ज़रा अपने आसपास नजर घुमाइए । आपको मोटे तौर पर दो तरह के लोग नजर आएंगे । पहले वे –जब भी देखिए रोनी सूरत, माथे पर सिलवटें, परेशान हालत, ऊपर वाले से अपनी किस्मत को लेकर इतनी शिकायतें कि आप भी बोर होकर उनसे किनारा काटना शुरू कर देते हैं । इसके ठीक विपरीत दूसरे वे जिनकी ज़िंदगी का फलसफ़ा ही है – जिस हाल में जिओ – खुश रहो। खुशकिस्मती से मेरे लगभग सभी मित्र इस दूसरी श्रेणी में ही आते हैं और खुशहाल ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं । यूं तो उन सबसे समय -समय पर फोन पर बातें होती ही रहती हैं । एक दिन बैठे – बिठाए दिमाग में खुजली उठी और उनमें से कुछ से जानना चाहा जीवन के प्रति उनका नजरिया, सुखी जीवन का रहस्य और अनुभव । उन सभी के अनुभव और विचारों के निचोड़ में अद्भुत समानता थी । छोटे छोटे गाँव, कस्बे से लेकर महानगरों तक में रहने वाले ये सीधे-सरल मित्र भी वही कह रहे हैं जो दुनिया – जहान घूम चुके जाने-माने पत्रकार स्व 0 खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा । आप इसे यूं भी समझ सकते हैं कि सच एक ही होता है चाहे वह किसी के मुंह से भी निकले । हो सकता है शायद आपभी जानना चाहें कि मस्त -मौला ज़िंदगी गुजर बसर करने वालों की सोच क्या कहती है ।
मुस्कराहट पर टेक्स नहीं लगता |
सुख की सीढ़ी का पहला पायदान अच्छा स्वास्थ है जिसके बिना सारी दुनिया वीरान और नीरस है । मेरा तो यहाँ तक मानना है कि दांत का दर्द होने पर अडानी और अंबानी जैसे दुनिया के दौलतमंद इंसान भी अपनी सारी हैसियत भूल जाते हैं ।
अपनी जरूरतें कम और इच्छाएं सीमित रखें । वैसे तो इस मामले में मन को लाख समझाने के बावजूद हाल कुछ ऐसा रहता है कि दिल है कि मानता नहीं । पर जिसने भी इस दिल को काबू कर लिया वही सुखी रहा । इच्छा और लालच का तो कोई अंत ही नहीं । रोज़ समाचारों में बड़े – बड़े घोटालों की खबरें छपती रहती हैं और उन अरबपति घोटालेबाजों का अंत अस्पतालों में अत्यंत दयनीय परिस्थियों में होता है । सब सुविधाएं और रुतबा धरा का धरा रह जाता है ।
तीसरी बात – आत्म-संतुष्टी । ईश्वर ने जो भी आपको दिया है उसी में संतुष्ट रहना सीखिए । दूसरों की उन्नति देखकर मन में द्वेष मत पालें और किसी हीन भावना से ग्रस्त न हों । शायद आपको याद हो किसी जमाने में टीवी पर एक विज्ञापन चला करता था - उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से ज्यादा उजली क्यों । ऐसी सोच से कुछ लाभ नहीं – सोचेंगे तो कमीज तो उजली होने से रही अलबत्ता अपना ही खून जलेगा ।
इसके अतिरिक्त एक समझदार दोस्त और जीवनसाथी भी हो तो जीवन का आनंद ही कुछ और होता है । कहने वाले तो यहाँ तक कह गए कि आपस में झगड़ते रहने की बजाय अलग होकर शांति से जीना बेहतर है। जहाँ तक सवाल है मित्र मंडली का - उनका चुनाव सावधानी से करें । सर खाने वालों से, समय नष्ट करने वालों से, हमेशा रोने-धोने वालों से किनारा करना ही बेहतर रहता है । कंकड़ पत्थर के ढ़ेर इकट्ठा करने के बजाय अपने पास गिने चुने रत्न रखें – चाहे वे नाते रिस्तेदारों के रूप में हों या मित्रों के ।
पाँचवा मंत्र – अपनी रुचि के अनुसार कुछ अच्छे शौक पालें जैसे – संगीत, बागवानी, अध्ययन मनन, समाजसेवा । इस प्रकार के कार्यों का कोई अंत नहीं ।
सबसे महत्वपूर्ण जो मुझे लगता है वह है आप प्रतिदिन कुछ समय आत्मचिंतन और ध्यान के लिए अवश्य निकालें । मानसिक शांति के पौधे के लिए यह खाद का काम करता है ।
चलते- चलते- सुखमय जीवन के लिए इतनी सारी बातों महामंत्र चंद शब्दों में कुछ इस तरह से कह सकते हैं :
मस्त तबीयत , सर पर छप्पर ,
तन पर कपड़ा और दो रोटी ,
सुखमय जीवन बीत जाएगा ,
चाहत रखिए छोटी – छोटी ।