Saturday 1 September 2018

दास्ताने कोल पत्तर


यूँ के है तो यह महज़ एक क़िस्सा पर है सच्चा । बात है तक़रीबन 37 साल पुरानी , याने सन 1980 के आसपास की । चरखी दादरी यूनिट का सी सी आई द्वारा अधिग्रहण ताज़ा ताज़ा हुआ ही था । पुरानी काफ़ी समय से बन्द पड़ी फ़ेक्ट्री का काया कल्प करने का काम ज़ोर शोर से चल रहा था । सी सी आई के जगह जगह से टूर पर बुलाए गए अपने अपने तकनीकी क्षेत्रों के एक्सपर्ट पूरी तरह से दिन रात काम पर जुटे रहते थे । इन लोगों का जमावड़ा फ़ेक्ट्री के पुराने हवेलीनुमा गेस्ट हाउस में ही रहता था ।  इस गेस्ट हाउस के कर्ता धरता या यूँ कहिए हनुमान हुआ करते थे जनाब कोल पत्तर । छोटे से क़द के , भारी बदन के स्वामी । हाँ अलबत्ता बेचारे एक आँख से लाचार थे । स्वभाव से बड़े हँसमुख और  मेहमान नवाजी में पक्के माहिर । उम्र होगी यही कोई पचास के आसपास , यानी खासे तजुरबेकार । डालमिया के समय से ही गेस्ट हाउस की रसोई और अन्य व्यवस्था संभालते थे । हमारे जैसे कई अन्य बेचलर्स जिनके खाने पीने का मजबूरी वश इंतज़ाम गेस्ट हाउस में ही था, कोल पत्तर को प्यार से मूँछों वाली मम्मी कह कर बुलाते थे और वह ज़िंदादिल शक्स भी पूरी मस्ती में इस उपनाम के मज़े लेता था ।
सो हुआ यूँ कि एक दिन गेस्ट हाउस में किसी बड़े अधिकारी का आना हुआ । सफ़र की थकान थी या स्वभाव की जन्मजात आदत , उन्होंने किसी बात पर कोल पत्तर को ज़ोरदार डाँट पिला दी । अब श्रीमान कोल पत्तर उर्फ़ हमारी मूँछों वाली मम्मी, कुछ समय तक तो हनुमान रूप में चुपचाप भक्ति भाव से डाँट बर्दाश्त करते रहे, पर ज़्यादा बमबारी होने पर सीधे हनुमान से परश राम के रूप में अवतरित हो गए और बोले : "साहिब , आप हम को जानित नाहीं , हम हैं कोल पत्थर जो आप जैसे कितनन को हम सामान समेत गड्डी चड़ाए दिए है । " अब सच मानिए , साहब बहादुर तो एकदम धड़ाम से जैसे ज़मीन पर आ गए , मानों सर पर किसी ने घड़ों पानी उड़ेल दिया हो । ग़ुस्से और शर्म से चुपचाप वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी ।
पर बात यहीं ख़त्म नहीं हुई । साहब बहादुर ठहरे आला अफ़सर , सवाल मूँछों का था जिसे सरे आम भरी महफ़िल में हमारी तथा कथित मूँछों वाली मम्मी ने बड़ी बेदर्दी से कुतर डाला था l जिसका डर था आख़िर वही हुआ - कोल पत्तर को शाही बुलावा अगले ही दिन आ गया । हम समझ गए कि आज तो हनुमान का कोर्टमार्शल तय है । श्री गुप्ता (पूरा नाम याद नहीं ) तब फ़ेक्ट्री के जी एम हुआ करते थे और बहुत ही सरल और सौम्य व्यक्ति थे । उनके दरबार में पेशी हुई हमारे गोलू मोलू की । जी एम साहब ने जो कि ऑर्डिनेन्स फ़ेक्ट्री , से डेपुटेशन पर आए हुए थे ,  पहला गोला दागा " तुमने साहब की बेज्जती करी ? क्या बोला था ज़रा फिर से बोलो ।" कोल पत्तर जी कानों पर हाथ रख कर तुरंत बोले " साहिब हम तो ऐसा सपने में भी नाहीं सोच सक़त । हम ठहरे सेवक माई बाप, हम तो साहिब को बताई रहिल की बड़े बड़े साहिब लोगन को सटेशन तक सामान लेकर हम ही जाता हूँ ।  हमारा क्या ग़लती साहिब । "  चरखी दादरी स्टेशन और फ़ेक्ट्री बिलकुल साथ साथ थीं । कोल पत्तर की बात लगभग उसी तर्ज़ पर थी जैसा महाभारत के युद्ध में बोला गया युधिष्ठिर का अर्ध सत्य - अश्वत्थामा हत: नरो व कुंजर ।  राम जाने उस दिन था क्या  - कोल पत्तर की क़िस्मत थी या जी एम रूपी राम को अपने हनुमान की भक्ति और सेवाएँ याद आ गई । असल माजरा तो जी एम साहब समझ चुके थे , पर शायद हनुमान की हाज़िर जवाबी उन्हें अंदर तक गुदगुदा ग़ई थी । होंठों पर आई हल्की सी मुस्कान को बलात दबाते हुए उन्होंने , नीचे फ़ाइलों में नज़र गढ़ाए हुए ही हाथ के इशारे से मूँछों वाली मम्मी को जाने का इशारा कर दिया ।  और इस  तरह से लंका कांड का हैपी वाला दी एंड हुआ ।
चलिए अब लगे हाथों आपको इस फ़िल्म के नायक के दर्शन भी करवा देता हूँ । साथ में लगे फ़ोटो में बीचों बीच ( बाएँ से तीसरे ) सफ़ेद बुर्राक वर्दी में मुस्कान बिखेरते जो ठिगने से महानुभाव मौजूद हैं वही हैं हमारी  तत्कालीन   ' मूँछों वाली मम्मी ' ।

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