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अगर आप संगीत के शौकीन हैं तो वह फिल्मी गाना तो जरूर सुना होगा – जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह – शाम । अब अगर आप ज़िंदगी की डगर पर चलते जा रहे हैं तो ज़रूरी नहीं कि सड़क सीधी-सपाट ही मिले । राह कांटो भरी और टेढ़ी-मेढ़ी भी हो सकती है । अब अगर आप को अपनी मंज़िल तक पहुंचना है तो सड़क तो आपके हिसाब से ढलेगी नहीं – आपको खुद में ही बदलाव करने होंगे सड़क के आड़े-तिरछे मोड़ों के अनुसार । परिस्थितियों के अनुसार अपने-आप को ढाल लेने की काबलियत ही शायद जीवन को सफल और सरल बनाने का मार्ग है । अब मैं यह नहीं कह रहा कि बदलाव के नाम पर आप हर उस उल्टी-सीधी और गलत बात से भी समझौता कर लें जो सामने आ रही है । अगर ऐसा हो जाता है तब तो इंसान जी हुज़ूरी करने वाला, बिना रीढ़ की हड्डी का अवसरवादी, मौका-परस्त रंग बदलने वाला गिरगिट बन जाएगा । सही -गलत का फैसला तो आपको अपने विवेक के अनुसार ही लेना होगा । जिसे दिल गवाही दे वही सही है – बस अपने दिल की सुनिए औए इस कदर सुनिए कि कहीं किसी भी कोने से हल्की सी भी कोई विरोध की आवाज तो नहीं आ रही । जो भला लगे उसे बेझिझक कर डालिए और उसके लिए अपने आपमें कोई बदलाव भी लाना पड़े तो सोचिए मत ।
श्री पुरुषोत्तम कुमार |
अब इन बदलावों के बारे में बात करते हुए मुझे अपने दो दोस्तों की याद आरही है। दोनों ही मुझसे हर मामले में अत्यंत वरिष्ठ । उनके जीवन में परिवर्तन की श्रेणी भी बिलकुल अलग-अलग तरह की । पहले मित्र हैं पुरुषोत्तम कुमार जी – उन्हें किसी ज़माने में जीव-जंतुओं से कोई विशेष लगाव नहीं था । अपने इस स्वभाव और जीवन-शैली की वजह से उन्हें कोई समस्या भी नहीं थी । सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था । आज के ज़माने में अब ज़रूरी नहीं कि जिस रूप और आदतों के साथ हमने ज़िंदगी गुज़ार दी, हमारे बच्चे भी उसी रेल की पटरी पर चलें । कुमार साहब के बच्चे उस दुनिया से संबंध रखते हैं जिन्हें हम पशु-प्रेमी कहते हैं । ऐसे लोग अक्सर घरों में पालतू जानवर बहुत ही प्यार से रखते हैं । मेरे मित्र को शुरू में बच्चों की उस शौक से थोड़ी-बहुत हिचकिचाहट हुई पर बाद में उन्हें खुद लगा कि जीव-जगत की दुनिया से जुड़ने में कोई बुराई नहीं । यह तो एक प्रकार से आपके लिए अलग ही किस्म की खुशियों के दरवाजे खोल देता है। यह था कुमार साहब का आत्म-मंथन और सोच जिसे उन्होने समझदारी से खुशी-खुशी अपने जीवन में स्वीकार किया और लागू भी किया ।
बच्चे भी खुश – कुमार साहब भी खुश और जीवन में एक अच्छे बदलाव के लिए उन्हें कोई विशेष प्रयत्न भी नहीं करना पड़ा । बस अपनी सोच बदली जोकि पूरी तरह से उन्हीं के हाथ में थी ।
अब बात उस दूसरी तरह के बदलाव की जो समस्या बन चुका है गुप्ता जी के लिए। देश के दवा-उद्योग से जुड़ी नामी-गिरामी कंपनी में वह अच्छी-ख़ासे ऊंचे ओहदे की नौकरी के करने के बाद आजकल रिटायर्ड जीवन बिता रहे हैं । बढ़ती उम्र के साथ जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ धीरे-धीरे उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बनती जा रहीं हैं । आज के दौर की बदलती टेक्नोलोजी को गुप्ता जी भी अपनाना चाहते हैं । वह ज्यादा की चाहत नहीं रखते – उन्हें बस आज के स्मार्ट फोन को इस्तेमाल करना सिखा दे – यही छोटा सा ख्वाब है । पर यह नेक काम करे तो करे कौन ? बच्चे अपने आप में व्यस्त हैं । सिखाने के लिए जो धैर्य और नम्रता चाहिए वह भी रेगिस्तान में पानी की तरह से गायब होती जा रही है । वह भूल जाते हैं कि जिन माँ-बाप और बुजुर्गों को नए ज़माने के इन गेजेट्स / उपकरण सिखाने के लिए उनके पास वक्त और इच्छा-शक्ति का अभाव है, उन्हीं माँ-बाप ने किसी समय उन्हें क-ख-ग और गिनती सिखाने में कितना धीरज रखा था । उन आज के नई पीढ़ी के युवकों को किसी ने याद दिलाने की ज़हमत नहीं उठाई कि उनके बचपन में भी दिन में 24 घंटे, हफ्ते में सात दिन, माह में सात दिन और साल 365 दिनों का ही होता था । वक्त की कमी उनके माँ -बाप को भी रहती थी पर इस कमी को उन्होने कभी बच्चों के विकास के रास्ते में हावी कभी नहीं होने दिया ।
यह किसी एक गुप्ता जी की कहानी नहीं है – आपको भी अपने इर्द -गिर्द जान-पहचान के बहुत से बुजुर्ग गुप्ता जी , शर्मा जी या सिंह साहब मिल जाएँगे जो कुछ नया सीखना चाहते हैं पर किसी के पास सिखाना तो दूर , उनके पास बैठने का समय भी नहीं । स्मार्टफोन और इंटरनेट की टेक्नोलोजी से जुड़ कर वह अकेलेपन की समस्या से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं । अपने समय का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं । बिजली, गैस , फोन के बिलों को जमा करने की लाइनों में खड़े होने की दिक्कत से छुटकारा पा सकते हैं । सोशल मीडिया के माध्यम से अपने संगी-साथियों और दूर- दराज़ बसे बाल-बच्चों के निरंतर संपर्क में रह सकते हैं ।अपनी जानकारी में आए ऐसे किसी भी गुप्ता जी की तरह के बुजुर्ग के जीवन को आसान बनाने के लिए अगर हम अपना थोड़ा सा समय और धैर्य दे सकें तो इससे नेक काम और कुछ नहीं हो सकता । और हाँ - चलते-चलते एक सलाह अपने बुजुर्ग दोस्त बिरादरी से भी - इन्टरनेट और स्मार्टफोन की नई टेक्नोलोजी सीखें जरूर - पर अपने किसी भरोसे के संगी-साथी या व्यक्ति से ही । अनजान गुरु आपके लिए जी का जंजाल भी बन सकता है क्योंकि इस दुनिया में एक से ऊपर एक धोखेबाज भी बैठे हैं जो आपकी बैंक और निजी जानकारी का गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं
मैं किसी को कुछ सीख देने की कोशिश कतई नहीं कर रहा हूँ – केवल अपने विचार रख रहा हूँ । हो सकता है शायद आप में कुछ को भी पसंद आ गए और उनके हाथों किसी एक ‘गुप्ता जी’ का भी भला हो गया तो मेरा लिखना सफल है ।