अपनी नौकरी के कार्यकाल के दौरान मैंने महसूस किया कि अन्य स्थानों की तुलना में फेक्ट्रियों के टाउनशिप की अलग ही दुनिया होती है | सब लोग मिल-जुल कर साथ रहते हैं | एक दूसरे के हर सुख- दुःख के साथी | सब त्यौहार मिल जुल कर एक साथ मनाते हैं | हालाकि मुझे रिटायर हुए अरसा बीत चुका है पर आज भी हिमाचल प्रदेश के राजबन से दुर्गापूजा और रामलीला का निमंत्रण हर वर्ष आता है | मौक़ा मिलने पर मैं भी शामिल हो जाता हूँ | इस रामलीला की विशेष बात यह है कि इसके सभी कलाकार फ़ैक्टरी के ही कर्मचारी होते हैं जो दिन भर की ड्यूटी करने के बाद भी पूरी भक्ति, शक्ति और उत्साह के साथ इसमें भाग लेते हैं |अगर मैं ठीक से याद कर पा रहा हूँ तो यह परम्परा विगत चालीस से भी अधिक वर्षों से अनवरत चलती आ रही है | समय के साथ -साथ पुराने कर्मचारी रिटायर होते गए, नए-नए आते गए और इसके साथ ही रामलीला के कलाकारों की भी नई पीढ़ी अवतरित होती गयी | राम, लक्ष्मण , हनुमान , रावण जैसे सभी पात्रों का नया संस्करण | लेकिन इन सब परिवर्तनों के बावजूद भी रामलीला की मूल आस्था और भक्ति भावना वही बरकरार रही|
राजबन की रामलीला : नीचे बैठी तत्कालीन जी॰एम सुश्री सरस्वती देवी |
बचपन में अनिल पढ़ाई में ठीक- ठाक ही रहा | स्कूल भी अच्छा था लेकिन नौवीं क्लास तक आते-आते जैसे शरारतों के झूले की पींग ऊँची उठती गई, पढ़ाई की बैटरी डाउन होती गई | अंगरेजी स्कूल से हिन्दी मीडियम के सरकारी विद्यालय में पधारना पड़ा पर कुछ समय बाद उसे लगा पढ़ाई बस की बात नहीं | पिता भी तब तक नौकरी से रिटायर हो चुके थे| उन्होंने उम्मीदें तो बहुत पाली हुई थी अनिल से, मगर मन मसोस कर रह जाते | आखिर कर भी क्या सकते थे | इसी बीच दुर्भाग्य ने उस हँसते -खेलते परिवार पर जैसे कोई बम छोड़ दिया | पिता को बीमारी ने जकड़ लिया और बीमारी भी कोई छोटी-मोटी नहीं – वह थी साक्षात मौत का दूसरा नाम – कैंसर | पूरा परिवार मानों एक तरह से हिल गया | इलाज के खर्चों से घर की आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी | दिन में तारे दिखना किसे कहते है ज़िंदगी में पहली बार अनिल ने यह भी जान लिया था |
अधूरी पढ़ाई के साथ नौकरी की तलाश में पता नहीं कहाँ -कहाँ धक्के खाने पड़े | दिल में पहली बार यह ख्याल भी आया कि काश अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाया होता तो शायद आज यह वक्त नहीं देखना पड़ता | उधर पिता की तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी | आखिरकार उसी सीमेंट फ़ैक्टरी में जहाँ पर उसके फ़ौजी पिता अच्छी-ख़ासी नौकरी करते थे वहीं पर ठेके के मजदूरों में भर्ती होकर काम करना पड़ा | पिता की इच्छा थी जीते जी अपनी आँखों के सामने ही अनिल का घर बसते देखने की सो विवाह भी जल्द ही कर दिया | कुछ समय बाद ही दबे कदमों से आती मौत ने भी पिता को अपने बेरहम शिकंजे में ले ही लिया | इधर पिता की मौत का सदमा और उधर पिता की फौज से मिलने वाली पेंशन भी बंद | सिर पर भरे -पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई जिसमें थे माँ, बहन , भाई, पत्नी और बेटा | खुद की कमाई इतनी कम जैसे ऊंट के मुंह में जीरा | अनिल आज भी उस वक्त को याद करते हुए कहते हैं वह शायद मेरे ज़िंदगी के सबसे बुरे दिन थे | खाने तक के लाले पड़ गए थे | दस रुपये का मेगी का पेकट लाते थे – मेगी परिवार के अन्य सदस्यों को खिला कर उसके बचे हुए पानी में ही रोटी डूबा कर खा लेते | कई बार तो रोटी भी खेत से तोड़कर लायी प्याज में नमक -मिर्च डाल कर खाने की नौबत रहती |
हर बुरे वक्त का कभी तो अंत होता है | अनिल के बुरे वक्त ने भी विदाई लेनी शुरू कर दी – बेशक धीरे-धीरे ही सही | खेत की ज़मीन पर मोबाइल टावर लगा तो किराये की आमदनी से कुछ सहारा लगना शुरू हुआ | दिवंगत पिता की पेंशन का मामला सुलझा और माँ को पेंशन मिलनी शुरू हुई | किसी ने सच ही कहा है – अच्छे वक्त में भाग्य और बुद्धि भी साथ देती है | अनिल ने अपनी अधूरी पढ़ाई की तरफ भी ध्यान देना शुरू किया |पत्राचार के माध्यम से पहले मेट्रिक पास किया और उसके बाद बारहवीं | किस्मत का खेल देखिए – फ़ैक्टरी की सरकारी नौकरी के लिए आवेदन मांगे गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि पर ही बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ | भागते-दौड़ते आवेदन पत्र भरा | प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के कड़े मापदण्डों पर खरा उतरने पर आखिरकार सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में मिलर की नियमित पक्की नौकरी मिल पायी| सीमेंट उद्योग में मिलर का पद अत्यंत तकनीकी और महत्वपूर्ण होता है | बस वह दिन है और आज का दिन , अनिल ने कभी वापिस पीछे मुड़ कर नहीं देखा | जीवन में जो चाहा मिल गया – अच्छी नौकरी, मोटी तनख़्वाह, भली से पत्नी और दो भोले-भाले प्यारे से बच्चे |
अनिल का मानना है की इस सारी सफलता में उसके परिवार का पूरा सहयोग है विशेषकर पत्नी का | पत्नी स्वयं स्नातक हैं जिसका अनिल की अधूरी पढ़ाई को पूरा करवाने में उल्लेखनीय योगदान है | इन सबसे ऊपर वह विशेष कारण जिसकी वजह से भाग्य भी मेहरबान रहा – वह है ईश्वर पर अटूट आस्था | अनिल हनुमान भक्त है और राजबन सीमेंट फेक्टरी की रामलीला में विगत बारह वर्षों से हनुमान का पार्ट सफलता पूर्वक अदा कर रहा है | हनुमान की भूमिका निभाने के दौरान अनिल को अपने शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार महसूस होता है | एक हाथ से ही रसोई गैस का भरा हुआ सिलेन्डर अपने कंधे पर रखने की ताकत आ जाती है जो सामान्य दिनों में संभव नहीं होती | वह रामलीला का एक मँजा हुआ कलाकार है और आवश्यकता पड़ने पर जोकर से लेकर मंथरा और राजा जनक से लेकर रावण सेना के गण तक का रोल बखूबी निभा लेता है | रामलीला के एक से बढ़ कर एक मज़ेदार किस्से-कहानियों का भंडार है अनिल के पास- पर उन सब के लिए एक अलग से ही ब्लाग कभी लिखना पड़ेगा |
सिगरेट शराब जैसे व्यसनों से दूर अनिल की भविष्य के प्रति सुनहरी योजनाएँ हैं | सबसे पहले अपने आपको ग्रेजुएट होते हुए देखने का इरादा | एक बड़ी सी गाड़ी खरीद कर परिवार को सैर -सपाटा करने का सपना | मुझे विश्वास है राम जी इस रामलीला के साक्षात हनुमान की मनोकामना अवश्य पूरा करेंगे |
यह थी रामलीला के हनुमान अनिल के उथल - पुथल भरे जीवन की एक छोटी सी बानगी जो हमें याद दिलाती है एक बहुत ही पुराने गीत की :
गर्दिश में हो तारे, ना घबराने प्यारे ,
गर तू हिम्मत ना हारे तो होंगे वारे-न्यारे |
अधूरी पढ़ाई के साथ नौकरी की तलाश में पता नहीं कहाँ -कहाँ धक्के खाने पड़े | दिल में पहली बार यह ख्याल भी आया कि काश अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाया होता तो शायद आज यह वक्त नहीं देखना पड़ता | उधर पिता की तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी | आखिरकार उसी सीमेंट फ़ैक्टरी में जहाँ पर उसके फ़ौजी पिता अच्छी-ख़ासी नौकरी करते थे वहीं पर ठेके के मजदूरों में भर्ती होकर काम करना पड़ा | पिता की इच्छा थी जीते जी अपनी आँखों के सामने ही अनिल का घर बसते देखने की सो विवाह भी जल्द ही कर दिया | कुछ समय बाद ही दबे कदमों से आती मौत ने भी पिता को अपने बेरहम शिकंजे में ले ही लिया | इधर पिता की मौत का सदमा और उधर पिता की फौज से मिलने वाली पेंशन भी बंद | सिर पर भरे -पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई जिसमें थे माँ, बहन , भाई, पत्नी और बेटा | खुद की कमाई इतनी कम जैसे ऊंट के मुंह में जीरा | अनिल आज भी उस वक्त को याद करते हुए कहते हैं वह शायद मेरे ज़िंदगी के सबसे बुरे दिन थे | खाने तक के लाले पड़ गए थे | दस रुपये का मेगी का पेकट लाते थे – मेगी परिवार के अन्य सदस्यों को खिला कर उसके बचे हुए पानी में ही रोटी डूबा कर खा लेते | कई बार तो रोटी भी खेत से तोड़कर लायी प्याज में नमक -मिर्च डाल कर खाने की नौबत रहती |
हर बुरे वक्त का कभी तो अंत होता है | अनिल के बुरे वक्त ने भी विदाई लेनी शुरू कर दी – बेशक धीरे-धीरे ही सही | खेत की ज़मीन पर मोबाइल टावर लगा तो किराये की आमदनी से कुछ सहारा लगना शुरू हुआ | दिवंगत पिता की पेंशन का मामला सुलझा और माँ को पेंशन मिलनी शुरू हुई | किसी ने सच ही कहा है – अच्छे वक्त में भाग्य और बुद्धि भी साथ देती है | अनिल ने अपनी अधूरी पढ़ाई की तरफ भी ध्यान देना शुरू किया |पत्राचार के माध्यम से पहले मेट्रिक पास किया और उसके बाद बारहवीं | किस्मत का खेल देखिए – फ़ैक्टरी की सरकारी नौकरी के लिए आवेदन मांगे गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि पर ही बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ | भागते-दौड़ते आवेदन पत्र भरा | प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के कड़े मापदण्डों पर खरा उतरने पर आखिरकार सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में मिलर की नियमित पक्की नौकरी मिल पायी| सीमेंट उद्योग में मिलर का पद अत्यंत तकनीकी और महत्वपूर्ण होता है | बस वह दिन है और आज का दिन , अनिल ने कभी वापिस पीछे मुड़ कर नहीं देखा | जीवन में जो चाहा मिल गया – अच्छी नौकरी, मोटी तनख़्वाह, भली से पत्नी और दो भोले-भाले प्यारे से बच्चे |
अनिल शर्मा :: मिलर के रूप में |
आज का सुखी परिवार : पत्नी और बच्चों के साथ |
अनिल - हनुमान रूप में |
यह थी रामलीला के हनुमान अनिल के उथल - पुथल भरे जीवन की एक छोटी सी बानगी जो हमें याद दिलाती है एक बहुत ही पुराने गीत की :
गर्दिश में हो तारे, ना घबराने प्यारे ,
गर तू हिम्मत ना हारे तो होंगे वारे-न्यारे |
Such a beautiful and inspiring story sir God bless him sir
ReplyDeleteThanks for encouraging comments 🙏
DeleteIt is touching!
ReplyDeleteIndeed 🙂
Deleteजैसे आग में तपने से सोना खरा हो के निकलता है वैसे जीवन की कठिनाइयों की आग से पर पा कर अनिल भाई जीवन में निखरे हैं। भगवान उन पर सदैव कृपा बनाये रखें।
ReplyDeleteआपका अनिल जी के बारे में अवलोकन एकदम सही है ।
Deleteअत भला हो भला।
ReplyDeleteसत्य कथन :
Deleteकष्टों की अग्नि में, खूब जला,
लेकिन
अंत भला - हो भला ।🙏😄
बहुत खूब लाजवाब संस्मरण
ReplyDeleteधन्यवाद अनाम बंधु 🙏🙏
DeleteVery inspiring and motivating Kaushik Uncle,reminding all of us not to give up!
ReplyDeleteMay God bless Anil Sharma ji & family!!
Thanks dear Vikas . 🙏🙂
DeleteI had seen anil ji, he was very kind and helpful person, at that time I was a student in KV rajban school, beautiful blog sir!!
ReplyDeleteAbhishek Dixit
Our blessings with Anil. May God fulfill all his aspirations. Thank you Mukesh for bringing to stories of Rajban thru yr beautiful writings.
ReplyDeleteMukesh,
ReplyDeleteYour of unique way of writing is really captivating and the reader has the same feeling with which the short story is written. Fantastic
Vimal