Sunday, 19 January 2020

हाथ की लकीरें : रमेश कुमार जोशी

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सुनते आए हैं - मुंबई की बरसात, अफ़सर की बात और घोड़े की लात का कुछ भरोसा नहीं होता । अभी कुछ है और अगले ही पल क्या रंग दिखा दें , आपके फरिश्ते भी नहीं जान पाएंगे । मुंबई मैं कभी गया नहीं और घोड़े की पिछाड़ी से भी दूर ही रहा सो मुंबई की बरसात और घोड़े की लात से मेरा भी पाला नहीं पड़ा । हाँ अफसरों की बातों के लपेटे में कई बार बुरी तरह से चकर -घिन्नी बना । कुछ इसी तरह इंसान के भाग्य का भी कुछ भरोसा नहीं होता । हाथों की लकीर की कुछ तासीर ही ऐसी होती है, चाहे तो बना देती हैं तकदीर या फिर लंगोटधारी फकीर । यह बात मुझे तब याद आई जब कभी श्री रमेश कुमार जोशी का जिक्र चला । भाग्य-चक्र, ज्योतिष शास्त्र और जोशी जी में उतना ही गहरा संबंध है जितना केजरीवाल जी और उनके गले में पड़े मफ़लर में है । आप पूछंगे - कैसे . . . . ? वह भी बताऊंगा , बस ज़रा सब्र कीजिए ।


गुज़रा हुआ ज़माना 
आजकल जोशी जी हिमाचल प्रदेश में शिमला के पास पहाड़ों और जंगलों के बीच मशोबरा में एक सुंदर सा होटल चला रहे हैं । आप कहेंगे इसमें क्या खास बात हो गई । अब मैं फिर से कहता हूँ – बहुत ही बेसब्र किस्म के इंसान हैं आप ।  मुझे अपनी बात पूरी तो करने दीजिए पहले । फिलहाल तो आपको टाइम मशीन में बैठा कर आज से 72 साल पहले की उस  दुनिया में पहुँचा देता हूँ हिमाचल प्रदेश के एक दूर-दराज़ के उस छोटे से गाँव में जहाँ बालक रमेश पैदा हुआ, बचपन बीता । आज़ादी से पहले  उनके पुरखे वहाँ की रियासत कियार कोटी के राजगुरु  थे । परिवार धन-वैभव से हर प्रकार से सम्पन्न था ।लेकिन  वक्त का घोड़ा किस समय दुलत्ती मार दे कुछ कहा नहीं जा सकता ।यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ ।  देश की आज़ादी के बाद राजे-रजवाड़े गए, उनका राज गया - ताज गया और साथ ही उन पर आश्रित राजघराने के दरबारी – कर्मचारी सभी एक तरह से आसमान से ज़मीन पर आ गए । कुछ समय बाद तो  बालक रमेश के घर में तो जैसे मनहूसियत ने और भी जबदस्त डेरा डाल दिया । अचानक एक के बाद एक कई मौते भी होने लगीं और घबरा कर परिवार हिमाचल प्रदेश छोड़ कर सहारनपुर मे आ कर बस गया । खुद जोशी जी के शब्दों में – कभी वह भी वक्त था जब हमारे घर में दो सौ गाय पलती थी, पर ऐसे दिन भी देखने पड़े जब  हमें दो -दो दिन तक खाना भी नसीब में नहीं था ।

युवावस्था में रमेश जोशी 
पढ़ाई – लिखाई में जोशी जी बचपन से ही तेज़ थे । इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और नौकरी की तलाश में दिल्ली की ओर दौड़ लगाई ।बालीवुड तो क्या हालीवुड के भी अभिनेता शरमा जाएँ ऐसा अच्छा-खासा व्यक्तित्व था और तकनीकी योग्यता तो थी ही । दिल्ली के ही एक जाने-माने कालेज से शुरुआत की । काम था बतौर सुपरवाइजर रख-रखाव की सारी व्यवस्था देखना । बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ गए – मेहनती तो थे ही , प्रमोशन्स की सीढ़ियों पर भी ऊपर चढ़ते जा रहे थे - असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पद तक की ज़िम्मेदारी संभाली ।

ज्योतिष गुरु  - जोशी जी 
अब आता है कहानी में पहला ट्विस्ट यानी झटकेदार मोड़ । पुरखों से विरासत में मिले ज्योतिष ज्ञान के गुण ने ज़ोर मारा । शुरुआत शौकिया तौर पर हुई पर साथ ही साथ ज्योतिष शास्त्र का धीर -गंभीर अध्ययन भी चलता रहा । जोशी जी की शिक्षा की इमारत,  विज्ञान और इंजीनियरिंग की नींव पर टिकी थी अत: हर चीज़ को तर्क और विवेक की कसौटी पर परखने के बाद विश्वास करना  उनका स्वभाव बन चुका था । उनके लिए ज्योतिष महज़ एक तीर-तुक्के का अधकचरा तमाशा नहीं वरन गृह -दशाओं की जटिल गणनाओं पर आधारित भविष्यवाणियों  का समग्र विज्ञान है । सब कुछ निर्भर करता है आपकी इस विषय की विधिवत शिक्षा पर – ठीक वैसे ही जैसे डाक्टरी की पढ़ाई ही अंतर करती है एक झोला-छाप नकली डाक्टर और एम.बी.बी.एस प्रशिक्षित डाक्टर के बीच ।  जोशी जी ने भी ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड पंडितों के शिष्य रहे और अपने ज्योतिष ज्ञान को आसमानी ऊंचाई तक पहुंचाया ।  उनकी बताई अनेक भविष्यवाणियाँ आश्चर्यजनक रूप से सटीक साबित हुईं ।  इस सब का नतीजा यह  रहा कि कई राष्ट्रीय स्तर के समाचारपत्रों के लिए लेख  और टी. वी. चैनल्स पर कार्यक्रम  देने के लिए नियमित रूप से बुलावे आने लगे ।  प्रसिद्धि बढ़ने लगी – देश के कई जाने -माने उद्योगपति और फिल्म अभिनेता उनसे सलाह लेते । इन सबके बीच वर्ष 2007 में जोशी जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति (V.R.S) ले ली और अपने आप को पूरी तरह से ज्योतिष विद्या के गहन  अध्ययन और इसके माध्यम से समाज की सेवा को समर्पित कर दिया । नाम – पैसा – शौहरत किसी चीज़ की कोई  कमी नहीं थी । सब कुछ जोशी जी के ज्ञान, भाग्य और ईश्वर की कृपा से  अच्छा चल रहा था – बल्कि दौड़ रहा था ।

पर कहने वाले ठीक ही कहते हैं – रमता जोगी, बहता पानी, इनकी माया किसने जानी । अपनी मर्जी के मालिक होते हैं ये । ठीक ऐसा ही कुछ हुआ जोशी जी के जीवन में – और अब आता है इस कहानी में दूसरा झटकेदार मोड़ । जोशी जी अब रुख करते हैं उन्हीं पहाड़ों और उस गाँव की ओर जिसे किसी ज़माने  में मजबूरीवश छोड़ कर आना पड़ा था । पर इस बार मन में एक विचार था, संकल्प था , उद्देश्य था – अपने पुरखों के गाँव के लिए ऐसा कुछ करने का जो उस क्षेत्र के विकास और स्थानीय निवासियों को रोजगार उपलब्द्ध कराने में मददगार  साबित हो । अपनी अब तक की जमा-पूंजी से उन्होने सुंदर सा होटल बनाया और उसी की देखरेख में व्यस्त हैं । जय जवान -जय किसान की तर्ज़ पर वह महसूस करते हैं कि आज के नए ज़माने की माँग है – जय करदाता – जय रोजगार दाता ।
खुशहाल जोशी परिवार 
श्री रमेश कुमार जोशी का हँसता-खेलता परिवार है- पत्नी और दो बेटियाँ- प्राची और मनु ।  सभी गुणवान, शिक्षित और आत्मनिर्भर । जोशी जी विशेष रूप से ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि उनकी अब तक की उपलबद्धियों में पत्नी श्रीमती वीणा जोशी का बहुत बड़ा योगदान है । श्रीमती जोशी एक मल्टी-नेशनल कंपनी में प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हैं ।              

जोशी जी से संबन्धित अनेक रोचक किस्से  उनकी बिटिया प्राची से सुनने को मिले ।उनके ज्योतिष ज्ञान की परीक्षा लेने के लिए किसी ने झूठ बोल कर  मृत व्यक्ति की जन्मकुंडली सामने रख दी जो पहले ही राम को प्यारा हो चुका था ।  फिर तो पूछिए मत, जोशी जी तो कुंडली सरसरी रूप से तुरंत देखते ही भाँप गए .... उसके बाद तो पूछिए मत क्रोध में जैसे उनमें साक्षात शिव का रूप आ गया और जो तांडव शुरू हुआ तो उस छलिया बाबू ने वहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समझी । एक और मज़ेदार बात – जोशी जी संगीत के बहुत शौकीन हैं । गाना बहुत अच्छा गाते हैं । एक बार किसी चौकस पड़ोसन ने श्रीमती जोशी से चुगली कर दी कि आपके आफिस जाने के बाद घर पर कोई महिला घर आकर  आपके पति के सुर में सुर मिला कर गाने गाती है । श्रीमती जी ने खबरी जासूस की विश्वसनीय चुगली के आधार पर एक दिन घर पर अचानक छापा मार दिया । जो देखा अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ – हाय दैया ! बड़े छुपे रुस्तम निकले हमारे सैया । इतना बड़ा राज़ पति ने अब तक छुपा कर रखा था । दरअसल जोशी जी अपने गले से पुरुष और महिला दोनों की ही आवाज़ खुद ही बखूबी निकाल कर आँखें बंद कर तल्लीनता से गा रहे थे ।यह तो वही बात हुई – खोदा पहाड़ निकला, निकला चूहा और वह भी मारा हुआ । इधर घर के अंदर श्रीमती जोशी की हँसी नहीं रुक पा रही थी और बाहर उनकी चुगलखोर जासूस सहेली कान लगा कर, दम साधे इंतज़ार में खड़ी थी कि जोशी जी के घर से अभी तक किसी बम धमाके की आवाज़ क्यों नहीं आई । 
यह कहानी थी उस इंसान की और उसकी घुमावदार झटके लेती तकदीर की जो एक इंजीनियर को कभी विश्वविद्यालय का  व्यस्थापक बना देती है, तो कभी ज्योतिष शास्त्र के समुद्र में गहरे गोते लगवाती है और अंत में पहुँचा देती है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में बसी पुरखों की ज़मीन पर  – जहाँ उन के मन में संतोष है- अपने होटल के माध्यम से प्रदेश के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने का, स्थानीय निवासियों को रोजगार देने का और खुद भी प्रक़ृति की सुंदरता को निहारने का।    


विंडसर पेलेस : मशोबरा -शिमला 

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