क्या बताऊँ अपने दिल के दर्द को । परेशान हूँ पिछले एक महीने से । दिमाग है कि काम ही नहीं करता । हाल बिल्कुल फिल्मी गानों के मुखड़ों जैसा हो गया है -मेरी नींदों में तुम – मेरे ख्वाबों में तुम , जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है , भूल गया सब कुछ – याद नहीं अब कुछ – बस एक बात ना भूली - - - - हाय कोरोना, हाय कोरोना , हाय कोरोना – सगरे बैठे इस इंतजार में – कब जाएगो कोरोना । टी. वी में , सोशल मीडिया में , अखबारों में – जहाँ देखो- जिसे देखो - लगा है कमबख्त का मारा डराने मेँ कि ससुरे तू कोरोना से मरे या ना मरे, उससे पहले हम तुझे डरा -डरा कर ही मार डालेंगे । भाई जी ये हालात हो गई है कि रामसे ब्रदर्स की भूतों की खौफनाक फिल्म देखने की जरूरत ही नहीं रह गई है । आप कभी भी किसी भी न्यूज़ चेनल पर खबरे देखिए – कसम उड़ान झल्ले की, दिल ऐसे -ऐसे झटके मारेगा कि बिना हार्ट अटेक के ही जन्नत की राह नजर आने लगेगी । टी. वी बंद कर आप मोबाइल में व्हाट्सएप संदेश खोलते हैं तो लगता है इस ब्रह्मांड के सबसे अज्ञानी पुरुष हम ही बचे हैं । जिधर देखो ज्ञान की गंगा पूरे प्रचंड वेग से पूरे उफान पर बह रही है - जिसे देखो वही कोरोना ज्ञान बाँट रहा है, सलाह पर सलाह । कोई कहता है कोरोना से बचने के लिए करेला खाओ तो कोई कहे च्यवन प्राश । हे मेरे राम , मेरा बस चले तो इन सब सलाहकारों को हवाई जहाज़ में चढ़ा कर सीधे चीन के वुहान का टिकट काट दूँ कि जाओ भाइयों जाओ वहाँ की चमगादड़ प्रयोगशाला में आप सबकी ज्यादा जरूरत है । हद तो तब हो जाती है जब पौराणिक युग के भूले-बिसरे परिचित भी फोन करके हाल -चाल पूछते हैं । मुझे अच्छी तरह से पता है – हाल-चाल पूछना तो सिर्फ एक बहाना है , दरअसल जानना तो वह यह चाहते हैं कि भाई साहब अभी तक इस दुनिया में टिके हुए हो या खर्च हो गए । बाई गॉड की कसम, सोचा न था कभी ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे - मन करता है शर्म के मारे उसी ज्ञान की गंगा में डूब मरूँ जो चारों ओर बह रही है । पहले शेरो-शायरी में दर्दे -दिल बयां करते थे – मुद्दत हुई है यार के दीदार किए हुए । अब यार की जगह नाई ने ले ली है । नतीजा अच्छे -भले हीरो थे – पर बालों की खेती ने धीरे-धीरे हिप्पी बनाया – किसी तरह उसे भी बर्दास्त किया । यही हिप्पीकट जब औगढ़ बाबा की जटाओं में बदल गया तो घर के बच्चे भी डरने लगे । ये भी जीना कोई जीना है लल्लू - घर वाले रात को भूत समझ बैठते हैं और दिन में अड़ोसी -पड़ोसी भिखारी । मरता क्या न करता – भाई जी , मैंने तो उठा कैंची – कंघी , घर पर ही खोपड़ी पर सीधे ट्रेक्टर चला दिया । यह जो नया स्टाइल आया उसे कोरोना कट कहते हैं जो आजकल का लेटेस्ट फैशन ट्रेंड बन चुका है । कुछ लोग कहा करते हैं – मजबूरी का दूसरा नाम महात्मा गांधी, पर मेरे लिए तो यह कोरोना कट है । आइए, चलते-चलते अपने और अपनी मित्र -मंडली के कुछ ऐसे ही मजबूर बिरादरी के बंदों के दर्शन करवा देता हूँ ।
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परेशान परिंदा - मुकेश कौशिक |
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बंगाली बाबू -श्री देबाशीष गुप्ताभाया |
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आकर्षक - श्री आदित्य शर्मा |
दोस्तों , ये सारी दिक्कतें अपनी जगह है , मैं तो केवल यही कहूँगा आप सब सब स्वस्थ रहें - मस्त रहें , सावधान रहें पर जरूरत से ज्यादा परेशान ना हों । ज्यादा सलाह बिल्कुल नहीं क्योंकि ज्ञान की गंगा में पहले से ही बहुत बाढ़ आयी हुई है ।
Yes sir stay positive stay happy.....
ReplyDeleteThanks for good wishes Vipin ji 🙏🙏
Deleteजरूरत ही अविष्कार की जननी होती है। आपका अविष्कार व्यर्थ नहीं जाएगा और सब सैलूनों की शोभा बढ़ाएगा।��
ReplyDeleteIn this time you can have the opportunity to have ponytail with matching beared and go for long drive on bike with your soul mate.
ReplyDeleteMukesh ji,
ReplyDeleteReality presented nicely. Thanks for good wishes to all your well wishers. In the meantime Corona made most of us artist as during this period all tried everything to kill time. Hair dressing is one such activity. In your style perfection is also seen. Also forced saving must have accrued.