Monday 5 October 2020

मॉनीटर मित्र : श्याम लाल

मॉनीटर मित्र : श्याम लाल 
पुरानी कहावत है – सैयाँ भए कोतवाल अब डर काहे का । मतलब यही कि जब कोई दोस्त या रिश्तेदार किसी ऊंचे पद पर बैठा हो तो फायदा मिलने की पूरी संभावना होती है । स्कूल के दिनों में मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस होता था – क्योंकि श्याम लाल मेरा दोस्त था और दोस्त होने के साथ वह क्लास का मॉनीटर भी था । स्कूल खालिस सरकारी था । जब भी कभी क्लास में मास्टर जी नहीं होते या खाली पीरियड होता तब हमारी मस्ती की बात ही कुछ अलग होती । जबान पर लगा ताला मानो टूट जाता और संगी – साथियों के साथ हल्ला – गुल्ला उस स्तर पर पहुँच जाता कि पार्लियामेंट भी एक बारगी शर्म से पानी – पानी हो जाए । बातों का सिलसिला भी ऐसा जो रुकने का नाम ना ले । अब ऐसे समय में जब हम सब बातों के रस में पूरी तरह से सराबोर हो रहे होते थे तब अचानक ब्लेकबोर्ड पर लिखने वाले चॉक के टुकड़े बंदूक से निकली गोलियों की तरह शरीर से टकराती । नजर उठा कर देखता – ब्लेकबोर्ड के ठीक सामने मास्टर जी की जगह क्लास के मॉनीटर – यानी श्याम लाल को पाता । ब्लेकबोर्ड साफ़ करने का लकड़ी का डस्टर मेज पर ठकठका कर मॉनीटर की चेतावनी का नगाड़ा पूरी क्लास में गूंज उठता । पलक झपकते ही क्लास रूम मानों कोर्ट रूम में बदल जाता जहाँ के जज साहब अपना श्याम लाल होता । उसकी पैनी निगाह क्लास के बच्चों पर रडार की तरह नज़र रखती । इतने पर ही बात निबट जाए तब भी गनीमत समझो , वह तो शरारत करने वाले बच्चों के रोल नंबर एक -एक करके सामने ब्लेकबोर्ड पर लिखना शुरू कर देता । दिमाग का वह तेज था इसीलिए केवल नाम ही नहीं क्लास के सभी बच्चों के रोल नंबर तक उसे रटे पड़े थे । उसके द्वारा ब्लेकबोर्ड पर नाम लिखा जाना ठीक वही डर पैदा कर देता जैसा अमरीका द्वारा किसी देश को आतंकवादी घोषित करने पर होता है । मास्टर जी का जब क्लास में अवतरण होता तब उनके लिए ब्लेकबोर्ड ही गीता – बाइबिल – कुरान होता । उस पर आतंकवादियों के रोल नंबर वेद वाक्य की तरह अटल , शाश्वत सत्य माने जाते । उन आतंकवादी – शरारती – बातूनी बच्चों की किसी भी फ़रियाद पर कोई सुनवाई नहीं होती । हाँ- बतौर सज़ा, कुटाई होगी, मुर्गा बनना है या छड़ी से पिछाड़ी की सिकाई होनी है , यह मास्टर जी के मूड पर निर्भर होता । यह थी ताकत मेरे मॉनीटर मित्र श्याम लाल की जिससे क्लास के सारे बच्चे हद दर्जे की खौफ खाते थे । जहाँ तक मेरा सवाल है – पूरी क्लास का गब्बर मेरा तो दोस्त था , बल्कि एक तरह से कहूँ तो सही मायने में लँगोटिया यार था । यारी का फर्ज निभाने में कभी भी कतई पीछे नहीं रहा । जब शोर मचाती क्लास में आतंकवादियों के रोल नंबर ब्लेकबोर्ड पर लिखे जा रहे होते थे , तब मुझे वह केवल आँखे तरेर, अपने मुँह पर उंगली रख चुप होने का इशारा करता हुआ चाक का टुकड़ा मिसाइल की तरह खींच कर दे मारता । मास्टर जी की कुटाई – पिटाई के मुकाबले मैं भी उस चॉक के टुकड़े की गोली खाकर अपने को धन्य समझता कि चलो सस्ते में छूट गए । उसकी इस रहमदिली का कारण बहुत बाद में पता चला । दरअसल मेरी माँ भी उसी स्कूल में अध्यापिका रहीं थी और श्याम लाल किसी जमाने में उनका छात्र रह चुका था । 

स्कूल था मेरा दिल्ली – यमुना पार इलाके के झिलमिल कॉलोनी में । श्याम लाल भी नजदीक की ही कच्चे – पक्के मकानों की बस्ती विस्वास नगर में रहता था । जब भी मौका मिलता मैं अपने एक और दोस्त चंद्रभान- जो श्याम का पड़ोसी भी था , के साथ उसके घर चला जाता । यद्यपि वह समाज के उस वर्ग से था जिसे आर्थिक और सामाजिक नजरिए से अविकसित माना जा सकता है लेकिन उस बंदे में गजब का आत्मविश्वास भरा हुआ था । दिमाग का तेज था, क्लास का मॉनीटर था, एन.सी.सी का अच्छे केडेट्स में से एक था । खेल-कूद में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेता । लिखाई इतनी सुंदर जैसे मोती जड़ दिए हों । उस कच्ची उम्र में भी जिम्मेदारी का इतना एहसास था कि अपने पिता का हाथ बटाने के लिए उनकी किरियाने दुकान की जिम्मेदारी संभालनी शुरू कर दी थी । 

स्कूल के बाद रास्ते अलग -अलग हो गए । लंबे समय तक एक दूसरे की कोई खोज -खबर नहीं रही लेकिन मॉनीटर मित्र दिलों-दिमाग की तिजोरी में महफ़ूज रहा । पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के कोल्हू में जुत गए और रिटायर होते -होते कब जवानी ने विदा ली और बुढ़ापे ने दस्तक दी समय का पता ही नहीं चला । बचपन से बुढ़ापे तक के सफ़र में दुनिया ने भी बहुत तरक्की कर ली थी । सोशल मीडिया और मोबाइल का ज़माना आ चुका था । उसी के जरिए श्याम लाल की खोज खबर ली गई । असली दोस्ती वही होती है जिसका रंग समय के साथ फीका नहीं पड़ता वरन और भी पक्का होता जाता है । श्याम के साथ भी ऐसा ही था । वह भी नौकरी के बाद रिटायर हो चुका था । उसे भी मेरे तरह दोस्ती के उसी कीड़े ने काटा हुआ था जो हालचाल पता करने के लिए समय-समय पर फोन करता रहता । 

अब सिर्फ फोन पर बात करने से मन तो भरता नहीं । सो एक दिन प्रोग्राम बना कि अपने उसी झिलमिल कॉलोनी के स्कूल में श्याम लाल और चंद्रभान के साथ जाकर पुराने दिनों की यादें ताज़ा की जाएं । समय का फेर कुछ ऐसा रहा कि किसी न किसी कारणवश यह स्कूल दर्शन और मित्र मिलन का कार्यक्रम टलता ही रहा – कभी हारी- बीमारी, कभी व्यस्तता तो कभी दिल्ली का प्रदूषण । आखिर में रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी जब दिल्ली तो क्या सारी दुनिया ही ठहर गई । 

श्याम लाल के फोन हमेशा की तरह आते रहते – गपशप होती ।स्कूल के दिनों से आज तक उसमें कोई अंतर नहीं आया था सिवाय एक बात के – अब वह मुझे नाम के साथ जी भी लगा कर संबोधित किया करता । अभी कुछ दिन पहले की बात है – मोबाइल पर दोस्त चंद्रभान का संदेश था जिसमें श्याम लाल के आकस्मिक दु:खद निधन की सूचना थी । दिल को गहरा धक्का लगा । श्याम के घर फोन लगाया – बच्चों से बात की – जो पता लगा वह और भी कष्टकारी था । अचानक तबीयत खराब होने पर गंभीर हालत में श्याम को एम्बुलेंस में कई अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े पर किसी ने भी उसे भर्ती तक नहीं किया । सब एक दूसरे पर टरकाते रहे और अंत में इलाज के अभाव में श्याम लाल के प्राण पखेरू एम्बुलेंस में ही उड़ गए । वह श्याम लाल जो बचपन में ही मॉनीटर बन कर पूरी क्लास की अनुशासन व्यवस्था संभाला करता था , अस्पतालों की अनुशासनहीनता से उसके प्राणों की रक्षा इस दुनिया का मॉनीटर नहीं कर पाया । ऊपर वाले से यह शिकायत मुझे ताउम्र रहेगी और साथ ही खुद अपने से भी – मिलने का वादा नहीं निभा पाया । 

अलविदा मॉनीटर मित्र 🙏

3 comments:

  1. beautiful story of ur friendship sir..... RIP

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  2. पुरुषोत्तम कुमार5 October 2020 at 19:59

    इस महामारी नें जाने कितने सगे-संबंधियों, दोस्तों के प्राण हर लिए।
    आपके दोस्त के निधन पर हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं।
    ॐ शांति।।

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  3. Such types of friends and class monitors are rarely found .Kaushik ji you are lucky to have friends like Shyamlal & Chandrabhan .It has reminded me our schooldays .In few classes I was also monitor but never use to scare our classmates rather used to defend them They used to respect& listen to me both in the classroom and on the ground .

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