पता नहीं उस दिन
मैं कौन सी अफीम की पिनक में था कि फोन पर अपने एक सहकर्मी से, जो बी.बी.सी के संवाददाता की भांति
दफ्तर की ताजा-तरीन ख़बरों की नवीनतम जानकारी रखने में माहिर थे, बात कर
बैठा | बातों ही बातों में उनसे पूछ बैठा कि भाई जी सुना है कि रिटायर्ड लोगों के
लिए मेडीकल स्कीम का इंतजाम हो रहा है | वे
बोले जनाब सही सुना है बस ज़रा इंतज़ार कीजिए | हमने पूछा इंतज़ार किस बात का
तो बोले आपको पहचान पत्र जारी किया जाएगा | हमने फिर मिमियाँ कर गुहार लगाई कि
हुजूर फिर देर किस बात की, अल्लाह का नाम लेकर कर दीजिए बिस्मिल्ला | मित्र
गुर्राए और फरमाया “मियाँ किस दुनिया में फाख्ता उड़ा रहे हो | दुनिया में कुछ
शर्मो हया, वफ़ादारी और जी हुजूरी भी अभी कुछ बाकी है कि नहीं | लगता है दीनो-
दुनिया से कतई अनजान हो और इसीलिए परेशान हो | खुदा सलामत रखे खुशामदी टट्टुओं को
जिनके लिए सूफी शायर अमीर खुसरो फरमा गए है – दमादम मस्त कलंदर , अली दा पहला नंबर
| मतलब अपने आला अफसर अली को हर जगह पहले नंबर पर तजरीह ( priority ) देते
रहिए और फिर काम धाम जाए तेल लेने, करो चाहे मत करो, साहब खुश तो छुट्टे मलंग सांड
की तरह मस्त कलंदर बनकर कुर्सी के मजे लूटिए | अब हम तुम्हारे बारे में सोचें जो
चार साल पहले रिटायर हुए हो या अपने आला हाकिम के बारे में जो एक महीने बाद रुखसत हो रहे हैं | तुम्हें क्या फर्क पड़ता है घर पर पड़े पड़े खटिया तोड़ रहे
हो , हमारे अफसरों को अभी अपनी सी. आर भी तो लिखवानी है कि नहीं वरना छोटे मियाँ
कैसे बन पायेंगे बड़े मियाँ |”
खुदा कसम, इस बुढापे में इतनी बेज्जती तौबा तौबा | वो तो
खैरियत थी कि हमारा चीरहरण फ़ोन पर ही हुआ वरना द्रौपदी की इज्जत तो सरे बाज़ार पक्का उतरती और
रूट की सभी लाइनें व्यस्त होने के कारण कृष्ण भगवान तक तो हमारा मेसेज भी नहीं
पहुँच पाता | इतनी शर्मिंदगी तो बचपन में भी स्कूल में भरी क्लास के आगे मुर्गा
बनने पर भी नहीं हुई | समझ में आ रहा था कि भतीजे
अखिलेश यादव से इज्ज़त का फालूदा करवा कर चाचा शिवपाल यादव को कैसा लगा था |
पर हम भी ठहरे अव्वल दर्जे के ढीठ, तेरा पीछा न छोडूंगा सोनिये, भेज दे चाहे जेल
में | फिर से मित्र से गुजारिश करी “ कुछ खुलासा तो कर दो |” अब दोस्त के तेवर भी
कुछ कुछ ढीले पड़ने लगे थे | शायद उन्हें भी अपनी रिटायरमेंट की तारीख याद आ गई थी
| बोले “मियाँ अब तुम से क्या छुपाएँ , हकीकत यह है कि बिस्मिल्ला करने के लिए
सबसे पहला पहचान कार्ड तो हमारे हाकिम अली
को ही रिटायरमेंट के दिन में जारी किया जायेगा और वो भी पूरे ढ़ोल धमाके की पार्टी के साथ |आशिक़ का जनाजा है धूम से तो निकलेगा ही । भैया फेयरवेल पार्टी में समोसा चाय पानी के बजट में कटौती तो आप लोगों के लिए है न कि साहब लोगों के वास्ते | यह सब इंतजाम करने के बाद फुर्सत मिली तो आप लोगों की हारी-बीमारी के बारे में भी सोच लिया जाएगा | आपलोग लाइन में
लगे रहो, इंतजार करो क्योंकि सब्र का फल मीठा होता है |”
अब आप ही सोचिए,
बूढ़े व्यक्ति के पास सब कुछ हो सकता है , नहीं हो सकता तो केवल एक चीज़ जिसे कहते
हैं वक्त | अपने सहकर्मी दोस्त की बात सुनकर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि यह
खासम-ख़ास लोगों के लिए तेल मालिश- बूट पालिश और चिलम भरने की खानदानी आदत से कब
छुटकारा मिलेगा | मंदिर में जाईये, रेल
में, आम सड़क पर या अस्पताल में भी
( याद करिए जय ललिता को ) , हर जगह इनके लिए अलग ख़ास अलग इंतजाम | अरे बाकी सब तो
छोड़िए, जब परम पिता परमेश्वर के पास जाना है तो भी भाई लोगों को शमशान भूमि - निगम
बोध घाट में सबसे अलग ऊँचा सा ख़ास चबूतरा ही चाहिए | इन सब के बावजूद भी , मैं बहुत
कोशिश करने के बाद भी आज तक इनके पार्थिव
अवशेष जिसे आप राख का नाम भी दे सकते हैं में कोई अंतर नहीं देख पाया | उसका रंग
वही, गंध वही और ऐसा भी कुछ नहीं कि गंगा में प्रवाहित होने के बाद कोई विशेष
चमत्कार होता हो |
अभी किस्सा ख़त्म
नहीं हुआ क्योंकि हमारे दोस्त ने सबसे अंत में दे डाला एक ओर जोर का झटका धीरे से
| कहने लगे “एक बात और सुन लीजिए इस शिनाख्ती कार्ड को हासिल करने के लिए भी आपको
हमारे दफ्तर के दरो- दरवाजे पर सज़दा तो करना ही पड़ेगा | अपना और अपनी पत्नी का फोटो, अपना आधार कार्ड , अपना रिटायरमेंट लेटर वगैरा
वगैरा के साथ अपनी तशरीफ़ का टोकरा तो इस तुगलकाबाद में लाना ही पडेगा |” जानम समझा
करो की तर्ज़ पर मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करी कि भाई यह कंप्यूटर और
इन्टरनेट की ऑन लाइन दुनिया का ज़माना है फिर जब सारे काम नेट के द्वारा हो सकते
हैं तो क्यों हम लोगों की बुढापे में मट्टी पलीद करने पर तुले हो | आज आप घर बैठे
अपना पेन कार्ड बनवा सकते हो, बैंक का खाता खोल सकते हो, बिजली, पानी , गैस , फोन,
इंश्योरेंस के बिल भर सकते हो और तो और खुद
के जिन्दा होने का सबूत यानी जीवन प्रमाण पत्र भी हासिल कर सकते हो | आप जिस जगह बैठे हैं वहां तक की राज्य सरकार आम लोगों के घरों तक विभिन्न सर्टिफिकेट और
योजनाओं का फ़ायदा पहुँचा रही है फिर यह हम पर क़यामत का डंडा क्यों बरसा रहे हो | हम पर नहीं तो कम से कम हमारे उन साथियों के बारे में सोचो जो आज इस दुनिया में नहीं रहे| उनकी उम्रदराज विधवाओं पर तो तरस खाएं और इस परेशानी के आलम से बचाएं | ज़वाब मिला “हाकिमों का मानना है कि आप लोग कंप्यूटर के मामले में अनपढ़ हैं इसलिए आपलोगों के लिए यही वाजिब है | जरुरत आपकी है, हमारी नहीं |" मैं भी आखिर कितनी बहस कर सकता था , थक हारकर अपना सर पीट कर रह गया क्योंकि पुरानी
देसी कहावत याद आ गई थी कि ना मानूं की कोई दवा नहीं होती है |
अब हाकिम अली के रिटायरमेंट पर एक नंबर का कार्ड जारी होने तक , मेडीकल के लिए शिनाख्ती कार्ड योजना के उदघाटन का इंतज़ार कर रहे हैं सब सभी बुड्ढे – ठुड्डे और मुझे याद आ रहा है वो किस्सा जब एक गाँव में लोगों को नए शमशान घाट के लिए काफी इंतज़ार करना पडा था क्योंकि नेता जी का हुक्म था कि इस नए शमशान भूमि में सबसे पहले उन्हीं को फूंका जाए |
एक ही उल्लू काफी है , बर्बाद गुलिस्ता करने को,
हर शाख पे उल्लू बैठा है , अंजामें गुलिस्ता क्या
होगा |
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