Friday 13 December 2019

🎧 गंगा किनारे 🎧

📢सुनो कहानी - गंगा किनारे 🔊

हमें जीवन मेँ कदम-कदम पर तरह -तरह के अनुभव होते हैं – कभी खट्टे तो कभी मीठे । इन्ही अनुभवों से बहुत बार सीख भी मिलती है । हाल ही के दिनों में कुछ ऐसी घटना मेरे साथ घटी जो पूरी तरह से अप्रत्याशित और कल्पना से परे थी | सोचा जब अपने सब सुख – दु:ख आपसे बाँटता रहता हूँ तो यह हरिद्वार के गंगा घाट की आपबीती भी सही । 
हर की पौड़ी  - रात में 
अपने परिवार के दिवंगत बुजुर्ग सदस्य की याद में दीपदान के संस्कार को पूरा करवाने हेतु अपने साले साहब के साथ हरिद्वार गया था ।   अपने विशेष तीर्थ पुरोहित जी से पहले ही फोन पर बातचीत हो गई थी जिस पर उन्होने निश्चित समय पर घाट पर पहुँच कर मिलने को कहा | यद्यपि पंडित धीरज शर्मा जी से काफी अरसे पहले मेरी पहले भी मुलाकात हो चुकी थी पर उनका चेहरा स्मृति में थोड़ा धुंधला गया था । उन पर एक लेख भी लिखा था (गंगा मैया – पार लगाए सबकी नैया ) । नियत समय पर घाट पर पहुंचे और अपने तीर्थपुरोहित जी की खोज शुरू की। हर की पैड़ी पर पुरोहितों के तख्त एक लाइन में ही लगे रहते हैं । अपने पंडित जी का नाम लेकर उनके ठिकाने की पूछताछ वहाँ बैठे अन्य पंडितों ( जिन्हें आप पंडे भी कह सकते हैं ) से की । उन्हीं में से एक ने बगल के पड़ोसी तख्त की ओर इशारा कर दिया । वहाँ बैठे पंडित जी से जब मैंने बाकायदा नाम लेकर पूछा तो उन्होने अपना परिचय उसी नाम से दिया जिन्हे हम खोज रहे थे । संस्कार आदि का कार्य उन्होने सम्पन्न करवा दिए । दक्षिणा भी स्वीकार की और उसके बाद अतिरिक्त की भी माँग कर दी जिसे पूरा भी कर दिया गया । इस बार मुझे पंडित जी कुछ कमजोर भी लग रहे थे और उनके व्यवहार में भी वह पहले जैसी गर्मजोशी और अपनत्व महसूस नही हो रहा था | थोड़ी बहुत बातचीत करने की कोशिश भी की तो अनमने से ही लगे । खैर ... उसके बाद घाट पर ही श्री गंगा सभा के कार्यालय में अपने एक अन्य मित्र श्री संजय झाड़ से मिलने चला गया। वह बहुत ही प्यार से मिले । पता नहीं क्यों तब भी मेरे मस्तिष्क में रह- रह अपने पंडित जी का विचित्र व्यवहार घूम रहा था । जाने क्या सोच कर मैंने फिर से उन्हें फोन कर ही दिया । मेरी आवाज सुनते ही धीरज जी ने अपने उसी पुराने जाने-पहचाने अंदाज़ में सवाल किया कि आप हैं कहाँ , मैं तो आपके इंतज़ार मैं बैठा हूँ । अब चौंकने की बारी मेरी थी । सब कुछ बताया । धीरज जी बोले मैं अभी आपके पास पहुंचता हूँ । थोड़ी ही देर में वह आ गए, अत्यंत स्नेह से मिले । अब तक सारा मामला गंगा के जल की तरह ही साफ़ हो चुका था । दरअसल घाट पर मेरे तीर्थ पुरोहित धीरज जी के नाम पर कोई और ही श्रीमान अपना खेल खेल चुके थे । जितना दु:ख मुझे था उतना ही क्षोभ धीरज जी को भी था । यद्यपि हमारा संस्कार पूरा हो चुका था पर उसमें तीर्थ पुरोहित की अनुपस्थिति मुझे कहीं अंदर तक गहरी चोट दे गई । भारी भीड़ के बावजूद भी धीरज जी ने बहुत ही स्नेह से हमें माँ गंगा की आरती मे शामिल होने का विशेष प्रबंध कर दिया । 
पंडित धीरज पाराशर 
गंगा जी की आरती में आँखें बंद और हाथ जोड़े मैं ईश्वर से सभी के लिए मंगल कामना कर रहा था – उस नटवर लाल के लिए भी जो पंडित के रूप में बीच गंगा की धारा में भी झूठ का सहारा ले कर श्रद्धालुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करता है | घाट पर जगह -जगह जेबकतरों और ज़हर खुर्रामों से सावधान रहने की चेतावनी देते बोर्ड मुझे किसी जमाने में चकित कर देते थे कि कोई इंसान इतना गिरा कैसे हो सकता है जो इस पवित्र स्थान पर भी इतने दुष्कर्म कर सकता है । अपने इस अनुभव के बाद मुझे उन जेबकतरों का अपराध भी बहुत छोटा प्रतीत होने लगा है । जहाँ गंगा घाट पर एक ओर धीरज जी जैसे सज्जन व्यक्ति मौजूद हैं वहीं जेबकतरों और ज़हर खुर्रामों के अलावा तीसरी श्रेणी के भी महानुभाव टकरा जाएँगे जिनसे सभी को सावधान रहने की आवश्यकता है |

इन सब छोटे -मोटे किस्सों के बावजूद भी इसमें कोई संदेह  नहीं कि गंगा मैया की महिमा अपरंपार  है। इसीलिए प्रेम सहित बोलिए :
                                                 जय गंगा मैया की 

4 comments:

  1. जय हो गंगा मैया । अजब तेरी दुनिया - गजब तेरे रंग।

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  2. बहुत ही रोचक और चकित करने वाला वृतांत।

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  3. हरिद्वार के किस्से बहुत ही दिलचस्प होते हैं भाई कभी कभी।एक बार मैं भी गंगा मैया में स्नान करके घाट पर बैठी थी और अपनी सखियों का इंतजार कर रही थी तो देखा एक पंडित जी एक गाय के बछड़े को अच्छे से चुन्नी से ढक कर लोगों से उसकी पूंछ पकड़ कर कुछ मंत्र पड़कर गौदान के रूप में दक्षिणा लेते रहे ,थोड़ी देर तो मैं यह सब देखती रही लोगों की धर्मांधता का नाटक।फिर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पंडित जी को बोल ही दिया कि आप क्यों जनता को बेवकूफ़ बना रहे हो।पर वो कहां मानने वाले थे।उनका कार्य क्रम वैसे ही चलता रहा। मैं भी इस तमाशे को देखती रही और पंडित जी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे।इतने में मेरी सखियां स्नान करके आयी तो हमने वहां से प्रस्थान किया और पंडित जी ने चैन की सांस ली होगी शायद। वो दृश्य आज भी याद आता है तो हंसी आती है और दुःख भी होता है और बरबस यह गाना याद आता है,अज़ब तेरी कारीगरी रे करतार.....
    बोलो गंगा मैया की जय.....

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  4. विश्वास की ही तो बात है। ऐसे नटवरलालो को पूरा विश्वास है कि गंगा मैया उनके पाप भी धो देगी।

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