Sunday 10 November 2019

मजबूर हूँ पर निराश नहीं : चंद्रभान

कबीर दास जी के एक दोहे की पंक्ति है : मन के हारे हार है, मन के जीते जीत | अर्थात सब कुछ आपके आत्म विश्वास पर निर्भर करता है | अगर आप हिम्मत हार बैठे तो सफलता नहीं मिल सकती | आज यह बात याद आने के पीछे भी एक विशेष कारण है | मेरी आदत है घर के पास बने पार्क में घूम कर आने की | वहीं पर कसरत करने की तरह -तरह की मशीनें भी लगी हैं जिन पर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बच्चे, बूढ़े और जवान , सभी जोर-आजमाइश करते रहते हैं | मैं भी सामर्थ्य के अनुसार व्यायाम करता हूँ | आज का दिन भी और अन्य दिनों की तरह सामान्य ही था | पार्क में एक कोने में आवारा कुत्तों की टोली आराम फरमा रही थी | पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे | ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी | कसरत-मशीनों पर वही नियमित रूप से आने वाले पुराने जाने-पहचाने चेहरे पसीना बहाने में व्यस्त थे | एक नए चेहरे पर नज़र पड़ी | वह बड़ी तन्मन्यता से दीनो-दुनिया से बेखबर एक जिम मशीन पर कसरत कर रहा था |
कड़ी मेहनत - पक्का इरादा : चंद्रभान 
 एक बार सरसरी नज़र से देखने के बाद जब उस शख्स को दोबारा ध्यान से देखा तो अवाक रह गया - वह नेत्रहीन था | सफ़ेद कमीज़ और नीली जींस में उसका दुबला-पतला शरीर मानो कुछ अलग ही कहानी सुना रहा था |अपनी जिज्ञासा को मैं अधिक देर तक नहीं दबा सका और अंत में उस युवक के पास पहुँच ही गया - मन में उठ रहे तरह-तरह के सवालों के साथ | उस युवक ने जो कुछ भी अपने बारे में बताया वह मन को छू लेने वाला तो था ही , साथ ही प्रेरणादायक भी था | उस युवक जिसका नाम था चंद्रभान, की आपबीती कहानी को आप सब तक पहुंचाने के लोभ से मैं अपने आप को नहीं रोक सका हूँ | 
चंद्रभान का बचपन शुरू होता है उत्तरप्रदेश के इलाहबाद जिले के एक छोटे से गाँव – अकोढा से | बचपन के शुरुआती दिनों में वह बिल्कुल ठीक -ठाक था | चार साल की उम्र में उसे गंभीर बीमारी ने घेर लिया | सारे शरीर पर फुंसी -फोड़े निकल आये थे | गाँव के ही एक डाक्टर ने इलाज़ करना शुरू किया पर रोग था कि काबू में नही आ पाया | आँखों पर भी बहुत बुरा असर हुआ और धीरे -धीरे दिखना बंद होता चला गया | बाद में जब तक पता चला कि गाँव में इलाज करने वाला डाक्टर फ़र्जी – झोला छाप है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी | आस-पास के शहरों में भी दूसरे डाक्टरों को दिखाने का कोई लाभ नहीं हुआ और इस तरह से नन्हे चंद्रभान की हंसती -खेलती दुनिया भयावह अंधेरों के आगोश में समा गयी | दुर्भाग्य की इतनी बड़ी मार उस छोटे से बच्चे के लिए कुछ कम नहीं थी | लगभग पूरा बचपन ही माता-पिता और रिश्तेदारों के इस दिलासे पर निकल गया कि इलाज चल रहा है – आँखे ठीक हो जायेंगी | सोचिए उस बच्चे की मनोदशा जिस के लिए सारी दुनिया गहन काली रात में बदल चुकी थी और जिसे हर दिन उस नयी सुबह का इंतज़ार रहता जिसमें वह फिर से देख पायेगा – अपनी मां , पिता , भाई-बहन , संगी -साथी, उगता सूरज, गाँव की पगडंडी और दूर तक फैले खेत | वह खुशनुमा सुबह कभी नहीं आयी और उसे अब इस अन्धेरा दुनिया में ही रहने की आदत डालनी पड़ेगी इसे स्वीकार करने में बहुत वक्त लगा |
इतनी घोर विपत्ति के बावजूद अब एक बात तो उस बच्चे के मनो-मस्तिष्क में धीरे -धीरे घर करने लगी – और वह यह कि इस दुनिया में अगर भविष्य में उसका कोई सहारा होगा तो वह स्वयं | उसके लिए जरुरी होगा पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खुद खड़े होना | गाँव के सामान्य स्कूल में ही शुरुआती पढ़ाई की | बाद में इलाहबाद के एक संस्थान से ब्रेल लिपि का अध्ययन किया | नेत्रहीनों के लिए पुस्तकें ब्रेल लिपि में ही लिखी जाती हैं जिनके उभरे हुए विशेष प्रकार के बिंदुदार अक्षरों को उँगलियों से स्पर्श करके पहचाना और पढ़ा जाता है | इसे सीखने का लाभ यह हुआ कि अब किसी और से पाठ सुनकर याद करने की निर्भरता लगभग समाप्त ही हो गयी | इसके बाद दिल्ली की ओर रुख किया| चन्द्र ने किसी तरह से सी.बी.एस .सी, दिल्ली बोर्ड से इंटर पास किया | गाँव में घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे | जैसे-तैसे दिल्ली विश्वविद्यालय में बतौर प्राइवेट छात्र के रूप में दाखिला लिया | तमाम समस्याओं के बावजूद कई प्रयासों में आखिरकार बी.ए पास कर ही लिया | 
चन्द्रभान 
अब चंद्रभान अपने लिए काम की तलाश में है | बहुत ही मायूसी में कहता है “ आज के ज़माने में जब अच्छे-भले लाखों लोग बेरोजगार घूम रहे हैं तो मुझे कौन पूछेगा | इसके बावजूद मेरे हौसले बुलंद हैं और मैंने हिम्मत नहीं हारी है |” मुझे सबसे अच्छी बात चंद्रभान की यह लगी कि वह अपने स्वास्थ के प्रति जागरूक है | वह कहता है – भगवान् ने मुझे जो कमी देनी थी वह तो दे ही दी, पर इस दिए हुए शरीर को मजबूत और ताकतवर रखना तो मेरी ही जिम्मेदारी है | यही कारण है कि जब भी मौका मिलता है चंद्रभान आसपास के पार्क में बने खुले जिम में कसरत करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते हैं | जैसे की आपको लेख के शुरू में ही आपको बताया था उससे मेरी पहली मुलाक़ात भी ऐसे ही एक पार्क में हुई | जीवन के प्रति भी वह बहुत ही जिंदादिल और सकारात्मक सोच रखता है | मैं आश्चर्यचकित रह गया जब उसने मुझे बताया कि वह व्हाट्स एप और फेसबुक के माध्यम से सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है | इस काम में टेक्स्ट से स्पीच जैसे कई सहायक एप्लीकेशन मदद करते हैं | 
आजकल वह दिल्ली के नंदनगरी में स्थित नेत्रहीनों के लिए बने एक संस्थान में रह रहा है | चंद्रभान के सामने समस्याओं का पहाड़ है लेकिन उसे विश्वास है गिरजा कुमार माथुर के उस गीत पर “मन में है विश्वास , पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन” | नौकरी की तलाश जारी है ..... मुझे भी उम्मीद है उसे मंजिल जरुर मिलेगी | मेरा मानना है कि कठिनाई के दौर से गुजरने वाले के लिए सहायता का हाथ और हिम्मत बंधाने वाले दो मीठे बोल से बढ़ कर और कुछ नहीं | अपने सभी समर्थ और सवेंदनशील पाठको से मेरी अपेक्षा है अगर उनके प्रयास से किसी की मजबूर बीच मझधार में डूबती ज़िंदगी को सहारा मिल जाए तो हम समाज और ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य को कुछ हद तक पूरा कर सकेंगे | अपनी इसी आशा और अपेक्षा के साथ मैं चंद्रभान का फोन नंबर 9599853201 उसकी सहमति से आप सभी से साझा कर रहा हूँ, इस अपील के साथ कि इस संघर्षरत नेत्रहीन लेकिन शिक्षित नौजवान को जीवन में स्थापित करने में मार्गदर्शन करें , सहायता करें अन्यथा कम -से- कम हिम्मत तो जरूर बढ़ाएं |

6 comments:

  1. Purushottam Kumar5 October 2019 at 20:58

    अब यही आप की पहचान है ' हमदर्द '। कितने लोग हैं जो किसी के लिए और वो भी अजनबी, इतनी चिंता करते हैं।
    अपनी ओर से मैं भी भरसक प्रयास करूंगा कि कोई रास्ता निकले।

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  2. Really an inspiration for many..... Stay blessed bro

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  3. Kudos to his courage. Pray God to help in all his endeavors.

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  4. कौशिक जी,
    चंद्रभान को अवश्य ही सफलता मिलेगी। इससे लोगो को सीख लेनी चाहिये। जो हिम्मत हार जाते हैं और अकारण गलत कदम उठा लेते हैं। प्रयास जारी रखने से सफलता अवश्य मिलती है। मैने भी कुछ इस तरह का अनुभव किया है। आवश्यक है ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ाने का। जो हमारी ओर से उनको जीवनदान होगा।

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