Tuesday 17 November 2020

फकीर बादशाह

यूं तो सलमान और नेमत दो सीधे-सादे नाम लगते हैं पर मेरे लिए इनमें एक मजेदार किस्सा छुपा है । एक ऐसा किस्सा जिसे सुनकर आपके होंठों पर भी एक मीठी से मुस्कराहट आ जाएगी । इस कहानी के तीन पात्र हैं – मेरा शरारती कुत्ता चंपू और उसके दो दोस्त – सलमान और नेमत । 
नेमत - सलमान ( फकीर बादशाह )
नोएडा में मेरे घर के सामने से गुजरती कॉलोनी की सड़क अक्सर व्यस्त ही रहती है । छोटी – मोटी मोटर गाड़ियों के अलावा रेहड़ी पर सब्जी – भाजी बेचने वालों का भी ताँता लगा ही रहता है । घर के भीतर बैठा मेरा कुत्ता चंपू यूं तो देखने में लगेगा जैसे आंखे बंद किए ध्यान मुद्रा में बैठा है पर उसके कान हमेशा रहते हैं चौकस । हर आवाज़ के प्रति सजग – चाहे वह घर के अंदर की हो या बाहर से आने वाली । अपने मतलब की आवाज पर चंपू की प्रतिक्रिया मौके के अनुसार ही होती है । जैसे किसी अनजान आदमी या किसी भिखारी की भनक पाते ही उसकी दहाड़ किसी शेर से कम नहीं होती । इसके विपरीत किसी परिचित व्यक्ति की आहट पर चंपू की कूँ – कूँ की स्वर ध्वनि में से मानों संगीत की स्वर – लहरी फूटती प्रतीत होती हैं । ऐसा ही कुछ हाल होता है चंपू का जब वह एक खास रेहड़ी वाले की आवाज़ सुनता है । उस आवाज़ पर मानों वह पागल सा हो जाता है । वृंदावन में कान्हा की बंसरी सुनकर गैया जैसे भाव विभोर हो उठती थीं कुछ -कुछ ऐसा ही हाल चंपू का हो उठता है । वह दौड़ कर मेरे पास आता है और अपनी पूँछ हिलाते हुए तरह - तरह की मार्मिक आवाजें निकालते हुए मानो विनती करता है कि दरवाजा खोल दो , मुझे बाहर जाने दो।दरअसल इस सब्जी की रेहड़ी से आने वाली आवाज़ें होती हैं चंपू के दो नन्हे दोस्तों की – सलमान और नेमत । दोनों भाई हैं और सब्जी बेचने में अपने परिवार की हाथ बांटते हैं । बड़े भाई सलमान की उम्र है दस वर्ष और छोटे नेमत की सात वर्ष । चंपू जैसे ही घर के सात तालों की कैद तोड़ता हुआ सलमान – नेमत के सब्जी ठेले पर पहुँचता है वहाँ उसका इतना जबरदस्त स्वागत होता है जितना शायद डोनाल्ड ट्रम्प का भी भारत आने पर नहीं हुआ होगा ।
चंपू की पार्टी 
चंपू के लिए मनपसंद मटर , आलू , टमाटर और फलों की पार्टी मानों इंतजार ही कर रही होती है । सारी दुनिया से बेखबर ये तीनों दोस्त एक अद्भुत संसार में रम जाते हैं । एक ऐसा संसार जिसमें कोई हिन्दू – मुस्लिम का भेद नहीं , अमीरी – गरीबी की ऊँच – नीच नहीं । इनकी दुनिया में अगर है तो केवल प्रेम – निस्वार्थ , निष्कपट प्रेम और मानवता । सबसे मज़ेदार बात यह कि हमें सब्जी – भाजी बेचने के वक्त वे दोनों नन्हे सौदागर किसी भी किस्म की रियायत नहीं देते हैं पर चंपू को पार्टी देते समय उनके लिए चंपू की पसंद की महंगी से महंगी फल- सब्जी सौ रुपये किलो के टमाटर की भी कोई अहमियत नहीं होती । खुद गरीबी के हालात में गुजर – बसर करने वाले बच्चों के दिल में बसी दरियादिली को देख कर टाटा और अंबानी की अमीरी भी एक बारगी जैसे पानी भरती प्रतीत होती है । फकीर होते हुए भी ये बच्चे किसी भी वैभवशाली बादशाह से कम नहीं । कहने को यह किस्सा छोटा सा है पर समझने वाले के लिए चंपू – सलमान और नेमत की दुनिया बहुत कुछ सीख दे रही है ।