गिरी नदी और पर्वतों के बीच आज का सिरमौर गाँव |
आप पूछ सकते हैं इस जगह का नाम राजबन क्यों है ?
राजबन का अर्थ है राजा का वन यानि राजा का
जंगल | अब यह इस जंगल में राजा कहाँ से आ गया यह जानने के लिए आप को राजबन
से और आगे सड़क के रास्ते ऊपर लगभग 4 कि.मी.
चलना पड़ेगा | नीचे पर्वतों के बीच खाई में एक छोटा सा
गाँव बसा है जिसका नाम है सिरमौर, जिसके पीछे गिरी नदी बह रही है | वही सिरमौर जिसके नाम पर इस पूरे जिले का नाम
पड़ा है | ज्यादातर मामलों मे जिले के मुख्यालय के नाम पर ही जिले का नाम पड़ता है
पर यहाँ की बात ही निराली है | इस जिले का मुख्यालय है नाहन नाम के शहर में पर यह
जिला सिरमौर के नाम से जाना जाता है | सिरमौर
पर राजपूत वंश के शासकों ने शासन किया था| सिरमौर भारत में एक स्वतंत्र
साम्राज्य था,
जिसकी स्थापना जैसलमेर के राजा रसलु ने लगभग वर्ष 1090 में की थी | इनके एक पुरखे का नाम सिरमौर था जिसके नाम पर
इन्होंने अपने राज्य को सिरमौर का नाम
दिया गया था। बाद में अपने मुख्य शहर नाहन
के नाम पर ही राज्य को भी नाहन के
नाम से ही जाना जाता रहा ।
कहा जाता है कि सबसे पहले सिरमौर के राजा का महल
उसी जगह पर था जहां आज यह सिरमौर नाम का गाँव है | दूसरे की सुनी-सुनाई बात पर क्या जाना, हाँ इतना
जरूर है कि लगभग 40 साल पहले, जब मेरी पहली पोस्टिंग राजबन सीमेंट फेक्ट्री में
हुई थी तब एक दिन घूमते-घूमते सिरमौर गाँव तक गया था और वहाँ पर उस पुराने महल के
खंडहर मैंने स्वयं देखे थे | समय की मार के साथ उन खंडहरों का भी अब नामों-निशान
मिट चुका है | उन खंडहरों के पत्थरों तक को गाँव के लोगों ने अपने मकान बनाने में
लगा दिया | हाँ अगर किसी धरोहर को उनकी छूने की हिम्मत नहीं हुई तो वह थी प्राचीन
शिव मंदिर और गुफ़ा वाला मंदिर, जो कि अभी भी सुरक्षित है | मेरे पुराने मित्र श्री मुन्ना राम ने, जो सिरमौर गाँव के ही निवासी हैं, उस जगह के कुछ फोटो उपलब्ध कराये हैं |
श्री मुन्नाराम |
गुफ़ा मंदिर |
प्राचीन गुफा वाला मंदिर |
महल की प्राचीन मूर्तियों के अवशेष ( मंदिर के सभी फोटो श्री मुन्ना राम के सौजन्य से प्राप्त हुए ) |
मेरे पिता, जोकि एक प्रख्यात कवि थे, अक्सर मेरे पास राजबन भी आया करते थे | उन दिनों के दौरान उन्हें एक बार सिरमौर के खंडहर
दिखाने ले गया | खंडहरों को देखकर
उनके कवि मानस-पटल से एक कविता ने जन्म लिया जिसमें राजा और नटनी की कहानी को
एक नया ही आयाम मिला | आप भी आनंद लीजिए उस कविता का :
कवि स्व० श्री रमेश कौशिक |
नटनी
को
वचन दिया राजा ने
यदि कच्चे धागे पर चलकर
कर लेगी नदी पार
और वापस चली आएगी
तो आधा राजपाट उसका पाएगी |
वचन दिया राजा ने
यदि कच्चे धागे पर चलकर
कर लेगी नदी पार
और वापस चली आएगी
तो आधा राजपाट उसका पाएगी |
नटनी
ने विश्वास किया
राजा का
आखिरकार प्रजा थी उसकी
राजा का
आखिरकार प्रजा थी उसकी
कच्चे धागे पर चलकर
जब नदी पार कर ली उसने
और लगी वापस आने
तब राजा ने
आधा राजपाट देने के डर से
बीच धार कटवाया धागा |
गिरी नदी में नटनी
मर कर दूर बह गई
तब से नाम नदी का पड़ गया ‘गिरी’
विशवासघात के कारण
राजा का सिरमौर राज्य हो गया नष्ट |
अब आप कहेंगें
राजा बहुत बुरा था
नटनी से छलघात किया था
लेकिन वह भी तो मूरख थी
क्यों विश्वास किया राजा का |
राज अगर मिल भी जाता
तो भी क्या करती –
नाचा करती |क्या करती .... बस नाचा करती 😄 |
लगभग
चालीस वर्ष पहले लिखी यह कविता आज के राजनीतिक सन्दर्भ में भी सन्देश दे रही है कि
अयोग्य व्यक्ति के हाथ
में सत्ता आना कितना हानिकारक हो सकता है |
Very beautifully worded !!💐💐!!
ReplyDeleteराजबन अर्थात राजा का वन, इस स्थान पर आपका लेख एक सराहनीय कदम है, क्योंकि सिरमौर रियासत के बीते हुए इतिहास का पन्ना आपने याद करवा दिया।
ReplyDeleteसिरमौर के राजा का महल भयानक एवं विकराल गिरी नदी में गर्क गया, जिसका कारण नटणी का श्राप माना जाता है-" न आर वसे न पार वसे सिरमौर लोका न वसे"
ऐसा कहा गया कि नटणी ने गिरी में गिरते समय यह वाक्य श्रापरुप कहे।
और कयी लोगों की मान्यता अभी भी कायम है कि यहां का स्थानीय बसने के उपरान्त उजड़ जाता है।