Thursday 27 September 2018

ऊँची उड़ान (भाग 1 ) - जमीं से आसमां तक

मोदी कॉलेज 

उन दिनों यानी वर्ष 1972-1974 के दौरान  मैं मोदीनगर स्थित मुलतानीमल मोदी कालेज से बी.एस.सी कर रहा था जो मेरठ विश्वविद्यालय जिसे अब चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय के नाम से जाना जाता है, से सम्बद्ध था | पढ़ाई और अनुशासन के लिए इस कॉलेज की गिनती अच्छे कालेजों में की जाती थी | घर वालों ने मेरा दाखिला वहाँ के छात्रावास में ही करवा दिया था | आस-पास के ग्रामीण और कस्बाई परिवेश से आने वाले सीधे-साधे सरल स्वभाव छात्रों की छात्रावास में बहुतायत थी | पढाई का वातावरण कॉलेज और छात्रावास दोनों ही जगह रहता था |

कथा का नायक -गोल घेरे में मेरा मित्र तब 
अब आप यह भी मत समझ लीजियेगा कि हमारा कॉलेज और छात्रावास स्वामी रामदेव का गुरुकुल की श्रेणी में था | हंसी-ठिठोली और मौज-मस्ती भी चलती थी | जूनियर छात्रों की रेगिंग-रगड़ाई भी एक सामान्य सी बात थी | वैसे तो हर कक्षा में बहुत से छात्र होते हैं पर उनमें से कुछ ही होते हैं जो किन्हीं विशेष कारणवश अपनी छाप छोड़ देते हैं | यह कारण कुछ भी हो सकता है – मसलन दमदार दिमाग़ (मित्र) , खुराफाती खोपड़ी (हर्ष), महाबौड़म (मैं), ऊधमी पंगेबाज (बहुत सारे- किसी एक का नाम लेना बाकी के साथ नाइंसाफी ) , ग्रेट गायक (हरिकिशोर)   वगैरा वगैरा | हमारी क्लास का ही एक छात्र वाकई में सबसे अलग था और सच कहूँ तो मुझे काफी हद तक उससे ईर्ष्या भी होती थी | हापुड़ के पास के ही एक गाँव में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार से ताल्लुक रखता था |  मध्यम कद काठी का, गोरा चिट्टा रंग और खिलखिलाती हुई उसकी हँसी तो ऐसी मानो स्कूल की छुट्टी की घंटी बज रही हो | स्वभाव से अत्यंत विनम्र और वास्तविकता के धरातल पर रहने वाला | हमारा यह मित्र कभी भी अपनी ग्रामीण पृष्टभूमि को बताने में कभी संकोच नहीं करता | कभी-कभी मौज मस्ती के क्षणों में कहता “हम तो भैया गाँव के टाट-पट्टी के स्कूल की उपज हैं | अपने से ज्यादा हमें अपने पाजामें की फिकर रहती थी कि स्कूल पहुँचने से पहले ही कहीं गंदा न हो जाए , इसलिए उसे भी अपने बस्ते में रख कर ही ले जाते थे |”   कुछ भी कहिए कमबख्त दिमाग का बहुत तेज था | सब विषयों में अव्वल नंबर लाता, सभी प्रोफेसरों का लाडला और कक्षा की छात्राओं का भी-  जो कि मेरी ईर्ष्या  की असली वजह थी  | छात्रावास में ही पास के दो-चार कमरे छोड़ कर ही रहता था | दुष्ट सारे दिन तो छात्रावास में हो हल्ला मचाता  धींगा-मस्ती मारता फिरता पर फिर भी पता नहीं कैसे हर परीक्षा में हमारे हिस्से के नंबर भी अल्ला-ताला उसकी झोली में डाल देता था | काफी अन्वेषण और अनुसंधान के बाद इस परिणाम पर पहुँचा कि जब मैं  रात को जोरदार खर्राटों की सुरीली स्वर लहरी के पार्श्व संगीत में स्वप्निल संसार में हिंडोले ले रहा  होता था तो यह कलम का सिपाही जुटा होता किताबों की युद्ध भूमि में | बात यहीं तक होती तब भी गनीमत थी, इतना तो तब था जब कभी कभी उसकी किताब की बगल में बोतल और गिलास की जुगल बंदी भी ऐसी महफ़िल सजा लेती थी जैसे हारमोनियम के साथ तबला सारंगी की जोड़ी | रही सही कसर सिगरेट के सुट्टे से पूरी हो जाती थी | झूठ नहीं बोलूँगा, एक बारगी तो मुझे यही लगने लगा कि उसके  दिमाग़ के घोड़े दौड़ाने का एकमात्र मार्ग बोतल और धुंए के तीर्थ स्थानों से होकर ही गुजरता है |  अब हम उसके दिमाग के मामले में तो उससे टक्कर ले नहीं सकते थे क्योकि उसके दिमाग के पुर्जे मर्सीडीज़ कार के थे और हमारे पुराने लेम्ब्रेटा स्कूटर के तो सोचा चलो भाई का कुछ ऊपरी रंग-ढंग ही पकड़ लो | एक दिन देखा श्रीमान के बाल शशि कपूर के स्टाइल में और वह भी सुनहरे रंग के | तुरंत जाकर राज़ पूछा और भाई ने तुरंत बता भी दिया कि यह सब हाड्रोजन पराक्साइड का खेल है जिसे बालों में लगाने से बाल सुनहरे हो गए हैं | सुना तो आपने भी होगा कि असल बन्दर वही होता है जो नक़ल करने में देर न करे सो तुरंत बाज़ार जाकर केमिस्ट की दुकान से हाड्रोजन पराक्साइड की शीशी ले आया और कर दी अपने बालों की खेती की अच्छी तरह से सिंचाई | अब बैठे थे हम नारद मुनि  की तरह से शीशे में अपना रूप निहारते कि हमारे  बाल कैसे सुनहरी छटा बिखरते हैं | अब नारद मुनि को तो फिर भी अपना वानर रूपी मुख शीशे में नज़र आगया था पर हमारे बाल तो सुनहरी हुए नहीं | हाँ, थोड़ी ही देर बाद सर में भयंकर खुजली होनी अवश्य शरू हो गई मानों चीटियों की सेना सर में कवायद कर रही हो और और हम थे कि खोपड़ी और बालों को खुरचे जा रहे थे |  एक बारगी तो लग रहा था कि इस नक़ल की हरकत को देखते हुए परम पिता परमेश्वर मुझे पूर्ण रूपेण बन्दर बना कर ही मानेगा | खुजली से मुक्ति पाने के लिए छात्रावास के कामन बाथरूम की तरफ सुपर सोनिक रफ़्तार से दौड़ लगाई और पानी का नलका खोलकर खोपड़ी के खेत को बाढ़ के पानी में लगभग डुबा ही डाला | जैसे तैसे करके 10 मिनट के बाद कुछ आराम आया | अब अपनी हालत और हालात किसी ओर को तो क्या बताता पर काफी दिनों के बाद पता चला कि उनके द्वारा दिया ज्ञान भी उसी तरह से अधूरा था जैसे महाभारत का उद्घोष – अश्वत्थामा हत: ही प्रत्यक्ष रूप से सुनाई दिया, और  नरो व् कुंजर दब गया शंखनाद में | हमें हाड्रोजन पराक्साइड के घोल को सर पर लगाने से पहले उसकी तीव्रता को पानी डालकर कम करना चाहिए थी जो हमने किया नहीं और नतीजा आप सबके सामने मैं बता ही चुका हूँ | इस तरह से इस ज्ञानी बालक के सानिध्य में जीवन का एक सबक मिला- आप जैसे हो संतुष्ट रहो, नक़ल मत करो और अगर करते भी हो तो अकल से करो |

खैर बी०एस०सी  पूरी करनी के बाद मोदीनगर से नाता छूट गया | आगे की पढाई करने पहले दिल्ली और उसके बाद शिमला गया | उसके बाद नौकरी में व्यस्त हो गया | अब उन दिनों इंटरनेट के साधन और फेसबुक वगैरा तो होती नहीं थी सो पुराने साथियों से कोई संपर्क नहीं रहा |

समय चक्र गतिमान हुआ और तब  वर्ष 2009  चल रहा था | डिजिटल क्रान्ति के फलस्वरूप कंप्यूटर और इंटरनेट सुलभ हो चले थे | तब तक मैं देहरादून आंचलिक कार्यालय में तैनात था | थोड़ी बहुत दोस्तों की खोजबीन करने पर पता चला कि हमारा मोदीनगर का ज्ञानी छात्र अब तो शालिग्राम का रूप ले चुका है | डबल पीएचडी की डिग्री, ढ़ेरों किताबें और रिसर्च पेपर लिख मारे और  अब गोविन्द बल्लभ पन्त विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनकर परम ज्ञान बाँट रहा है | तभी से मैं उसके  उसके संपर्क में दोबारा आया और अब तक हूँ |
कथा का नायक अब - डा ०  वीर सिंह  

मेरे इस मित्र का नाम है डा० वीर सिंह, जो पन्तनगर स्थित गो.व.पंत कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय में पर्यावरण विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं | उन्हें 30 से अधिक वर्षों का पढ़ाने और अनुसंधान का अनुभव है | इनकी लिखी 50 से अधिक पुस्तकें और 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं | उन्होंने अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमीनार आयोजित की हैं|   दोहरी पीएचडी डिग्री धारी, प्रोफेसर सिंह कई प्रतिष्ठित भारतीयों और विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं जिसमें इज़राइल का  गैलीलि इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट भी शामिल है| उन्होंने कई एशियाई, यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका में वृहद रूप से यात्रा की है और दुनिया की कई संस्कृतियों को बहुत निकट से जाना और परखा । इन्होंने हाल ही में इजराएल पर एक अत्यत रोचक पुस्तक लिखी है : THE SPEAKING STONES जिसकी थोड़ी सी झांकी आपको अपने इस ब्लॉग के माध्यम से देना चाह रहा हूँ | हालांकि मेरे कुछ मित्रों को इस इंग्लिश भाषा की किताब के बारे में हिन्दी में जानकारी अटपटी भी लग सकती है पर मेरे इस ब्लॉग का पाठक वर्ग मुख्यत: हिन्दीभाषी ही है अत: बड़ी विनम्रता से अपनी इस धृष्टता के लिए क्षमा चाहूँगा |  
         
आपने बादलों से लुका छुपी करते चाँद को देखा तो जरुर होगा | आपको चाँद दिखेगा भी और नहीं भी | जब कभी इजराइल देश के बारे में सोचा करता हूँ कुछ ऐसा ही विचार आता है मन में | यह देश दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से है जिन्होंने बहुत थोड़े समय में ही हर ओर चाहे वह आर्थिक हो, सामजिक या तकनीकी  क्षेत्र हो हर जगह बहुआयामी प्रगति की है | यह प्रगति भी ऐसी जिसे पूरी दुनिया ने स्वीकार किया और प्रशंसा  भी करी  चाहे सबके सामने या छिप कर | यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि राजनैतिक कारणोंवश इजराएल का मतभेद और विरोध मुस्लिम बाहुल्य देशों के साथ शुरू से ही रहा है | तेल की राजनीति सिद्धांतों की नैतिकता पर भारी पड़ गयी और अकेला पड़ गया इजराएल | विश्व के अधिकतर देशों ने  तेल उत्त्पादक मुस्लिम देशों को नाराज़ न करने के चक्कर इजराएल से दूरी बना कर रखी और अपने राजनीतिक संबंध भी सीमित स्तर पर रखे |  पर इजराएल ने हार नहीं मानी और अपने दम पर न केवल अपनी विरोधी शक्तियों को परास्त करके शांत किया बल्कि इसके बाद अपनी कड़ी मेहनत , दृढ़ इच्छा शक्ति और मजबूत राष्ट्रीय चरित्र की बदौलत विश्व के मानचित्र पर रोल माडल बनकर उभरा |
यह पुस्तक इजराइल के बहुआयामी रूप पर समग्रता से बहुत ही रोचक ढंग से प्रकाश डालती है| पुस्तक का हर अध्याय शुरू से अंत तक पाठक को बांधे रखता है | ईसा मसीह का जन्म स्थल येरुशलम इसी देश में है तो जाहिर सी बात है यहाँ की सभ्यता की जड़े बहुत गहरे तक फ़ैली हैं | येरुशलम पर लिखी कविता पुस्तक की विशेषताओं में से एक है |  डॉ० सिंह ने इस देश में इन ऐतिहासिक स्थलों की सटीक जानकारी फोटो सहित इस पुस्तक में प्रस्तुत की है | इस देश के विश्व के मानचित्र पर उदय की कहानी और बाद में उत्पन्न अरब जगत से सैन्य संघर्षों की गाथा अत्यंत ज्ञानवर्धक है |  इजराइल के शिक्षा जगत के साथ साथ वहाँ के शिक्षकों के व्यक्तिगत और मिलनसारिता से भरपूर मानवीय पहलू भी जानने को मिलते हैं | लेखक ने सेमीनार के दौरान भारतीय संस्कृति और योग में  कैसे अन्य प्रतिभागियों की रूचि उत्पन्न की यह पढ़कर आनंद मिश्रित गर्व की अनुभूति हुई | सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय राष्ट्रीय पोशाक में मेरा जूता  है जापानी गीत सुनाकर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध करने वाला प्रसंग सुन्दर है | सैनिटरी लैंडफिल और कचरा प्रबंधन पर इस देश द्वारा अपनाई जाने वाली तकनीक और तरीके से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं |  इस पुस्तक में लेखक ने अपनी लेखनी के माध्यम से ही हमें इस देश के सभी मनमोहक रूपों – सागर, मरुस्थल, पर्वत, जंगल की भी सैर करा दी है |
इस विशिष्ट प्रबुद्ध लेखक डा० वीर सिंह को इस रोचक पुस्तक की सफलता के लिए शुभकामनाएं |
Title : THE SPEAKING STONES
Publisher : Nortionpress.com
Price : Rs. 199/-  
मेरी इस पोस्ट का उद्देश्य आपको एक खुशनुमा माहोल में लेजाकर, मेरे बाल सखा  डा० वीर सिंह के विगत  परिवेश से लेकर आज तक की ऊँची बौद्धिक उड़ान का हल्के-फुल्के अंदाज में परिचय कराने का रहा और उसी क्रम में उनकी पुस्तक की जानकारी भी आप सब तक पहुँचाई है |              

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