Sunday, 30 June 2019

मुखौटा

चेहरे पर चेहरा 
मशहूर शायर मुनीर नियाजी की ग़ज़ल का एक बड़ा प्यारा सा शेर है :
ये जो ज़िंदगी की किताब है ,
ये किताब भी क्या किताब है ,
कहीं रहमतों की हैं बारिशें ,
कहीं जान लेवा *अज़ाब है | ( * अज़ाब = पीड़ा / दर्द )

बस एक तरह से यह जान लीजिए कि इस ज़िंदगी की किताब से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है | हाँ, इतना जरूर है कि हमारे आँख, नाक , कान और इन सबसे ऊपर दिमाग खुला होना चाहिए | इसी ज़िंदगी में हमें तरह-तरह के इंसान मिलते हैं , अच्छे भी और बुरे भी | सीख हमें दोनों से ही मिलती है | कहीं न कहीं मुझे लगता है भले लोगों की बजाय बुरे लोगों से ज्यादा सीखने को मिल जाता है | यही कि कुछ भी कर लो पर इस गलत इंसान की तरह तो बर्ताव कतई मत करो | आज बरबस एक ऐसे ही शख्स की याद आ गयी | 

यह श्रीमान मेरे संस्थान में ही एक तरह से सर्वे-सर्वा थे | सबके सामने तो बहुत ही ठन्डे, विनम्र स्वभाव के | छोटी-छोटी बातों में ईमानदारी की जीती जागती मिसाल | एक बार मेरे दफ्तर के निरीक्षण दौरे पर आये | शाम को जब उन्हें होटल तक पहुंचाने जा रहा था तो रास्ते में उन्होंने गाड़ी रुकवा ली और पानी की बोतल और बिस्किट के पेकेट के लिए अनुरोध किया  | साथ चल रहे अपने सहायक को मैंने इशारा किया जो पास की दुकान से सामन ले आया | साहब ने जेब में हाथ डाला और उस सामन की कीमत जो लगभग 28 रुपये थी, मेरे मना करने के बावजूद भी जबरदस्ती थमा दी | अब भाई हम तो सच में मुरीद हो गए साहब की साफगोई और ईमानदारी के | सब जगह जिक्र करते कि साहब हो तो उन जैसा | भगवान को शुक्रिया भी अदा करते कि तूने हमें ज़िंदगी में ऐसे भले इंसान के नीचे काम करने का मौक़ा दिया | 

समय बीतता गया | पता चला हमारे  संस्थान से भी ज्यादा बड़े एक महा नवरत्न सरकारी कंपनी के सर्वोच्च पद पर नियुक्त हो कर चले गए | मेरे सच्चे मन से आवाज निकली वाह भले और ईमानदार लोगों का भला ऊपर वाला भी देखता है | बीच-बीच में उन साहब के बारे में खोज-खबर भी मिलती रहती की सफलता की सीढ़ियों पर ऊँचे चढ़ते जा रहे हैं | 
मुझे आज भी वह सुबह अच्छी तरह से याद है | सुबह - सुबह की चाय पी रहा था कि फोन की घंटी बजी | लाइन पर दूसरी ओर मेरे एक बहुत ही ख़ास दोस्त थे | छूटते ही बोले : आज टी.वी की न्यूज देखी क्या ? अगर नहीं तो देखो | इतना कह कर उन्होंने फोन झटके से रख दिया | अब मैं बहुत ही अचम्भे और आश्चर्य की पराकाष्ठा पर पहुँच गया | आखिर ऐसा क्या हो गया .... कौन सा पहाड़ टूट गया | टी.वी के न्यूज चेनल को खोला | सामने जो समाचार चल रहे थे उन्हें देख और सुन कर लगा जैसे बिजली का चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा | आँख और कानों पर जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था | समाचार आ रहे थे कि हमारे उन्हीं आराध्य और पूज्यनीय ईमानदारी के जीते –जागते अवतार को सी.बी.आई ने मोटी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया है | उस से भी दुःखदायी बात यह कि इस सारे रिश्वत - काण्ड में उनकी पत्नी की भी अहम् भूमिका रही सो उन्हें भी साथ ही गिरफ्तार किया गया | दोनों ही पति-पत्नी की जोड़ी से पहले सी.बी.आई ने कड़ी पूछताछ की और बाद में कोर्ट में पेशी हुई | अदालत से जमानत नहीं मिली और दोनों को ही तिहाड़ जेल भेज दिया गया जहां लम्बे समय तक रहना पड़ा | 

यह बात जब भी याद आती है, मैं सोच में पड़ जाता हूँ | आखिर क्या कमी थी उन्हें अपनी शानदार वैभवशाली ज़िंदगी में | जीवन के उस अंतिम पड़ाव पर जब वह प्रसिद्धि और कामयाबी की ऊँचाइयों के आसमान को छू रहे थे तो लालच के चंगुल में ऐसे फँसे कि बदनामी की कालिख ने सब करे धरे पर पानी फेर दिया | नौकरी तो गयी ही , सब अखबारों में कारनामों के ऐसे चर्चे हुए कि अडोस –पड़ोस और रिश्तेदारी में भी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे | आज भी मुंह छिपा कर चोरों की ज़िंदगी जी रहे हैं |कभी-कभी सड़क से गुजरते हुए देखता हूँ कि जिस घर के आगे हमेशा चहल-पहल रहा करती थी आज भूत बंगले की सी वीरानी छाई रहती है |

यदि उनकी जगह कोई और शख्स होता तो मुझे इतना कष्ट नहीं होता | दुःख तब होता है जब आपका भ्रम टूटता है | यहाँ भी ऐसा ही हुआ - उनके चेहरे पर ता- उम्र इतना खूबसरत मुखोटा रहा कि बस कुछ पूछिए मत | पर चेहरे से ईमानदारी का नकाब उतारा तो असल सूरत नज़र आयी | ऐसी शक्ल जिसे दुनिया ने देखा, और सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि मारे अचरज के दांतों तले उंगली दबा ली | इस पूरे किस्से से मैं तो यही सीखा हूँ कि ज़िंदगी सीधे-सादे तरीके से अपने असल चेहरे के साथ बिना किसी बनावट के गुज़ारिये | बनावट का कोई भी मुखौटा हमेशा के लिए आप की असलियत को नहीं छुपा सकता | 

2 comments:

  1. CCI ki kahani hi kuch aisi hai. Kuch hi top main me imandar log milea.

    ReplyDelete
  2. ये दुनिया है साहिब, सब कुछ सम्भव है।

    ReplyDelete