Sunday, 11 August 2019

(#54) बुद्धं शरणं गच्छामि

श्री ब्रजेश राय जिनके सौजन्य से इस लेख के लिए सभी जानकारी और  फोटो प्राप्त हुए 
मैं अक्सर कहा करता हूँ, हमारी आसपास की दुनिया में ही बिखरे होते हैं अनगिनत रोचक इंसान, विचित्र पशु-पक्षी, अदभुत पेड़-पौधे और अपने आप में एक भरा-पूरा इतिहास समेटे ऐसे स्थान जिनसे हम अनजान हैं | इंसान की अक्सर फितरत होती है कि दूर-दूर की दुनिया देखने में इतना खो जाता है कि अपने आसपास की दुनिया से बेखबर रह जाता है | मेरी ज़िंदगी का काफी हिस्सा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की मनोहर  वादियों में गुजरा | नौकरी ही कुछ ऐसी थी कि काम के सिलसिले में एक तरह से चप्पे-चप्पे की ख़ाक छाननी पड़ती थी | पुरानी यादें अक्सर दिमाग के दरवाजे पर दस्तक दे जाती हैं और आज भी कुछ ऐसी ही धुंधली सी याद आ गयी | उस धुंधली याद पर पड़ी धूल को साफ़ करने का काम किया मेरे मित्र और तत्कालीन सहकर्मी श्री ब्रजेश राय ने | इस लेख के लिए सभी फोटो श्री ब्रजेश राय के माध्यम से ही प्राप्त हुए हैं|

चकरोता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है | लेकिन आज मैं आपको उस हिल स्टेशन पर नहीं ले कर जा रहा | देहरादून से चकरोता जाने के रास्ते में ही एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा पड़ता है नाम है कालसी, इतना छोटा कि अगर आप इस रास्ते से गुज़र रहे हैं तो पहली नज़र में ही इसे पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर बैठेंगे |

कालसी की प्राकृतिक सुन्दरता 
ज से लगभग दस वर्ष पहले की बात है जब दफ्तर के काम से ही कालसी जाना पडा था | ब्रजेश जी भी साथ ही थे | काम निपटा कर वापिस लौट ही रहे थे कि सड़क के किनारे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का बोर्ड नज़र आया | सच बताऊँ मुझे एक तरह का नशा है पुरानी चीज़ों का, पुराने रिश्तों का, दोस्तों का और पुरानी जगहों का | इतिहास से जुडी इमारतों को देखने मात्र से एक अलग ही किस्म की अनुभूति होती है | उन को देखते हुए मानों आप किसी और ही दुनिया में खो जाते हैं इस अहसास के साथ कि जब वह इमारत अपना वर्तमान जी रही थी तब की दुनिया कैसे रही होगी | पूछताछ करने पर पता चला कि पास में ही एक स्मारक है जिसमें मौर्यकालीन सम्राट अशोक के समय का प्राचीन शिलालेख है | मन में छुपी उत्सुकता को रोक ना सका और पहुँच गया उस ऐतिहासिक जगह को देखने | बाद में उस शिलालेख और कालसी के इतिहास के बारे में जगह-जगह से अन्य जानकारी भी जुटाई जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ |

कालसी स्मारक का प्रवेश द्वार 

 इस सारी कहानी की शुरुआत होती है ईसापूर्व 269- 231 के समय में सम्राट अशोक से | वही चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिसका शासन अफ़गानिस्तान से लेकर पूर्वी भारत में असम व बर्मा तक व दक्षिण भारत में सिर्फ़ तमिलनाडु व केरल को छोड कर पूरे भारत पर था। ज़रा सोचिए, कितना विशाल साम्राज्य रहा होगा सम्राट अशोक का | कितने ही युद्ध जीते पर अंत में जो युद्ध कलिंग ( आज का ओडीशा ) में जीता उसने उसकी मानों ज़िंदगी और सोच ही बदल दी | उस युद्ध में लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे | इस लड़ाई में हुई भयानक तबाही को देख कर क्रूर सम्राट अशोक का पूरी तरह से ह्रदय परिवर्तन हो गया | उसे लगा युद्ध से कुछ हासिल नहीं होता, राज्य जीतने की बजाय जनता का दिल जीतो | मानवता और शान्ति के मार्ग पर चल कर जनता का उद्धार करो | इस नई सोच के साथ ही सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया | शान्ति और मानवता के मार्ग पर चलते हुए बौद्ध धर्म के उपदेशों को दूर-दूर के देशों तक फैलाया | यहाँ तक कि अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को भी बोद्ध धर्म के प्रचार के लिए सिंहल द्वीप ( आज का श्रीलंका) भेजा | अभी तक सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने 269 ईसापूर्व से 231 ईसापूर्व तक चलने वाले शासनकाल में स्थापित किया गया । ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं। कालसी में भी ऐसा ही शिला लेख है |

अशोक का शिलालेख 

एक तरह से देखा जाए तो कालसी का महत्त्व भारत के महान सम्राट अशोक के पत्थर पर बने हुए शिलालेख के कारण ही है। ब्रिटिश शासनकाल में जॉन फारेस्ट नाम के एक अंग्रेज ने सबसे पहले घने पहाड़ी जंगलों में छिपे-पड़े इस ऐतिहासिक प्राचीन चट्टान को वर्ष 1860 में दुनिया की नज़रों में लाने का काम किया था | पुराने समय में पत्थरों जैसी कठोर सतह पर कुछ लिखने की परम्परा थी। प्राचीन काल से ही राजा महाराजा अपने आदेश इसी प्रकार लिखवाते थे। जिससे लोग इन्हे पढ़ें, सीख लें औरअपने जीवन में इन का पालन करें |कालसी का शिलालेख वह चट्टान है, जिस पर मौर्य सम्राट अशोक के 14 आदेशों को 253 ई. पू. में चट्टान पर कुरेद-कुरेद कर लिखा गया था | इन आदेशों की जड़ में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत ही हैं जिसमे अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है। इन आदेशों में नैतिक तथा मानवीय सिद्धान्तों का वर्णन किया है जैसे जीव- हत्या की मनाही, आम जनता के लिए चिकित्सा व्यवस्था, पानी के लिए कुँए खुदवाने, वृक्ष लगवाने, धर्म प्रचार करने, माता-पिता तथा गुरू का सम्मान करने, सहनशीलता तथा दयाभाव आदि श्रेष्ठ मूल्यों का प्रचार करने का निर्देश दिया है। यह आदेश राजा के बताये गए सुधारों और सलाह का संकलन है, जिसको प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। इस चट्टान की ऊंचाई 10 फुट और चौड़ाई 8 फुट है।

जब कालसी के अशोक शिला लेख स्मारक में घूम रहा था तो उस स्मारक की हवा में एक मन्त्र मुग्ध करने वाली वह सुगंध थी जिसे केवल महसूस ही किया जा सकता है | वह सुगंध अहसास दिला रही थी कि आज से भी लगभग 2300 साल पहले, जब सारी दुनिया में अज्ञान और हिंसा अपने चरम पर थी, तब भी हमारे देश में एक ऐसा महान शासक था जिसने सर्व शक्तिशाली होते हुए भी धर्म के मार्ग को अपनाया | केवल अपनाया ही नहीं, इतनी दूर-दूर तक प्रचार किया जिसकी बदौलत आज बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत के अलावा चीन, बर्मा, जापान, श्रीलंका, भूटान, कोरिया, विएतनाम , मलेशिया , कम्बोडिया, थाईलेंड तक में बहुतायत से हैं | कहना चाहता हूँ कि कालसी का यह अनजान स्मारक देखने में छोटा जरूर है पर उस नन्हे से स्मारक में समाहित सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण और लोक-हित का सन्देश इस पूरे ब्रह्माण्ड से भी विशाल है | इसी भावना को ध्यान में रखते हुए, जब भी मौक़ा मिले, उस नन्हे, अनजान स्मारक को देखने जरूर जाइयेगा |

6 comments:

  1. Very inspiring and informative sir

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  2. Very informative I like to see this soon. Thanks a lot

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  3. पुरुषोत्तम कुमार10 August 2019 at 16:05

    शुभ कार्य (शिक्षाप्रद) में लगे रहो कौशिक जी।

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  4. Really thought provoking. I had been to Kalsi for picnic long back but missed it due to unawareness. Thanks for posting.

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  5. After reading I am also desirous of visiting Kalsi early. Very good information. Pl keep us updating with such information. Thanks

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  6. Truly versatile writing with focus on educating readers on number of subjects of common interests. This is the way to continue with your innings of lfe even after completing a long span of formal service. Uncle, your blogs are always thought provoking. Regrds

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