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भारत माता मंदिर |
सच कहूँ तो मैं कोई पोंगा पंडित नहीं हूँ | कर्मकांडी भी नहीं हूँ | हाँ उस ऊपर वाले ईश्वर में अलबत्ता जरुर आस्था रखता हूँ | कभी-कभार मंदिर में भी अगर जाना पड़े तो मत्था टेक लेता हूँ उसी श्रद्धा से जिससे गुरुद्वारे में अपना शीश नवाता हूँ | सबकी अपनी - अपनी सोच है , अपने विचार हैं | मेरा मानना है कि धर्म के मामले में किसी पर भी अपनी राय, अपने विचार दूसरे पर नहीं थोपने चाहिए | अब अगर हम मंदिर की बात करते हैं तो मन में एक ख़ास तरह की परिकल्पना उभरती है - देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजा धजा पूजा-अर्चना का पवित्र स्थान | पर कभी-कभी कुछ ऐसा होता है जिससे आपको अपनी परम्परागत सोच से हट कर अपने विचार बदलने को मजबूर होना पड़ता है | ऐसा ही कुछ –कुछ मेरे साथ हुआ जब मैं फिलहाल में हरिद्वार की यात्रा से लौटा |
हरिद्वार का नाम आते ही मन में याद आ जाती है गंगा मैय्या , हर की पौड़ी और हरिद्वार- ऋषिकेश स्थित अनगिनत छोटे –बड़े मंदिर और आश्रम | परिस्थितियां कुछ ऐसी बन पड़ी कि अपने एक बड़े भाई तुल्य अभिन्न मित्र श्री विजय कुमार उपाध्याय जी के साथ हरिद्वार जाना पड़ा | उनके सुझाव पर ही दर्शन करने पहुंचे भारत माता मंदिर | हो सकता है आप में से बहुत से पाठक मित्र इस मंदिर के बारे में पहले से ही जानते हों, पर जो इससे अपरिचित हैं उन्हें यह जानकारी रोचक लगेगी | वास्तव में अपने नाम के अनुरूप ही भारत माता मंदिर अपने आप में एक व्यापकता समेटे हुए है | यह हरिद्वार में गंगा किनारे, सप्तऋषि आश्रम मार्ग पर बना हुआ है | यह लगभग 180 फीट ऊँचा है जिसमें आठ मंजिलें हैं | हर मंजिल पर आपको एक अलग ही थीम और विचारधारा का अनुभव होता है |
मात्र दो रुपये का टिकट लेकर मंदिर की सबसे ऊपर की आठवीं मंजिल तक आप सीधे लिफ्ट से पहुँच सकते हैं | यहाँ भगवान शिव का मंदिर है | यहाँ से आपको आध्यात्मिक शान्ति के अलावा हरिद्वार की प्राकृतिक सुन्दरता के भी दर्शन होते हैं |
वापिस नीचे सीढ़ियों से उतरने पर सातवीं मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों को देखा जा सकता हैं । भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उनके मत्स्य , कुर्म , वाराह , नर्सिहा , वामन , परशुराम , राम , कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतारों की सुन्दर झाकियां दर्शायी गयी है |
छठवीं मंजिल पर बने “शक्ति मंदिर” में आदि शक्ति की प्रतीक विभिन्न देवियों - माँ दुर्गा , पार्वती , राधा , काली , सरस्वती आदि की मूर्तियाँ प्रदर्शित की गयी हैं|
अभी तक जो भी हमने देखा वह सब अन्य दूसरे मंदिरों जैसा ही था | पर अब जैसे ही आप पांचवी मंजिल पर उतरते हैं, आपको अब एहसास होने लगता है कि यह मंदिर दूसरे अन्य सामान्य मंदिरों से अलग क्यों है | इस खंड में भारत के विभिन्न प्रदेशों और राज्यों की संस्कृति को चित्रों के माध्यम से बहुत ही रोचक तरीके से दिखाया गया है | यहाँ की दीर्घा का एक चक्कर मात्र लगाने से आपको कर्नाटक, गोवा, गुजरात, राजस्थान, जम्मू –काश्मीर, कश्मीर पंजाब, हिमाचल प्रदेश का मानो सजीव दर्शन करा देता है | यह खंड विभिन्न धर्मों की झांकियां ,इतिहास ,एवं भारत के विभिन्न भागों की लोक कला को सुंदरता से प्रदर्शित करता है ।
चौथी मंजिल पर है संत मंदिर | यहाँ उन सब संत पुरुषों और समाज सुधारकों की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं जिन्होनें धर्म और समाज के क्षेत्र में एक नयी चेतना लाकर अभूतपूर्व योगदान दिया | यहाँ आपको बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मगुरुओं के भी दर्शन होंगें जैसे - गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, महर्षि बाल्मिकी , संत ज्ञानेश्वर, गुरुनानक जी, गुरु गोविंद सिंह जी, स्वामी विवेकानंद , स्वामी दयानंद सरस्वती , महर्षि अरविन्द , परमहंस रामकृष्ण जी |
तीसरी मंजिल बना खंड समर्पित है स्त्री शक्ति के नाम | इस मंदिर का नाम है “ मातृ मंदिर” | प्रेम, वात्सल्य और भक्ति और समाज सेवा के प्रतीक रानी पद्मिनी , सती सावित्री , सती चमखर देवी, मीरा बाई , हेलन केलर , एनी बेसेंट की मूर्तियां यहाँ स्थापित हैं | अब आपको भी लग रहा है ना आश्चर्य | अभी देखते जाइये आगे भी |
दूसरी मंजिल पर है शूर मंदिर | अपने नाम के अनूरूप यह मंदिर देश के वीर सपूतों को समर्पित है जिनके योगदान और बलिदान को आज का भारत कभी नहीं भूल सकता |इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर लिखी राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की देश के बलिदानियों को वन्दना करती कविता की यह पंक्तियाँ पढ़कर चलते कदम मानों बरबस ठिठक गए :
तुमने दिया देश को जीवन,
देश तुम्हें क्या देगा,
अपनी आग, तेज रखने को,
नाम तुम्हारा लेगा |
मंदिर के इस खंड में सरदार पटेल, महात्मा गाँधी , सुभाष चन्द्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री , गुरु गोविन्द सिंह , महाराणा प्रताप , शिवाजी महाराज , झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई , भगत सिंह , सुखदेव , चन्द्र शेखर आज़ाद, राजगुरु आदि भारत माता के वीर सपूतों की मूर्तियाँ लगी है | यह सब देखकर मन सोचने पर विवश हो जाता है कि समय काल के साथ-साथ यही महापुरुष हजारों वर्ष के अंतराल पर देवताओं के रूप में शायद याद किये और पूजे जायेंगे |
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भारत माता की प्रतिमा |
सबसे नीचे मंदिर की पहली मंजिल पर तिरंगा झंडा हाथ में लिए भारत माता की भव्य मूर्ति है | साथ में ही धरती पर रेत , मिट्टी और सीमेंट के मिश्रण से बना विशाल भारत के नक़्शे का माडल है जिसे देखने मात्र से ही बहुत ही आलौकिक अनुभव होता है | रात के समय रंग –बिरंगी रोशनी में इसकी छटा देखते ही बनती है |
इस मंदिर के दर्शन करने के बाद आपको एक विचित्र अनुभव होता है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है | एक ओर आध्यात्मिक शान्ति का अनुभव होता है लेकिन साथ ही साथ हमें गर्व की अनुभूति होती है भारत भूमि की ऐतिहासिक विरासत के बारे में जान कर| यह इतिहास हमें बताता है कि हजारों वर्ष पूर्व जब आज के तथाकथित उन्नत पश्चिमी देश के लोग भेड़-बकरियां चरा रहे थे तब यहाँ भारत देश में वेद और पुराणों की रचना की जा रही थी | यह मंदिर हमें याद दिलाता है उन समाज सुधारकों के योगदान को जिन्होंने समाज में फ़ैली कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई और समाज को नयी चेतना और दिशा दी | इस मंदिर में आकर हमारा सर श्रद्धा से झुक जाता है उन शूर-वीर स्वतन्त्रता सैनानियों के लिए जो इस देश को आज़ाद कराने के लिए हंसते हुए अपनी जान पर खेल गए | यहाँ आकर मुझे लगा मानों भगवान् , देवताओं और महापुरुषों में बस केवल एक महीन सी विभाजन रेखा है | इन सबके सद्कर्मों का आशीर्वाद ही तो है जो आज हम सब आज़ादी की हवा में सांस ले रहे हैं | शत शत नमन उन सब को |
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ब्रह्मलीन गुरु महामंडलेश्वर सत्यमित्रानंद गिरि जी |
साथ ही नमन उस सोच को जिन्होनें इस मंदिर की स्थापना की | इस मंदिर का निर्माण प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु महामंडलेश्वर सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज ने करवाया था | मई 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उदघाटन किया था | अभी पिछले माह ही 25 जून 2019 को 87 वर्ष की आयु में स्वामी जी का निधन हो गया | समाज के प्रति विभिन्न अभूतपूर्व योगदान और परमार्थ सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित भी किया जा चुका है | ऐसे गौरवशाली महापुरुष की श्रद्धांजली में केवल यही सबसे सार्थक शब्द हो सकते हैं :
|भारत माता की जय |