Saturday, 1 September 2018

भगवान की महिमा


तो जनाब , अगर आप के  ज़हन में 'किस्साए कोल पत्तर 'है , जिसमें चरखी दादरी के गेस्ट हाउस कीपर का अफ़साना था , तो उससे एक बात तो क़तई साफ़ हो जाती है कि भाई दुनिया में सब से पंगा ले लेना ( चाहे जोरू का भाई ही क्यों ना हो) पर ग़लती से भी रसोईये से मत उलझ जाना वरना आपके फ़रिश्तों को भी पता नहीं चल पाएगा कि आपके साथ हुआ क्या । हाँ ये बात अलग है कि दुनिया में ज़रूर आपके क़िस्से मशहूर हो जाएँगे । इस बार की ख़ास हस्ती जिनसे आपको मिलाने जा रहा हूँ वो जनाब राजबन ( हिमाचल प्रदेश ) सी सी आई के गेस्ट हाउस में काम करते थे । अगर मेरा अनुमान सही है तो अबतक तो शायद रिटायर भी हो चुके होंगे । नाम उनका भगवान सिंह ,हिमाचल के ही मूल निवासी , स्वभाव से फ़क्कड़ । गेस्ट हाउस में आने जाने वाले हर शक्स की सेवा में कोई कोर कसर नहीं रखते । ता उम्र गेस्ट हाउस से ही जुड़ें रहे ।
अब  सीधा-साधा पहाड़ी बंदा, और उन दिनों (सन 1980में )उम्र रही होगी यही कोई 24 -25 साल के आस-पास की । नाम से भगवान , पर तभी तक जब तक सुरा अपना असर ना दिखा दे । सो एक बार हुआ कुछ यूँ कि गेस्ट हाउस में किसी गेस्ट का पदार्पण हुआ । पदार्पण इसलिए कि सामान्य लोगों का तो आगमन होता है पर ख़ास लोगों का पदार्पण । अब बंदा ख़ास है तो उसकी हर बात भी ख़ास ही होगी । सो उन्होंने आने के साथ ही भगवान सिंह को हिदायतें जारी कर दीं - नाश्ते से लेकर रात के डिनर तक की  या कह लीजिए सुबह के आमलेट से लेकर फूले हुए फुल्के तक के बारे में । कहते हैं बात से ज़्यादा बात कहने का ढंग असर करता है । असर तो यहाँ भी हुआ पर कुछ उलटा ही । शायद इसलिए कि जिस समय हिदायतों की कक्षा चल रही थी , हमारे भगवान  का सुर शायद सुरा - प्रभाव से बेसुरा होने की कगार पर था । बोले तो कुछ नहीं, सबकुछ सुनकर चुपचाप अपने रसोई रूपी रणक्षेत्र में चले  गए । लगा बात आई गयी हो गई ।
कुछ दिन शांति से ऐसे ही बीते , लगा सब कुछ ठीक चल रहा है , पर मुझे यह नहीं पता था कि यह तो तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी है । एक दिन अचानक किसी कार्यवश किचिन में जाना पड़ गया । शादी ब्याह तब तक अपना हुआ नहीं था इसलिए खाने पीने के लिए  कम्पनी का गेस्ट हाउस ज़िंदाबाद । हाँ तो किचन में घुसते ही क्या देखा कि मेरी उपस्थिति से क़तई अनजान ,हमारे अन्नदाता भगवान सिंह जी सर झुकाए नाश्ते की तैयारी में मशगूल हैं ।  लेकिन यह क्या ...... आमलेट के लिए जो अंडा फेंटा जा रहा था उसमें से पीला योक तो सीधा उनके पेट के हवाले हो रहा था , और अंडे की सफ़ेद ज़र्दी में हल्दी डालकर क्या चम्मच से ज़बरदस्त फेंटाई करी । हद तो तब हो गई जब किचिन में साहब के लिए फुल्के (रोटी) फूलते हुए देखी । हमारे भगवान महाराज बड़े प्रेम से रोटी का कोना काट कर , उस कटे हुए कोने को शंख की तरह से मुँह से लगाकर ग़ुब्बारे कीं तरह से हवा भरकर रोटी को फुल्के के अवतार में बदल रहे थे ।
अब इसे हाथों का हुनर कहिए या चटोरी जीभ का कमाल, अंदर डाइनिंग हाल में साहब बहादुर यही हल्दी आमलेट, फुल्के के साथ  सपड़-सपड़ जीम रहे थे और अंग्रेज़ी में कहते जा रहे थे : भगवान सिंह ! वेरी गुड, वेरी गुड । बाई गॉड की क़सम, उस वक़्त का भगवान सिंह के चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान के साथ छाया आत्मसंतोष का भाव आज तक मुझे याद है ।

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