Sunday, 28 July 2019

अजब गज़ब : मोहित तिवारी

मोहित तिवारी : सच में गज़ब  
अगर शादी करने जा रहा आपका कोई परिचित बाकायदा यह घोषणा कर दे कि वह शादी में घोड़ी पर नहीं बैठेगा| उसकी घुड़चढ़ी नहीं बल्कि ‘मोटर-साइकिल-चढ़ी’ होगी | बाराती भी बाकायदा बुलेट मोटर साइकिलों के काफिले में पहुंचेंगे | दिल पर हाथ रख कर एक बात सच-सच बताना- यह सब सुनकर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी | आप एक ही झटके में मेरे इस सवाल को यह कहते हुए पूरी तरह से नकार देंगे कि “कौशिक जी ! आप का सवाल बे-सिर पैर का है | यह विदेश नहीं है, भारत है | अभी हमने इतनी तरक्की नहीं की है जहां शादी जैसी परम्पराओं में कोई इतना बड़ा काण्ड कर दें |” अब क्या बताऊँ आपको, पहले मैं भी कुछ-कुछ ऐसा ही सोचा करता था जब तक मैं मोहित तिवारी से नहीं मिला था | जब इसी तरह की बात मैंने उसके मुंह से सुनी, सच मेरा तो दिमाग एक बार पूरी तरह से घूम ही गया था | फिर यह भी सोचा कि जाने भी दो , कई बार बच्चों की बातों में कथनी और करनी में फर्क भी होता है| पर यहाँ मैं पूरी तरह से गलत साबित हुआ | जब मोहित तिवारी की शादी हुई तो कुछ इस निराले अंदाज़ में जिसकी यादें आज भी मेरे ज़हन में ताज़ा हैं | उत्तराखंड के सुदूर जिम कार्बेट नेशनल पार्क के जंगलों में बरात का स्वागत, मोटर साइकिल पर दूल्हा और उसके पीछे दोस्तों का कारवां | भीड़ –भड़क्के से दूर प्रकृति की गोद में, नदी किनारे जयमाला, शादी के फेरे और रस्में|
गज़ब बन्दे की अजब बरात 
इन सब को देख कर मुझे लगा कि और कुछ हो न हो , पर इस बन्दे में कुछ तो है ख़ास | बस तभी से दिमाग में यही ख्याल रह रह कर उमड़ता रहा कि इस पर एक लेख लिखा जाए | समय निकलता गया और एक दिन टी.वी. पर कुछ ऐसा देखा कि लगा कि अब वक्त आ गया है, अब तो उस बन्दे यानी मोहित तिवारी के बारे में कुछ लिखना ही चाहिए | टी.वी. पर क्या देखा, यह भी बताता हूँ , बस ज़रा धीरज रखिए |
दरअसल मोहित मेरे बेटे प्रियंक का हमउम्र और पुराना दोस्त है | घर में आना जाना लगा ही रहता है| घर में घुसते ही गेट से ही उसकी ऊँची खनकदार आवाज जैसे मुनियादी कर देती है कि शहंशाहे आलम तशरीफ ला रहे हैं | दोस्त से मिलने बाद में जाएगा, पहले मेरी मां के हाल-चाल लेने सीधे –धड़धड़ाते उनके कमरे में और उसके बाद सीधे ही जैसे जानदार आवाज का बारूदी पटाखा छूटता है “ अम्मा नमस्ते” | इससे पहले कि मां इस नमस्ते का जवाब आशीर्वाद के रूप में दे सके, उस जानदार, शानदार और गरजदार आवाज की गूंज पड़ोसियों के घर की दीवार से टकरा कर कई बार घर में पहुँच जाती है “ अम्मा नमस्ते ..... अम्मा नमस्ते ... अम्मा नमस्ते !!!!” कभी-कभार मेरे कमरे में भी भूले-भटके गपशप करने आ बैठता | उसी बातचीत के दौरान धीरे-धीरे उसकी जानी-अनजानी जन्मकुंडली परत-दर-परत खुलने लगी जोकि हर तरह से काफी दिलचस्प थी | मोहित के पिता भारत सरकार के गृह मंत्रालय  में एक अच्छे ओहदे पर थे | बदकिस्मती से बीमारी से उनका तभी निधन हो गया जब मोहित ने पढाई पूरी करके नौकरी की दुनिया में कदम रखा ही था | पिता की असामयिक मृत्यु ने शुरू में तो मोहित को एक तरह से कहीं अन्दर तक तोड़ डाला | पर ऐसा कब तक चलता, आखिर मां को भी तो हिम्मत बंधानी थी | सो खामोशी की चादर ओढ़े , शर्मीले से मोहित का धीरे-धीरे रूपांतरण शुरू हो गया एक बिलकुल अलग नए अवतार में जो था मिलनसार, हंसमुख, मस्त मौला, खतरों का खिलाड़ी| बचपन से ही मोहित को मोटर-साइकिल या जिसे आज की शब्दावली के हिसाब से बाइक कहा जाता है, से जबरदस्त जुनून की हद तक लगाव रहा | उम्र के साथ-साथ यह लगाव दीवानगी की हद तक पहुँचने लगा | इस शौक के चक्कर में अपने बाइक से ऐसे फिसले भी कि हाथ-पाँव तक तुड़वा लिए | ऊपर से तुर्रा यह कि दोस्त लोग भी ऐसे जो  टांग के प्लास्टर पर भी कार्टून और सन्देश लिख कर चले जाते |  पर वह शौक ही क्या जो फ्रेक्चर, प्लास्टर और अस्पताल के खतरों से डर जाए | 
गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में 

अब तक मोहित ने कई नामी गिरामी बाइक प्रतियोगिताओं में भाग लिया, पुरस्कार भी जीते और सारे भारत की लम्बी-लम्बी  जोखिम भरी  यात्राएं भी की |
यादगार मिशन: दस हजार किलोमीटर बाइक पर 


बैजू बावरा नहीं - बाइक बावरा 
एक तरह से देखा जाए तो आप कह सकते हैं कि काश्मीर से कन्याकुमारी और सुदूर नार्थ-ईस्ट के राज्यों से लेकर राजस्थान तक शायद ही कोई 70,000 किलोमीटर की सड़कें उनकी बाइक के टायरों के निशान से अछूती रही होगी | कार से भी लगभग इतनी ही भारत की खोजी यात्रा कर चुके हैं | एक बार तो हद ही हो गयी जब मोहित को जरूरत पड़ गयी एक महीने की छुट्टी की, क्योंकि उन्हें बाइक से भारत भ्रमण प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था | कंपनी ने छुट्टी देने में ना-नुकुर की तो श्रीमान जी ने सीधे नौकरी से ही हाथ जोड़ कर विदा ले ली | 
यही वजह थी मोहित की पहाड़ी जंगलों में हुए  बाइक-विवाह समारोह की जहां मैं खुद भी मौजूद था | मज़े की बात यह कि उसकी जीवन साथी विशुमा गौतम भी उसी तरह बाइक की पूरी दीवानी| मोहित की तरह उसने भी दूर –दूर की कठिन यात्राएं बाइक से से की हैं| हिमालय के ऐसे-ऐसे खतरनाक रास्ते जहां से गुजरने मात्र के ख्याल से अच्छे भले इंसान को डर से कंपकपी छूट जाए, वहां से यह बहादुर लड़की अपनी मोटर साइकिल से कई बार फर्राटे से गुजर चुकी है | 
हम किसी से कम नहीं : विशुमा गौतम 

सफ़र लेह का : विशुमा गौतम 

टक्कर  की जोड़ी : मोहित - विशुमा 

प्यारी जोड़ी : मोहित - विशुमा 
अपनी ज़िंदगी में मियाँ-बीवी की ऐसी जोडियाँ बहुत देखी जहां दोनों ही - डाक्टर, वकील, अफसर या फ़ौजी हों पर भैय्या फटफटी के दीवानों की जोड़ी सच में पहली बार देखी | अभी भी दोनों बाइक के साहसिक अभियानों में लगातार जाते रहते हैं | भगवान इस प्यारी सी जोड़ी पर सदा अपना आशीर्वाद बनाए रखे |
अब आता हूँ टी.वी. के उस किस्से पर जिसका जिक्र मैंने शुरू में किया था | अभी कुछ दिन पहले ऐ.बी.पी. न्यूज़ के चेनल पर देखा मोहित एक बहुत ही मनोरंजक और दिलचस्प कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा है | प्रोग्राम का नाम है “अजब देश की गज़ब कहानी" | इस प्रोग्राम के लिए मोहित ने देश के कोने-कोने की ख़ाक छानने में खूब पसीना बहाया और अब  ऐसी विलक्षण प्रतिभाओं को सबके सामने ला रहा है जिन्हें देख कर आप सच में अचम्भे से दांतों तले अपनी उंगली दबा लेंगें | यह प्रोग्राम हर शनिवार को रात आठ बजे प्रसारित हो रहा है |
अच्छा लगता है जब आप देखते हैं कि मोहित तिवारी  जैसा एक नन्हा सा पौधा, ज़िंदगी के हर थपेड़े और मुश्किलों का हंसते-गाते सामना करते हुए, सफलता की सीढ़ियों पर चढते हुए, धीरे-धीरे अब एक हरे-भरे वृक्ष का रूप ले रहा है | आइये हम और आप उसकी सफलता के लिए कामना करें | और हाँ यह तो मुझे विश्वास है कि आप मोहित तिवारी के प्रोग्राम को जरूर देखेंगे |

Thursday, 25 July 2019

धन्यवाद


यह मेरे ब्लॉग लेखन का अर्ध-शतक है अर्थात पचासवां किस्सा | यद्यपि यह कोई इतनी बड़ी उपलब्धि भी नहीं जिसके लिए हाथ में झंडा लेकर छत पर चढ़ कर बाकायदा ढिंढोरा पीटा जाए कि सुनो ... सुनो मेरे प्यारे मित्रो, मैंने बहुत बड़ा तीर मार लिया है | 
मुनियादी सुनिए गौर से, फिर बात  कीजिए और से  

पर एक तरह से देखा जाए तो आज मैं बहुत ही विनीत भाव से धन्यवाद देना चाहूँगा अपने उन सभी पाठक मित्रों का जिन्होंने  मेरे जैसे नौसीखिए ब्लॉगर को हर तरह से प्रोत्साहित किया, समय-समय पर बहुत अच्छे सुझाव भी दिए | इन पाठक दोस्तों में बहुत से वे थे जो नियमित रूप से हर कहानी, किस्से, लेख को बहुत ही आनंद से पढ़ते थे, अपनी प्रतिक्रया भी देते थे जो कि मेरे लिए एक टॉनिक का काम करती थी | ऐसे सभी दोस्तों के नाम मेरे ज़हन में बहुत ही गहराई तक अंकित हैं | ये पाठक भारत से लेकर दूर-दूर के देशों तक से हैं | इस अर्ध-शतक के सफ़र में उन सभी कहानियों के जीते-जागते पात्रों को भी सलाम जिनकी प्रेरणादायक जीवन गाथा से हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिला | ऐसे नामों की एक लम्बी फेहरिस्त है जैसे अध्यापन की दुनिया के प्रोफ़ेसर  डा० वीर सिंह, खरगोश मित्र डा ० चन्द्रभान आनंद, संगीत की दुनिया के चाहत-सौरभ की जोड़ी , दूर अलवर के मेडीकल कालेज से जल्द ही डाक्टर बन कर निकालने वाली श्रंखला पालीवाल, बच्चे-बड़ों सभी को खिलौना रेलगाड़ी में सैर कराने वाले अनिल भैय्या, भारतीय सेना के शूर - वीर स्व० ले० कर्नल एच. सी. शर्मा | इन सब के जीवन संघर्ष को पढ़ कर ही शरीर में एक नई ऊर्जा का जन्म होता है |    

अब आइये आज के विचार पर | पढ़ने की आदत धीरे-धीरे हम सभी में धीरे-धीरे कम होती जा रही है | सबके पास समय की कमी है  | किताबों की दुनिया लगभग विलुप्त होने के कगार पर है | मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ : कम से कम वे सभी प्रबुद्ध पाठक जो पढ़ने के प्रति थोड़ा-बहुत गंभीर हैं, उन्हें जो भी अच्छा लेख, साहित्य, कविता, कहानी मन को छू लेने वाली  मिलती है, उसे अन्य ऐसे सुधि पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करें जिन्हें भाषा और साहित्य से प्रेम है | इसी सन्देश के साथ हर व्यक्ति ज्यादा नहीं, केवल तीन-चार गंभीर पाठकों तक भी ऐसी रचनाओं को पहुंचा देता है तो समझ लीजिए इस व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्वीटर की हवाई दुनिया में रहते हुए हम कुछ गंभीर और सार्थक योगदान कर रहे हैं | इसी छोटे से अनुरोध के साथ एक बार फिर आपका हार्दिक अभिनन्दन | जल्दी ही फिर मिलते हैं किसी नए किस्से-कहानी के साथ |
आपका बातूनी मित्र 
😄 मुकेश कौशिक 😄

Friday, 19 July 2019

हलधर नाग : एक फक्कड़ लोक कवि



सादगी की प्रतिमूर्ति : हलधर नाग 

हलधर नाग - अगर मैं गलत नहीं हूँ तो शायद आप सभी के लिए यह नाम कतई अनजाना लग रहा होगा | इसमें आपका भी कोई दोष नहीं - ऐसा ही होता है जब कोई व्यक्ति टी.वी., अखबारों और सोशल मीडिया के शोर शराबे से दूर , अपनी ही एक अलग सीधी-सादी सी ज़िंदगी में चुपचाप एक उद्देश्य को लेकर कार्यरत है तो भला आप उसे कैसे जान पायेंगे | वह क्रिकेट जगत के विराट कोहली या सिनेमा के रुपहले परदे के शाहरुख़ खां तो हैं नहीं जो एक स्कूली छात्र भी उन पर दीवाना हो | लेकिन वह इन दोनों से इस बात में कम भी नहीं कि उन्हें भी भारत सरकार से प्रतिष्ठित पदमश्री पुरस्कार मिल चुका है | 
राष्ट्रपति से प्राप्त करते हुए : हलधर नाग  
हलधर नाग ओड़ीसा के कोसली भाषा के कवि एवम लेखक हैं। वे 'लोककवि रत्न' के नाम से प्रसिद्ध हैं। हमेशा एक सफेद धोती और नंगे पैर चलने वाले नाग को, उड़िया साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है| नाग का जन्म 1950 में संभलपुर से लगभग 76 किलोमीटर दूर, बरगढ़ जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वह 10 साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई, और वह तीसरी कक्षा के बाद पढ़ नहीं सके। इसके बाद वे एक मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम करने लग गए। दो साल बाद, उन्हें एक स्कूल में खाना बनाने का काम मिल गया, जहाँ उन्होंने 16 साल तक नौकरी की। स्कूल में काम करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि उनके गाँव में बहुत सारे स्कूल खुल रहे हैं। उन्होंने एक बैंक से संपर्क किया और स्कूली छात्रों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया। 

अब तक कोसली में लोक कथाएँ लिखने वाले नाग ने 1990 में अपनी पहली कविता लिखी। जब उनकी कविता ‘ढोडो बरगाछ’ (पुराना बरगद का पेड़) एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई, तो उन्होंने चार और कवितायेँ भेज दी और वो सभी प्रकाशित हो गए। इसके बाद उन्होंने दुबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी कविता को आलोचकों और प्रशंसकों से सराहना मिलने लगी | उन्हें सम्मानित किया गया जिससे उन्हें लिखने के लिए और प्रोत्साहन मिला | उन्होंने अपनी कविताओं को सुनाने के लिए आस-पास के गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया जिसकी सभी लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। यहीं से उन्हें ‘लोक कवि रत्न’ नाम से जाना जाने लगा।
आपको जानकार आश्चर्य होगा की स्वयं तीसरी कक्षा तक पढ़े 69 वर्षीय हलधर नाग की कोसली भाषा की कविता पाँच विद्वानों के पीएचडी अनुसंधान का विषय भी है। इसके अलावा, संभलपुर विश्वविद्यालय इनके सभी लेखन कार्य को हलधर ग्रंथाबली -2 नामक एक पुस्तक के रूप में अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर चुकी है। संभलपुर विश्वविद्यालय में अब उनके लेखन के कलेक्शन 'हलधर ग्रंथावली-2' को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है। 

उन्हें अपनी सारी कविताएं और अबतक लिखे गए 20 महाकाव्य कंठस्थ हैं। उन्हें वह सबकुछ याद रहता है, जो लिखते हैं। आप केवल नाम या विषय का उल्लेख भर कर दीजिए और वह बिना कुछ भूले सब कविताएं सुना देंगे। वह रोजाना कम से कम तीन से चार कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जहां वह कविता पाठ करते हैं। उनकी कवितायें सामाजिक मुद्दों के बारे में बात करती है, उत्पीड़न, प्रकृति, धर्म, पौराणिक कथाओं से लड़ती है, जो उनके आस-पास के रोजमर्रा के जीवन से ली गई हैं। उनके विचार में, कविताओं में वास्तविक जीवन से मेल और लोगों के लिए एक संदेश होना चाहिए| वे कहते हैं “कोसली में कविताओं में युवाओं की भारी दिलचस्पी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। वैसे तो हर कोई एक कवि है, पर कुछ ही लोगों के पास उन्हें आकार देने की कला होती है।“ 

हलधर नाग पैरों में कभी कुछ नहीं पहनते। सादगी पसंद इस कवि का ड्रेस कोड धोती और बनियान है। जब वह पद्मश्री का सम्मान राष्ट्रपति के हाथों प्राप्त कर रहे थे तब भी वह नंगे पाँव और धोती बनियान में ही थे | इसी को तो कहते हैं सादगी और ज्ञान का अद्भुत संगम जो विगत काल में महाकवि निराला की जीवन शैली में देखने में नज़र आता था | हलधर नाग की कहानी व्यक्त करती है उस घोर गरीबी में घिरे संघर्ष को जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी | यह सीधा सादा इंसान अपने ज्ञान की ज्योति की मशाल से समाज को प्रकाशित करता, एक सन्देश देता हुआ चलता रहा अकेला और आज भी चला जा रहा है ........ नंगे पाँव, धोती बनियान में | 



Monday, 15 July 2019

एक परी , एक गौरैया : एक याद




                              सुश्री शशि प्रभा 
पिछले दिनों फेसबुक पर एक बड़ी प्यारी सी कविता पढ़ने को मिली जिसे सुश्री शशि प्रभा ने लिखा था | बहुत ही सीधे-सच्चे, सरल शब्दों में लिखी इस कविता में कोई शब्दों का मायाजाल नहीं था, आडम्बर नहीं था, सर के ऊपर से सीधे निकल जाने वाला कोई तथाकथित दार्शनिक अंदाज नहीं था | इसमें समायी थी एक अनगढ़, भोलेपन की भावनाओं को व्यक्त करती, दिल में कहीं बहुत भीतर से उठने वाली टीस | इस कविता को पढ़ने के बाद यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि यह सिर्फ चंद पंक्तियाँ नहीं है, यह कहीं न कहीं लिखने वाले की आपबीती है | इन्हें पढ़ने के बाद आप भी शायद मेरी बातों से सहमत हो जायेंगे इस लिए अधिक परिचय की आवश्यकता भी नहीं | इन्हें आप किसी प्रबुद्ध आलोचक की पैनी दृष्टि से नहीं वरन एक आम पाठक की नज़र से पढेंगे तो अधिक आनंद आयेगा |
दिल को छू लेने वाली सुश्री शशि प्रभा की यह दो कवितायेँ किसी की याद में समर्पित हैं | इन्हें आप तक पहुंचाने का लोभ मैं संवरण नहीं कर सका | 

 1. एक याद : नन्ही परी 


कलियों वाली फ्राक पहन कर,
सपनों में वो आती है’
छूने को बढ़ती हूँ आगे 
दूर कहीं खो जाती है | 

मैं रोती-रीती सी पगली, 
वो तो बड़ी सयानी थी ,
करती थी वो प्यार सभी से ,
अपने दिल की रानी थी|

लगती थी जब भूख भी उसको ,
तभी मैं रोटी खाती थी ,
कहते थे सब बड़ी निराली,
दो बहनों की जोड़ी थी | 

चली गयी वह एक दिन छलिनी,
प्यारी सी अलबेली सी,
छोड़ गयी मुझको रीता सा,
वो ही तो सखी-सहेली थी |

आसमान की परियां कुछ-कुछ ,
ऐसी ही होती होंगी,
तारों के झुरमुट से मिलकर, 
तारा बन बैठी होगी |



2. एक याद : गोरैया 


कहाँ गयी वो गौरैया ,
कहाँ डाला नया बसेरा है ,
कौन गाँव किस देश में बहना, 
जा कर डाला डेरा है | 

डाल-डाल पर बैठी रहती ,
चहकाती बतियाती थी ,
न जाने क्या प्लान बना कर ,
एक साथ उड़ जाती थी |

छोटे-छोटे पग पग भरती ,
गर्दन मटका इतराती थी 
घर आँगन मुंडेर पर बैठी ,
फुदक-फुदक मन भाती थी | 

बीते दिन और साल महीने,
नज़र कहीं न आती हो ,
बाट जोहते वृक्ष बिचारे,
क्यों लौट न वापिस आती हो | 

इंतज़ार में मौन खडा वो ,
वृक्ष कभी न थकता है ,
चिडियों के संग इन पेड़ों का ,
कितना प्यारा रिश्ता है |

कौन दिशा से ये गोरैया ,
कभी तो वापिस आयेगी ,
मूक खड़े इन वृक्षों की ,
फिर से शान बढायेगी |

Friday, 12 July 2019

भारत माता की जय


भारत माता मंदिर
सच कहूँ तो मैं कोई पोंगा पंडित नहीं हूँ | कर्मकांडी भी नहीं हूँ | हाँ उस ऊपर वाले ईश्वर में अलबत्ता जरुर आस्था रखता हूँ | कभी-कभार मंदिर में भी अगर जाना पड़े तो मत्था टेक लेता हूँ उसी श्रद्धा से जिससे गुरुद्वारे में अपना शीश नवाता हूँ | सबकी अपनी - अपनी सोच है , अपने विचार हैं | मेरा मानना है कि धर्म के मामले में किसी पर भी अपनी राय, अपने विचार दूसरे पर नहीं थोपने चाहिए | अब अगर हम मंदिर की बात करते हैं तो मन में एक ख़ास तरह की परिकल्पना उभरती है - देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजा धजा पूजा-अर्चना का पवित्र स्थान | पर कभी-कभी कुछ ऐसा होता है जिससे आपको अपनी परम्परागत सोच से हट कर अपने विचार बदलने को मजबूर होना पड़ता है | ऐसा ही कुछ –कुछ मेरे साथ हुआ जब मैं फिलहाल में हरिद्वार की यात्रा से लौटा |


हरिद्वार का नाम आते ही मन में याद आ जाती है गंगा मैय्या , हर की पौड़ी और हरिद्वार- ऋषिकेश स्थित अनगिनत छोटे –बड़े मंदिर और आश्रम | परिस्थितियां कुछ ऐसी बन पड़ी कि अपने एक बड़े भाई तुल्य अभिन्न मित्र श्री विजय कुमार उपाध्याय जी के साथ हरिद्वार जाना पड़ा | उनके सुझाव पर ही दर्शन करने पहुंचे भारत माता मंदिर | हो सकता है आप में  से बहुत से पाठक मित्र  इस मंदिर के बारे में पहले से ही जानते हों, पर जो इससे अपरिचित हैं उन्हें यह जानकारी रोचक लगेगी | वास्तव में अपने नाम के अनुरूप ही भारत माता मंदिर अपने आप में एक व्यापकता समेटे हुए है | यह हरिद्वार में गंगा किनारे, सप्तऋषि आश्रम मार्ग पर बना हुआ है | यह लगभग 180 फीट ऊँचा है जिसमें आठ मंजिलें हैं | हर मंजिल पर आपको एक अलग ही थीम और विचारधारा का अनुभव होता है | 

मात्र दो रुपये का टिकट लेकर मंदिर की सबसे ऊपर की आठवीं मंजिल तक आप सीधे लिफ्ट से पहुँच सकते हैं | यहाँ भगवान शिव का मंदिर है | यहाँ से आपको आध्यात्मिक शान्ति के अलावा हरिद्वार की प्राकृतिक सुन्दरता के भी दर्शन होते हैं | 

वापिस नीचे सीढ़ियों से उतरने पर सातवीं मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों को देखा जा सकता हैं । भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उनके मत्स्य , कुर्म , वाराह , नर्सिहा , वामन , परशुराम , राम , कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतारों की सुन्दर झाकियां दर्शायी गयी है | 

छठवीं मंजिल पर बने “शक्ति मंदिर” में आदि शक्ति की प्रतीक विभिन्न देवियों - माँ दुर्गा , पार्वती , राधा , काली , सरस्वती आदि की मूर्तियाँ प्रदर्शित की गयी हैं|
अभी तक जो भी हमने देखा वह सब अन्य दूसरे मंदिरों जैसा ही था | पर अब जैसे ही आप पांचवी मंजिल पर उतरते हैं, आपको अब एहसास होने लगता है कि यह मंदिर दूसरे अन्य सामान्य मंदिरों से अलग क्यों है | इस खंड में भारत के विभिन्न प्रदेशों और राज्यों की संस्कृति को चित्रों के माध्यम से बहुत ही रोचक तरीके से दिखाया गया है | यहाँ की दीर्घा का एक चक्कर मात्र लगाने से आपको कर्नाटक, गोवा, गुजरात, राजस्थान, जम्मू –काश्मीर, कश्मीर पंजाब, हिमाचल प्रदेश का मानो सजीव दर्शन करा देता है | यह खंड विभिन्न धर्मों की झांकियां ,इतिहास ,एवं भारत के विभिन्न भागों की लोक कला को सुंदरता से प्रदर्शित करता  है । 

चौथी मंजिल पर है संत मंदिर | यहाँ उन सब संत पुरुषों और समाज सुधारकों की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं जिन्होनें धर्म और समाज के क्षेत्र में एक नयी चेतना लाकर अभूतपूर्व योगदान दिया | यहाँ आपको बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मगुरुओं के भी दर्शन होंगें जैसे - गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, महर्षि बाल्मिकी , संत ज्ञानेश्वर, गुरुनानक जी, गुरु गोविंद सिंह जी, स्वामी विवेकानंद , स्वामी दयानंद सरस्वती , महर्षि अरविन्द , परमहंस रामकृष्ण जी | 

तीसरी मंजिल बना खंड समर्पित है स्त्री शक्ति के नाम | इस मंदिर का नाम है “ मातृ मंदिर” | प्रेम, वात्सल्य और भक्ति और समाज सेवा के प्रतीक रानी पद्मिनी , सती सावित्री , सती चमखर देवी,  मीरा बाई , हेलन केलर , एनी बेसेंट की मूर्तियां यहाँ स्थापित हैं | अब आपको भी लग रहा है ना आश्चर्य | अभी देखते जाइये आगे भी | 

दूसरी मंजिल पर है शूर मंदिर | अपने नाम के अनूरूप यह मंदिर देश के वीर सपूतों को समर्पित है जिनके योगदान और बलिदान को आज का भारत कभी नहीं भूल सकता |इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर लिखी राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की देश के बलिदानियों को वन्दना करती कविता की  यह पंक्तियाँ पढ़कर चलते कदम मानों बरबस ठिठक गए :
तुमने दिया देश को जीवन,
देश तुम्हें क्या देगा,
अपनी आग, तेज रखने को,
नाम तुम्हारा लेगा |

मंदिर के इस खंड  में सरदार पटेल, महात्मा गाँधी , सुभाष चन्द्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री , गुरु गोविन्द सिंह , महाराणा प्रताप , शिवाजी महाराज , झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई , भगत सिंह , सुखदेव , चन्द्र शेखर आज़ाद, राजगुरु आदि भारत माता के वीर सपूतों की मूर्तियाँ लगी है | यह सब देखकर मन सोचने पर विवश हो जाता है कि समय काल के साथ-साथ यही महापुरुष हजारों वर्ष के अंतराल पर देवताओं के रूप में शायद याद किये और पूजे जायेंगे | 

भारत माता की प्रतिमा 
सबसे नीचे मंदिर की पहली मंजिल पर तिरंगा  झंडा हाथ में लिए भारत माता की भव्य मूर्ति है | साथ में ही धरती पर रेत , मिट्टी और सीमेंट के मिश्रण से बना विशाल भारत के नक़्शे का माडल है जिसे देखने मात्र से ही बहुत ही आलौकिक अनुभव होता है | रात के समय रंग –बिरंगी रोशनी में इसकी छटा देखते ही बनती है | 
इस मंदिर के दर्शन करने के बाद आपको एक विचित्र अनुभव होता है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है | एक ओर आध्यात्मिक शान्ति का अनुभव होता है लेकिन साथ ही साथ हमें गर्व की अनुभूति होती है भारत भूमि की ऐतिहासिक विरासत के बारे में जान कर| यह इतिहास हमें  बताता है कि हजारों वर्ष पूर्व जब आज के तथाकथित उन्नत पश्चिमी देश के लोग भेड़-बकरियां चरा रहे थे तब यहाँ भारत देश में वेद और पुराणों की रचना की जा रही थी | यह मंदिर हमें याद दिलाता है उन समाज सुधारकों के योगदान को जिन्होंने समाज में फ़ैली कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई और समाज को नयी चेतना और दिशा दी  | इस मंदिर में आकर हमारा सर श्रद्धा से झुक जाता है उन शूर-वीर स्वतन्त्रता सैनानियों के लिए जो इस देश को आज़ाद कराने के लिए हंसते हुए अपनी जान पर खेल गए | यहाँ आकर मुझे लगा मानों भगवान् , देवताओं और महापुरुषों में बस केवल एक महीन सी विभाजन रेखा है | इन सबके सद्कर्मों का आशीर्वाद ही तो है जो आज हम सब आज़ादी की हवा में सांस ले रहे हैं | शत शत नमन उन सब को | 
ब्रह्मलीन गुरु महामंडलेश्वर सत्यमित्रानंद गिरि जी 
साथ ही नमन उस सोच को जिन्होनें इस मंदिर की स्थापना की | इस मंदिर का निर्माण प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु महामंडलेश्वर सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज ने करवाया था | मई 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उदघाटन किया था | अभी पिछले माह ही 25 जून 2019 को 87 वर्ष की आयु में स्वामी जी का निधन हो गया |  समाज के प्रति विभिन्न अभूतपूर्व योगदान और परमार्थ सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित भी किया जा चुका है | ऐसे गौरवशाली महापुरुष की श्रद्धांजली में केवल यही सबसे सार्थक शब्द हो सकते हैं : 
                 |भारत माता की जय |

Monday, 8 July 2019

तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय

(इस जानकारी पूर्ण लेख के सभी तथ्य और फोटो देहरादून निवासी  श्री राय धर्मेश प्रसाद के सौजन्य से प्राप्त हुए जिसके लिए उनका हार्दिक धन्यवाद ) 


राय धर्मेश प्रसाद 
अक्सर लोग कहा करते हैं – दोस्ती करो या दुश्मनी, जो भी करो जम कर करो | सीधी सपाट बात है, आसानी से समझ भी आ जाती है और ठीक भी लगती है | दोस्ती के किस्से तो आप लोगों ने खूब सुने होंगे और दुश्मनी के भी | इतिहास तो ख़ास तौर से दुश्मनी के किस्से-कहानियों से भरा पड़ा है | राजे – महाराजाओं और नवाबों को तो मानों सिवाय जंग लड़ने और खून बहाने से फुर्सत ही नहीं होती थी | पर शत्रु को इज्ज़त और सम्मान देने वाली बात हो तो ऐसे लोग तो बिरले ही होते हैं | रामायण का किस्सा आप को याद होगा जब तीर लगाने पर रावण प्राण त्यागने वाला था तब श्री राम ने लक्ष्मण को कहा कि रावण बहुत विद्वान और प्रकांड पंडित है उनसे अंतिम समय में कुछ ज्ञान की सीख प्राप्त कर लो | लक्ष्मण ने रावण के सर की ओर खड़े होकर कुछ ज्ञान की बातें बताने को कहा जिस पर रावण चुप रहा | इस पर श्री राम ने ही लक्षमण को समझाया था कि आदर पूर्वक चरणों में बैठ कर ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है | इसी प्रकार सिकंदर –पोरस का किस्सा भी याद आ जाता है | युद्ध में हारने पर राजा पोरस को बंदी बना कर सिकंदर के सामने पेश किया जाता है| सिकंदर राजा पोरस से पूछते हैं कि तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाए | जवाब मिलता है – जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है | कहते हैं इस ज़वाब ने सम्राट सिकंदर को इतना प्रभावित किया कि उसने राजा पोरस को न केवल आज़ाद कर दिया बल्कि जीता हुआ राज्य भी वापिस कर दिया | यह थे इतिहास के पन्नों से सुने-सुनाये कुछ किस्से जो कितने सच्चे या झूठे हैं कोई दावे के साथ नहीं कह सकता | पर बहादुर दुश्मन को भी इज्ज़त और सम्मान देने का एक सचमुच की ऐतिहासिक घटना को प्रमाण के साथ मेरी जानकारी में लाने का श्रेय देहरादून निवासी मेरे एक अत्यंत घनिष्ठ सहकर्मी मित्र श्री धर्मेश राय प्रसाद को जाता है | उनके द्वारा बताई गयी जानकारी को मैंने आप तक पहुंचाने से पहले सत्यता की कसौटी पर अनेक माध्यमों से परखा और ठीक पाया | 

तो चलिए बात शुरू करते हैं और पहुँच जाते हैं आज से 200 लगभग साल पीछे | यह कहानी शुरू होती है वर्ष 1814 में जब देहरादून घाटी का क्षेत्र नेपाली गुरखाओं के शासन के आधीन था | नालापानी की पहाड़ियों पर खालंगा नाम के स्थान पर एक किला था जिसकी सुरक्षा का जिम्मा नेपाली सेनापति वीर बलभद्र थापा के अधीन था | इस किले मे लगभग 600 सैनिक अपने परिवारों के साथ रहते थे | अपने साम्राज्य को ज्यादा से ज्यादा विस्तार देने की नीति के अनुसार अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज ने सहारनपुर की ओर से देहरादून पर हमला बोल दिया | यहाँ पर गोरखाओं के सेनापति बलभद्र थापा ने ब्रिटिश सेना के कमाण्डर जनरल जिलेस्पी के साथ बड़ी बीरता से युद्ध किया था। ब्रिटिश सेनाओं के पास उस समय के आधुनिक हथियार बंदूके, तोपे 3000 से अधिक सैनिक थे। ब्रिटिश कमाण्डर जिलेस्पी को लगता था कि वह आसानी से कुछ ही समय में युद्ध को जीत लेंगे पर यह इतना आसान नहीं था। दूसरी तरफ गोरखाओं के सेनापति बलभद्र के पास लगभग 600 सैनिक थे जिनमे औरतें और बच्चे भी शामिल थे और हथियारो के नाम पर तलवारें, भाले और तीर कमान ही थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपने युद्ध कौशल से अंग्रेजों का पूरे एक महीने तक पूरी दृढता से सामना किया। इस लड़ाई में जनरल जिलेस्पी शहीद हो जाते है। अंत में और कोई रास्ता न देख कर, जब अंग्रेजो को लगा की ये युद्ध जीतना असंम्भव है, तो उन्होंने इस किले तक जो पीने का पानी आता था उसकी सप्लाई बंद करवा दी | इसके बाद गुरखा सैनिक 3 से 4 दिनों तक प्यासे ही लड़ते रहे | लेकिन जब वीर बलभद्र थापा को लगा कि बिना पानी पिए यह युद्ध लड़ना सम्भव नहीं है तो वो अपने बचे-खुचे 70 सैनिको के साथ किले का द्वार खोल देते है और अंग्रेजो के सामने उनकी पूरी सेना आत्मसमर्पण कर देती है लेकिन वह खुद वहाँ से अंग्रेजो को चकमा देकर भाग जाते है। कई लोग यह भी मानते है की वह भी इस युद्ध में शहीद हो गए थे। कुछ इतिहासकारों का मत है कि है कि गोरखा सेनापति अफगानी फौज के साथ युद्ध करते समय शहीद हुऐ जिसमे यह राजा रणजीत सिंह का साथ दे रहे थे। सच्चाई जो भी रही हो , पर इतना जरूर है कि अंग्रेज गोरखा सेनापति और उसकी सेना की बहादुरी के कायल हो गए | इसके बाद इस बहादुरी को सम्मान देते हुए ही अंग्रेजों ने इस युद्ध में जो सैनिक शहीद हुऐ थे अपने उन अंग्रेज साथियों के साथ –साथ उन सभी गोरखा सैनिकों के शौर्य और की याद में भी इस स्मारक का निर्माण करवाया |
अपनी कहानी खुद बोलते शिला लेख 

इतिहास की गवाही 

आपस में लड़े, पर मर कर भी साथ-साथ   
यह शायद दुनिया का अकेला ऐसा युद्ध स्मारक है जिसमें विजयी सेना के साथ-साथ पराजित सेना के सेनापति की भी बहादुरी की प्रशंसा में सयुंक्त श्रद्धांजली के रूप में स्थापित किया  गया हो | इस स्मारक के शिलालेख में गोरखा सेनापति को “बहादुर दुश्मन ” के रूप में सम्मान दिया गया है | अगल-बगल में खड़े दो विजय स्तम्भ जो एक दूसरे के दुश्मन सेनापति की याद में हैं मानों आज स्वर्गीय शैलेन्द्र के पुराने गीत की याद दिला रहे हैं : –
तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय,
ना तुम हारे , ना हम हारे | 
सफ़र साथ जितना था हो ही गया तय , 
ना तुम हारे, ना हम हारे |