Tuesday, 30 April 2019

शिंकजी वाले सरदार जी

मैं भी कई बार सोचता हूँ कि आप तक पहुंचाने के लिए नए –नए किस्से कहाँ से लाऊं | इसीलिए अक्सर अपने सभी परिचितों को कहता रहता हूँ कि आप लोग भी कुछ आगे बढिए , कुछ अपनी भी कहिये, कुछ अपनी भी सुनाइये | अपने किस्सों को भी इस ब्लॉग की दुनिया का हिस्सा बनाइये | इस बार का किस्सा आप सब के लिए खोज कर लायें हैं तीन दोस्तों की तिगडी – प्रियंक , अतुल और अभिषेक जिन्होंने अपनी हाल में ही अपनी हिमाचल प्रदेश की सैर सपाटे के दौरान एक बड़ी मनोरंजक हस्ती के बारे में मुझे बताया | आपकी याददास्त के लिए बता दूँ कि यह वही तिकड़ी उसी घुमक्कड़ मस्त्त टीम का हिस्सा है जो कभी हिमाचल प्रदेश के सत्तरह हज्जार फीट के ऊँचें बियाबान बर्फीले इलाके में बुरी तरह से फंस गए थे और आर्मी के सहायता दल ने इनकी जान बचाई थी | इनका मजेदार किस्सा ब्लॉग के "सफ़रनामा:  बुरे फँसे" लिंक पर मौजूद है | 
प्रियंक
अतुल


अभिषेक

इस बार ये दोस्त गए थे तीर्थन( यह जगह का नाम है, इसे आप तीर्थ यात्रा मत समझ लेना ) जो कि हिमाचल प्रदेश के मशहूर हिल स्टेशन कुल्लू के पास है | बहुत ही सुन्दर जगह है और यहाँ के मौसम का तो कहना ही क्या | बस यह समझ लीजिए कि धरती पर मानो स्वर्ग है | पर इस बार बात उस हिल स्टेशन और हिमाचल के स्वर्ग की नहीं हो रही है | इस बार का किस्सा है एक सरदार जी का , जो बताने का कम और देखने की चीज़ ज्यादा है | 

तो हुआ कुछ यूँ कि जब कुछ दिनों की छुट्टियां पहाड़ पर बिताने के बाद घर की ओर वापसी की यात्रा पर थे | कार पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर सरपट दौड़ रही थी | आखिरकार ऊँचा-नीचा पहाड़ी रास्ता पूरा हुआ और तलहटी का समतल सफ़र शुरू हुआ | अब हम कीरतपुर साहिब के पास से गुज़र रहे थे | अचानक देखा सड़क के किनारे कुछ भीड़ सी लगी हुई थी | बड़े-बूढ़े कह गए थे कि पैसा पैसे को खींचता है, पर हमारा मानना है कि इस देश में भीड़ भी भीड़ को खींचती है | यकीन न हो तो सड़क के किनारे डुगडुगी बजा कर बन्दर नचाना शुरू कर दीजिए | फिर देखिए कैसे थोड़ी सी ही देर में पूरा मज़मा लग जाएगा | वजह साफ़ है, हमारे यहाँ कहने को तो हर चीज़ की कमीं है , अगर कोई चीज़ बहुतायत में है तो वह है समय | सो हम भी गाड़ी सड़क किनारे खडी कर शामिल हो गए उसी भीड़ का हिस्सा बन कर | दरअसल वहां एक छोटा सा रेहड़ी नुमा खोखा लगा था जिस में एक सरदार जी बड़ी ही मस्ती से शिंकजी बना कर लोगों को पिला रहे थे | सरदार जी की शिकंजी बनाने की अदा ही इतनी जबरदस्त थी कि जिसे देखकर रजनीकांत और सलमान खान का स्टाइल भी फीका पड़ जाए | किसी ने सच ही कहा है , दुनिया में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता | आपके उस काम करने की महारत ही आपको सब लोगों की भीड़ से अलग करती है और पहुंचा देती है कामयाबी के ऊँचें मुकाम पर जहां यह शिंकजी वाले सरदार जी भी बहुत जल्द पहुँचने वाले हैं | 

( वीडिओ क्लिप श्री प्रियंक के सौजन्य से )
इन शिकंजी वाले सरदार जी ने कुछ साल पहले ही यह काम बड़े छोटे पैमाने पर एक रेहड़ी लगा कर शुरू किया था | काम के प्रति इनकी लगन और एक अनोखा स्टाइल इन्हें धीरे-धीरे  मशहूर करता चला गया | आज लोगों को हँसते -हँसाते लेमन- सोड़ा  पिला कर इज्ज़त से अपना छोटा सा परिवार जिसमें अपने बूढ़े  माँ -बाप, पत्नी और बच्चे  को पाल-पोस रहें हैं |
अंत में यही कहूँगा - जब भी कभी कुल्लू, मनाली की और जाते हुए कीरतपुर साहब की तरफ से गुजरें , उन सरदार जी का  लेमन सोड़ा जरूर पीयें और जब पी कर  डकार आये तब जोर से बोलिएगा ठण्ड पा

Tuesday, 23 April 2019

अजब तेरी दुनिया - अजब तेरे खेल

मनसा देवी मंदिर - हरिद्वार 
सच मानिए ,यह ज़िंदगी और यह दुनिया इतने चमत्कारों से भरी हुई है कि आप गिनते-गिनते थक जायेंगे पर उस ऊपर वाले की जादूगरी ख़त्म होने का नाम नहीं लेगी | कई ऐसी-ऐसी घटनाएं इस जीवन में हो जाती हैं जो समय के साथ भी कभी भी धुंधली नहीं पड़ती | आप उन चमत्कारी घटनाओं को सारी जिन्दगी बस सोचते ही रह जाते हैं कि ऐसा कैसे हो गया | आप हमेशा के लिए अपनी खोपड़ी खुजाते रह जाते हैं पर यह जटिल पहेली अनसुलझी ही रह जाती है| आज ऐसी ही एक अजीबोगरीब घटना से आपका परिचय कराने जा रहा हूँ जिसे सुनकर आप भी एक बार उस ईश्वरीय शक्ति के बारे में सोचने को मजबूर हो जायेंगे | 

तो यह बात है आज से लगभग बीस-बाईस साल पुरानी | उन दिनों मेरी तैनाती हिमाचल प्रदेश में थी | हरिद्वार वहां से लगभग 2 घंटे की दूरी पर था | अक्सर छुट्टी के दिनों में परिवार सहित गंगा स्नान का कार्यक्रम बन जाता | बच्चे तब छोटे ही थे | रविवार का दिन था, हरिद्वार में मनसा देवी के दर्शन करने पहुँच गए | मेरे परिवार के साथ , एक घनिष्ट मित्र का परिवार भी था | मनसा देवी के मंदिर में दर्शन किए | मंदिर के प्रांगण के बाहर एक लम्बी से ढलानदार संकरी गली थी जिसकी किनारे पर साथ-साथ खाने-पीने के सामान की छोटी-छोटी दुकानें थी | इन हलवाई की दुकानों पर मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भरपूर भीड़ रहती जो मंदिर की पूजा के बाद सीधे पेट-पूजा के लिए इन दुकानों पर टिड्डी-दल की तरह से हमला बोल देते | हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ | मैं और श्रीमती जी तो मंदिर के गलियारे में ही रुक गए और मेरी बिटिया- साँची , जो उस समय यही कोई पांच वर्ष की होगी, मेरे मित्र परिवार के साथ ही गली पार हलवाई की दुकान पर चली गयी | वे कह कर गए थे कि आप कहाँ परेशान होंगें , यहीं रुकिए, हम खाने-पीने का सामान यहीं लेकर आते हैं , बाद में सब साथ बैठ कर खायेंगे | 

इस बीच में जब मित्र गली के दूसरी ओर हलवाई से सामान लेने में व्यस्त थे, मेरी बिटिया चुपचाप हमारे पास आने के लिए गली पार करने लगी | हम अभी तक बिलकुल अनजान थे कि अचानक बहुत जोरों से लोगों की चीख-पुकार और हल्ला-गुल्ला सुनकर उस गली की और झाँका | क्या देखते हैं कि उस संकरी से ढलवां गली में दस-पन्द्रह गायों का झुण्ड दौड़ लगाता आ रहा है | 

उस गायों के रेवड़ की चपेट में आने से बचने की कोशिश में लोग अपने आप को इधर –उधर कूद –फांद कर बचाने की कोशिश कर रहे थे | सब तरफ शोर-गुल और अफरा-तफरी का नज़ारा था | लोग गली के किनारे से ही घबरा कर कुछ इशारे भी कर रहे थे | अब हम भी अचानक एक अनजाने डर से अंदर तक काँप गए | गली में साँची का कहीं अता-पता नहीं था | बस नज़र आ रहा था तो वह भयानक गति से दौड़ता हुआ मवेशियों का झुण्ड | अब हम भी समझ चुके थे – साँची रेवड़ की चपेट में आकर नीचे गली में ही गिर चुकी थी जिसके ऊपर से वह रेवड़ उसके ऊपर से सरपट दौड़ता जा रहा था | साफ़ लगा कि बिटिया तो बस गयी राम जी के पास | घबराहट के मारे चक्कर सा आ गया, सारा खून  जैसे जम कर बर्फ हो चुका था | जितनी तेजी से वह रेवड़ दौड़ता हुआ आया , उतनी ही तेजी से वह रेवड़ दौड़ता हुआ निकल भी गया | देखा बीच गली में साँची ओंधे मुंह गिरी पड़ी थी | लोगों ने तुरंत दौड़ उसे कर गोद में उठाया |अब तक हम भी दौड़ कर वहां पहुँच चुके थे | साँची बुरी तरह से घबराई हुई और चीखें मार कर रोये जा रही थी | झपट कर तुरंत अपनी गोदी में लेते ही उसकी चोटों का मुआयना किया | पर यह क्या , शरीर पर तो एक भी खरोंच का निशान भी नहीं था | आँखों को मानो यकीन ही नहीं हो रहा था | फिर दोबारा से ध्यान से देखा कि कहीं अंदरूनी चोट तो नहीं , कोई हड्डी तो नहीं टूटी | सब कुछ सही सलामत पाकर जान में जान आयी | सब से बड़े अचम्भे की बात यही कि इतनी रफ़्तार में इतना बड़ा मवेशियों का झुण्ड ऊपर से गुजर जाने के बाद भी नन्हीं साँची को हल्की सी खरोंच भी नहीं आयी | कारण आज तक समझ नहीं आया | इतना अवश्य है कि सच्चे मन से प्रार्थना करने गए भगवान के मंदिर में जो इतना घोर संकट टल गया, उससे उस परम पिता परमेश्वर के प्रति आस्था और मजबूत हुई | और हाँ , शायद उन भागते हुए मवेशियों में भी इतना ज्ञान और संवेदना मौजूद थी जिन्होनें अपने पांवों की एक भी टाप, उस अबोध छोटी सी बच्ची के शरीर पर नहीं पड़ने दी| गलत नहीं होगा अगर मैं कहूँ कि उस समय ईश्वर की सम्पूर्ण शक्ति उन मवेशियों में उतर आयी थी जिसके कारण साँची के प्राण बच सके |

Thursday, 4 April 2019

भोलू : दर्द से दिल्लगी और दिलेरी तक का सफ़र

आज आप के लिए कोई कहानी- किस्सा नहीं | बस एक छोटी सी खबर | कुछ दिनों पहले आपको सड़क के एक छोटे से पिल्ले भोलू के उस दर्दनाक वाकये के बारे में बताया था जिसमें कार की टक्कर से उसकी टांग की हड्डी टूट गयी थी (अगर नहीं पढ़ा है तो अब पढ़ लीजिए - लिंक : भोलू का दर्द) | कई दिनों तक वह बेचारा जबरदस्त दर्द से गुजरा | बाद में उसकी टांग की महरम पट्टी और प्लास्टर चढ़वाया गया | उस टांग पर चढ़े प्लास्टर से भी लगभग एक महीने तक भोलू का चलना फिरना काफी कठिनाई भरा रहा | मैंने आप सब से अनुरोध किया था कि भोलू के पाँव के ठीक होने के लिए भगवान से दुआ करें क्योंकि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है | बस एक छोटी सी खुशखबरी | मैंने आप से वादा किया था कि जिस दिन भोलू अपने पैरों पर दौड़ेगा मैं आपको वह खुशखबरी भी जरूर दूंगा | आप सब की शुभकामनाओं से नन्हे से भोलू का दर्द अब हो चुका है एकदम गायब, उतर चुका है उसका प्लास्टर और दर्द में कराहता परेशान भोलू अब बन चुका है उछलता- कूदता मस्त- मलंग भोलू | विश्वास नहीं होता तो खुद देख लीजिए नज़ारा|


शुक्रिया आप सब का 




मुझे पूरा विश्वास है आज की इस खबर ने ही आपका दिल खुश कर दिया होगा |