Thursday, 21 March 2019

हैदर का हौसला

ज्यादा पुरानी बात नहीं है | बहुत दिनों से घर पर बैठा बोर हो रहा था | घर से बाहर निकलना ही था सो घूमते- फिरते जा पहुंचा हुमांयू के मकबरे पर जो कि मेरे घर से कोई ख़ास दूर भी नहीं है | यह मकबरा दिल्ली के ख़ास दर्शनीय स्थानों में से एक है जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है इस जगह पर मुग़ल सल्तनत के बादशाह हुमांयू और उसके वशंजों और ख़ास दरबारियों को यहीं दफनाया गया था | हरे-भरे बाग़ में बसी यह यह सुन्दर सी इमारत मुग़ल वास्तु-कला का जीता-जागता नायाब नमूना है | | ऐतिहासिक महत्त्व का होने के कारण इस जगह पर देशी –विदेशी सैलानियों की भरमार लगी रहती है | किसी समय हरी-भरी दिल्ली आज इस मुकाम पर पहुँच चुकी है कि ताज़ी हवा में सांस लेने के लिए भी मकबरे और कब्रिस्तानों का आसरा लेने की नौबत आ चुकी है | 

हरियाली में घिरा हुमांयू का मकबरा 
तो उस दिन हुआ कुछ ऐसा कि मकबरे में घूमते-घामते, वहां के बाग़ तक भी टहलते हुए पहुँच गया | भीड़-भाड़ से दूर उस हरे-भरे पार्क में एक अनोखी शान्ति विराजमान थी | ताज़ी आबो-हवा और हरियाली उस पूरे माहौल को एक अलग ही ऐसी रंगत दे रही थी जिसे शब्दों में बताना भी मुश्किल है | एक पेड़ की छाँव में बैठा हुआ इस पूरे आलौकिक वातावरण के आनंद में पूरी तरह से खोया हुआ था कि अचानक एक बहुत ही सुरीली आवाज में आलाप लेता हुआ एक बीस-बाईस साल का लड़का नज़र आया | वह उस पार्क के चक्कर काट रहा था पर लगता था जैसे किसी और ही दुनिया में खोया हुआ है | पहली नज़र से देखने में ही वह एक अलग ही दुनिया का बाशिंदा महसूस हो रहा था क्योंकि उसके गले से संगीत की मीठी स्वर-लहरियां किसी पहाड़ी झरने की तरह से फूट रहीं थी | मेरे पास से जैसे ही वह गुज़रा, मैं स्वयं को उससे बात करने से रोक नहीं पाया | उसने अपने बारे में जो भी बताया वह मेरे दिमाग़ को झकझोरने के लिए काफी था | आइये आज आपसे भी उस बातचीत को साझा करता हूँ -
हैदर का बचपन  

उस लड़के का नाम है - हैदर अंसारी | बचपन से निहायत ही गरीबी के माहौल से टक्कर लेते हुए किसी तरह से गुज़र-बसर हो रही है | पिता की मौत तभी हो गयी जब हैदर महज सात साल का था | 
दिवंगत अब्बू के साथ हैदर 
हालात इतने खराब हो चले कि जिस माँ ने कभी घर से बाहर कदम नहीं रखा, परिवार पालने के लिए बेचारी को पान के खोखे पर बैठना पड़ा | बचपन से ही हैदर और उसके भाइयों को भी इस काम में हाथ बटाने के लिए दुकान पर भी बैठते |
तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूँ मैं
इस तंगहाल ज़िंदगी से परेशान हूँ मैं 

(फोटो सौजन्य : मौहम्मद समीर)
हुमांयू के मकबरे के इलाके में ही बसी हुई झौंपड-पट्टी में रहा | कुछ साल पहले मकबरे की मरम्मत और सौंदर्यीकरण का काम जब आगा खां ट्रस्ट और भारत सरकार द्वारा हाथ में लिया गया तब उस बस्ती को ही गिरा दिया गया | सर पर जो आसरा था वह भी छिन गया | वह तो गनीमत थी कि सरकार ने इस बात का ख्याल रखा कि बस्ती से उजड़ कर जाने वालों को तीस किलोमीटर दूर रहने की जगह दिलवा दी | पर हालत तो अब इस मायने में और बुरी हो गयी कि रिहाइश दिल्ली के एक कोने में और काम-धंधा वहां से इतनी दूर | हैदर को इस बात का बहुत मलाल है कि माँ को रोज काम के सिलसिले में ३० किलोमीटर का सफ़र करना पड़ता है | पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछने पर हैदर ने बताया कि वह बारहवीं कक्षा तक दिल्ली पब्लिक स्कूल , मथुरा रोड से पढ़ा है | यह दिल्ली का नामी-गिरामी स्कूल है जहां पर अच्छे-अच्छे अमीर और खासे रसूख वाले लोग भी अपने बच्चों का दाखिला करवाने के लिए तरसते हैं | हैदर वहां कैसे पहुँच गया ? खुद हैदर ने यह राज़ खोला कि इस इतने नामचीन स्कूल में दाखिला मिलने में भी आखिर उसकी गरीबी ही काम आयी | सरकारी दिशानिर्देशों के कारण उन पब्लिक स्कूलों के लिए आस-पास के इलाकों में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए भी दाखिला देने की बाध्यता होती है | सुनकर एक बारगी तो मैं भी सोच में पड़ गया- पैसा जहां काम न आया, ग़ुरबत ने अपना काम कर दिया | हाँ इतना जरूर था कि सुबह के समय साहबी बच्चों के बाद ही उन गरीब बच्चों के लिए स्कूल में शाम के समय अलग शिफ्ट में पढ़ाई करवाई जाती जिससे राजा और रंक में हमेशा से चला आ रहा फर्क आगे आने वाली नस्लों में भी बाकायदा बरकरार रहे |
अब बात आयी संगीत के शौक की तो हैदर ने बताया कि यह जुनून तो उसमें बचपन से ही है | हाँ इतना जरूर है कि पैसे की किल्लत के कारण इसकी विधिवत शिक्षा उस प्रकार से नहीं ले पाया जैसी होनी चाहिए थी | इस बात का मलाल आज भी उसे है कि संगीत के गुरू का हाथ अगर सर पर होता तो शायद आज वह भी उस मुकाम से बहुत बेहतर होता जहां आज है | वह महसूस करता है कि उसकी हालत बहुत कुछ उस नौसीखिए तैराक की तरह है जिसे समुद्र में सीधे धकेल दिया गया हो| अपने हाथ-पाँव मार कर , संगीत के प्रति जन्मजात रुझान और शौक की वजह से और दूसरे अच्छे गायकों को सुन-सुन कर ही खुद रियाज़ कर लेता है | जहां कहीं भी कोई संगीत का कार्यक्रम होता है कोशिश होती है अपना हुनर दिखाने का मौक़ा मिल जाए , चाहे पैसा न भी मिले | 
गाने का दीवाना : हैदर अंसारी 
हैदर बताते हैं कि इनके कई गाने यू ट्यूब पर भी हैं | पैसे की तंगी के बावजूद , इन गानों की वीडिओ रिकार्डिंग भी किसी न किसी तरह से करवा ही लेते हैं| कभी दोस्तों से उधार ले कर तो कभी मदद लेकर | यही कारण है कि ज्यादातर म्यूजिक वीडिओ में हैदर किसी और के साथ नज़र आते हैं | ये दूसरे कलाकार अक्सर वही होते हैं जो उस वीडिओ के लिए आर्थिक योगदान देने में सक्षम होते हैं | यह बात नहीं है कि इन साथी कलाकारों के हुनर में किसी प्रकार की कमीं है , उनकी गायकी अपनी जगह और आर्थिक सहायता अपनी जगह | स्वभाव से ही संवेदनशील हैदर बहुत कम बोलने वाला और अपनी ही दुनिया में खोया रहता है | दिमाग में उधेड़-बुन चलती रहती है जब कोई नया गीत जन्म ले रहा होता है | अपनी माँ के प्रति आदर और सम्मान देने के लिए अन्य साथी कलाकार- अल्ताफ शाह  के साथ एक म्यूजिक वीडिओ बनाया है जिसे आप भी पसंद करेंगे | हैदर की यही दिली इच्छा है कि संगीत की दुनिया में इतना नाम कमाए कि माँ को मेहनतकश ज़िंदगी से निजात मिल सके | नीचे के लिंक पर आपके लिए उसी गीत को दे रहा हूँ , जरूर सुनिएगा :

और हाँ , चलते-चलते मेरे दिमाग में एक फितूरी ख्याल भी मंडरा रहा है | पुराने ज़माने में बादशाहों के दरबारियों में संगीतज्ञों और गायकों की ख़ास इज्ज़त होती थी जैसे तानसेन, बैजूबावरा | मुझे लगता है उन जैसे ही किसी की आत्मा हैदर के रूप में आज भी उस मकबरे में सोये पड़े शाही खानदान का सुरीला मनोरंजन कर रही है |



Friday, 15 March 2019

भोलू का दर्द

उस दिन सुबह-सुबह एक पिल्ले की दर्दनाक चीखों की आवाज सुनकर बिस्तर छोड़ कर घर के बाहर निकला | मैं मोहल्ले की उस पूरी कुत्ते और पिल्ले बिरादरी से पहले से ही भली तरह से परिचित था | आप यह भी समझ सकते हैं कि एक तरह से वो सब मेरे दोस्त रहें हैं – और मेरे घर के रेम्प पर ही उनका रात भर जमावड़ा रहता है | हर सुबह घर से बाहर निकलने पर सबसे पहले उनकी टीम ही मेरा उछल-कूद कर हार्दिक अभिनन्दन करती है | महानगरों की आज की संस्कृति में, जब पड़ोसी भी पड़ोसी को नहीं पहचानता है, ऐसे में ये बेजुबान दोस्त ही रह जाते हैं इंसानों को यह याद दिलाने के लिए कि इस दुनिया में अगर आप भूल चुके हैं अपनेपन की भावना को तो हम से सीखो | क्या देखता हूँ सड़क के किनारे एक पिल्ला भयंकर पीड़ा में पड़ा रो रहा है | उसकी इन चीखों को सुनकर उसकी माँ भी तुरंत दौड़ती हुई आ गयी | उसी पिल्ले के , जिसे हम आगे भोलू के नाम से पुकारेंगे, छोटे-छोटे अन्य साथी भी आनन-फ़ानान में आ पहुँचे | उन साथियों में से एक ने तो महीन सी आवाज में रोना भी शुरू कर दिया | एक दूसरे साथी ने शायद भोलू का ध्यान बटा कर दर्द कम करने की कोशिश में, उसके साथ हल्का सा खिलवाड़ करने की तरकीब आजमानी चाही | पर हुआ इसका ठीक उल्टा असर – भोलू की माँ को यह कोशिश नागवार गुज़री और उस शरारती दोस्त को बुरी तरह से झिंझोड़ कर ऐसा करने से रोक दिया | भोलू की माँ का गुस्सा पूरे सातवें आसमान पर था | गुस्से में उसने सड़क के पास से निकलने वाले एक राहगीर को काटने की भी कोशिश की | अब तक मैं वहां खड़ा सारी स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रहा था | क्या देखता हूँ कि थोड़ी ही दूर सड़क पर एक कार खडी हुई है | अब मैं समझ चुका था , यह वही तेज रफ़्तार कार थी जो कुछ ही देर पहले भोलू की टांग को बुरी तरह से कुचलती हुई आगे निकल गयी थी | गाड़ी में बैठा नवयुवक, अन्दर से ही रियर- व्यू मिरर से अपनी करनी का नतीजा देख रहा था | पता नहीं कैसा इंसान था, इतनी मानवता भी नहीं थी कि कम से कम गाडी से नीचे उतर कर उस रोते हुए बेजुबान निरीह प्राणी को एक नज़र देख तो लेता | कुछ ही देर में उसने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और चलता बना | 

भोलू का अब भी रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था | कुछ देर बाद बेचारे ने अपनी हिम्मत जुटाई और अपने तीन टांगों के सहारे से ही सड़क के किनारे एक पेड़ की छाँह तक पहुंचा और निढाल हो कर एक तरह से बेहोश हो कर पड़ गया | अभी तक मैं भी उसे उठाने की कोशिश नहीं कर रहा था और उससे पहले लगी चोट का जायजा लेना चाह रहा था | भाग्यवश भोलू को बाहर से खून नहीं निकला था पर पैर में शायद अंदरूनी चोट थी| दोपहर तक भी उस गरीब का वही खराब हाल था | अब सोचा इसे किसी डाक्टर को दिखा देता हूँ , पर मेरे घर के पास का डाक्टर तो साहबों के कीमती कुत्तों का डाक्टर था और उसकी मोटी ताज़ी फीस भी मुझ रिटायर्ड आदमी की पहुँच से बाहर | एक और एन.जी.ओ. डिस्पेंसरी का पता चला जो काफी हद तक ठीक –ठाक थी| दोपहर को उस अस्पताल में भोलू को लेकर पहुंचा | डाक्टर ने मुआयना करके दो इंजेक्शन लगा दिए और कहा इससे ही आराम आ जाना चाहिए | अब भोलू को वापिस ले आया | बेचारे का दर्द दो दिन के बाद भी वैसा ही | फिर से उसी अस्पताल में भोलू को ले कर गया | इस बार डाक्टर ने भी मेरे आग्रह करने पर और ज्यादा ध्यान से मुआयना किया क्योंकि मैं उसे इस बार भी भुगतान करने का आश्वासन भी दे चुका था | पता चला भोलू के पाँव में फ्रेक्चर था | अब उस फ्रेक्चर पर बाकायदा प्लास्टर चढ़ाया गया | उस पूरे समय भोलू बेचारा दर्द से चीखें मारता रहा | खैर .... जैसे- तैसे प्लास्टर करवा कर वापिस घर आया | तौलिये में लिपटे भोलू को देखते ही उसकी सारी दोस्तों की मंडली ने खुश होकर घेर लिया और उसकी माँ की खुशी का तो मानो कोई ठिकाना ही नहीं था | मेरे घर में भोलू ज्यादा देर नहीं रुका | उसके दोस्त गेट के बाहर से ही शोर मचा-मचा कर मानों पूछ रहे हों – हाल कैसा है जनाब का |आखिर घर के बाहर पार्क में बने उसके पुराने अड्डे पर उसे छोड़ दिया | प्लास्टर बंधी टांग से पहले दिन तो भोलू परेशान रहा पर अगले दिन से उसे काफी हद तक आराम मिला | उसके दोस्त अब आस-पास ही घूमते रहते हैं जिससे भोलू का मन भी लगा रहता है | आइये आप को भोलू के दर्शन भी करवा देता हूँ :
भोलू का बेड रेस्ट 


दोस्त मेरे साथ है - अब पहले से कुछ आराम है 

अब अगर आराम है तो थोडा घूमने में क्या बुराई है 
मेरी आप सभी से केवल एक गुजारिश है : जब कभी भी अपनी गाड़ी में बैठें, उससे पहले एक बारगी नीचे झाँक कर अवश्य देख लें कहीं कोई बेसहारा कुत्ता, गर्मी से बचने के लिए , छांह की आस में , उसके नीचे तो नहीं बैठा | हम सब इंसान हैं इसलिए सड़क पर गाड़ी भी इंसानों की तरह से ही चलायें जिससे किसी को भी चोट न लगे – चाहे वह इंसान हो या जानवर | अगर आप को ध्यान हो , केरी की दर्दनाक मौत भी स्कूल बस की लापरवाही से ही हुई थी | (एक थी केरी -  भाग 2 )
अब तो मुझे बस इंतज़ार है जब चालीस दिनों के बाद भोलू के पाँव का प्लास्टर कटेगा | मैं उसके पाँव के ठीक होने की ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूँ और आप भी करिए क्योंकि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है | जिस दिन भोलू अपने पैरों पर दौड़ेगा मैं आपको वह खुशखबरी भी जरूर दूंगा | आप भी इंतज़ार कीजिए |

Saturday, 9 March 2019

लैला, मजनूं और कर्नल


लैला, मजनूं और कर्नल - लगता है ना बड़ा ही अजीबो-गरीब जोड़-तोड़ | आप भी सोच रहे होंगें इन तीनो का क्या मेल | यह तो बिलकुल ऐसा ही लगता है जैसे तोता-मैना और बंदूक का आपस में हिसाब-किताब हो | आपका सोचना भी अपनी जगह ठीक हो सकता है पर कभी-कभी असल ज़िंदगी में जब ये आपस में टकरा जाते हैं तो वाकई में ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है कि न उगलते बनता है और न निगलते | चलिए अब बात को और न उलझाते हुए सीधे किस्से  पर आते हैं| 

तो हुआ कुछ यूँ कि एक दिन बैठे-बिठाए अपने एक मित्र से मिलने का मन कर आया जो कि एक नामी –गिरामी अस्पताल में अच्छे-खासे ऊँचे ओहदे पर काम करते हैं | पहुँच गए उनसे मिलने | बहुत ही व्यस्त रहते हैं – सो इससे पहले कि उनके आफिस तक पहुंचता, वे अस्पताल की लॉबी  में ही चहल-कदमी करते नज़र आ गए | आदत के अनुरूप, तपाक से बड़ी गर्मजोशी से मिले और अपने आफिस की और ले चले | लाबी से दफ्तर तक के रास्ते में अनगिनत नमस्ते और सलामों की बारिशों का अपनी मुस्कान से उत्तर देते हुए अपने कमरे तक पहुंचे | सीट पर बैठते ही चपरासी ने चाय पेश कर दी | चाय की चुस्कियां लेते हुए इधर-उधर के हाल-चाल पूछते हुए अचानक उनसे सवाल कर बैठा – “गुरु , यह बताओ आखिर आप इस अस्पताल में करते क्या हो ? मैं आज तक तुम्हारे काम-काज के बारे में आज तक नहीं जान पाया हूँ |” चाय की चुस्की लेते हुए उन्होंने जवाब दिया - बस यह समझ लो कि हर किसी के पंगे का निपटारा करने की मुसीबत मेरे ही सर पर है | मैंने कहा समझा नहीं तो बोले आप चाय पीजिए , जल्द ही समझ भी जायेंगे और खुद देख भी लेंगें | 

अभी चाय ख़त्म भी नहीं हुई थी कि अचानक उनके फोन की घंटी बजी | फोन सुनकर कहा- अभी आता हूँ| मेरी तरफ देखते हुए बोले - चलिए कौशिक जी , मोर्चे पर | अपने दफ्तर से निकल कर जैसे ही वार्ड की तरफ चले, रास्ते में ही मित्र को नमस्कार करते हुए एक सज्जन मिले और बोले मैंने ही आपको फोन किया था | मेरा नाम कर्नल गुप्ता है, फिलहाल बड़ी परेशानी में हूँ, मदद कीजिए | पहली नज़र से देखने से ही कर्नल साहब के पसीने छूटते साफ़ महसूस किये जा सकते थे | वे बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे, मेरा मोबाइल वापिस करवा दीजिए | पूरी बात सुनने पर एक अजीब ही कहानी सामने आयी | दरअसल कर्नल साहब, जिनकी उम्र होगी यही कोई सत्तर साल के आस-पास , अपनी कार में कहीं जा रहे थे | कार उनका ड्राइवर चला रहा था | अचानक एक तेज़ गति से आ रही मोटर-साइकिल ने धड़ाम से कार की पिछाड़ी में इतनी जोरदार टक्कर मारी कि पूरी कार इस बुरी तरह से धमाके से हिल उठी जैसे सर्जिकल स्ट्राइक की बमबारी हो गयी हो | कार के अन्दर बैठे कर्नल साहब भी एक क्षण को भौंचक रह गए कि हुआ तो हुआ क्या | बाहर निकल कर देखा तो पाया उनकी कार की पिछाड़ी का रखवाला बम्पर, मोह-माया से मुक्त योगी की भांति, कार से अपने सभी सम्बन्ध तोड़ कर, सड़क पर दंडवत मुद्रा में पड़ा था | उस बम्पर की बगल में ही वह कबाड़ पड़ा था जिसे कुछ समय पहले तक मोटर साइकिल के नाम से जाना जाता था पर जो सड़क पर हवाई करतब दिखा रही थी | और उन सबसे कुछ दूर सड़क पर ही टूटी-फूटी हालत में पड़ा था डेढ़ पसली का जां-बाज हीरो जो सड़क को अपनी खानदानी मिल्कियत की हवाई पट्टी और अपनी मोटर साइकिल को फाइटर प्लेन समझ कर सड़क पर ही उड़ा रहा था| अब कर्नल साहब ने अपनी फ़ौजी परम्परा और मानवता का परिचय देते हुए उस घायल युवक की सहायता को तुरंत पहुंचे | अपना फोन दिया कि अपने घर वालों को सूचित कर दो | अपनी कार में लेकर अस्पताल तक लाये , भर्ती करवाया | कुछ ही देर में उस घायल युवक के कुछ दोस्त और पिता भी अस्पताल पहुँच गए | कर्नल साहब ने यहाँ भी मानवता का परिचय देते हुए कहा कि हालांकि उनकी कोई गलती नहीं है फिर भी वह इलाज़ में भी रुपये-पैसे से मदद करने को तैयार हैं | इस अफरा-तफरी में अब कर्नल साहब को अपने मोबाइल का ध्यान आया जो कुछ समय पहले उन्होंने उस घायल युवक को सड़क पर आपातकालीन अवस्था में पकड़ाया था | जब उन्होंने उस युवक से अपने फोन को वापिस मांगा तो बन्दे ने यह कह कर साफ़ मना कर दिया कि मुझे आपने कोई फोन कभी दिया ही नहीं था | अब कर्नल साहब की सिट्टी-पिट्टी गुम | कहते हैं आदमी बदमाशी की जंग तो बहुत आसानी से जीत लेता है पर इन्सानियत की लड़ाई में अकसर हार जाता है | यहाँ भी मामला काफी कुछ ऐसा ही लगा रहा था और इस परेशानी में कर्नल साहब को मेरा अस्पताली  मित्र याद आया | मित्र ने सबसे पहले यह बात साफ़ करी कि अस्पताल का इस मामले में कुछ लेना-देना नहीं है , यह आप दोनों के बीच का मसला है फिर भी देखता हूँ कि क्या कर सकता हूँ | उस युवक के पिता जी हक्के -बक्के खड़े थे, मानो उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा हो | इस बीच मेरे मित्र ने जोर से सबको सुनाते हुए कर्नल साहब को सुझाव दिया कि आप मोबाइल के बारे में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए | पुलिस यहीं अस्पताल में मौजूद है, सारी तहकीकात हो जायेगी और सच भी सामने आ जाएगा | इतना सुनते ही उस घायल सड़क छाप हवाई पायलट के चेहरे पर मानों आफत के तीतर-बटेर एक साथ उड़ने लगे | कभी वह अपने दोस्तों की मंडली को देखता तो कभी अपने अब्बा को | इतने में उसके एक दोस्त ने मेरे अस्पताली मित्र का हाथ पकड़ कर एक कोने में ले गया और धीमे स्वर में लगभग फुसफुसाती आवाज में कहा – “ सर , हाथ जोड़ता हूँ , यह पुलिस का झमेला मत करिए | मोबाइल आप को वापिस मिल जाएगा| बस आप बात समझिए |” अब गुर्राने की बारी कर्नल की थी, लगभग धमकी के अंदाज़ में बोले “ साफ़-साफ़ बात बोलो,इससे से पहले कि कुछ और गलत हो जाए |” युवक के दोस्त ने अब जो बताया उसने पूरी कहानी को एक नया ही मोड़ दे दिया | दरअसल अब इस किस्से में एक लैला की भी एंट्री हो चुकी थी | उस दिन मौसम बहुत ही सुहावना था और वह युवक जिसे हम अब मजनूं  भी पुकार सकते हैं, अपनी फटफटी पर लैला को लेकर निकल पड़े थे  सड़क पर तूफानी रफ़्तार से | उस ट्रेफिक से भरपूर सड़क पर लैला-मजनूं  का दुपहिया जहाज़ मानों उड़ा ही चला जा रहा था | उस रफ़्तार को देख कर एक बारगी तो भारतीय वायुसेना को भी लग रहा था कि उन्होंने राफेल हवाए जहाज़ के आर्डर देकर शायद गलती कर दी | जब उस मजनूं  की मोटर साइकिल अनियंत्रित होकर कर्नल की कार की पिछाडी से जा कर भिड़ी तब कर्नल से मिले मोबाइल को उसने अपनी लैला को सौप दिया क्योंकि वह खुद फोन करने की हालत में नहीं था | अब लैला ठहरी नए ज़माने की | पुराने ज़माने की होती तो मजनूं  का सर सड़क पर ही अपनी गोद में रख कर दुपट्टे से हवा कर रही होती | यहाँ तो उसने जैसे ही भीड़ जुटती देखी, मोहतरमा हो गयीं तुरंत ही नौ-दो- ग्यारह | अब लैला फुर्र और लैला के साथ कर्नल का मोबाइल भी फुर्र | अब इधर अस्पताल में भर्ती मजनूं  की हालत अपने बाप के जूते के डर से और भी पतली | अपने बाप से कहे भी तो कहे क्या – यही कि बापू, कर्नल का मोबाइल आपकी होने वाली बहू के पास है जिसे साथ बिठा कर मैं सड़क पर हवाई जहाज़ उड़ा रहा था| अब अगर लैला नए ज़माने की थी तो यह मजनूं  भी शर्तिया उसी की टक्कर का था | पुराना मजनू नहीं डरा था पत्थरों के वार से , पर इस मजनूं की तो बत्ती बंद हो गयी थी बापू की मार से | यही सोचकर उस मजनूं की डर के मारे सच बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी | कुल मिला कर इस दास्ताने लैला-मजनूं का हर किरदार परेशान : 

मजनूं परेशान कहीं बापू को पता न चल जाए,
लैला परेशान कहीं इस सारे लफ़ड़े में बदनामी न हो जाए ,
कर्नल परेशान हाय कहाँ गया मेरा मोबाइल,
और सबसे ज्यादा परेशान मेरा अस्पताल वाला मित्र यह सोच कर कि ये सारे बेमतलब के पंगे सुलटाने के लिए मेरे ही हिस्से में क्यों आते हैं |

खैर सारी कहानी का अंत इस आश्वासन के साथ हुआ कि कर्नल को उसका मोबाइल गुपचुप तरीके से वापिस करवा दिया जाएगा | अब यह सचमुच हो पाया या नहीं यह मैं आप सबकी कल्पना पर छोड़ता हूँ क्योंकि उस दिन के बाद मैनें भी अपने अस्पताली मित्र की कोई खोज-खबर नहीं ली है |