नहा कर निकला ही था पर पहनने के लिए
पाजामे का अता-पता ही नहीं | तौलिया बांधे पागलों की तरह से अलमारी खंगाल रहा था
कि पीछे से श्रीमती जी ने आकर खोज निकाला और मुस्कराते हुए
कहा – क्यों आसमान सर पर उठा रखा है | तुम्हारा पाजामा न हो गया मानों कोहनूर हीरा
हो गया | बिना बहस किये चुपचाप खिसिया
कर पाजामा ले लिया और वहां से खिसक लिया | अब उन्हें कौन समझाए कि किसी भी चीज़ की अहमियत
को कम कर के नहीं आंकना चाहिए | इस बात को मुझसे ज्यादा कोई नहीं समझ सकता , आखिर
भुक्तभोगी जो ठहरा | वह घटना आज तक मुझे अच्छी तरह से याद है |
यह बात उन दिनों की है जब मैं
देहरादून में कार्यरत था | एक दिन सूचना मिली कि बड़े साहब का निरीक्षण दौरा होने
जा रहा है | आनन-फानन में सारी तैयारियां मुक्कमल करीं गयी | आखिर वह नियत दिन आ पहुँचा | शहर के एक बड़े
होटल में मीटिंग का प्रबंध किया गया | दफ्तर के सभी महत्वपूर्ण अधिकारी अपनी पूरी
तैयारी के साथ धड़कते दिल से और राम-नाम जपते हुए हाज़िर हो गए | मीटिंग शुरू हुई और
हर अधिकारी के काम-काज की समीक्षा और चीर-फाड़ शुरू हुई | अब साहब का हाल यह कि वह
किसी से भी खुश नहीं | हर किसी को
धमकाते और लताड़ते | सभी के लिए एक
ही उपदेश – सुधर जाओ | मार्केटिंग के आदमी हो, कभी दफ्तर से भी बाहर निकला करो | अपने
दफ्तर के खर्चे कम करो | फालतू के टी.ए बिल पसंद नहीं , वगैरह ...वगैरह | सभी बंद
दिमाग से कान दबा कर महापुरुष के सत्य वचन
सुन रहे थे और दम साधे इस प्रवचन सभा की सकुशल समाप्ति का इंतज़ार कर रहे थे | खैर हर बुरे वक्त की तरह उस सर्कस मजमें का भी
अंत हुआ | देर रात हो चुकी थी |खाना-पीना हुआ और इसके बाद साहब का फरमान जारी
हुआ..... “बाहर से आये सभी अफसर अपनी –अपनी नियत जगहों के लिए अभी रवाना हो जाएँ | रात को कोई होटल में नहीं
ठहरेगा | सरकारी खर्चे कम करिए |” अब यह
बात अलग है कि खुद साहब तो खा-पी कर सारी मीटिंग बिरादरी को धकिया कर, लतिया कर , रोता कलपता छोड़, खुद उस आलीशान होटल के
शानदार कमरे में खर्राटेदार नींद का लुत्फ़ लेने के लिए सिधार गए |
अगले दिन सुबह का नाश्ता-पानी
करने के बाद साहब बहादुर फ्लाईट से वापिस दिल्ली उड़ चले | आयी बला के
टलने पर इधर मैंने भी चैन की सांस ली
| शाम के समय साहब के पी.ए का फोन आया –
साहब बात करेगें | साहब लाइन पर आये | दो-चार मिनिट इधर-उधर की बातें करने के बाद
बोले – “मेरा पाजामा होटल में रह गया है | जरा देख लेना |” अब इस देख लेना के क्या
मायने होते हैं यह मुझे देखना था | अब यह कोई ब्लाक-बस्टर पिक्चर बाहुबली का पाजामा तो था नहीं जो थियेटर में जा कर देख आता
| अपने स्वर्गीय पूज्य पिताश्री की अक्सर दोहराए जाने वाली कहावत याद आ गयी : गूंगे की बात गूंगा जाने, या जाने उसकी मैय्या
| साहब की बात का मतलब समझ में आ गया कि जनाब जान की सलामती चाहते हो तो पजामा तुरंत
खोजो और हाज़िर करो | दफ्तर बंद होने का समय हो चला था पर तुरंत आपातकालीन मीटिंग बुलाई
गयी | एक शख्स को फटाफट मौका-ए-वारदात यानि उस होटल को रवाना किया गया इस हिदायत के
साथ कि ग्राउंड जीरो से पूरी तफ्शीश करके रिपोर्ट भेजी जाए | कुछ देर बाद रिपोर्ट भी
मिल गयी – साहब का पजामा मिल गया | सुनकर सचमुच इतनी खुशी हुई जितनी शायद नासा को मंगल
गृह पर पानी मिलने पर भी नहीं हुई होगी | पसीने में लथपथ, हांफता-कांपते वापिस लौटे
हनुमान जी ने संजीवनी बूटी की तरह से पजामा हाज़िर कर दिया | समय कम था, तुरंत सुन्दर
सी पेकिंग में उस पजामे को विराजमान करने के बाद एक अन्य कर्मचारी की तैनाती हुई इस
हिदायत के साथ कि भाई रात्री बस सेवा से दिल्ली के लिए रवाना हो जाओ और मुर्गे की पहली
बांग से पहले, ब्रह्ममुहूर्त में साहब के
दौलतखाने में इस आफत की बला से छुटकारा पा आओ | एक्शन प्लान पर सर्जिकल स्ट्राइक की
तर्ज पर निहायत ही बारीकी से अमल किया गया और बिना किसी जान-माल के नुक्सान के,
हमारा बहादुर सेनानी, साहब ( जान के दुश्मन)
के खेमे से सुरक्षित वापिस लौट आया |
हर युद्ध के लिए कुछ कीमत भी चुकानी पड़ती है | यह पजामा अन्वेषण अभियान भी कोई अपवाद नहीं था | जब उन बिलों पर साइन करने बैठा तो जो इस अभियान से जुड़े थे, तो पता चला खर्चा आया लगभग साढ़े तीन हज़ार रुपयों का | उस समय दिमाग में एक और कहावत याद आ रही थी : हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और |
(*इस सत्य कथा के सभी पात्र काल्पनिक हैं ....... किसी भी प्रकार की समानता संयोगवश हो सकती है , पर संयोग भी इसी दुनिया का सच है | अब आप सच-झूठ का फैसला करते रहिए , मैं तो चला |)
यकीनन इन साहब लोगों का सब जगह एक जैसा ही हाल है। मातहत कर्मचारियों के लिए ही खर्चा कम करने की बात लागू होती है साहब लोगों के लिए नहीं। सच पूछिए तो कोई भी संस्थान कर्मचारियों की वजह से नहीं बल्कि बड़े बड़े साहब लोगों के खर्चों की वजह से नुकसान में जाती हैं । लेकिन इस केस में कूरियर से भेजना बेहतर होता क्योंकि साहब ने ही तो कहा था कि खर्च पर अंकुश लगाने को।
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