Thursday 9 April 2020

कौआ कान ले गया


मुझे नहीं पता आपमें से कितनों ने यह कहावत सुनी है – “कौआ कान ले गया”। एक शख्स को किसी शरारती बंदे ने आकर डरा दिया कि तुम्हारा कान कौआ ले गया । उस आदमी ने भी आव देखा ना ताव, बस सरपट दौड़ लगा दी कौए के पीछे । इस कहावत को जब भी मैं सुनता हूँ , मुझे बरसों पुराना एक किस्सा याद आ जाता है ।यह भी सच है जब भी मुझे कोई किस्सा याद आता है तो मेरे पेट में दर्द शुरू हो जाता है जो तब तक शांत नहीं होता जब तक मैं उस किस्से को आपके साथ शेयर ना करलूँ । चलिए, फिलहाल तो जो पेट की मरोड़ आज उठ रही है पहले उसी का इंतजाम करते हैं । 


सी. सी. आई.  राजबन टाउनशिप 
बात यह उन दिनों की है जब मैं हिमाचल प्रदेश की सीमेंट फैक्ट्री में तैनात था । फैक्ट्री के साथ ही कंपनी का रिहायशी टाउनशिप था जिसमें सभी छोटे-बड़े कर्मचारी और अधिकारी रहा करते थे । यह टाउनशिप अपने-आप में सभी सुविधाओं से भरा पूरा था – क्लब, हेल्थ सेंटर, स्कूल, खेल-कूद के मैदान, पार्क, मंदिर, डाकखाना । बड़े नगरों की भीड़-भाड़ से दूर, उस वीरान से पहाड़ी जंगलों में उस छोटी सी कॉलोनी में बहुत ही प्यारा भाई – चारा था सबके बीच। उस दिन भी हमेशा की तरह आफिस से काम -काज निबटा कर अपने फ्लेट पर शाम के समय वापिस लौटा था । वहाँ की ज़िंदगी का आम ढ़र्रा भी यही था – समय पर निद्रा देवी के आगोश में चले जाओ जिससे सुबह की शुरुआत भी तड़के पाँच से छ: के बीच हो सके । अपनी दिनचर्या के अनुसार घर आकर बीवी -बच्चों के साथ गप-शप और टी.वी की दुनिया में टाइम पास किया, खाना खाया और समय पर सोने चला गया । अभी नींद का पहला झोंका आया ही था कि अचानक दरवाजे की घंटी टन-टना उठी । आँखे मसलते हुए बेमन से उठा कि इस बेवक्त कौन कमबख्त आ टपका । दरवाज़े पर कोई कमबख्त नहीं था, वहाँ मौजूद था मेरा पुराना लँगोटिया – खुशमिजाज़ दोस्त प्रमोद सतीजा ।
उस ज़माने के प्रमोद सतीजा
वही दोस्त आज 
 घर में घुसते ही अपनी सदाबहार चहकती आवाज में बोला – “भाई जी यहाँ क्या कर रहे हो, ज़रा बाहर निकल कर तो देखो क्या हो रहा है ?” अब मैं नींद का मारा उस समय बाहर तो क्या देखता – पहले तो अपने परम-प्रेमी मित्र की प्यारी-प्यारी छवि निहारी, उसके बाद दीवार घड़ी की ओर नज़र दौड़ाई जो आधी रात होने का प्रमाण दे रही थी । दोस्त ने पहलवान खली की तरह से मेरा हाथ मजबूती से पकड़ा और घर से बाहर एक तरह से धकेलते हुए बोले – “आओ तुम्हें शिव जी की शक्ति दिखाता हूँ”। अब मेरी हालत उस पिद्दी से मरियल इंसान की हो रही थी जो किसी भारी भरकम थानेदार की चपेट में आ चुका हो । भोले बाबा की शक्ति तो बाद में देखता, उस समय तो अपने पहलवानी मित्र की फौलादी गिरफ़्त की ताकत की मार से छटपटा रहा था । अपने तेज कदमों से मुझे अपने साथ लगभग घसीटते हुए प्रमोद भाई चले जा रहे थे । मैंने फिर पूछा “ भाई खैरियत तो है ? इरादा क्या है ? कहाँ लेकर जा रहे हो मुझ गरीब को ? कुछ तो तरस खाओ ।” मित्र मुस्कराते हुए बोले – “घबराओ नहीं । किसी गलत जगह नहीं ले जा रहा । ऐसा चमत्कार दिखाने ले जा रहा हूँ – सारी ज़िंदगी याद रखोगे । ” मरता क्या न करता .. बस यही सोच कर मैंने चुपचाप खुद को उस अपहरणकर्ता के हवाले किया हुआ था और सोच रहा था कि आधी रात को पता नहीं किसी शक्ति के दर्शन करवाने के लिए मुझे ले जा रहा है या देवी के चरणों में मेरी बलि चढ़ाने का इरादा है ।
कॉलोनी का शिव मंदिर 
दूर से ही देखा कि शिव मंदिर के सामने अच्छी -खासी भीड़ जमा थी । भक्ति-रस मे डूबी आवाज़ें भी आ रही थीं – जय भोले बाबा, बम बम भोले, हर हर महादेव । अब मेरी उत्सुकता भी यह जानने के लिए कुलबुलाने लगी कि आखिर माजरा क्या है ? पास जाकर देखा मंदिर के ठीक सामने धरती से जल की धारा फव्वारे की तरह अवतरित हो गई थी । सामने भक्त गण श्रद्धा से सिर टेक रहे थे , उस पवित्र जल को हथेलियों में लेकर चरणामृत की तरह आचमन भी कर रहे थे । उस जल को पी कर आँखें बंद कर कह रहे थे – “वाह प्रभु , तूने तो जीते जी स्वर्ग का सुख दिला दिया । अब ज़िंदगी में और कुछ नहीं चाहिए”। जब तक मैं कुछ और समझ पाता मेरा दोस्त भी उन भक्तों की भीड़ में शामिल हो चुका था और हो गया शुरू । सुडुप -सुडुप करते हुए उस पाताल गंगा के पानी का स्वाद बहुत ही आनंद से लेते हुए आँखे बंद कर वह पूरी तरह से भक्ति-रस में सराबोर था। उन भक्तों के झुंड में कुछ ऐसे परम-भक्त भी मौजूद थे जिन्हें उस पवित्र जल को केवल पीने से ही संतुष्ट नहीं हुए । वे लोग तो अपनी ही नहीं, आने वाली सात पीढ़ियों के लिए उस पानी की जमाखोरी कर रहे थे - बोतलों में भी भर-भर कर ले जा रहे थे । तभी मेरे पास आकर दोस्त बोला – “ भाई जी , दूर क्यों खड़े हो, आप भी तो भोले बाबा का प्रसाद चखो ।” सवाल भक्ति और आस्था का था पर जाने क्या सोच कर मैंने दूर से ही प्रणाम कर दिया और वापिस अपने घर को चल दिया । रात के साढ़े बारह बज  चुके थे पर लगा इस कॉलोनी में हुई इस घटना की  जानकारी महाप्रबंधक तक जरूर पहुंचा देनी चाहिए – क्योंकि वह भी तो शिव भक्त थे । उनका नाम था – आर विस्वनाथन जो दक्षिण भारतीय थे । घर पहुंचते ही उन्हें फोन किया । सारी बात सुनकर , आधी नींद में भी अपने खास मद्रासी लहजे में हँस कर बोले “ कौशिक! अभी तो सो जाओ , सुबह देखेंगे” । 
अगले दिन सुबह-सुबह अपने आफिस में बैठा था तो उम्मीद के मुताबिक साहब का बुलावा भी आ गया। अपने बड़े से चेम्बर में चाय पी रहे थे, सामने सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के अधिकारी बैठे थे । इधर -उधर की कुछ बातों के बाद विस्वनाथन जी ने सामने बैठे इंजीनियर को इशारा किया । अब वह अधिकारी मेरी तरफ मुखातिब होकर बोले “ कौशिक जी, आज सुबह ही मैंने साहब के आदेश पर शिव मंदिर की उस चमत्कारी जगह का मुआयना किया । मुआयना भी क्या – बस अमझ लीजिए कि उस पानी निकालने वाली जगह की खुदाई ही कर डाली । पता लगा है जमीन के नीचे पानी की पाइप फट गई थी । वह पानी सीवर के गंदे पानी के साथ मिलकर बाहर निकल -निकल कर बह रहा है । यही है आपके चमत्कारी पवित्र जल की असली कहानी । ” सच्चाई का विस्फोट इतना भीषण होगा यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था । कान दबाकर चुपचाप वहाँ से खिसक लिया । 

कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है । असली मज़ा तब आता है जब चमत्कारी जल की असलियत अपने लँगोटिया दोस्त प्रमोद को भी बतायी । उसके बाद मज़े लेते हुए मैंने उनसे पूछा “ यार बस एक बात तो बता दे – उस सीवर से निकल रहे गंदे पानी का स्वाद कैसा था जो उस दिन तुम बड़े आनंद से गटक रहे थे । ” यह मैं भली प्रकार से जानता था कि जवाब मुझे बात से मिलेगा या लात से – इसलिए तुरंत वहाँ से सर पर पाँव रख कर भागने में ही भलाई समझी ।


( आभार :राजबन कॉलोनी से संबंधित सभी फ़ोटो श्री अनिल शर्मा 👇 के  सौजन्य से प्राप्त )