Wednesday, 10 October 2018

रहिमन गुस्सा कीजिए.......

फिल्मों का मैं बचपन से ही शौक़ीन रहा हूँ और आप भी रहे ही होंगे | हो सकता है आज भी आपका यह शौक बरकरार हो | चलिए मुझे एक बात का जवाब दीजिए - अगर फिल्म में से खलनायक यानी कि विलेन को निकाल दिया जाए तो कैसा लगे ? आप में से अधिकांश लोगों का जवाब होगा –“अरे आप भी कमाल करते हैं, बस ऐसा लगेगा जैसे बिना मिर्च मसाले की सब्जी, बिना पहिए की साइकिल और बिना इंजिन की रेलगाड़ी | बस समझ लीजिए मामला हर तरह से बेस्वाद, बदरंग और बेमज़ा |” बिल्कुल सही फरमाया आपने | अब ज़रा लगे हाथों यह भी बता दीजिये कि खलनायक की सबसे ख़ास बात क्या होती है ? अब आप तो सीधे से सवाल पर अपना सर खुजलाने लगे जैसे मैंने आपसे पूछ लिया हो कि इस बार सत्ता में मोदी जी दोबारा से सिंहासन पर विराजमान होंगे या नहीं | चलिए मैं ही बता देता हूँ – खलनायक की सबसे बड़ी अदा और खासियत होती है उसका गुस्सा, उसका रौद्र रूप जो अन्य बुराइयों के साथ मिलकर फिल्म की कहानी में मिर्च मसाले का ऐसा तड़का लगाते हैं कि सारे दर्शक चटकारा लेते हुए फिल्म को हिट करवा देते हैं | अब आप ही मुझे जरा ठन्डे दिमाग से सोच कर बताइये – अगर शोले फिल्म से गब्बर को निकाल दें, या गब्बर की डायलाग डिलीवरी अमोल पालेकर के अंदाज़ में हो तो अच्छी भली फिल्म का हश्र बेचारे लालू यादव सरीखा हो जाएगा कि नहीं | तो बंधु सौ बातों की एक बात, फिल्म की आन खलनायक और खलनायक की पहचान उसका गुस्सा | अब आप मेरी बात चाहे मानें या ना मानें पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आदि काल से आज तक कई लोगों को तो उनके गुस्से के कारण ही जाना जाता है | भूल गए आप आश्रमों में तपस्यारत ऋषि-मुनियों को जो तपस्या भंग होने पर क्रोधित होकर कमंडल से जल छिड़कते हुए तुरंत श्राप देने पर उतारू हो जाते थे और उनके इन्ही श्रापों के कारण ढ़ेरों पौराणिक कथाओं का उद्भव हुआ | और किसी को हम जानें या न जानें पर आदि मुनि परशुराम जी से सभी भली- भांति परिचित हैं केवल दो कारणों से – एक उनका फरसा और दूसरा उनका क्रोध | आज मैं आपको इस गुस्से या क्रोध के बारे में ही कुछ बताने जा रहा हूँ |

एक तरह से देखा जाए तो गुस्से की भी कई किस्म होती हैं –

बारूदी गुस्सा 

1. बारूदी गुस्सा : इस प्रकार का गुस्सा धमाके के साथ विस्फोटित होता है और सामने वाले को संभलने का मौक़ा नही नहीं देता | यहाँ पर क्रिया और प्रतिक्रिया में समय का कोई विशेष अंतर नहीं होता | अक्सर निरीह पति गृहयुद्ध में इस प्रकार के बारूदी गुस्से में गंभीर रूप से घायल होते ही रहते हैं | अगर नमूना देखना है तो आप पत्नी से उसकी बनाई चाय की बुराई कर दीजिए या कह दीजिए कि उसका वजन बढ़ रहा है और अगर आपको उच्च शक्ति का विस्फोट कराना है तो सर पर हेलमेट और पाँव में दौड़ने वाले जूते पहन कर बस पत्नी की तुलना उसकी किसी सहेली या पड़ोसन से कर दीजिए| इस बारूदी गुस्से के विस्फोट की आवाज़ से अक्सर आपका आस-पड़ोस भी वाकिफ़ हो जाता है और आमना-सामना होने पर पड़ोसी आपसे खैरियत पूछ लेते हैं | इस गुस्से से बचने का केवल एक ही उपाय है – बारूद से सावधान रहिए , उसे तीली न दिखाइये | बस इतना समझ लीजिए, सावधानी में ही सुरक्षा है | 
साहबी गुस्सा 

2. साहबी गुस्सा : इसे आप एक तरह से नकचढ़ा गुस्सा भी कह सकते हैं | यह होता है साहब लोगों की शान , होता जिससे मुलाजिम परेशान | अब जितना बड़ा साहब, उसकी उतनी बड़ी नाक और उस नाक पर विराजमान उससे भी बड़ा गुस्सा | अब यह गुस्सा भी ऐसा जिसका न कोई सर न कोई पैर | कारण कुछ भी – मेरे कमरे में ये मक्खी कहाँ से आ गई , एसी का टेम्प्रेचर ठीक क्यों नहीं, घंटी बजाने पर चपरासी अलादीन के जिन्न की तरह से तुरंत हाज़िर क्यों नहीं हुआ | जब साहब के इर्द-गिर्द कुछ लोग-बाग़ होते हैं तो इस प्रकार के झुँझलाहट भरे बादलों के गरज के साथ बरसने की संभावना बढ़ जाती है | अब उस माहौल में बन्दा इतना भी नहीं सोच पाता कि अपना तुनक मिजाज़ी साहबी गुस्सा दिखा कर लोगों को एक नया चुटकला खुद अपने हाथों से सौंप देता है | शायद मैंने आपको पहले भी कहीं बताया था कि हमारे एक महा महिम रूपी साहब अपने चेंबर में बैठे मातहतों पर रौब ग़ालिब करने के लिए अपनी बीवी को ही फोन पर हड़का कर गुर्राते थे “ तुम्हें पता है तुम किस से बात कर रही हो |” अब ना रहे वह साहब और ना ही उनका गुस्सा | पहले तो सलाम का जवाब भी नदारत होता था पर अब तो हालात यह हैं कि जब कभी उनको पुरानी सल्तनत के दीदार करने की हुड़क होती है, दफ्तर की बिल्डिंग में घुसते ही खुद ही सिक्योरिटी गार्ड, लिफ्ट मेन, चपरासी, बाबू जो रास्ते में पड़ जाए उसी को रोक रोककर खुद ही सलाम के गोले ठोकते चले जाते हैं | शायद इसी को कहते हैं वक्त की मार, जिसके आगे सब लाचार | इस प्रकार के गुस्से से बचाव का सर्वोत्तम उपाय है – उस वक्त बेशक आपके दिमाग में गाली हो पर मुँह पर हो ताला | और हाँ समय-समय पर साहब पर मख्खन की मालिश करते रहने से उनकी नाक का तापमान ठीक रहता है और भूचाल आने की संभावना कुछ हद तक कम हो जाती है |
पनडुब्बी गुस्सा 

3. पनडुब्बी गुस्सा : यह एक प्रकार से क्रोध का राजनीतिक रूप होता है और अधिकतर विरोधी नेताओं के बीच पाया जाता है | दफ्तरों भी बड़े–बड़े आला दर्जे के डायरेक्टरों और चेयरमेन के समकक्ष बिरादरी के बीच भी यह पनडुब्बी और तारपीडो का खेल खूब खेला जाता है | इसकी ख़ास बात यही होती है कि इनके व्यवहार रूपी समुद्र की सतह पर सब कुछ शांत दिखता है पर वही पुरानी बात, जो दिखता है वह वास्तव में होता नहीं है | इस प्रकार के गुस्से से ग्रसित प्राणी आपस में साथ-साथ बैठ कर खाना खायेंगे, हँसेंगे, बतियांगें, गल-बहिया डाल कर बहुत जोरदार अभिनय भी करेंगे पर उसी हद तक जब तक कि इनके आपस में स्वार्थों का टकराव न हो | जब कभी भी इन्हें लगता है कि इनका तथाकथित साथी इनके मुकाबले में प्रतिस्पर्धी बन चुका है, तुरंत इनके गुस्से की पनडुब्बी से विनाशकारी तारपीडो निकलने शुरू हो जाते हैं | आगे निकलने की होड़ में अपने ही साथी की इतनी सच्ची-झूठी शिकायतें ऊपर के अधिकारियों और जांच-संस्थाओं तक भिजवाएंगे कि आपको भी एक बारगी लगने लगेगा कि यह बन्दा है या केंकड़ा | पनडुब्बी गुस्सा, खाए खेले खुर्राट किस्म लोगों के बीच ही पनपता है इसलिए कह सकते हैं कि सर्प विष का इलाज़ हो सकता है पर इस गुस्से का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं है | आप भी इसका इलाज करने का जोखिम मत उठाइएगा, बस दो सांडों की लड़ाई समझ कर, मल्ल युद्ध का मज़ा लेना पर किनारे सुरक्षित स्थान पर बैठ कर , क्योंकि बीच में आ गए तो एक भी हड्डी-पसली साबुत नहीं बचेगी |
बर्फानी गुस्सा 

4. बर्फानी गुस्सा : इस प्रकार के गुस्से को आप अक्सर संभ्रांत वर्ग के उच्च कोटि के लोगों के बीच नोट कर सकते हैं | यह उस प्रकार के थर्मस की भांति है जिसमें अन्दर तो उबलता हुआ पानी है पर बाहर सब कुछ सामान्य | पनडुब्बी गुस्से में तो बाहर से कतई पता नहीं चलता पर बर्फानी गुस्से का थोड़ा सा अंश बाहर खिसक ही आता है | इसका पता तो अंत में तभी चलता है जब मामला तलाक तक पहुँच जाता है | इसका इलाज़ केवल इस गुस्से के घायल मरीजों के ही पास होता है जो कि आपसी बातचीत द्वारा ही संभव है |
नखरीला गुस्सा 

5. नखरीला गुस्सा : यह गुस्से की सब से नाज़ुक किस्म है जिसे आप अक्सर फिल्मों में हीरो-हीरोइन, पार्कों में प्रेमी-प्रेमिका और अडोस-पड़ोस में नव विवाहित जोड़ों के बीच पाते हैं | रूठना-मनाना, मान-मनुहार इसके विशेष गुण हैं | इससे आपको घबराने की कोई आवश्यकता नहीं | यह केवल मियादी बुखार की तरह है जो नियत अवधि के बाद अपने आप चला जाता है | हाँ बाद में यह जब भी यह पुन: अवतरित होता है तो इसका रूप बिगड़ कर बारूदी गुस्सा हो चुका होता है जिसका उपचार मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ | 

सारे महान संत सीख देते देते चले गए कि भाई क्रोध से दूर रहो पर मैं आपको कहता हूँ कि गुस्सा जरुर करो, इसके बिना गुजारा नहीं | हमारे पूज्य पिता जी कहा करते थे कि बेटा जो बेवक्त गुस्सा करता है वह बेवकूफ़ है और जो वक्त पर भी गुस्सा नहीं करता वह महाबेवकूफ होता है | आपको क्रोध के नुक्सान बताने वाले अनगिनत ज्ञानी मिल जायेंगे पर मैं आज आपको गुस्सा करने के लाभ बताता हूँ : 

1. गुस्सा करने से आपका अंदर का ब्लड प्रेशर शांत हो जाता है वरना घुट-घुट कर होते रहिए परेशान | आप खुद देखिए ज्यादातर डिप्रेशन के मरीज वे होते हैं जो किसी के आगे अपनी मन की गाँठ भी नहीं खोलते हैं | अब मोदी जी का स्वास्थ देखिये, भगवान् नज़र न लगाए, कितना उत्तम है , और हो भी क्यों न, अपने अन्दर की सारी भड़ास हर माह मन की बात कह कर निकाल देते हैं, जिसे सुनना है सुने, जिसे नहीं सुनना उसकी मर्जी | 

2. गुस्सा करने से काम के प्रति प्रेरणा जाग्रत होती है | हर व्यक्ति से आप केवल पुचकार कर ही काम नहीं करवा सकते | कुछ ख़ास किस्म के अड़ियल लोगों से काम कराने के लिए आपको गाजर के साथ डंडा भी चाहिए ही |

3. सही समय पर किया गया सही मात्रा में किया गया गुस्सा आपको आने वाली मार-पिटाई की अवस्था से भी बचा लेता है | जब पिस्टल से काम चल रहा है तो तोप की क्या जरुरत | 

अब मुझे लग रहा है कि मेरी इन अनूठी शिक्षाप्रद बातें सुनकर आपका खून भी धीरे-धीरे खौलना शुरू हो गया है और आप शायद अपने आस-पास किसी लाठी डंडे की तलाश करने की सोच रहे हैं | इससे पहले कि आप मेरी ख़ोज में जुट जाएँ , मैं एक मेड इन चाइना दोहे के साथ अपनी बात समाप्त करके भागना चाहूँगा : 

रहिमन गुस्सा कीजिए, चौड़े करके नैन ,
दुष्ट भस्म हो जाएगो, खुद को आए चैन | 

(जनहित में जारी : लेख में दिए गए सुझाव, जानकारी और इलाज का प्रयोग अपने स्वयं की जिम्मेदारी पर करें | अगर लड्डू आप अकेले-अकेले खायेंगे तो कभी- कभी मिलने वाले लट्ठ पर भी आपका ही इकलोता हक़ है, उस समय मेरी तलाश करने का प्रयत्न न करें)

5 comments:

  1. सही समय पर किया गया सही मात्रा में किया गया...
    मुझे तत्व की बात लगी।वैसे हम सभी प्रायः इं अस्त्रों का प्रयोग करते रहते हैं।
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  2. Quite informative n entertaining.Ubhv used words very intelligently n effectively. Best expression of inner feeling. Good going yadi keep it up.

    ReplyDelete
  3. क्रोध पर शोध मज़ेदार लगा । अपने अनुभवों पर आधारित है, इसलिए प्रामाणिक भी मान लिया जाएगा । शोध जारी रखिये, क्रोध की और भी अनेक श्रेणियाँ मिल जाएँगी ।

    ReplyDelete
  4. पुरुषोत्तम कुमार2 May 2020 at 10:03

    कमाल है भाई। समय का सदुपयोग सिर खुजलाते हुए कोई आपसे सीखे। बातों बातों में एक खूबसूरत लेख तैयार हो गया। बहुत खूब।

    ReplyDelete
  5. Majedaar kisme gusse ki. Dear shayad isiliye mein aapki table par aa kar pani ka glass uthta leta tha..shrap se bechne ke liye

    ReplyDelete