Wednesday 7 August 2019

बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा


मेहनतकश रंजन 

आपने वह कहावत सुनी ही होगी  कि बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा | यह कहावत कुछ ऐसे अवसरों के लिए कही जाती है जब किसी चीज़ के खो जाने पर हम दुनिया भर में खोज रहें होते है जबकि वह सामान हमारे ही आस-पास कहीं होता है | 
कुछ दिनों पहले एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे पछतावे की आग में कुछ इस तरह से झुलसा दिया जिसका मलाल आज तक दिल के कोने में मौजूद है | मेरे लिए शायद यही सज़ा उचित है कि पश्चाताप के रूप में आप से उस आपबीती और उससे मिली सीख को साझा करूँ | 
शहरों में आजकल एक प्रथा बहुत ही आम हो चली है – आलस और साहबी के रौब में अपनी कार की सफ़ाई ख़ुद तो करते नहीं , किसी नौकर-चाकर से करवाते हैं | वो बेचारा, हर मौसम में चाहे सर्दी, गर्मी या बरसात हो , बिना नागा ,सुबह-सुबह हाथ में बाल्टी और कंधे पर पुराने कपड़े के झाड़न लिए , पूरी मेहनत से कॉलोनी में घरों के आगे कतार में लगी कारों को रगड़-रगड़ कर साफ़ करने में लगा रहता है | एक भी दिन अगर किसी हारी-बीमारी की वजह से नहीं आ पाए या देरी हो जाए तो समझ लीजिए कि बस उस पर डाट-डपट, तानों-उलाहनों का मानों पहाड़ टूट पड़ता है | एक लम्बे समय तक मैं अपनी गाड़ी खुद ही साफ़ करता रहा था | फिर धीरे-धीरे कुछ बढ़ती उम्र और ढलती शारीरिक शक्ति का तकाज़ा समझ लीजिए कि मुझे भी उसी रास्ते को मजबूरन अपनाना पड़ा जिसे मैं नापसंद करता था | अब हर सुबह मेरी गाड़ी भी मौहल्ले की दूसरी गाड़ियों की तरह से एक बंगाली मजदूर – रंजन द्वारा की जाने लगी | रंजन, बहुत ही ईमानदार शख्स, दिन भर रिक्शा चलाता है पर सुबह के खाली समय में कॉलोनी की गाड़ियों की धुलाई-पुछाई करके कुछ अतिरिक्त आमदनी कर लेता है | साल में एक बार रंजन एक महीने के लिए बंगाल में अपने गाँव जरूर जाया करता है | ऐसे समय में वह अपनी जगह किसी दूसरे आदमी का इंतजाम जरूर कर जाता है जिससे उसके साहब ग्राहकों को को किसी प्रकार की समस्या न हो | उस बार भी ऐसा ही हुआ जब दो किशोर उम्र के बच्चों की हमसे पहचान कराते हुए रंजन ने अपने गाँव जाने के बारे में बताया | अगले दिन से ही वे दोनों बच्चे आकर बड़ी मुस्तैदी से गाड़ी की सफ़ाई करने लगे | कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा | हाँ, एक बात बताना मैं भूल गया, अब गाड़ी मैं तो कभी-कभार ही चलाता हूँ , ज्यादातर काम के सिलसिले में मेरे बेटे प्रियंक को ही जरूरत पड़ती है | एक दिन अचानक प्रियंक आया और बोला कि गाड़ी की डिक्की बंद नहीं है और अन्दर रखा टायर में हवा भरने का पम्प भी नहीं मिल रहा है | मैं तो बस यही कह पाया कि याद करो कहीं और रख कर तो नहीं भूल गए | रहा सवाल डिक्की के खुला रहने की तो वह भी गलती से खुली रह सकती है | अगर किसी ने चोरी करनी ही होती तो वह डिक्की में रखे दूसरे सामान पर भी हाथ साफ़ कर चुका होता | प्रियंक मेरी बात से सहमत नहीं था | इस पूरे विवाद में अब श्रीमती जी भी शामिल हो चुकी थीं | पहले तो वह मेरे साथ थीं पर बाद में उन्हें भी प्रियंक की बात में दम नज़र आया और उन्हें भी लगा कि पम्प तो किसी ने चुराया ही है | अब सवाल उठा कि अगर चोरी हुई तो चोर कौन हो सकता है | पहली नज़र में ही शक की सुईं सीधे-सीधे उन दो लड़कों पर घूमी जो सुबह –सुबह गाड़ी साफ़ करने आया करते थे | इसकी एक वजह यह भी थी कि हर दिन की तरह, अगले रोज़ दो में से केवल एक ही लड़का गाड़ी साफ़ करने आया | इस मामले में उस लड़के को काफी डाट –डपट पिलाई गयी कि तुमने गाड़ी साफ़ करने के बाद डिक्की खुली छोड़ दी और इस लापरवाही की वज़ह से हमारा नुकसान हो गया | अपनी छुटियाँ बिताने के बाद जब रंजन काम पर दोबारा आया तो उसे भी इस घटना के बारे में बताया | खैर , समय के साथ बात आयी-गयी हो गयी और ज़िंदगी अपने पुराने ढ़र्रे पर पहले की तरह से ही चलती रही | हां , इस बीच प्रियंक ने अमेज़न की ऑनलाइन शॉपिंग से दूसरा हवा भरने का पम्प भी खरीद कर मंगवा लिया| एक दिन घूमने-फिरने के लिए प्रियंक और कुछ दोस्त हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े | गाड़ी उसके दोस्त की ही थी | हमेशा की तरह हर दिन अपनी कुशलता देने के लिए प्रियंक फोन करता रहता | उसी दौरान एक दिन फोन पर उसने बताया कि वह पुराना वाला पम्प भी मिल गया है | दोस्त को कभी देकर वापिस लेना भूल गया था और आज टायर पंक्चर होने पर जब उसकी गाड़ी की डिक्की खोली तो उसी में मिल गया | उसने तो इतना कह कर अपनी बात ख़त्म कर दी पर इस छोटी सी खबर ने मेरे दिमाग में एक ज़बरदस्त हलचल खड़ी कर दी | मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर हमारी सोच इस हद तक क्यों पहुँच गयी है |सबसे बड़ा दुःख यह कि इस सारे प्रकरण के ‘हम’ में मैं भी शामिल रहा | अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना , बहुमत के पक्ष में जाकर मैंने भी अपना पाला बदल लिया था और सीधे-सीधे गुम हुए सामान के लिए एक निर्दोष को जिम्मेदार ठहरा दिया था |
अब उस बात को जाने दीजिए कि बाद में घर आने पर अपने बेटे प्रियंक और उसके दोस्त की अच्छी तरह से खबर ली | इस पूरी घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारी मानसिकता कितने छोटे और निचले स्तर पर पहुँच चुकी है | हमारी मानसिकता में यह बात क्यों समा गयी है कि अगर कोई घर में कोई सामान गुम हो गया है तो पहला शक घर के नौकर-चाकरों पर ही जाता है | क्या इसका कारण यह है कि हमें अपने नौकर से ज्यादा भरोसा अपनी उस याददास्त और स्मरण शक्ति पर होता है जो बढ़ती उम्र के साथ धीरे-धीरे कमजोर और धुंधली पड़ती जा रही है | अब मामला चाहे अक्ल का हो या शक्ल का, इंसान का जन्मजात स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि अपने आगे उसे सारी दुनिया कमतर ही नज़र आती है | उस पर भी अगर सामने वाला गरीब है तब तो समझ लीजिए कि उसमें सारी बुराइयां केवल आपको ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को रातो-रात नज़र आने लगती हैं | कहने वाले एक तरह से ठीक ही कह गए हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा अपराध गरीब होना है | तभी तो कहावत बनी है कि गरीब की जोरू , सबकी भौजाई | लोग यह भी कहते है कि जब कुम्हार का अपनी बीवी पर जोर नहीं चलता है तब वह अपने गधे के कान उमेंठता है | बस यह समझ लीजिए कि जिस की लाठी उसी की भैंस | अगर आप ताकतवर हैं तो आपके सारे दोष माफ़ हैं और आपकी सारी बुराइयां भी ढँक जाती हैं | अब चाहे वह ताकत पैसे के बल पर हो, नेतागिरी के दम पर या कुर्सी की वजह से हो – बन्दे को एक तरह से लाइसेंस मिल जाता है हर तरह से मनमानी करने का | संत कबीर दास का ऐसे ही लोगों के लिए सीख देते हुए कह गए थे :
निर्बल को न सताइये, वा की मोटी हाय |
बिना सांस की चाम से, लोह भसम हो जाय || 
उनके कहने का अर्थ यही है कि हालात के कारण कोई भी व्यक्ति कमजोर हो सकता है | ऐसे व्यक्ति को कभी भी सता कर, परेशान करके उसकी बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए | ऐसी बद्दुआ में बहुत ताकत होती है जैसे कि लुहार की धौकनीं का बेजान चमड़ा निर्जीव होते हुए भी लोहे को भस्म कर देता है |
इन सब बातों का यही सार निकलता है कि अपने आसपास के उन सभी समाज के निम्न और गरीब वर्ग के लोगों के प्रति हम सवेंदनशील रहें | यह उनकी मजबूरी ही है जिस के कारण कोई रिक्शा चला रहा है, किसी का घर आपके घर में झाडू- पौचा और बर्तन मांजने से चल रहा है, किसी को पढ़ –लिख कर भी घर-घर जाकर कूरियर- बाय या पिज्जा-बर्गर देने का काम करना पड़ रहा है | भरी गर्मीं में आपकी सेवा में हाज़िर होते हैं तो हम और कुछ नहीं तो कम से कम पानी के लिए तो उनसे पूछ ही सकते हैं | और सबसे बड़ी बात : उन्हें बिना किसी सबूत के चोर या उठाईगीर का तमगा तो हरगिज मत दीजिए | उन्हें चोरी- चकारी से ही पैसा कमाना होता तो दिन रात की बदन तोड़ और मेहनत-मशक्कत का काम क्यों करते | मुझे पता है इस प्रकार की उदार मानसिकता एक दिन में ही रातों-रात नहीं आती | ऐसी सोच धीरे -धीरे ही आपके स्वभाव का अंग बनती है | ऐसी अच्छी सोच के लिए कोशिश करने में क्या हर्ज़ है | मैं भी कर रहा हूँ – आप भी करके देखिए |

7 comments:

  1. कहानी पढ़ी,सरल ,रोचक किन्तु सत्य ।ऐसा अक्सर होता है ।इसमें आपका या आपके परिवार के किसी भी सदस्य की कोई गलती नहीं है। यह स्वाभाविक है।हाथ की पांचों उंगलियां एक सी नहीं होती। हां इस गलती का निवारण हो सकता है आप प्यार से उस बन्दे को वास्तविकता से तो परिचित करा ही सकते हैं ताकि आप भी उस अपराध बोध से मुक्त हो जाएं जो अनजाने में एक ग़रीब पर इल्ज़ाम लगाने के कारण आपको कचोट रहा है।आप भी ख़ुश और रंजन भी ख़ुश । उम्मीद है मेरा सुझाव आपको अच्छा लगेगा ।

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  2. Bahut khub sir.... Humanity is above all....

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  3. सत्यवचन। अच्छी सीख है।

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  4. This is the effect of abnormally high egos due to increase of money power

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  5. कहानी मैं बहुत ही सरलता से महान संदेश दिया गया है lबहुत सराहनीय हैl

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