड़ी अपनी माँ की कोई हरकत नहीं पाकर अब उसके गले और चेहरे से चिपट कर बुरी तरह से रो रहा था | शायद पहली बार उसे अपनी माँ का दुलार नहीं मिल पा रहा था जो उसके लिए बहुत ही अचंभे की बात थी | यह सब देख कर मेरा कलेजा मुँह को आ रहा था | समझ नहीं पा रहा था कि इस दारुण स्थिति मे क्या करूँ | कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था | आखिरकार पता नहीं क्या सोच कर उस छोटे से पिल्ले तेंदुल को सावधानी किशोरी से अलग किया और अपनी गोद में उठा कर घर ले आया | आँगन में ही छोटी सी चादर बिछा कर तेंदुल को लिटा दिया | डाक्टर से फोन पर ही आवश्यक हिदायतें लीं | पास की दुकान से गाय का दूध ला कर सिरिन्ज से तेंदुल को पिलाया | भूखे से बेहाल तेंदुल पेट भर जाने के बाद फिर से गहरी नींद में सो गया | मेरा पालतू कुत्ता चंपू जो बड़ी देर से यह सब अचरज से देख रहा था, तेंदुल के पास आया,प्यार से उसे सूंघा और फिर खामोशी से उसके पास ही बैठ गया | ऐसा अमूमन होता नहीं है क्योंकि चंपू को हर उस चीज़ से एक तरह से नफरत है जो उसकी सल्तनत में किसी भी तरह की दखलंदाजी करती है | मैं भी कुछ देर तेंदुल के पास बैठ कर अपने कमरे में चला गया | कुछ देर बाद कुछ आहट होने पर मैं बाहर निकला – देखा अधखुले फाटक से एक और परिचित कुत्ता ( सही शब्दों में – डॉगी) अंदर आ रहा था | गौर से देखने पर पहचाना, वह तेंदुल की माँ की भी माँ थी – यानि नानी  | वह भी चंपू के ही अंदाज़ में तेंदुल के पास आई , सूँघा फिर शरीर को चाटने लगी | उसके शरीर की भाव-भंगिमा को देख और सोच कर कि आखिर है तो तेंदुल की नानी, अब तक मैं भी थोड़ा निश्चिंत हो चला था | पता नहीं अचानक क्या हुआ .... नानी ने तेंदुल को जबड़े में भर लिया और बाहर जाने लगी | मेरे मुँह से भय-मिश्रित चीख निकली और दौड़ कर नानी की गरदन से तेंदुल को छुड़ाना चाहा | एक झटके से तेंदुल नानी के मुँह की गिरफ्त से बाहर नीचे फर्श पर गिरा | लेकिन तब तक नानी अपने पैने दांत तेंदुल के शरीर में गड़ा चुकी थी | नीचे फर्श पर गिरे नन्हें तेंदुल के तड़पते शरीर से खून की महीन धार फव्वारे की तरह फूट पड़ी | ऊंची आवाज देकर अपने बेटे को पुकारा | खून में सने नन्हें तेंदुल को अपने सीने से चिपका कर, गाड़ी में तुरंत डाक्टर के पास भागे | बदकिस्मती शायद अब भी हम सब का पीछा कर रही थी | डाक्टर का क्लीनिक तब तक बंद हो चुका था | डाक्टर को फोन किया, उसने शाम को दिखाने के लिए कहा और तब तक के लिए बीटाडिन लगाने की सलाह | तड़पते हुए तेंदुल का दर्द मुझसे देखा नहीं जा रहा था | बार-बार अपनी छोटी सी जीभ मुँह से बाहर निकालता और फिर बेहोश हो जाता | हम भी वापिस घर की ओर लौट चले | काँपते हाथों से बीटाडिन रुई पर लगा कर उसके शरीर को देखा, चोट से निकलता खून अब रुक कर जम चुका था | तेंदुल भी अपने प्राण छोड़ चुका था |

किशोरी और तेंदुल की असमायिक मौत ने मुझे बुरी तरह से हिला दिया | इस दुखद कांड से मेरे दिमाग में कई अनसुलझे सवाल एक के बाद एक आकर परेशान कर रहें हैं | क्या यह सब नियति थी – मृत माँ किशोरी की आत्मा ने दूध पीते नन्हें तेंदुल को चार घंटे के भीतर ही अपनी दुनिया में बुला लिया ? क्या नानी को अपनी बेटी किशोरी के जाने का इतना दुख: था कि गुस्से में तेंदुल को ही जिम्मेदार ठहराते हुए चोट पहुंचाई ? क्या नानी अपने तेंदुल को किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर लेजाने के प्रयास में गलती से दाँत चुभ गए ? 

किशोरी की अचानक हुई मौत भी अभी तक अनसुलझा रहस्य है | सुना है किसी ने उस मासूम को शायद ज़हर दे दिया था | अंत में माँ -बेटे की जोड़ी किशोरी और तेंदुल के लिए केवल इतना ही कहूँगा – अगले जन्म में उन्हें किसी धोखे का सामना नहीं करना पड़े | ॐ शांति

3 comments:

  1. Sensitive elements in a rare story.

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  2. किशोरी और तेंदुल की अचानक मौत हो जाना अवश्य ही रहस्यमय है। उनकी मौत किसी न किसी के जहर देने से हुई लगती है। अभी कुछ दिन पहले इसी तरह का वाक्या सुनने में आया जब कुत्ते के नवजात बच्चों को किसी ने सड़क पर फेंक दिया और उन्हें हमारे परिवार की एक सदस्या ने घर में लाकर देखभाल की, अच्छा खाना,दूध एवं दवायें दी जिससे इतना बदलाव आया कि कोई देख कर यह अन्दाजा नहीं लगा सकता ये पालतू है या सड़क छाप। उसके इस कार्य की जितनी सराहना की जाये कम है। किशोरी और तेंन्दुल जैसी मौत न हो बस ॐ शान्ति।

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भूला -भटका राही

मोहित तिवारी अपने आप में एक जीते जागते दिलचस्प व्यक्तित्व हैं । देश के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं । उनके शौक हैं – ...