Saturday 31 August 2019

डी.एम्. साहब की चाय

श्री सुनील दुबे 
मेरे एक बहुत पुराने मित्र हैं सुनील दुबे जी | किसी समय साथ ही नौकरी करते थे | परिस्थितियाँ बाद में कुछ ऐसी बनीं कि नौकरी छोड़ कर वकालत के पेशे में आ गए | समय -समय पर हाल-चाल लेने के लिए अब भी फोन करते रहते हैं | कुछ हमारी सुनते हैं और कुछ अपनी सुनाया करते हैं | गाज़ियाबाद में रहते हैं | अभी कुछ दिन पहले फोन पर बातो ही बातों में उन्होंने एक ऐसा किस्सा बताया जो रोचक भी था और प्रेरणादायक भी | हमारे आस-पास की दुनिया में मौजूद ऐसे ही किस्से और किरदारों से जीवन को नई चेतना देने वाले सन्देश भी निकल आते हैं | तो चलिए सुनील दुबे जी के माध्यम से प्राप्त आज के खबरी किस्से की शुरुआत करता हूँ| 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को दिल्ली जाना था | अपने विशेष राजकीय विमान से लखनऊ से पहले हिंडन एअर बेस पहुंचे जहां पर कुछ देर रुकने के बाद उन्हें आगे सड़क मार्ग से दिल्ली के लिए निकलना था | हिंडन एअर बेस गाजियाबाद और दिल्ली की आपस में लगती सीमा पर ही स्थित है | सुबह-सुबह का वक्त था और जिलाधिकारी डा० अजय शंकर पांडेय,(आई.ए.एस.), प्रोटोकॉल ड्यूटी के तहत हवाई अड्डे पर मुख्यमंत्री के स्वागत के लिए मौजूद थे |

श्री  अजय शंकर पांडेय , आई.ए.एस , जिलाधिकारी -( गाज़ियाबाद ) 
सब तरफ गहमागहमी का माहौल था | इसके विपरीत दूसरी तरफ गाजियाबाद कलेक्टर कार्यालय में काफी हद तक तनाव रहित, हल्का-फुल्का हिसाब किताब चल रहा था | कुछ कर्मचारी आराम के से मूड में थे | दफ्तर में साढ़े नौ बजे से ही कर्मचारियों को आना होता है पर किसी भी हालत में दस बजे के बाद अनुमति नहीं होती | पर उस दिन की बात ही कुछ और थी | सबके दिमाग में शायद यही घूम रहा था : मियाँ हमारे घर नहीं, हमें किसी का डर नहीं | कुछ कर्मचारियों को शायद पिछले दिन ही पता चल गया था कि कल साहब बाहर के कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगें, इसलिए दफ्तर कब आयेंगे राम ही जाने | यही सोचकर उन्होंने खुद भी आराम से ही दफ्तर पहुँचने की योजना बना कर रख ली |
पर देखिए, होनी को भी कुछ और ही मंजूर था | ज्ञानी ध्यानी कह गए हैं : मेरे मन कुछ और है, दाता के कुछ और | भगवान से भी शायद आराम-तलब और आलसी प्राणियों का सुख देखा नहीं जाता | सो हुआ कुछ ऐसा कि हवाई अड्डे से मुख्यमंत्री जी तो तुरंत – फुरंत फ़ारिग हो कर चल पड़े आगे दिल्ली के लिए और इधर जिलाधिकारी साहब  ने भी गाड़ी घुमा दी वापिस अपने दफ़्तर की ओर| साहब को दफ्तर में दस बजे से पहले ही अपनी कुर्सी पर विराजमान होने का समाचार बिजली की तरह से पूरी कलेक्ट्रेट में आनन-फानन में फ़ैल गया | यहीं पर बात ख़त्म हो जाती तब भी गनीमत थी, पर जिलाधिकारी महोदय ने तो हाजिरी रजिस्टर अपने पास मंगवा लिया और शुरू करदी जांच-पड़ताल | आखिरी बिजली गिरनी मानो अभी भी बाकी थी – सो साहब ने आदेश दिया कि देर से आने वाले सभी कर्मचारी उनके पास सीधे भेज दिए जाएं | 
अब आने वाले जितने भी लेट-लतीफ़ थे सबकी सांस आफत में | अब ये डी.एम साहब आये भी तो नए-नए ही थे | उनके स्वभाव के बारे में ज्यादा कुछ पता भी नहीं था कि बकरे की कुर्बानी कैसे देंगे – झटके से या हलाल करके | अब साहब के कमरे में सब एक- एक करके जा रहे थे, अपने-अपने देवी- देवताओं को याद करते हुए, मन्नत मानते हुए कि बस इस बार कैसे भी हो बचा लो, आगे के लिए कान पकड़े |
अब आगे के दृश्य की आप कैसी कल्पना कर रहे हैं ? यही कि साहब ने एक -एक लेट-लतीफ़ बन्दे को जम कर लताड़ा होगा | खूब खरी खोटी सुना कर चलता कर दिया होगा | जी नहीं – यहाँ आप से चूक हो गई | हर आने वाले कर्मचारी को पहले रजिस्टर में आने का समय दर्ज करवाने के बाद बाकायदा जिलाधिकारी महोदय ने अपनी जेब से पैसा खर्च करके चाय पिलवाई | किसी भी किस्म की कोई पूछताछ नहीं | अगर किसी ने दबी जुबान से देर से आने का स्पष्टीकरण देना भी चाहा तो उसे भी अनसुना ही कर दिया | चाय का प्याला हाथ में लिए पर अन्दर ही अन्दर शर्म से पानी -पानी हुए जा रहे उन कर्मचारियों की क्या हालत हो रही होगी इसका कुछ अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं | उस उनसे वक्त चाय का घूंट ना उगलते बन रहा था और ना ही निगलते | यह उनके जीवन का ऐसा अटपटा अनुभव था जिससे वह किसी भी हालत में दोबारा तो हरगिज़ नहीं गुज़रना चाहेंगे | उस घटनाक्रम से पूरे कार्यालय में सभी अधिकारी और कर्मचारियों को जो सन्देश मिला वह अत्यंत स्पष्ट था : सभी के लिए बेहतर है कि मीठी गोली से ही उपचार हो जाए और कड़वी गोली की आवश्यकता ही न पड़े | 


जिलाधिकारी श्री अजय शंकर पांडेय  के बारे में अक्सर सुनने में आता है कि वह स्वयं नियत समय से भी दस मिनिट पहले ही दफ़्तर पहुंच जाते हैं , और अपने हाथों से अपने कमरे की सफ़ाई करते हैं | कार्यालय में उनके कमरे के बाहर लगा नोटिस बोर्ड पर सूचित किया गया है कि कार्यालय की सफ़ाई स्वयं उनके द्वारा की गयी है अत: गन्दगी फैला कर उनके काम के बोझ को और अधिक न बढ़ाएं | सफ़ाई के प्रति अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और सामान्य जनता तक जागरूकता फ़ैलाने का इससे अधिक अच्छा तरीका और उदाहरण और क्या हो सकता है | यही वज़ह है कि उन्हें  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वच्छ शक्ति सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है | आज के बनावटी और आडम्बर से भरी अफसरशाही की दुनिया में पांडेय  जी जैसे अधिकारी वास्तव में प्रशंसा के पात्र हैं |

4 comments:

  1. Wow really appreciable act..... I just love it one should learn from this will keep in mind sir.... Great message in completly different style think hut ke

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  2. Superb..... Now a days, all the Head of Offices and Head of Department must follow the similar pattern. Its not compulsory that all have to clean their offices themselves but awareness of timeliness and cleanliness among staff is mandatory....


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  3. पुरुषोत्तम कुमार31 August 2019 at 22:12

    वाकई काबिले तारीफ है।

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  4. Everybody can learn from his conduct and discipline.

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