Tuesday 9 August 2022

शतक और दो वर्षों की दुविधा

एक लंबे अरसे की चुप्पी के बाद आपके सामने प्रस्तुत हूँ ।

हम  सब बचपन से सुनते आ रहे हैं , मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और । इंसान सोचता रहता है, बड़े – बड़े मंसूबे पालता है – मैं यह करूँगा , वह करूँगा – पर अंत में जो नतीजा निकलता है वह वही होता जिस पर ऊपर वाले की मंजूरी की मोहर लगती है। बहुत पहले बचपन में फिल्म देखी थी ‘वक्त’ । उसमें बलराज साहनी एक ऐसे सेठ थे जिन्होनें अपने बच्चों के लिए बहुत ऊँचे -ऊँचे सपने पाले थे लेकिन वक्त की मार के आगे सब छिन्न-भिन्न हो गए । आपको यह बात इस लिए बता रहा हूँ कि जीवन से जुड़े छोटे-मोटे कहानी किस्से अपने ब्लाग के माध्यम से आप सबके पास पहुंचाता रहा हूँ । लगभग हर सप्ताह कोई नई कहानी, नया किस्सा आप सब तक पहुँच ही जाता था । यह सब सिलसिला निर्बाध रूप से चलता रहा और ब्लाग की पोटली में किस्सों की गिनती बढ़ती गई – दस .. बीस.. पचास .. अस्सी .. नब्बे और एक दिन जब उस आँकड़े ने 99 की गिनती छू ली तब दिमाग ने कुछ ऐसी खिचड़ी पकानी शुरू करदी कि बस कुछ मत पूछिए। बस हर दम एक ही विचार खोपड़ी में दौड़ लगाता रहता कि शतक बनाने वाले किस्से का नायक कौन होगा, विषय क्या होगा, वगैरा .. वगैरा ।

अब मज़े की बात यह कि जितनी सहजता से अब तक लेपटॉप के कीबोर्ड पर उँगलियाँ दौड़ती रही थी, अचानक उनमें जैसे ब्रेक लग गया । यह ब्रेक भी टेलीविजन पर चलाने वाले कार्यक्रम के बीच दिखाए जाने वाला कोई छोटा-मोटा कमर्शियल ब्रेक नहीं था । दिमाग में दही जमने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी । दिन हफ्तों में, हफ्ते महीनों में और महीने साल का रूप लेने लगे और उस नायक का दूर-दूर तक नामों-निशान नहीं जिसे स्वर्णिम शतक के घोड़े पर सवार होकर आपके पास आना था ।

समय था कि गुजरता जा रहा था । उस ऊपर वाले की कुदरत ने भी अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया । कोरोना की महामारी  दैत्याकारी प्रचंड रूप धारण कर चुकी थी । हर आदमी एक तरह से मौत के साये में जी रहा था । कितनों ने अपनी जान गवाईं , अपने प्रिय जन गँवाए, मौत से किसी प्रकार बच भी गए तो बीमारी ने अधमरी हालत में ला पटका ,अपना रोज़गार खोया । शायद ही कोई परिवार हो जो इस महामारी की मार से अछूता रहा हो । अब हालात कुछ ऐसे कि मैं स्वयं दुखी, मेरे निकट संबंधी कष्ट में, मेरे मित्रगण परेशानी में । ऐसी परिस्थितियों में कहानी-किस्सों के बारे में सोचना किसी भी संवेदनशील प्राणी के बस की बात नहीं । यही वजह रही मेरी खामोशी की ।

अब इस सारे घटनाक्रम ने पूरे दो साल निकाल दिए । बकौल मशहूर शायर मिर्ज़ा गालिब “मुश्किलें इतनीं पड़ी मुझ पर कि आसां हो गईं”। कुल मिलाकर हालात अब पहले जैसे बदतर नहीं हैं लेकिन फिर भी मंज़र कुछ-कुछ तो ऐसा ही है जिसके लिए कवि नीरज कह गए - – “कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे” ।

इस तूफान के बाद की खामोशी ने बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया । मानों अंदर से कोई आवाज कह रही हो –“ बेटा ! क्रिकेट में क्रीज़ पर बल्ला लिए अच्छे -अच्छे धुरंधर खिलाड़ी 99 रनों पर ही आउट हो जाते हैं। शतक खिलाड़ी नहीं बनाता, मैं बनवाता हूँ । इस दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी मैं हूँ । जिसने भी इस रहस्य को जान लिया, समझ लिया उसीका जीवन सफल है, सुखमय है।“

विगत दो वर्षों में जो कुछ अनुभव हुआ – कुछ आपबीती कुछ जगबीती, उसने इतना तो स्पष्ट इशारा कर दिया कि ‘शतक- कथा’ का नायक, जी नहीं – क्षमा कीजिए – महानायक उस आदि शक्ति, परमपिता परमेश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता जो इस संसार को चलाता है। जबतक यह विचार मेरे दिमाग में नहीं आया तब तक इस ब्लाग की रेलगाड़ी ने स्टेशन पर डेरा ही जमा लिया ।

इतने समय के बाद जबकि आपमें से बहुतों के स्मृतिपटल से शायद मैं गायब भी हो चुका होऊँगा, यह लेख महानायक परमेश्वर को समर्पित इस अर्चना के साथ :

जीवन-चक्र चमत्कार है
साँसें हैं उपहार,
परमपिता को याद रखो
मानो उसका उपकार ।

14 comments:

  1. Excellent! I feel and experience it !
    Manoj Misra from Bhubaneswar

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  2. True indeed sir very well written

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  3. AAPKA ANTIM WAKYA MENE JIVAN KA AADHAR BANAKER APNA RAKHA . YAH KATU SATYA HE WAH PARAMPITA HI SAB KUCH KERATA. USKI LILA HI NIRALI HE . MANAV GALAT FAMY KA SHIKAR HE .KI ME RA HE MENE KAMAYA HE ME BALWAN HU YE SAB GALAT FAMY CORONAKAL ME AGAR SAMAJ NI PAYA TO FIR KABHI NAHI .SAMJEGA AAPKKI SHIKSHA BAHUT HI GYAN PRAD HE AGAR INSAN NE YE JIVAN ME UTARLI USKA JIVAN AANAND SE BHARJAYEGA YE MERA VISHVAS HE .THANKS SIR

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  4. Truly described 👍👌

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  5. परमपिता परमेश्वर ही हर व्यक्ति और हर घटना का सूत्रधार हैं। मनुष्य तो मात्र एक कठपुतली है।

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  6. सत्य है हम सब उस परम पिता परमेश्वर की कृपा से सांस ले रहे है।आप ऐसे ही लिखते रहे उनकी कृपा आप पे बनी रहे।

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  7. एक शताब्दी, एक सहस्त्राब्दी और शताब्दी अंतराल पर एक विश्वव्यापी महामारी! इससे बड़ा उपहार जिंदगी क्या दे सकती थी? समय सबके प्रति तटस्थ रहता है, पर हमारे लिए वह कितना परोपकारी रहा है! हमारे जीवन के कालखंड में समय ने अपने कितने रंगों से सराबोर किया है! महामारी में दुनिया की गति को लगाम देने वाले मानव की गतिशीलता पर ही तो प्रतिबन्ध लगा, प्रकृति की गतिशीलता ने तो नए-नए आयाम अनुभव किए। एक शताब्दी, एक सहस्त्राब्दी और शताब्दी अंतराल पर एक विश्वव्यापी महामारी ने जैसे हमें जैसे हजारों वर्षों के अनुभवों का साक्षी बना दिया हो! जय हो समय देव! तुम्हारा आलेख ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े नायक को चुनकर जैसे समय देव को अर्पण दे रहा हो!

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  8. Hoee hai soee jo Ram Rachi rakha. After a long time you have again become active in writing. Thank you God you have given me such a good friend.

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  9. पूरुषोत्तम कुमार9 August 2022 at 13:44

    सही कहा कि ईश्वर ही दिशा निर्देश करते हैं और भाव उमड़ने लगते हैं|
    दशक की बहुत बहुत बधाई🎉🎊

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  10. Very nice and thought provoking article showing frailty of life.

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  11. Welcome back! I will eagerly be waiting for your full-of-life blogs.

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  12. The Supreme personality of Godhead, Krishna is the fountainhead of all incarnations.

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  13. Jaise Ram Rakhe vaise Rahiye .
    Bharat Kumar Trivedi

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