Sunday, 12 January 2020

भोली की भोली सीख

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दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं । पहली किस्म उनकी जिन्हें यह गलत-फ़हमी होती है कि बस दुनिया में जितना भी ज्ञान का कोटा है, वह सारा उन्हीं के हिस्से में ही आया है । उनकी ज़िंदगी का सीधा सा मूल-मंत्र होता है – मैं उसे समझूँ हूँ दुश्मन, जो मुझे समझाए है । ज़ाहिर सी बात है, उनका कुछ नहीं हो सकता क्योंकि उनकी सोच के अनुसार – मैं जैसा भी हूँ, बस ठीक हूँ । कोई भी मुझे और अधिक सुधारने की कोशिश न करे । ऐसे लोग कुएं के मेंढक की तरह जहां के तहां रह जाते हैं । वह यह नहीं समझ पाते कि परिवर्तन का दूसरा नाम ही तो जीवन है । परिवर्तन भी वह जो जीवन को सकारात्मक या भलाई के रास्ते पर चलने को प्रेरित करता हो । जब हम स्वयं ही सकारात्मक सोच की बात कर रहें हैं तो ऐसे कूपमंडूक-नुमा व्यक्तियों की बात ही क्यों करें जिनकी जीवन-शैली पर हमें चलना ही नहीं । 
दूसरी प्रकार के इंसान वह होते हैं जिनका जीवन एक बहती हुई नदी की तरह से होता है – अविरल बहती धारा, नए – नए विचारों से ओत-प्रोत । किसी भी उम्र में , कुछ भी नया और अच्छा सीखने से कतई परहेज़ नहीं । सीख देने वाला चाहे कोई भी हो, किसी भी उम्र का हो – उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता । आपने भी महसूस किया होगा – ऐसे ही व्यक्ति स्वयं भी फूलों की तरह से महकते रहते हैं और अपने आस-पास का वातावरण भी ख़ुशनुमा रखते हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुछ तो जाते हैं गुरु की शरण में या फिर माता-पिता,बड़े-बूढ़ों से मार्ग-दर्शन लेते हैं । आपने कभी सोचा है कि कई बार जीव-जंतुओं से भी हम बहुत कुछ समझदारी की बातें सीख सकते हैं । हाँ - इसके लिए आपको अपनी दृष्टि और दिमाग दोनों में ही पैनापन रखना पड़ेगा । चलिए आज आपको एक छोटा सा रोचक किस्सा बताता हूँ । 
घायल भोली 

भोली नाम की मादा पिल्ला पिछले कई दिनों से कष्ट में है । उसके पाँव में चोट लगी है । चलने फिरने में उसे काफी दिक्कत होती है । अपने घर के बरामदे में ही उसके लिए छोटा सा बिस्तर लगा दिया था जहाँ वह आराम करती रहती थी । उसके इलाज़ के लिए कुछ ऐसा इंतजाम कर दिया है कि नियमित रूप से पशु-चिकित्सक अपनी एंबुलेंस गाड़ी में आता है । उस एंबुलेंस गाड़ी का कॉलोनी में आना ही एक तरह से हड़कंप मचा देता है । 


सारे कुत्ते उस गाड़ी को देखते ही शोर मचाना शुरू कर देते हैं । मुझे उस वक्त वह फिल्मी गाना ज़रूर याद आ जाता है – मच गया शोर सारी नगरी में- आया बिरज का बांका- संभाल तेरी गगरी  रे । यकीन मानिए चारो तरफ़ इतना हल्ला-गुल्ला मच जाता है कि एक बारगी तो सड़क पर ही संसद भवन में बहस के दौरान नेताओं की चिल्ल-पौं का नज़ारा हू-ब-हू सामने पेश हो जाता है । दरअसल उन सब कुत्तों को पिछली कई घटनाएँ याद आ जाती हैं जब उनके ही बिरादरी के कई साथी बीमार कुत्तों को इलाज के लिए उस एंबुलेंस में बने पिंजड़े में जबरन अस्पताल ले जाना पड़ा था ।ठीक भी है , पुरानी यादें मिटाये -नहीं मिटती , चाहे इंसान हो या जानवर। अब उस दिन भी जब एंबुलेंस आई तो भोली मेरे घर से निकल कर, सड़क पर ही आसपास चहलकदमी के लिए गई हुई थी । अब डाक्टर तो एक तरह से मेरे सिर पर ही खड़ा हो गया कि कहाँ है तुम्हारा मरीज़ ? अब ऐसी स्थिति में मेरी हालत हो गई बहुत ही अटपटी – ठीक उस जेलर की तरह जिसकी जेल से कोई कैदी फ़रार हो जाए । बाहर सड़क पर कुत्तों के झुंड ने शोर मचा-मचा कर उस एंबुलेंस के इर्द-गिर्द एक तरह से तांडव मचा कर रखा हुआ था । दरअसल उस वक्त भी उस एंबुलेंस के पिंजड़े में एक बीमार कुत्ता मौजूद था, जिसे देखकर सड़क के कुत्ते बुरी तरह से घबराए भी हुए थे पर बाहर इकट्ठे होकर एक तरह से नैतिक समर्थन दे रहे थे । यह सब ठीक ऐसा ही था जैसा जेल जाते नेता जी को विदाई देती समर्थकों की भीड़ नारे लगाती है – नेता जी तुम आगे बढ़ो , हम तुम्हारे साथ हैं । खैर उस हालात में भी अपने इष्ट देवी-देवताओं को याद करते हुए अपने मरीज भोली की तलाश में सड़क पर ही दूर तक नज़र दौड़ाई । भाग्य से वह पास ही सड़क किनारे धूप सेकती मिल गई । दूर से ही भोली को आवाज देकर बुलाया । मेरी आवाज सुनकर, कमजोर शरीर भोली लड़खड़ाते कदमों से उठ खड़ी हुई और धीरे -धीरे मेरी ओर बढ़ने लगी । अचंभे की बात यह कि जब सड़क पर मौजूद कुत्तों का झुंड एक तरह से शोर मचा कर चेतावनी दे रहे थे, भोली इन सब को पूरी तरह से नज़र-अंदाज करती मेरे घर और उसके सामने खड़ी एंबुलेंस की ओर अपने कमजोर डगमगाते पैरों से बढ़ती आ रही थी । शायद यह उसका विश्वास था मेरे ऊपर, सामने खड़े उस डाक्टर पर और उस एंबुलेंस गाड़ी पर भी । भोली बरामदे में आकर चुपचाप शांत भाव से अपने बिस्तर पर बैठ गई । डाक्टर ने एक के बाद एक तीन इंजेक्शन लगा दिए और वह भी उसने बड़े आराम से लगवा लिए । सड़क पर शोर और उत्पात मचाते साथियों के झुंड से भोली बिलकुल बेपरवाह थी। 
भोली - बचपन में

भोली का यह सब व्यवहार मैं बहुत ध्यान से नोट कर रहा था । गहराई से सोचने पर मुझे लगा कि भोली भी शायद यह बताना चाह रही है कि भले-बुरे के बीच फर्क करना सीखो । जो आपका शुभचिंतक है हमेशा उसके साथ खड़े रहो – बेशक दुनिया उसके खिलाफ़ हो । लेकिन इंसान की फ़ितरत ही कुछ ऐसी हो चुकी है कि वह इन बातों को भूल चुका है । आप किसी के सौ काम कर दीजिए – आपकी वाह -वाह होगी , लेकिन जिस दिन किसी एक काम के लिए मना कर देंगे – बस समझ लीजिए आपसे बुरा कोई नहीं । ऐसी सोच ठीक नहीं । ठीक वही है जैसी भोली की सोच है । आज की यह कहानी उन दोस्तों के लिए है जो हमेशा अच्छी बातों और विचारों को खुले दिमाग से न केवल स्वीकार करते हैं बल्कि उन्हें अपने जीवन में भी उतारने का भरसक प्रयत्न करते रहते हैं । भोली के व्यवहार और सोच की वह ज़रूर प्रशंसा करेंगे ........... ठीक कहा ना मैंने ।

2 comments:

  1. भोली की भोली सी कहानी का अंदाज़े बयां बहुत ही मज़ेदार है ।नसीहत भी काबिले गौर है। मूक प्राणी भी बहुत कुछ सिखा जाता है । अति सुन्दर ।

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