मेरे बेटे प्रियंक का सिनेमेटोग्राफी का काम ही कुछ ऐसा है कि उसके पास विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हुए कलाकारों का आना-जाना लगा ही रहता है | मेरी भी अक्सर उनसे मुलाक़ात हो जाती है | बात ज्यादा पुरानी भी नहीं है | उस दिन प्रियंक के स्टूडियो से उमड़ती-घुमड़ती संगीत की बहुत ही मधुर धुन कानों में पड़ रही थी | कौतुहल से अपने को रोक नहीं सका, झाँक कर देखा तो एक शूटिंग चल रही थी, जिसमें एक नौजवान लड़का एक अनोखा सा वाद्य यंत्र बहुत ही तल्लीनता से बजा रहा था | उस वाद्य यंत्र से निकलने वाली स्वर लहरी अत्यंत अद्भुत दिव्य आनंद की अनुभूति करा रही थी | कुछ देर खडा मन्त्र मुग्ध सा उस आनंद लोक में खोया रहा और फिर मन में कई अनसुलझे सवाल लिए वापिस लौट चला | सवाल यही कि कौन है यह लड़का और क्या है वह विचित्र साज़ जिसे मैंने आज तक देखा-सुना ही नहीं था | पता चला वह लड़का था सुमित कुटानी, उत्तराखंड का रहने वाला और उस अनोखे साज़ का नाम है हैंगपैन | उस समय तो बात आयी- गयी हो गयी पर दिमाग की गहरी परतों में अठखेलियाँ खेलती रहीं और आज जब फिर से याद आयी तो दोनों के बारे में ही खोजबीन कर डाली |
चलिए पहले बात शुरू करते हैं उस सुरीले वाद्य यंत्र से | अपने देश में इसे हैंग ड्रम, हैण्ड-पैन या हैण्डपैन के नाम से भी जाना जाता है | यह एक ख़ास तरह की स्टील से बने दो अन्दर से खोखले अर्ध-गोले हैं जो बीच में रिम से आपस में चिपके हैं | यह वाद्य यंत्र ज्यादा पुराना नहीं है, इसका आविष्कार बर्न , स्विटज़रलेंड में वर्ष 1999 में फेलिक्स रोहनर और सबीना स्केयर ने किया | अपने देश में भी यह साज़ ज्यादा प्रचलित नहीं हैं इसीलिए इसे बजाने वाले कलाकार भी बस गिनती के ही हैं | इस वाद्य यंत्र को गोदी में रखकर हथेलियों की थाप से बजाया जाता है | मांग कम होने के कारण, ज्यादातर इसे विदेशों से ही आयात किया जाता है जिसकी शुरुआती कीमत ही होती है लगभग डेढ़ लाख रुपये |
अब बात करते हैं अपने आज के कलाकार सुमित कुटानी की जिसकी कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है | आप भी सुनिए उसी की जुबानी :
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में छोटा सा कस्बा है श्रीनगर, वहीं मेरा शुरुआती बचपन बीता | सेंट थेरेसस कान्वेंट स्कूल पढ़ाई की | दुर्भाग्य से पंद्रह वर्ष की उम्र में ही मां का निधन हो गया | बस उसके बाद मन ऐसा उचाट हुआ कि आगे पढाई-लिखाई से तौबा कर ली | संगीत से धीरे-धीरे लगाव होने लगा | यह लगाव इस हद तक बढ़ा कि शादी-ब्याह की बैंड-पार्टी में शामिल हो गया| अब बैंड पार्टी में घुस तो गया पर मुझे कोई भी बाजा बजाना नहीं आता था | बैंड-पार्टी के मालिक को आखिर तरस खा कर या अपना सिर पीट कर एक काम देना पड़ा - काम था कंधे पर गैस- लाईट रखकर बरात के साथ चलने का | इस तरह से मेरे दो शौक पूरे हो जाते थे – शादी के हल्ले-गुल्ले में बैंड-बाजे के संगीत का मज़ा लूटने का और साथ ही दावत में लड्डू- पूरी पर हाथ साफ़ करने का | कुछ दिन इसी तरह से मजबूरी में समय काटा और जब मन ज्यादा उचाट हुआ तो घर से ही भाग खड़े हुआ | भगवान भरोसे पहुँच गया बद्रीनाथ जहाँ रहने तक का कोई ठिकाना नहीं था | वहीं पर खोज निकाला अपने दादा के एक परिचित को जो शमशान में अघोरी थे | मैंने भी उसी शमशान में अपना डेरा जमा लिया | अब दिन कटता नदी किनारे बजरी निकालने और पत्थर तोड़ने की ठेकेदार के यहाँ मजदूरी का काम करने में और रात बीतती को अघोरी बाबा के पास शमशान के आसरे में | कल्पना कीजिए मेरी वह किशोर उम्र, जिसमें बचपन अभी पूरी तरह से गया नहीं था और जवानी शुरू हुई नहीं थी, मैं मन्त्र- मुग्ध सा, शमशान के वातावरण में समय गुजारता | शुरुआत में डर भी बहुत लगा करता पर किसी शायर की कही बात सच्ची भी हो गयी - "दर्द का हद से गुज़रना है दवा बन जाना" । पहली बार जाना कि इस नश्वर संसार में सब कुछ अस्थायी है । दिल से डर नाम की चीज़ का धीरे -धीरे नामों-निशान ही मिट गया | डर की जगह दिल में भोले-बाबा ने अपना बसेरा जमा लिया जो आज तक बरकरार है- मुझ में भी और मेरे संगीत में भी । हालात और वक्त की मार ने उस नाज़ुक कम उम्र में ही मुझे जैसे वक्त से पहले परिपक्व कर दिया | मेरी उम्र अब तक बीस साल की हो चुकी थी | कभी-कभी लगता मानो कोई अज्ञात दैवीय शक्ति बारबार कान में कह रही है “ बहुत हुआ, तेरी मंजिल कहीं और है , बस अब यहाँ से निकल चल |”
बद्रीनाथ में मजदूर और शमशान के अघोरी बाबा के बीच झूलती जिन्दगी जब ज्यादा ही दूभर हो गयी तो एक बारगी फिर मैं बद्रीनाथ से भी भाग चला और पहुँच गया ऋषिकेश | रोजी-रोटी के लिए यहीं पर कॉटेज होटल में काम मिल गया | ऋषिकेश में विदेशी सैलानी भी बहुतायत में आते रहते हैं | कान्वेंट स्कूल की इंगलिश ने काफी सहारा दिया | सैलानियों से बातचीत और मेलजोल बढ़ाने में मुझे कोई कठिनाई नहीं आती | पर जब फितरत मेरी आज़ाद परिंदे की तो होटल की नौकरी में एक जगह बैठ कर मुझे चैन आये तो आये कहाँ से | ऋषिकेश में बहुत से सैलानी आस-पास की जगहों पर ट्रेकिंग का रोमांच लेने भी आते हैं | वहीं पर अपने एक दोस्त बिट्टू के माध्यम से ट्रेकिंग गाइड का काम पकड़ लिया | काम-काज सब मजे में चल रहा था | इस बीच ऋषिकेश में घूमते –फिरते एक दिन ईस्ट-वेस्ट कैफे जा पहुँचा | आज भी मुझे याद है वहां के मालिक नवीन जी थे | वहां सबसे पहले एक विशालकाय ड्रम जिसे जम्बे कहते हैं, मेरा पहली नज़र में ही मन मोह लिया | मैंने वह ड्रम बजाना वहीं पर सीखा और फिर अक्सर बजाया करता | कभी-कभी पास के ही फ्रीडम कैफे भी चला जाता जहां पर समय-समय पर अक्सर कई विदेशी संगीत प्रेमी आते रहते | अब मेरा मन उस ट्रेकिंग की दुनिया से निकल कर संगीत की आलौकिक दुनिया में खोने लगा था | प्यानो और जम्बे ड्रम तो मैं पहले से उन विदेशी सैलानियों के लिए कैफे में बजाया ही करता था लेकिन बाद में एक और अदभुत साज़ ने मुझे जैसे पागल ही कर दिया | शायद वह 2010 या 2011 का वर्ष था जब स्पेन से आये उस सैलानी के हाथ में मैंने उस साज़ को देखा जिसे मैं हैण्डपैन के नाम से ही पुकारता हूं | उसकी मधुर स्वर लहरी ने मुझ पर जादू ही कर दिया | इस साज़ को भी मैंने सीखा, देश-विदेश जगह-जगह पर होने वाले संगीत-समारोहों में अनेक कार्यक्रम करता रहता हूँ | प्रसिद्ध गायक कैलाश खैर जी के साथ भी मुझे कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिला चुका है |
मुंबई की दुनिया में भी कदम: गुरु कैलाश खैर जी और सुमित - साथ मे अमेरिकन मित्र जान मेरी हूप्स |
अब मेरी इच्छा संगीत के ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की है | हैण्डपैन को सिखाने के लिए मैं अब तक अनेक देश जैसे कजाकिस्तान, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, नेपाल, थाईलेंड जा चुका हूँ | फिलहाल मैं अपनी छोटी सी संगीत की दुनिया में मस्त हूँ , व्यस्त हूँ | मैं केवल भगवान् से यही प्रार्थना करता हूँ कि मुझे इस काबिल बना दे कि मैं दूर पहाड़ों पर बसे अपने छोटे से गाँव में एक बेहतरीन स्कूल खोल सकूँ जहाँ समाज के कमजोर वर्ग का बच्चा भी अच्छी तालीम प्राप्त कर सके |
जीवन एक सपना , सपने में हर कोई अपना : सुमित कुटानी |
Lajawab inspirational story sir stay blessed bro keep up the good work....
ReplyDeleteGreat story sir I like it
Thanks Vipin ji
DeleteBhut anokha dhun h ...esha lga ki Chakrabarti samrat ashok ke time ka dhun sun rahi h..
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