चम्पू |
आज के इस किस्से का हीरो कोई दो पैरों वाला इंसान नहीं वरन चार पैरों वाला एक प्राणी है | उस चुलबुले प्राणी का नाम है चम्पू | जितना प्यारा उसका नाम है उतनी ही रंग-बिरंगी और चंचल उसकी शक्सियत है | अरे पर अभी तक आपको यह तो बताया ही नहीं कि यह चम्पू महाशय हैं कौन | यह दरअसल मेरा पालतू कुत्ता है जिसके लिए कुत्ता शब्द कहने में भी मेरी जुबान सही मायने में लड़खड़ा जाती है | बहुत छोटा था, यह तभी से पिछले पांच वर्षों से मेरे पास है इसलिए एक तरह से यह मेरे परिवार का सबसे छोटा सदस्य है | आज के प्रचलित फैशन के अनुसार इसे खरीदा नहीं था, बल्कि कई परिवारों से तिरस्कृत कर ठुकराए जाने के बाद इसे बड़े प्यार से एक तरह से गोद ही लिया था | तभी से यह हम सब का आँखों का तारा है | इसका संक्षिप्त सा परिचय और कारगुजारियों की जानकारी आपको एक छोटी सी कविता में भी मिल जाएगी जिसका लिंक साथ में ही दिया गया है “चम्पू” | चम्पू की सबसे बड़ी खासियतों में शामिल है इसका तेज दिमाग और निडर स्वभाव | शराफत का आलम यह है कि हर सुबह, मेनगेट से अखबार उठा कर मुझे बिस्तर पर ही लाकर हाज़िर कर देता है |
अब रही बात बदमाशी की तो जनाब बस कुछ यूँ समझ लीजिए के चम्पू कुछ हद उस गली-मौहल्ले में पले- बढे उस इंसान की तरह है जो पढ़-लिख कर किसी मल्टी-नेशनल कंपनी का सफ़ेदपोश बड़ा अफसर तो बन गया पर जिसके खून में से गुंडागर्दी के बदमाशी कीटाणू अभी तक जोर मार रहे हैं | नतीजा यह होता है कि छोटी कद –काठी का होने के बावजूद मोहल्ले की गली के सारे आवारा कुत्तों का निर्विवाद स्वघोषित दादा है | हाँ यह बात अलग है कि कभी कभी अमरीका जैसे देश की भी हर जगह पंगे लेने की आदत की वजह से कई बार बुरी तरह से फजीहत हो जाती है | ऐसा ही कई बार चम्पू के साथ भी हो जाता है जब मोहल्ले के सारे विद्रोही कुत्ते महागठबंधन बना कर हमला बोल देते हैं और राणा सांगा की तरह पूरे शरीर पर नोच-खसोट के निशान लिए चम्पू घर पर लुटे-पिटे दाखिल होते हैं | वह सब देख कर हम भी समझ जाते हैं कि बस अब इलाज के मेडीकल बजट में बढ़ोत्तरी करने के लिए तैयार हो जाइए | पर एक बात काबिले तारीफ़ है , इतने सब के बावजूद चम्पू के हौसले में कोई कमीं नहीं आती और ठीक होने के बाद नई जंग के लिए फिर से चाक-चौकस और तैयार | लगता है उसने मशहूर शायर अज़ीम बेग “अज़ीम” का यह शेर अपने दिलो-दिमाग में पूरी तरह से बसा लिया है :
मजेदार जिन्दगी |
जनाब इंसान नहीं, उसकी कुर्सी बोलती है |
गिरते हैं शह-सवार ही मैदाने जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले |
(* तिफ्ल = छोटा बच्चा )|
यकीन मानिए मुझे कई बार लगता है कि अमरीका और चम्पू की जन्मकुंडली में बहुत समानता होगी | लड़ाई- झगड़े और हर मामले में टांग अड़ाने की अपनी आदत बदलने को दोनों में से कोई भी तैयार नहीं |
इसी सिलसिले में मुझे एक वाकया याद आ रहा है – ऐसा वाकया जिसे आप हल्के – फुल्के अंदाज़ में बन्दरकाण्ड कह सकते हैं या फिर बचाव अभियान भी | पूरा किस्सा पढ़ने के बाद आप क्या सोचते हैं यह आप पर निर्भर है |
तो भाई लोगों हुआ कुछ यूँ कि अपने कमरे में बैठा टी.वी देख रहा था | एक कोने में चम्पू भी अलसाई मुद्रा में अपनी दोपहर की नींद का मज़ा लूट रहां था | अचानक घर के बाहर से कुछ चीख-पुकार और शोर-शराबा सुनाई पड़ा | बाहर झाँक कर देखा तो बड़ा ही खौफ़नाक नज़ारा था | सड़क के एक ओर एक छोटा सा बच्चा गिरा पड़ा था और जोर-जोर से डर के मारे रोये जा रहा था | डर का कारण था मोटे-ताज़े, हट्टे- कट्टे बंदरों का झुण्ड जिन्होंने उस बच्चे को घेर रखा था | अपने बड़े-बड़े दांत निकाल कर बहुत ही भयानक तरीके से तरह की आवाजें निकाल कर उस सड़क पर गिरे बच्चे को डरा रहे थे | अब वह बेचारा बच्चा तो बच्चा ठहरा, उस नज़ारे को देख कर किसी भी मजबूत से मजबूत कलेजे वाले का भी खून जम जाए | उस बच्चे की माँ दूर एक तरफ खड़ी चिल्ला-चिल्ला कर मदद की गुहार लगा रही थी | इस शोरोगुल के आलम में सड़क पर ही लोगों का जमावड़ा इकठ्ठा हो गया था | महानगरों में प्रचलित परिपाटी के अनुसार उस भीड़ में मददगार कोई नहीं, सब के सब तमाशबीन | यहाँ तो वह हाल होता है कि बन्दा सड़क पर पड़ा मदद की आस में दम तोड़ देता है पर मदद नहीं मिलती | मदद तो तब मिले जब लोगों को सेल्फी खींचने से फुर्सत मिले | तो यहाँ भी कमोबेश कुछ वैसा ही नज़ारा था | दूर खड़े लोग बस जोर –जोर से शोर कर रहे थे जिससे बन्दर डरना तो दूर, गुस्से में आकर और अधिक आक्रामक हो रहे थे | यह सब देख कर एक बारगी तो मेरा कलेजा भी मुंह को आ गया | दिमाग मानों सुन्न पड़ गया | कुछ समझ नहीं आ रहा था कि करूँ तो करूँ क्या | बड़े ही तनाव से भरे और उधेड़बुन के क्षण थे और समय था कि निकलता जा रहा था | किसी भी समय उस बच्चे के साथ कुछ भी अनहोनी घट सकती थी | संकट के समय कई बार आपको मदद ऐसी जगह से मिलती है जिसे आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा होता है | मेरे दिमाग में भी अचानक जैसे कोई बिजली सी कौंध गई और बेसाख्ता ही मेरे मुंह से जोरदार चीख निकली ..... चम्पू ....... चम्पू !!! इधर मेरे मुंह से पुकार निकली और उधर आवाज सुनते ही बिजली की रफ़्तार से घर के अन्दर से दौड़ लगाता चम्पू मेरे सामने हाज़िर | आँखों में सवाल लिए मेरे चेहरे को देखते हुए मानो पूछ रहा था कि क्या हुआ ? घबराई आवाज में सड़क की तरफ इशारा करते हुए मेरे मुंह से केवल यही शब्द निकले : बन्दर..... बन्दर ! ! इतना सुनना था कि बिना कोई आगा-पीछा सोचे उस छोटे से चम्पू ने सरपट दौड़ लगा दी उन बंदरों के झुण्ड की तरफ | उस बच्चे को बीच में घिरा देख कर चम्पू भी उस हालात की गंभीरता को समझ चुका था | अब चम्पू को मैं दौड़ा तो चुका था पर अब मेरी भी हालत खराब हो चली थी | दरअसल बन्दर इतने मोटे-ताजे और मुशटंडे किस्म के थे कि चम्पू के चीथड़े-चीथड़े कर सकते थे | पर इंसान और जानवर में शायद यही बुनियादी फर्क है – इंसान सोचता ज्यादा है, पर जानवर अपनी जान पर खेल कर भी वह कर गुजरता है जो हर इंसान के बूते की बात नहीं होती | अब तक चम्पू उन बंदरों के झुण्ड में लगभग घुस ही चुका था | बन्दर भी इस अचानक आयी आफत के लिए तैयार नहीं थे | उन्होंने पहले तो बुरी तरह से डराने की कोशिश की पर चम्पू पर उस सब का कोई फर्क नहीं पड़ा | जोरदार आवाज में भौंक-भौंक कर चम्पू ने उन बंदरों के झुण्ड को पूरी तरह से तितर-बितर कर दिया | आज मुझे लगता है बंदरों से नहीं डरने के पीछे , चम्पू का हिमाचल प्रदेश के जंगलों में मेरे साथ बीता वह बचपन रहा , जब वह आये दिन पहाड़ी बन्दर और लंगूरों को मेरे घर के बगीचे से धड़ल्ले से भगा दिया करता था | बंदरों में भगदड़ मचते ही सबसे पहले उस रोते हुए बच्चे की माँ ने दौड़ कर अपने उस बच्चे को अपनी बाहों में जकड़ कर उठा लिया | माँ उस बच्चे का मुंह बेतहाशा चूमे जा रही थी | बड़ी-बड़ी आँखों से चम्पू कुछ देर तक उन्हें टकटकी बांधे देखता रहा | कुछ देर बाद तमाशबीनों की भीड़ भी छंटने लगी | दस तरह के लोग, दस तरह की बातें | कोई बंदरों के बढ़ते उत्पात का जिक्र कर रहा था तो कोई नगर प्रशासन की लापरवाही की | सब की नज़रों पर अगर चश्मा चढ़ा था तो उस बेजुबान पर बहादुर चम्पू के लिए जिसने अपनी जान पर खेल कर उस बंदरों के झुण्ड से बच्चे को बचाया था | चम्पू को भी शायद किसी तारीफ़ की जरूरत भी नहीं थी क्योंकि उसे पता था कि जैसे ही वह मेरे पास आयेगा मैं भी आँखों में खुशी के आसूँ लिए उसे बच्चे की तरह ही अपनी बांहों में वैसे ही भर लूंगा जैसे उस बच्चे को उसकी माँ ने | चम्पू ने ठीक ही सोचा था |
सही बात है यही तो फर्क है इंसान और जानवर मैं । इंसान पहले अपने लिए सोचता है और जानवर सब के लिए और आप के चम्पू ने आप के साथ रहते हुए आप की तरह ही मदद करने का गुण अपना लिया है
ReplyDeleteएक और दिलचस्प किस्सा बहादुर चम्पू का।
ReplyDeleteChampu rocks... Another interesting kissa of champu.. Truly superb...
ReplyDeleteChampu is great
DeleteYeah I know u chumpu....u are very naughty ..but u r to cute...!!! वो जिदंगी ही क्या जिसमें शरारत ना हो!!
ReplyDeleteYeah I know u chumpu....u are very naughty ..but u r to cute...!!! वो जिदंगी ही क्या जिसमें शरारत ना हो!!
ReplyDeleteYeah I know u chumpu....u are very naughty ..but u r to cute...!!! वो जिदंगी ही क्या जिसमें शरारत ना हो!!
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