Saturday 27 October 2018

इंसानियत का सांता क्लाज

दावत की तैयारी 
सुबह-सवेरे घर के सामने सड़क पर एक अजीबो-गरीब नज़ारा रोज़ ही नज़र आ जाता है | गली-मौहल्ले के सारे कुत्ते बड़ी बेसब्री से पीपल के पेड़ के नीचे झुण्ड में खड़े होकर मानों किसी का इंतज़ार कर रहें हों | वे सब सच में इंतज़ार ही कर रहे होते हैं जो पूरा होता है जब वे देखते हैं कि दूर से एक साइकिल ठेला धीरे-धीरे सड़क पर आरहा है | उस ठेले पर दो-तीन बड़े-बड़े कचरे के थेले लदे होते हैं | ठेले वाले की हालत भी लगभग ठेले  और उस पर लदे कचरे जैसी ही होती है | कमीज़-पतलून पहने  दुबला-पतला शरीर जिस पर  सर्दी-गरमी से बचने के लिए  सिर पर  साफ़े की तरह से  बाँधा हुआ कपड़ा और सबसे अलग चेहरे  पर अत्यंत आकर्षक,निर्मल, मनमोहक  मुस्कान | पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचते ही सारे कुत्ते पूँछ हिलाते उसके कचरा-ठेले को घेर लेते हैं | यह शख्स धीरे से से अपने साइकिल ठेले की गद्दी से उतरता है और आस-पास की जगह पर बिखरा हुआ कूड़ा ठेले में रखे थेलों में भरना देता है | इस बीच इक्कठे हुए कुत्तों की जमात का सब्र का बाँध जैसे टूटना शुरू हो जाता है और सब दबी हुई आवाज़ में कूँ-कूँ करते एक अनोखे राग को  गा कर मानों ध्यान खींचने की कोशिश करने लगते हैं | अब उस शख्स का एक नया ही रूप नज़र आने लगता है | वह अपने उन थेलों  में से उस एक थेले में हाथ डालता है जिसमें उसने कूड़ा नहीं वरन लोगों का फेंका हुआ बचा-कुचा खाने का सामान, रोटियाँ,दाल-सब्जी वगैरा भरा हुआ है | बड़े प्यार से अपने हाथ से वह उस खाने को इन निरीह भूखे-प्यासे जानवरों को खिलाता है जिसे हम तथाकथित सभ्य और पढ़े-लिखे होने का दंभ भरने वाले समाज ने बर्बाद करके फेंक दिया | ऐसे लगता है जैसे  भूख के मारे कुत्तों की मानों दावत हो रही है और मेरी बात तो छोडिए, शायद उन कुत्तों को उस इंसान में सांता क्लाज का रूप नज़र आता होगा | अगर वे बोल सकते तो शायद उनके यही शब्द होते : अन्नदाता सुखी भव : ( मुझे भोजन देने वाले तू सुखी रह)| 
हमारा सांता क्लाज - श्रीपत 

नकली सांता क्लाज तो 
उपहार देने के लिए क्रिसमस के मौके पर ही में एक ही बार आता है  पर यह इंसानी फ़रिश्ता  तो रोज़ ही हाज़िर हो जाता है एक ऐसा उपहार देने के लिए जो अनमोल है | भूख से बढ़ कर कोई कष्ट नहीं, जो उस कष्ट को हरे उससे बढकर कोई इंसान नहीं | जो भी यह कष्ट मिटाता है भूखे-प्यासे, दुनिया के ठुकराए मूक-निरीह जीव जंतुओं का, मेरे मानना है कि  वह इंसान से भी ऊपर देवताओं की श्रेणी में आता है | हममें से शायद ही कुछ लोग होंगें जो खुद के  बचे-कुचे खाने को भूखे-प्यासे जानवरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हों | यह इंसान तो हालाँकि अपनी सहूलियत के अनुसार उस खाने को सीधे बड़े कचरे घर में भी डाल सकता है पर गरीब अशिक्षित सांता  क्लाज की सोच परोपकार से भरी हुई है | आज के जमाने में जब लोग पशु कल्याण के नाम पर अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं, अखबारों में फोटो छपवाने के लिए राजनीति कर रहे हैं, पशुओं का चारा तक हजम कर रहें हैं,  बड़े-बड़े एन.जी. ओ. चला रहे हैं और मिलने वाली सहायता राशि डकार रहे हैं , हमारा सांता क्लाज खामोशी से अपनी नेकी की राह पर अकेला चला जा रहा है | उसे कोई आस नहीं किसी प्रचार की, किसी पुरस्कार की | उसका जीवन संघर्ष केन्द्रित है अपना खुद का  पेट भरने में और सड़क पर आवारा  घूमते-फिरते इन भूखे-प्यासे कुत्तों को खाना खिलाने में |आज उस प्यारे इंसान से बात करने पर पता चला कि उसका नाम श्रीपत है जो रोजी-रोटी की तलाश में सुदूर गोरखपुर से नोएडा आया है | हम सब को बहुत कुछ अभी भी सीखना बाकी है इस सांता क्लाज से – अपने  श्रीपत से | हम सब को प्रार्थना करनी चाहिए ईश्वर से कि श्रीपत और उसके जैसी पशु-पक्षियों के लिए भली सोच रखने वाले हर इंसान का भला हो |   
अन्न दाता सुखी भव:

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